संयुक्त राष्ट्र ने जारी की नई जनसंख्या रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र की एक नई जनसांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या 1.46 अरब तक पहुँचने की संभावना है। इसके साथ ही भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा, जिससे वह चीन को पीछे छोड़ देगा।
इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देश की प्रजनन दर अब प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे आ चुकी है। यानी औसतन प्रति महिला बच्चों की संख्या उस स्तर से कम हो गई है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए ज़रूरी होता है।
यह जानकारी यूएनएफपीए (UNFPA) की 2025 स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, “द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस”, में दी गई है। रिपोर्ट का मुख्य फोकस प्रजनन क्षमता में गिरावट को लेकर व्याप्त घबराहट से हटकर इस बात पर है कि लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि की बजाय अब ध्यान उस दिशा में देना होगा, जहाँ हर व्यक्ति को अपने प्रजनन अधिकारों को पूरा करने का अवसर मिल सके।
भारत और यूएनएफपीए की जनसंख्या रिपोर्ट से जुड़े मुख्य बिंदु:
1. भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 अरब तक पहुँच गई है, जिससे यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।
2. भारत की कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 बच्चे प्रति महिला रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे है।
3.1960 की तुलना में आज महिलाओं को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और निर्णय लेने के अधिकार प्राप्त हुए हैं।
4. गर्भनिरोधक साधनों और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता से मातृ मृत्यु दर में बड़ी गिरावट आई है।
5. भारत की 68% आबादी कार्यशील आयु वर्ग (15–64 वर्ष) की है, जो आर्थिक विकास के लिए अवसर प्रदान करती है।
6. वर्तमान में बुज़ुर्ग आबादी (65+) 7% है, जो आने वाले दशकों में बढ़ेगी।
7. 2025 तक, पुरुषों की औसत आयु 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष अनुमानित है।
8.रिपोर्ट के अनुसार राज्य, जाति और आय वर्गों में गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।
9. वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश तब मिलेगा जब सभी को प्रजनन से जुड़े निर्णय लेने की स्वतंत्रता और संसाधन मिलें।
यूएनएफपीए रिपोर्ट : प्रजनन अधिकारों पर केंद्रित है असली संकट
रिपोर्ट के अनुसार, वास्तविक संकट अल्प जनसंख्या या अति जनसंख्या नहीं है, बल्कि यह है कि लोग अपनी प्रजनन क्षमता से जुड़े फैसलों को पूरी स्वतंत्रता और जानकारी के साथ नहीं ले पा रहे हैं। इसका समाधान बेहतर प्रजनन अधिकारों में निहित है अर्थात् किसी व्यक्ति की यह क्षमता कि वह गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने जैसे मुद्दों पर 100% स्वतंत्र और सूचित निर्णय ले सके।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विश्व भर में जनसंख्या संरचना, प्रजनन दर और जीवन प्रत्याशा में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हो रहे हैं, जो एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव की ओर इशारा करते हैं।
भारत के संदर्भ में, रिपोर्ट में यह पाया गया है कि देश की कुल प्रजनन दर घटकर प्रति महिला 1.9 जन्म रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे है। इसका अर्थ है कि प्रवासन को छोड़कर, भारतीय महिलाएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए ज़रूरी औसत संख्या से कम बच्चे जन्म दे रही हैं।
हालांकि जन्म दर में गिरावट आई है, भारत की युवा जनसंख्या अभी भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। वर्तमान में देश की कुल जनसंख्या में
0–14 वर्ष के बच्चे 24%,
10–19 आयु वर्ग के किशोर 17%, और
10–24 वर्ष के युवा 26% हैं।
भारत की जनसंख्या संरचना: अवसर और चुनौतियाँ
देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील आयु (15–64 वर्ष) की श्रेणी में है, जो यदि पर्याप्त रोज़गार अवसरों और नीतिगत समर्थन से युक्त हो, तो एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान कर सकती है। वर्तमान में भारत में वरिष्ठ नागरिकों (65 वर्ष और उससे अधिक आयु) की जनसंख्या लगभग 7 प्रतिशत है। यह आंकड़ा आने वाले दशकों में जीवन प्रत्याशा में सुधार के साथ बढ़ने की संभावना है। 2025 तक, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा पुरुषों के लिए 71 वर्ष और महिलाओं के लिए 74 वर्ष तक पहुँचने का अनुमान है।
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमान के अनुसार, भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,463.9 मिलियन (यानी 1.46 अरब) है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है, जिसकी जनसंख्या लगभग 1.5 अरब है। यह संख्या लगभग 1.7 अरब तक पहुँचने के बाद धीरे-धीरे घटने लगेगी और यह परिवर्तन लगभग 40 वर्षों में देखने को मिलेगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन आंकड़ों के पीछे करोड़ों दंपतियों की कहानियाँ हैं कुछ ने परिवार शुरू करने या बढ़ाने का निर्णय लिया, जबकि कुछ महिलाएँ ऐसी भी थीं जिनके पास यह विकल्प ही नहीं था कि वे गर्भवती हों या नहीं, कब हों और कितनी बार हों। यह तथ्य प्रजनन अधिकारों और स्वतंत्रता पर केंद्रित वैश्विक चर्चा को और अधिक प्रासंगिक बनाता है।
भारत में महिलाओं की प्रजनन यात्रा: तब से अब तक
वर्ष 1960 में जब भारत की आबादी लगभग 436 मिलियन (43.6 करोड़) थी, तब एक औसत महिला के लगभग छह बच्चे होते थे। उस समय महिलाओं का अपने शरीर और जीवन पर नियंत्रण आज की तुलना में काफी कम था। रिपोर्ट के अनुसार, हर चार में से एक से भी कम महिला किसी न किसी प्रकार का गर्भनिरोधक इस्तेमाल करती थी, और हर दो में से एक से भी कम महिला प्राथमिक विद्यालय तक जाती थी (विश्व बैंक डेटा, 2020)।
लेकिन आने वाले दशकों में शैक्षिक उपलब्धियों में वृद्धि, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच, और महिलाओं को जीवन के फैसलों में अपनी आवाज़ उठाने के अधिक अवसर मिलने लगे। इससे महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ।
इस रिपोर्ट में अल्प जनसंख्या या अति जनसंख्या के बारे में खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में जनसंख्या संरचना, प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण बदलावों का भी खुलासा किया गया है, जो एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत है।
आज भारत में एक औसत महिला लगभग दो बच्चों को जन्म देती है। हालांकि भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में महिलाओं के पास अब अपनी माताओं और दादियों की तुलना में अधिक अधिकार और विकल्प हैं, फिर भी उन्हें अब भी लंबा सफर तय करना है। जब तक महिलाएं यह निर्णय पूरी स्वतंत्रता से नहीं ले पातीं कि वे कितने बच्चे चाहती हैं, कब चाहती हैं, या चाहती भी हैं या नहीं, तब तक वास्तविक प्रजनन अधिकार अधूरे ही रहेंगे।
भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की दिशा में बड़ी प्रगति: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में भारत को मध्यम आय वाले देशों के समूह में शामिल किया गया है, जो वर्तमान में तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में जनसंख्या के दोगुनी होने की अनुमानित अवधि अब 79 वर्ष हो गई है।
यूएनएफपीए की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा, “भारत ने प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। वर्ष 1970 में जहां एक महिला औसतन पाँच बच्चों को जन्म देती थी, वहीं आज यह संख्या घटकर लगभग दो पर आ गई है। यह परिवर्तन बेहतर शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के कारण संभव हो पाया है।”
यह परिवर्तन न केवल भारत की जनसंख्या स्थिरता की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य अधिकार मिलने पर समाज में स्थायी बदलाव संभव हैं।
प्रजनन अधिकारों से जुड़े लाभ: भारत के लिए एक अनूठा अवसर
वोजनार ने कहा,”इससे मातृ मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है, जिसका अर्थ है कि आज लाखों माताएँ जीवित हैं, अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं और समुदायों के निर्माण में सक्रिय भाग ले रही हैं।”
हालाँकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत में अभी भी राज्यों, जातियों और आय वर्गों के बीच गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।
वोजनार ने आगे कहा, “वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश तभी प्राप्त होता है जब सभी लोगों को सूचित प्रजनन विकल्प चुनने की स्वतंत्रता और उसके लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हों। भारत के पास यह दिखाने का एक अनूठा अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि किस प्रकार एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।”
भारत की जनसंख्या व प्रजनन अधिकारों से संबंधित मुख्य FAQs:
1. भारत की वर्तमान जनसंख्या कितनी है (2025 के अनुसार)?
उत्तर :भारत की जनसंख्या 2025 में लगभग 1.46 अरब (1,463.9 मिलियन) है, जिससे यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।
2. भारत में कार्यशील जनसंख्या की क्या स्थिति है?
उत्तर : भारत की 68% जनसंख्या 15–64 वर्ष के कार्यशील आयु वर्ग में आती है, जो जनसांख्यिकीय लाभांश का संकेत देती है।
3 .भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) क्या है?
उत्तर:भारत की कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 जन्म प्रति महिला रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे है।
4. भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उत्तर : भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है प्रत्येक नागरिक तक समान प्रजनन अधिकार पहुँचाना और सभी सामाजिक वर्गों में स्वास्थ्य व शिक्षा की समानता सुनिश्चित करना।
5. भारत के लिए आगे की राह क्या है?
उत्तर: भारत को नीतियों में सुधार कर प्रजनन स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर फोकस करना होगा, ताकि सभी को समान अधिकार मिल सकें।