नमस्कार दशकों! खबरों की खबर का सच स्पेशल कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज हम भारत देश में वर्ष के अंत में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहारी सीज़न के बारे में चर्चा करेंगे और साथ ही इस समय मनाए जाने वाले त्योहारों के दौरान होने वाली फिजूल खर्ची, शोरशराबा, आडंबर, घोर प्रदूषण, तगड़ा ट्रैफिक जाम और अज्ञानता पर भी नज़र डालेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं आज की हमारी विशेष पड़ताल।
दोस्तों, आम आदमी के लिए दीपावली का मतलब घर की सफाई, खरीदारी, मिठाई, दिये, पटाखे और लक्ष्मी पूजन होता है। दीपावली को भारतीय संस्कृति में सबसे बड़े त्योहार के रूप में देखा जाता है। पांच दिवसीय इस त्योहार को पूरे विश्वभर में 4 नवंबर, 2021 को खुब उल्लास के साथ मनाया गया। दीवाली पर आने वाले त्योहारों के चलते देशभर में छुट्टी और खुशहाली का माहौल था। ऐसा लगा मानो लोग पिछले दो साल में जो भी विश्वभर में घटित हुआ उसे भूल गए हों और दीवाली की रोशनी में खुशियां ढूंढने लगे हों। त्योहार के इस समय पर लोग हर साल की तरह इस बार भी लाखों–करोड़ों रुपयों की खरीदारी करने में मशगूल दिखे। त्योहारों के शुभ मूहूर्त के चलते लोग नया घर, गाड़ी, सोना, कपड़े, बर्तन, मोबाइल, फर्नीचर, आदि चीजों को खरीदते दिखाई दिए। जहां दस ग्राम सोने का रेट 49,025 (24k gold) रूपये था फिर भी सोना खरीदने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं दिखी। दीवाली के दौरान एअर क्वालिटी ( AQI) का स्तर भी काफी खराब था और सब ओर ट्रैफिक जाम दिखा। दिल्ली सरकार ने वैसे तो पटाखे जलाने का समय रात्रि 8-10 बजे तक निर्धारित किया था परंतु पटाखों की आवाज़ मध्य रात्रि तक रूक रूककर सुनाई देती रही। इस बार की दीवाली भी वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने में सफल रही। छोटी दीवाली के दिन राम की नगरी अयोध्या में नौ लाख तेल से दिए रौशन किए गए बाद में दियों में बचे तेल को ज़रूरतमंद लोग एकत्रित करते हुए भी देखे गए।
सरकारी और प्राइवेट नौकरी करने वाले कर्मचारियों को इन दिनों बोनस, कैश मनी, मिठाई और कंपनी से उपहार मिले। दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच भी मिठाइयों , तौहफों और अन्य उपहारों का लेनदेन हुआ। कई लोगों ने अपने घर दीवाली की पार्टी आयोजित कर दीवाली की खुशी अपनों के साथ शेयर की। इसके अलावा लोगों ने अपने घरों, आफिसों और दुकानों को रंगोली, डेकोरेशन, लाइटिंग , मोमबत्तियों और दियों को जलाकर रोशन किया। प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों के पटाखों को जलाकर दीवाली को मनाया जाता है। परंतु ऐसी दीवाली सबके घर नहीं थी लाखों घर ऐसे भी थे जिन्होंने कोरोना महामारी और अन्य कारणों से अपनों को खोया था। गरीब की दीवाली आज भी मेहनत और दो जून रोटी के जुगाड़ वाली ही थी। दीवाली सब के लिए खुशियां लाए यह ज़रूरी तो नहीं।
क्या कारण है की त्योहारी सीज़न में पूरे विश्व में रहने वाले भारतीय लोगों की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है?
आज हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं । समाज अत्याधुनिक और पाश्चात्य संस्कृति के बीच में सामजंस्य बिठाने का प्रयास कर रहा है। परिवार छोटे और न्यूक्लियर हो गए हैं। भारत के लोग आज विश्वभर में अलग अलग जगहों पर काम की तलाश करते हुए बस चुके हैं। वह वहां भारत से दूर होकर भी भारतीय संस्कृति को अपने अंदर बसाए रखना चाहते हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति हमें सनातन धर्म से जोड़े रखती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो.बाइडन और उनकी वाइफ ने भी दीवाली के मौके पर वाइट हाऊस में मोमबत्ती से दीप जलाते हुए अमेरिकी भारतीयों और भारतीयों को दीवाली की मुबारकबाद दी। वहीं भारतीय मूल की अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा जो शादी के बाद अपने पति निक जोनस के साथ लॉस एंजिलिस में रहती हैं उन्होंने भी अपने दोस्तों के साथ दीवाली की पार्टी मनाई और अपने फैंस को विश किया।
पौराणिक कथाओं पर आधारित त्योहार लोगों को जीवन में रंग और खुशी भरने का मौका दे रहे हैं। वेद, ग्रंथों और धार्मिक पुस्तकों से अनजान आज की आधुनिक पीढ़ी युगों पहले मनाए गए दीवाली के मौके पर राम जी के अयोध्या लौटने की खुशी मना रही है बिना इसकी परवाह किए की वही राम जो सीता जी को कड़ी अग्नि परीक्षा लेकर घर वापिस लाए थे और उसी मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दो साल बाद धोबी के व्यंग से सीता जी को लक्ष्मण से कहकर दूर जंगल में छुड़वा दिया था। कुछ तो विचार कीजिए क्योंकि सीता और राम के विछोह के बाद अयोध्या में उसके बाद किसी ने भी दीवाली कभी नहीं मनाई तो आप क्यों मना रहे हो?
आजकल लोग त्योहारों, परंपराओं, मान्यताओं और प्रथाओं का वहन केवल मनोरंजन के लिए भी करने लगे हैं।
लोग दशहरा, करवाचौथ, धनतेरस, दीवाली ,गोवर्धन पूजा, भैया दूज के पीछे छिपे कारण व तथ्यों को जाने बिना उनका अंधाधुंध निर्वाह कर रहे हैं। त्योहार मनाने से आध्यात्मिक लाभ मिले न मिले परंतु क्षणिक मानसिक खुशी ज़रूर मिल रही है और इसी कारण देखा देखी इन क्रियाओं को अब विदेशों में भी अपनाया जाने लगा है।
कोशिश करते हैं की दीपावली के इस त्योहार को मनाना कहां तक सही है?
दोस्तों! एक दूसरे की देखा देखी धार्मिक क्रियाएं करने वाले लोग ये नहीं जानते की ये धार्मिक क्रियाएं करना कहां तक उचित है?
आमतौर पर अपने धर्म का निर्वाह करने वाले लोग स्वयं ये नहीं जानते की उनका धर्म क्या कहता है। दरअसल, किसी भी धर्म और उसकी धार्मिक क्रियाएं जैसे कोई भी त्योहार को मनाने का कारण, मुहूर्त, रीति रिवाज आदि को समझने के लिए उस धर्म की धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। किसी भी धर्म की स्थापना करते समय उस धर्म के विषय में संपूर्ण जानकारी उस धर्म की धार्मिक किताबों में लिख दी जाती है, जिसे उस धर्म का संविधान भी माना जाता है। किंतु यदि उस धर्म को मानने वाले श्रद्धालु या विद्यार्थी स्वयं ही अपने सिलेबस की किताबों को पढ़कर समझने का प्रयत्न करता है तो वह उसे ठीक से नहीं समझ पाता तथा अर्थ के अनर्थ कर देता है। पंडित या ब्राह्मण जिन पर आप विश्वास करते हैं ये वेद और गीता पढ़ना ज़रूर जानते हैं परंतु आज तक ये उनमें लिखे गूढ़ सत्य को समझ नहीं सके न समझा सके। इसी विषय में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी बताते हैं,
कबीर, गुरु बिन वेद पढ़ें जो प्राणी।
समझे न सार रहे अज्ञानी।।
जैसे पवित्र चारों वेदों और श्रीमद्भगवाद गीता को परमात्मा का संविधान माना गया है। लेकिन इन पवित्र सद्ग्रंथों का असली सार आज तक कोई नहीं समझ पाया। वर्तमान समय में स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में धरती पर आए हुए हैं। उन्होंने सभी धर्मों के पवित्र सद्ग्रंथों को खोलकर उनका सही सही अर्थ व निष्कर्ष प्रभु प्रेमी आत्माओं के सामने उजागर किया है। उन्होंने बताया है की वेदों और गीता जी में कहीं पर भी दीपावली और अन्य त्योहारों को मानने का प्रावधान नहीं है, जिसके चलते इन त्योहारों को मनाना शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करना है। हिंदू धर्म के धर्मगुरु बताते हैं की लंका से जब माता सीता को छुड़वाकर त्रिलोकीनाथ भगवान रामचन्द्र अयोध्या लौटे थे तब अयोध्या वासियों ने उस खुशी के अवसर पर पूरे राज्य में दीपक जलाकर दीपावली का त्योहार मनाया था और तब से ही दीपावली की प्रथा की शुरुआत हुई थी।
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लेकिन नकली धर्मगुरु यह नहीं बताते की अयोध्या वासी केवल दो वर्ष ही दीपावली का त्योहार मना पाए थे। अगले वर्ष भगवान रामचन्द्र ने एक धोबी के व्यंग कसने पर गर्भवती माता सीता जी को राज्य से निकाल दिया था, जिसके बाद अयोध्या में कभी दीपावली की खुशी नहीं मनाई गई। उन्होंने कभी पटाखे नहीं फोड़े थे , न ही आपस में उपहारों का लेनदेन किया था और न ही लक्ष्मी जी की पूजा की थी । यह रहस्य केवल संत रामपाल जी महाराज जी ने ही समाज के सामने उजागर किया है।
यदि हम दीपावली पर की जानी वाली क्रियाओं से होने वाले लाभ व नुकसान पर एक नज़र डालें तो यह मालूम पड़ता है की पवित्र श्रीमद्भागवत गीता जी के अध्याय 16 के श्लोक 23 और 24 के अनुसार शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं करना व्यर्थ है, जिसके चलते दीपावली पर की जाने वाली सभी क्रियाएं व्यर्थ हैं। दीपावली के दिन पटाखे जलाने से प्रकृति में इतना प्रदूषण फैल जाता है जिसके चलते असंख्यों जीव जंतुओं की मौत हो जाती है, यहां तक कि मनुष्यों व पशु पक्षियों के लिए भी सांस लेना दुभर हो जाता है। अधिकतर पक्षी पटाखों की ज़ोरदार आवाज़ के कारण डर कर ही मर जाते हैं । गली के कुत्ते पटाखों के भय से गाडि़यों के नीचे दुबक जाते हैं। इस दौरान हुए प्रदूषण के कारण सैकड़ों लोगों को नई नई बीमारियां घेर लेती हैं।
काल ब्रह्म के इस इक्कीस ब्रह्मांड में सुख नाम की चीज नहीं है। ऐसे में हम खुशी किस बात की मना रहे हैं?
कई दुखी परिवार वाले बताते हैं की हमने पिछले कई वर्षों से कभी कोई त्योहार नहीं मनाया। हमारे परिवार में कभी किसी मौसी की मौत हो गई, तो कभी चाचा मर गए, कभी बुआ मार गई। इतने सालों से कभी सुख की सांस नहीं ली। सच्चाई तो ये है की कर्ज़दार, रोगग्रस्त और गरीब व्यक्ति के लिए यह त्योहार एक श्राप के समान बन जाता है। यह नकली त्योहार हम नकली धर्मगुरुओं की आड़ में मनाते आ रहे हैं।
बंदीछोड संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है की पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति करने वाले साधक के लिए 365 दिन दीवाली होती है। इस दिन और बाकि सब दिन परमात्मा का सत्संग सुनना चाहिए।
कबीर, सदा दिवाली संत की, बारह मास बसंत।
प्रेम रंग जिन पर चढ़े, उनके रंग अनंत।।
संत रामपाल जी महाराज के करोड़ों अनुयायी सत्य आध्यात्मिक ज्ञान समझने के बाद किसी भी प्रकार का त्योहार न मनाते हैं न ही उसमें कोई सहयोग देते हैं। इस मनुष्य जीवन का एक ही मुख्य उद्देश्य है वो है सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना।
इस वीडियो को देखने वाले सभी लोगों से निवेदन है की आध्यात्मिक ज्ञान को समझने और शास्त्र आधारित भक्ति करने के लिए आज ही संत रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लें और अपना कल्याण करवाएं क्योंकि आपको अपनी आत्मा को रोशन करना है।