प्री-वेडिंग शूट एक पाश्चात्य संस्कृति है। जो पिछले कुछ दशक से भारत में भी जगह बना रही है। शादी के पहले ही भावी दुल्हन और दूल्हा फिल्मी अंदाज में एक-दूसरे के साथ नजर आते हैं। वे स्वयं को एक अभिनेता और अभिनेत्री की भांति दिखाने की हर संभव कोशिश करते हैं। चाहे उन्हें अर्धनग्न वस्त्र ही क्यों ना पहनने पड़े। हालांकि कुछ कपल्स ने अपने प्री-वेडिंग शूट को नया रूप देने के लिए धार्मिकता से भी जोड़कर बनाया है। यह भी देखा जाता है कि कुछ जोड़े प्री-वेडिंग शूट के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर भी शूट करवाते हैं। ऐसे दो मामलों में उनकी जान भी जा चुकी है।
‘प्री-वेडिंग शूट’ क्या है?
शादी से पहले किया जाने वाला वह फोटो/वीडियो ग्राफी जिसमें होने वाले भावी दंपति अपनी शादी से पहले, एक प्रेमी जोड़े की भांति फोटो और वीडियो शूट करवाते हैं। जिसे वे मुख्य शादी वाले दिन बड़ी स्क्रीन पर एक शॉर्ट फिल्म के रूप में पेश करते हैं और सोशल मीडिया पर भी बड़े ही उत्साह के साथ पोस्ट करते हैं।
‘प्री-वेडिंग शूट’ का प्रचलन कैसे हुआ?
वैसे तो ‘प्री वेडिंग शूट’ 19 वीं सदी के आसपास से ही अपने अस्तित्व में है। जो केवल पश्चिमी देशों में ही प्रचलित थी। हमारे देश ने हमेशा से ही पाश्चात्य संस्कृतियों की निंदा की है क्योंकि पश्चिमी देशों में सभ्यता की कमी और निर्लज्जता की अधिकता रही है। किंतु वर्तमान समय में फिल्म और सीरिअल जिसे समाज के लिए एक अभिशाप कहना अनुचित नहीं होगा। इन फ़िल्मों से प्रेरित आजकल के युवा जैसा वे स्क्रीन पर देखते हैं, वैसा ही स्वयं को भी दिखाने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आखिर सीखते ही क्या हैं? छोटे कपड़े पहनकर अपनी निर्लज्जता दर्शाना, प्रेम-प्रसंग में पड़कर समाज नाश का बीज बोना, शादी-ब्याह में व्यर्थ के आडंबर( जैसे – नाचना, गाना, डीजे बजाना) और अभी जो नया देखने को मिल रहा है ‘प्री-वेडिंग शूट’ जैसी निर्लज्ज पाश्चात्य कुरीति को अपनाना और सोशल मीडिया का दुरुपयोग करके अपनी निर्लज्जता को साझा करना।
कैसे बढ़ा ‘प्री-वेडिंग शूट’ का क्रेज?
प्री-वेडिंग शूट का चलन देश में कुछ दशक से ही देखने को मिला है। लेकिन दो-तीन वर्षों से यह बढ़ते क्रम में है।
विवाह, जिसमें दो आत्माओं का मिलन होता है। जिसको पूरा मानव समाज सादगीपूर्ण तरीके से भी करवा सकता है। किंतु मायाधारी, उच्च वर्ग के कहे जाने वाले लोग अपने दिखावे चक्कर में विवाह को भी ढकोसलों से परिपूर्ण बना देते हैं। जिसकी नकल मध्यमवर्गीय परिवार भी करने लग जाते हैं और फिर इसमें घिस जाते हैं गरीब परिवार! क्योंकि बेटी तो उनको भी पराई करनी है। ऐसी ही एक कुरीति समाज में कई वर्षों से व्याप्त है ‘दहेज’। जिससे निबटने के लिए सरकार ने ना जाने कितने ही प्रयास किए होंगे, किन्तु विफल ही रहे। अब एक नई समस्या फिर से आ गई ‘प्री वेडिंग शूट’। जिसका विरोध कुछ सभ्य समाज के लोग कर भी रहे हैं किंतु इसका चलन बढ़ता ही जा रहा है।
‘प्री-वेडिंग शूट’ के फायदे और दुष्प्रभाव
कुछ लोगों का मानना है कि ‘प्री-वेडिंग शूट’ भावी जोड़ों को विवाह के पहले ही एक-दूसरे को समझने का मौका देती है और प्रत्येक कपल अपनी शादी की यादगार तस्वीरों को अनोखा और कुछ नया रूप देना चाहते हैं; किन्तु विवाह वाले दिन अचानक कैमरे के सामने वे असहज महसूस करने लगते हैं लेकिन ‘प्री-वेडिंग शूट’ करवाने से वे कैमरे के सामने सहज होने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
किंतु इसके जितने तो फायदे नहीं है उससे कहीं ज्यादा दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। कई मामलों में ‘प्री-वेडिंग शूट’ करवाने के बाद रिश्ता ही टूट जाता है। जिससे फोटो/वीडियो वायरल होने का डर लड़की पक्ष को अधिक सताता है। ऊपर से ‘प्री-वेडिंग शूट’ पर हुआ खर्च व्यर्थ हो जाता है। विवाह जो कि दो परिवारों को जोड़ने का एक विशिष्ट बंधन है। उसे ‘प्री-वेडिंग शूट’ नामक कुप्रथा ने फूहड़ता का रूप दे दिया है। जिसमें ना शर्म रही ना लिहाज रहा।
‘प्री-वेडिंग शूट’ का समाज पर असर
‘प्री-वेडिंग शूट’ का एक दिन का ही खर्चा 50 हजार से अधिक रहता है। धनवान लोग तो अपने शौक पूरा करने के लिए कितना ही पैसा लगा कर शूट करवा लेते हैं लेकिन उनकी देखादेखी गरीब परिवार को भी ये ड्रामे मजबूरन करने पड़ते हैं। जिससे आर्थिक तंगी उन्हें झेलना पड़ता है।
‘प्री-वेडिंग शूट’ यदि बढ़ते क्रम में ही रहा तो निश्चित ही एक दिन यह परंपरा का रूप ले लेगी तथा पुरातन भारतीय संस्कृति (जिसमें देश की सभ्यता और शिष्टाचार निहित है) लुप्त हो जाएगी। ‘प्री-वेडिंग शूट’ को कुछ सभ्य व जागरूक समाज में निषेध भी किया गया है। किंतु जब तक इसका पूरी तरह से बहिष्कार नहीं किया जाता है तब तक इस विष को समाज के अंदर घुलने से रोकना मुश्किल है।
समाज को आध्यात्मिक ज्ञान की नितांत आवश्यकता
वर्तमान समय में हमारा समाज भारतीय संस्कृति को भूलते हुए पाश्चात्य संस्कृति की ओर तीव्र गति से बढ़ता ही जा रहा है। जो मानव पतन का बहुत बड़ा कारण है तथा आध्यात्मिक ज्ञान से ही इसका निराकरण और एक स्वच्छ समाज का पुनर्निर्माण संभव है। इसका जीता-जागता उदाहरण हम आज भी देख सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी, जो किसी प्रकार की बुराई, कुरीति या दुराचार में लिप्त नहीं रहते हैं। अपने पूज्य गुरुदेव तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के बताए सतमार्ग पर चलते हैं। वे सद्भक्ति करते हुए साधु भाव में रहकर एक नेक इंसान का जीवन जीते हैं। जब वे अपने बच्चों का विवाह करते हैं, तो बिल्कुल सादे तरीके से गुरुवाणी के पाठ के दौरान बिल्कुल साधारण वेशभूषा में विवाह संपन्न कराते हैं। जिसमें किसी भी प्रकार की कोई फिजूलखर्ची नहीं और न ही “प्री वेडिंग शूट” होती है। मात्र 17 मिनट में वे जोड़े आपस में विवाह के बंधन में बंध जाते हैं और सुख-शांति पूर्वक जीवन यापन करते हैं। जिस दिन पूरा देश, पूरा मानव समाज संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को समझकर उनके सत मार्ग को अपना लेगा। उस दिन निश्चित ही सतयुग जैसा वातावरण इस पृथ्वी पर छा जाएगा। इस “प्री वेडिंग शूट” जैसे विष का नाश भी संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान से ही सम्भव है।
वाकई संत रामपाल जी महाराज जी का मिशन देश और पूरे विश्व के लिए सराहनीय है। उनके अनुयायी ना दहेज का लेन – देन ना ही कोई नशा करते हैं। किसी प्रकार की बुराई नहीं करते हैं।