न्यायालय की गिरती गरिमा: एक राष्ट्रीय चिंता का विषय 

न्यायालय की गिरती गरिमा एक राष्ट्रीय चिंता का विषय

यह लेख न्यायालय और जजों में हो रहे भ्रष्टाचार पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि कैसे कुछ भ्रष्ट जज मनमाने तरीकों से फैसले सुनाते हैं और न्याय व्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम सभी जानते है की लोकतंत्र के 4 स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया हैं। जिनका स्वतंत्र होना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी होता है। यह बात सत्य है की दुनियाभर में कई न्यायधीश बैठे है जिनमे से अधिकांश बैदाग़ हैं। मेहनती व बुद्धिमान हैं। लेकिन इस बात में भी कोई अतिश्योक्ति नही की कुछ जजों ने खुलकर लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नही छोड़ी है। जो न्यायालय की गिरती गरिमा को प्रदर्शित करता है।

एक न्यायाधीश को भगवान का दर्जा दिया जाता है क्योंकि उसकी कलम किसी की मौत और जिंदगी को तय करती है लेकिन ऐसे व्यक्ति द्वारा अपनी शक्ति का दुरूपयोग करके निर्दोषों को आजीवन कारावास अंतिम श्वांस तक देता है या मौत की सज़ा देता है, वह न्यायाधीश नहीं बल्कि एक जल्लाद है। इस लेख के माध्यम से आपको पता चलेगा की किस प्रकार न्यायालय में न्याय की मूर्ति बनकर बैठे कुछ न्यायाधीश अपनी कलम से अपने ही देश को खोखला करना चाहते हैं। 

न्यायालय की आवश्यकता क्यों ?

न्यायालय का कार्य है न्याय करना। जब व्यक्ति को कहीं से भी न्याय नहीं मिलता तो उसे एक ही सहारा दिखता है न्यायालय। वह सोचता है कि अब तो उसे न्याय मिलेगा न्यायालय में तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा लेकिन जब रक्षक ही भक्षक हो जाए तो न्यायालय में भी न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। न्यायालय का काम होता है विभिन्न प्रकार के कानूनी विवादों और झगड़ों का निष्पक्षता से समाधान करना। चाहे वे निजी मामले हो या आपराधिक।

न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वह संविधान और कानून की रक्षा करें ताकि किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा कानून का उल्लंघन नहीं किया जा सके और न्यायालय का सबसे मुख्य और अहम कर्तव्य यह है कि न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और यदि किसी के अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो न्यायालय उसे न्याय दिलाने में मदद करता है। लेकिन इन सब बातों को भुलाकर सत्ता के चाटुकार जजों ने न्यायालय की गरिमा को गिराने में कसर नहीं छोड़ी है।

इतिहास गवाह है महापुरुषों के साथ अत्याचार ही किए जाते हैं 

संत रामपाल जी महाराज के साथ सरासर अन्याय हुआ है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब जिस महापुरुष ने मानव मात्र की भलाई के लिए प्रयत्न किए हैं। उसे भोले भाले लोगों की मार झेलनी पड़ी है। महापुरुष निडर होकर अपना कार्य करते रहते हैं। वह किसी से डरते नहीं और उनका महान संघर्ष एक महान परिवर्तन लेकर आता है। कबीर साहेब, गुरु नानक जी, मीराबाई, रविदास, ध्रुव तथा प्रहलाद इन्हें कौन नहीं जानता? सबने भक्ति के लिए समाज व परिवार से संघर्ष किया। इनके संघर्ष का ही परिणाम है कि आज विश्व का मानव नास्तिक होने से बचा हुआ है।

किसी भी महापुरुष के संघर्ष की गाथा पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है यदि हम उस वक्त होते तो इनका साथ देते लेकिन कहने और करने में बहुत भिन्नता है क्योंकि जब महापुरुष धरती पर होते हैं, हम उन्हें पहचान नही पाते और उनके विरोधी बन जाते हैं और आज वही मूर्खता हमने परम पूज्य सतगुरु रामपाल जी महाराज के साथ दोहराई है। संत रामपाल जी महाराज एक ऐसा नाम जिनके साथ ज्ञान चर्चा करने के ख्याल मात्र से धर्मगुरुओं के हाथ-पैर फूलने लगते हैं। संत रामपाल जी महाराज पवित्र शास्त्रों के आधार पर कबीर परमेश्वर का सच्चा अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। 

कैसे पड़ी महान संघर्ष की नींव

(संत रामपाल जी महाराज का संक्षिप्त परिचय व सत्य के लिए संघर्ष की शुरुआत)

सत्य के लिए संघर्ष की नींव तो उस दिन ही पड़ गई थी जिस दिन तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का अवतरण हुआ क्योंकि परमेश्वर ने संत रामपाल जी महाराज को जनता को सत्य से रूबरू कराने व मोक्ष का अधिकारी बनाने के लिए भेजा था और यह मार्ग आसान न था। उनका जन्म 8 सितंबर 1951 को जिला सोनीपत, हरियाणा के तहसील गोहाना के गाँव धनाना, भारत में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भगत नंदराम और उनकी माता का नाम भगतमती इंद्रो देवी है। कहते हैं जितनी बड़ी सफलता उतना बड़ा संघर्ष और इसी परिवर्तन तथा विश्व की भलाई के लिए संत रामपाल जी महाराज ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया। ऐसे महान संत के लिए क्या लिखें? इस संत को लेखनी से नहीं उकेरा जा सकता। 

जनता की भलाई के लिए अपना सर्वस्व वार दे ऐसे महापुरुष यदा – कदा ही प्रकट होते हैं। संत रामपाल जी महाराज के अध्यात्मिक जीवन की शुरुवात 17 फरवरी 1988 को हुई। इस दिन संत जी की मुलाक़ात परमेश्वर के निराधारित समयानुसार एक कबीर पंथी स्वामी रामदेवानंद जी महाराज से हुई। जिनको संत रामपाल जी महाराज ने अपना गुरु धारण किया। फिर सन 1994 में परमेश्वर के आदेशानुसार स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी को नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। उसी दिन से संत रामपाल जी महाराज घर-घर, गाँव-गाँव जाकर सत्संग करने लगे। 

तब से अब तक 30 वर्ष हो गये, संत रामपाल जी महाराज को सत्य अध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करते – करते। संत जी ने भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16/05/2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16/05/2000 के तहत स्वीकृत है। सन् 1999 में गांव करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की इसके साथ ही ज्ञानहिन संतो का विरोध भी बढ़ता गया। संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान तर्क से निरुत्तर होकर अपनी दुकानों के बंद होने के भय से उन अज्ञानी संतों, महंतों व आचार्यो ने 12/07/2006 को संत रामपाल जी महाराज के आश्रम पर हमला कर दिया। करौंथा काण्ड में संत जी व उनके कुछ अनुयाइयो पर झूठे मुकदमे बनाये गये व उनको जेल भेज दिया गया तथा जिन्होंने करौंथा आश्रम पर आक्रमण किया था, उनको इनाम दिया गया तथा नौकरी दी गई। लेकिन संत रामपाल जी महाराज का कारवां भी चलता रहा और सत्य के लिए संघर्ष भी जो अब भी जारी है। लेकिन दुर्भाग्यवश संत रामपाल जी महाराज कुरीतियों के खिलाफ और सत्य आध्यात्मिक ज्ञान कहने की वजह से जेल में हैं।

नेक जज का कार्य कैसा होना चाहिए?

न्यायाधीश को परमात्मा का छोटा रूप माना जाता है। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह अपने पद की पवित्रता को कायम रखे। रुपयों के लालच में गलत आदेश पारित नहीं करे, किसी का जीवन बर्बाद नहीं करे। यही परमात्मा का भी संविधान है और परमात्मा का संविधान उल्लंखन करने वाले व्यक्ति के लिए परमात्मा के विधान में सजा-ए-मौत का फरमान है। आज जज साहब किसी भी तरह से अपना हित देखकर निर्दोष को दोषी करार देते हैं तो वह महापाप के भागी होंगे तथा उनकी बहुत दुर्गति होगी उन्हे घोर नर्क में डाला जाएगा। सतगुरु रामपाल जी महाराज ने अपने सत्संग में बताया है कि यदि कोई श्रेष्ट व्यक्ति अपने से निर्बल व्यक्ति को सताता है तो उसकी आत्मा रोती है क्योंकि वह कुछ कर नही सकता कबीर साहेब कहते है :-

कबीर, दुर्बल को ना सताइये, जाकी मोटी हाय।

बिना जीव की श्वांस से, लोह भस्म हो जाए।।

अर्थात पुराने समय में एक धौकनी होती थी जो पशु के चाम से बनाई जाती थी जिसे लुहार लोहा गर्म करने के लिए प्रयोग करते थे। उस धौकनी मेें जो चाम होता था उसे हाथ से प्रयोग करने पर अग्नि में हवा लगती और अग्नि तेज होती थी जिससे लोहा भी पिघल जाता था। तो इसी प्रकार यहाँ समझाया है कि वो तो मृत जीव की चाम थी जिसकी उस वायु अर्थात मृत श्वांस से लोहा पिघल गया तो उस दुर्बल व असहाय व्यक्ति की तो जीवित श्वास है अर्थात उसकी आहें आपका सर्वनाश कर देगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *