स्वामी विवेकानंद: एक भारतीय हिंदू सन्यासी एवं विचारक

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद ( 12 जनवरी, 1863 – 4 जुलाई, 1902) स्वामी विवेकानंद जी को कौन नहीं जानता। उन्होंने पूरे विश्व में भारतीय सभ्यता, संस्कृति और अध्यात्म-दर्शन का परचम लहराया। आइए, इस लेख के माध्यम से उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्य, जानकारी के बारे में जानते हैं। वे वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। कलकत्ता में एक कुलीन बंगाली कायस्थ हिंदू परिवार में उनका जन्म हुआ।  बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर रुझान था। उनके गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था और वे अपने गुरु से काफ़ी प्रभावित थे। उनसे प्रभावित होकर मात्र 25 वर्ष की आयु में वे सबकुछ त्यागकर सन्यासी बन गए थे। अपने गुरु से उन्होंने सीखा कि सभी जीवो में परमात्मा का अस्तित्व है इसलिए मनुष्य दूसरे ज़रूरतमंद मनुष्य की मदद करके परमात्मा की भी सेवा कर सकता है।

अपने गुरु की मृत्यु के बाद वह भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा के लिए निकल पड़े। ब्रिटिश भारत में जाकर तत्कालीन स्थितियों का ज्ञान प्राप्त किया। 1893 में  विशाल धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए अमेरिका गए। वहां शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। भारत में विवेकानंद को एक देश भगत सन्यासी के रूप में जाना जाता है और उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद जी के प्रारंभिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बात करें, तो उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में एक कुलीन बंगाली कायस्थ हिंदू परिवार में हुआ। उनका असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों वाले कुशाग्रबुद्धि बालक थे। उस समय अंग्रेज़ी भाषा काफ़ी प्रचलित थी। इससे प्रभावित होकर उनके पिता उन्हें अंग्रेज़ी शिक्षा देना चाहते थे, लेकिन उनकी रुचि संस्कृत भाषा में थी और साथ ही आध्यात्मिकता की ओर काफ़ी रुझान था। 1884 में इन्होंने स्कॉटिश चर्च से कॉलेज की डिग्री पूरी की।

वह एक महान भारतीय संत, विचारक और समाज सुधारक थे। श्री रामकृष्ण परमहंस उनके गुरु थे, जिन्होंने उनके जीवन में काफ़ी गहरा प्रभाव डाला था। अपने आध्यात्मिक गुरु श्री राम कृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद स्वामी विवेकानंद का जीवन आध्यात्मिक हो गया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आंदोलन का नेतृत्व भी किया, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। 

4 जुलाई, सन् 1902 को तीसरी बार दिल का दौरा पड़ने से, मात्र 39 वर्ष की आयु में इस महान आत्मा का देहांत हो गया। निंद्रा रोग से ग्रस्त स्वामी विवेकानंद जी 31 से ज्यादा बीमारियों से ग्रस्त थे। जीवन के अंतिम समय में भी शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की। उनकी अंत्येष्टि बेलूर में गंगा के तट पर चंदन की चिता पर की गई।

स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन हर वर्ष ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी का अमेरिका में स्थित शिकागो का भाषण

1893 में अमेरिका में स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने भारत की ओर से  सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। भारत के प्रतिनिधि बनकर भाषण दिया किंतु उन्होंने अपने भाषण का आरंभ “मेरे अमेरिकी प्यारे भाइयो और बहनो” के साथ किया। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया। अपने भाषण में हिंदु धर्म की महत्ता का बखान करते हुए, स्वामी जी ने सभा में मौजूद लोगों को बताया :-

“रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥

अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।”

“ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥

अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है-चाहे किसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।”

अपने इस भाषण से उन्होंने संपूर्ण पश्चिमी जगत को अपना बना लिया।

1897 में पश्चिमी शिष्यों के एक समूह के साथ स्वामी विवेकानंद ने गंगा नदी पर बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी सक्रिय है।

स्वामी विवेकानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकें

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था, ”यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये।” 

स्वामी विवेकानंद जी की पुस्तकें युवाओं को अवश्य पढ़नी चाहिए। उनकी सभी पुस्तकें प्रेरणादायक हैं- माई मास्टर, कर्म योग, राजयोग, ज्ञान योग, भक्ति योग, संगीत कल्पतरू, Vedanta Philosophy: An address before the Graduate Philosophical Society आदि।

स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत

कठ उपनिषद के श्लोक से प्रेरित होकर स्वामी विवेकानंद जी ने समाज के युवाओं को एक नारा दिया

 “उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत (उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए)

स्वामी जी के कुछ उल्लेखनीय वचन जो आज भी सामयिक हैं :-

     “हम जो बोते हैं, वह काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है, वे जहाज़, जिनके पाल खुले हैं। इससे टकराते है और अपनी दिशा में आगे बढ़ते है पर जिनके पाल बांधे है, हवा को पकड़ नहीं पाते।” 

  • चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
  • सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
  • जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
  • जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक, उसे ज़हर की तरह त्याग दो।

स्वामी विवेकानंद जी एक बहुत अच्छे समाज सेवक भी थे। उन्होंने हमेशा गरीबों के उत्थान की बात की थी। 

‘इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित कर दिया जाए और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाए..

ऐसा विद्रोही ऐलान करने वाले स्वामी विवेकानंद पाखंडवाद, ब्राह्मणवाद, अंधविश्वास, कुरीतियों व कुपरंपराओं के सख्त विरोधी थे। वह सर्वांगीण विकास करने वाली शिक्षा के हिमायती थे। वह शिक्षा को व्यक्ति और समाज के विकास का आधार मानते थे। इसके साथ उन्होंने नारी शिक्षा और नारी स्वतंत्रता पर भी ज़ोर दिया। 

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स्वामी विवेकानंद जी से जुड़ी ”राष्ट्रीय युवा दिवस” की जानकारी

स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार हमेशा से ही युवाओं को बेहतर बनने और देश की प्रगति में योगदान देने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी का जन्मोत्सव ”राष्ट्रीय युवा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। ”राष्ट्रीय युवा दिवस” स्वामी विवेकानंद जी की जयंती और उनके अनमोल विचारों को याद करने और उनसे प्रेरणा लेने का भी अवसर है। बता दें, साल 1984 में भारत सरकार ने इस दिन को पहली बार ”राष्ट्रीय युवा दिवस” के तौर पर घोषित किया था। 

पूर्ण गुरु की शरण में जाने से ही मनुष्य जन्म का उद्देश्य संपूर्ण होता है

स्वामी विवेकानंद जी एक आध्यात्मिक सन्यासी और साथ ही अच्छे सामाजिक नेता भी थे। इनका उद्देश्य सिर्फ़ समाज की भलाई और भगवान के प्रति विश्वास को लेकर जीवन के मार्ग पर ही चलना था। परंतु इसके साथ ही देखा जाए तो मनुष्य जन्म का उद्देश्य पूर्ण गुरु की शरण में जाने से ही संपूर्ण होता है। स्वामी विवेकानंद जी के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने इनको आध्यात्मिकता की ओर प्रभावित किया। परंतु उनके पास सच्चा भक्ति मार्ग नहीं था। मनुष्य जन्म प्राप्त प्राणी यदि सतगुरु की खोज करता है और उसके बाद सतगुरु की बताई हुई शास्त्र अनुकूल भक्ति करते हुए सांसारिक कार्य को भी करता है तभी उसके मनुष्य जन्म का कल्याण होता है अन्यथा मनुष्य जन्म समाप्त होने के उपरांत 84 लाख योनियों को भुगतना पड़ता है।

कबीर साहेब जी ने मनुष्य जन्म को लेकर अपनी वाणी में बताया है कि

मानुष जन्म दुर्लभ है, ये मिले ना बारम्बार। 

जैसे तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार।।

कबीर साहेब जी ने कहा है कि मनुष्य जन्म बहुत अनमोल है। इसे शास्त्र विरुद्ध साधना करके व्यर्थ नहीं करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता।

FAQ About Swami Vivekananda

प्रश्न1.स्वामी विवेकानंद जी का मूल नाम क्या था?

उत्तर.स्वामी विवेकानंद जी का मूल नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।

प्रश्न 2. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म किस सन् में हुआ था? 

उत्तर. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिनांक 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था।

प्रश्न3. स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर. स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु 4 जुलाई सन् 1902 में हुई थी।

प्रश्न4. स्वामी विवेकानंद जी के गुरु का नाम क्या था?

उत्तर. स्वामी विवेकानंद जी के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। 

प्रश्न 5. स्वामी विवेकानंद जी विश्व धर्म संसद 1893 के लिए कहां और क्यों गए थे? 

उत्तर. स्वामी विवेकानंद जी विशाल धर्म संसद 1893 के लिए अमेरिका में स्थित शिकागो में भाषण देने के लिए गए थे।

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