मुख्य बिन्दु
- जगन्नाथ पुरी की स्थापना ।
- जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया।
- जगन्नाथ पुरी की मूर्ति आधी क्यों है?
- जगन्नाथ पुरी बनते समय समुद्र बार-बार तूफान में क्यों बदला?
- पुरातन समय से ही जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत क्यों नहीं होती?
- किस महापुरुष ने जगन्नाथ मंदिर को समुद्र से बचाया?
- राजा इन्द्रदमन की रानी को अपना सोना क्यों बेचना पड़ा?
- जगन्नाथ मंदिर समुद्र के पास क्यों बना?
- द्वारिका समुद्र में क्यों डूबी?
जगन्नाथ पुरी की स्थापना
भारत के उड़ीसा राज्य में एक इंद्र दमन नाम का राजा था वह श्री कृष्ण का भगत था व उन्हीं की भक्ति करता था एक बार आधी रात को राजा के सपने में श्री कृष्ण जी प्रकट हुए तथा जगन्नाथ मंदिर बनाने का आदेश दिया श्री कृष्ण जी ने जगन्नाथ मंदिर के बारे में ये भी कहा कि इस मंदिर में मूर्ति पूजा/कर्मकाण्ड तथा पाखण्ड पूजा नही होगी केवल एक संत/महात्मा परमात्मा की महिमा का गुणगान करेगा।
श्री कृष्ण जी ने ये भी कहा कि जगन्नाथ मंदिर समुन्द्र के पास बनेगा तथा इन्द्रदमन को स्वपन में ही वह जगह दिखा दी। सुबह ऊठकर राजा इन्द्रदमन ने ये सारी बात अपनी रानी को बताई ये बात सुनकर रानी और इन्द्रदमन बहुत खुश हुए की भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कोई काम सौपा है।इस बात का पालन करते हुए। राजा इन्द्रदमन ने जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की।।
जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया?
राजा इंद्र दमन ने श्री कृष्ण जी के आदेश अनुसार जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जैसे ही मंदिर पूरा बना उस से एक दिन पूर्व समुद्री तूफान के कारण मन्दिर टूट कर नष्ट हो गया जिसके कारण राजा को मन्दिर पुनः बनवाना पड़ा। व श्री कृष्ण जी के आदेश के कारण राजा को मंदिर का कार्य पुनः सुचारू करना ही पड़ा। जिसके कारण मन्दिर दुबारा बना परन्तु समुद्री तूफान बार बार मन्दिर को नष्ट कर देता। ऐसा प्रकरण 5 बार हुआ। मंदिर ना बनने के कारण राजा अधिक चिंता में हुए तब एक संत कबीर साहेब राजा इन्द्रदमन के पास गए व मंदिर को बनाने का आदेश दिया।
राजा इन्द्रदमन को संत की बात पर विश्वास ना हुआ और कहा कि ऐसा प्रकरण पांच बार हो चुका है तब संत (कबीर साहेब) ने बहुत समझाया की मंदिर का कार्य करवाओ पर राजा नहीं माना उसी रात राजा के सपने में श्री कृष्ण जी प्रकट हुए व उन्होंने कहा जो संत उन्हें मिले थे उन्हीं की कृपा से मंदिर का कार्य पूरा हो सकता है वे राजा को उस संत की शरण लेनी चाहिए मंदिर बनवाने के लिए और छटी बार उस सन्त/महात्मा (कबीर साहेब) के आशीर्वाद के कारण मंदिर नष्ट होने से बचा। तथा जगन्नाथ मंदिर की स्थापना हुई जो आज तक प्रसिद्ध है।
जगन्नाथ पुरी की मूर्ति आधी क्यों है?
जगन्नाथ मंदिर को बनने में जब सात आठ दिन शेष रह गए थे तब नाथ परंपरा के प्रसिद्ध गोरखनाथ जी राजा इंद्र दमन के पास आए तथा मूर्ति बनाने का आदेश दिया राजा इंद्र दमन ने गोरखनाथ जी से प्रार्थना करते हुए कहा कि श्री कृष्ण जी ने मूर्ति पूजा तथा कर्मकांड के लिए के मना किया है।और वह श्री कृष्ण जी के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते। इस बात को सुनकर गोरखनाथ जी अत्यंत क्रोधित होकर कहने लगे बिना मूर्ति के कोई मंदिर ही नहीं होता आप मुझ जैसे संत को मना नहीं कर सकते। राजा इंद्र दमन को डर था की गोरखनाथ जी नाथ परंपरा के सिद्धि युक्त संत है यदि वह क्रोधित हो गए तो वह श्राप भी दे सकते हैं इस डर के कारण उन्होंने गोरखनाथ जी को मूर्ति बनाने के लिए स्वीकृति दे दी तब इंद्र दमन जी ने चंदन की लकड़ी से मूर्ति बनाने का आदेश दिया।
राजा इन्द्रदमन के आदेश के तुरंत बाद बहुत से कारीगर मूर्ति को बनाने के लिए आए वह मूर्ति बनाते परंतु जैसे ही मूर्ति पूरी होने वाली होती तभी वह टूट जाती ऐसे ही अनेक कारीगर आए और अनेक बार मूर्ति टूट गई राजा एक बार फिर चिंता में आ गए तब एक बूढ़े कारीगर के रूप में कबीर परमात्मा राजा इंद्र दमन के पास गए तथा कहा कि वह मूर्ति को बना सकते हैं राजा को एक बार फिर उनकी बात पर विश्वास ना हो सका क्योंकि पहले अनेक बार मूर्ति टूट चुकी थी परंतु कबीर साहेब उन्हें विश्वास दिलाया कि वह मूर्ति बना सकते हैं कबीर साहेब की बूढ़ी अवस्था देख कर राजा को लगा कि वह मूर्ति बना सकते हैं।
कबीर साहेब जी ने बोला कि जब वह मूर्ति बनाएं तो वह अकेले होने चाहिए उसे कमरे में कोई नहीं आना चाहिए जब तक मूर्ति पूरी नहीं बन जाती है। इस बात पर राजा ने स्वीकृति दे दी। कारीगर रूप में कबीर साहेब ने मूर्ति बनाने का कार्य शुरू कर दिया। कार्य शुरू करने के दो-तीन दिन बाद राजा के महल में नाथ परंपरा के गोरखनाथ जी आए तथा राजा से पूछा।की मूर्ति का कार्य कितना हो गया राजा ने उत्तर दिया कि अभी मूर्ति पूरी नहीं हुई ।जब पूरी होगी तो कारीगर बता देगा गोरखनाथ जी ने कहा उन्हें मूर्ति देखनी है तब राजा ने उन्हें कारीगर की शर्त बताई कि वह मूर्ति पूरी होने के बाद ही कमरे का दरवाजा खोलेंगे। नही तो मूर्ति आधी ही छोड़ देंगे।
इस बात को सुनकर गोरखनाथ क्रोधित होकर कहने लगे कि उन्हें मूर्ति देखनी है। तब राजा इंद्र दमन गोरखनाथ जी को मूर्ति वाले कमरे की तरफ लेकर गए, जब उन्होंने कारीगर रूप में कबीर साहेब को आवाज़ लगाई तो कमरे के अंदर से कोई भी आवाज नहीं आयी, दो-तीन बार आवाज लगाने पर जब आवाज नहीं आयी तो राजा ने सोचा कारीगर बूढ़ा था। कहीं वह मर तो नहीं गया यह विचार करके राजा ने कमरे का दरवाजा तुड़वा दिया। जब कमरे में प्रवेश करा तो कमरे में कोई भी नहीं था केवल मूर्ति ही थी, जो आधी बनी थी जिसके हाथ व पैर अधूरे थे। गोरखनाथ जी ने राजा से कहा कि वह मूर्ति किसी दूसरे कारीगर से पूरी करवा दे। जब राजा ने मूर्ति पूरी करवाने का प्रयास करा तो वह मूर्ति टूटने लगी तब अन्य कारीगरों ने मना कर दिया मूर्ति बनाने से तब, से ही आज तक जगन्नाथ मंदिर में स्थापित मूर्ति आधी है।।
जगन्नाथ पुरी बनते समय समुद्र बार-बार तूफान में क्यों बदला?
त्रेता युग मे श्री कृष्ण जी के अवतार राम जी जब रामसेतु पुल का निर्माण करना चाह रहे थे तब समुद्र के कारण उनका पल नहीं बन पा रहा था तब राम जी ने तीन दिन तक घुटनों पानी में रहकर समुद्र से रास्ता मांगा था जब तीन दिन तक समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो श्री राम जी क्रोधित होकर लक्ष्मण जी से बोले लक्ष्मण मेरा अग्निबाण दे यह लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
राम जी के यह कड़वे वचन पूरी सभा के सामने सुनने से समुद्र को बहुत खेद हुआ वह अत्यंत दुखी व क्रोधित हो गए राम जी के इस कथन से । तब इस बेज्जती का बदला लेने के लिए द्वापर युग में राम अवतार कृष्ण जी का जगन्नाथ का मंदिर बना तब समुद्र ने अपनी हुई बेइज्जती का बदला लेने के लिए जगन्नाथ मंदिर को बने नहीं दिया व बार-बार समुद्र को तूफान में बदलकर मंदिर को नष्ट कर देता।
कहे समुंद्र उठो भगवन मै, मन्दिर तोड़ने जाऊंगा ।।
राम रूप में इसने मुझे सताया, वह बदला लेना चाहूंगा।
पुरातन समय से ही जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत क्यों नहीं होती?
जब जगन्नाथ मंदिर पूरा बन चुका था व मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए जब पंडित पूजा कर रहे थे तब शूद्र रूप धारण करके कबीर साहेब उन पंडितों के बीच में जा खड़े हुए । उस समय छुआछूत चरण सीमा पर थी । जब पंडितों ने शूद्र रूप में कबीर साहेब को मंदिर में देखा तो वह अत्यधिक क्रोध व घृणा से कांप उठे। उनमें से एक पंडित ने शूद्र रूप में कबीर साहेब को धक्का मारकर कहा कि, वह शूद्र है और शुद्र मंदिर में नहीं जा सकते यह कहकर शुद्र रूप में कबीर साहेब को मंदिर से बाहर धक्का दे दिया । कुछ दिनों बाद ही उस पंडित को कोड का रोग लग गया जिसके कारण उसके शरीर का सारा चाम गलने लग गया।
अछूत रूप में साहेब आये खड़े हुए थे,बीच द्ववार।।
पांडे जी ने धक्का मारा कह कर के ,नीच गुलाम।।
जिसके कारण पंडित बहुत दुखी रहने लगा तब उसे श्री कृष्ण जी ने सपने में दर्शन दिए और बोले जिस शुद्र को आपने धक्का दिया था आप उन्हीं के पास जाओ वही आपके इस रोग को ठीक कर सकते हैं। इसके बाद पंडित शुद्र रूप धारी कबीर जी के पास गए और उनसे अपनी गलती की अक्षमयाचना करने लगे। इसके बाद कबीर जी ने उनसे कहा की आप मेरा चरणामृत का 1 महीने तक जलपान करो और चरणामृत को जल में मिलाकर उससे स्नान करो तब आपके कोड का रोग ठीक हो जाएगा । तथा एक आदेश दिया कि जो भी इस मंदिर में आज के बाद छुआ छात करेगा उसका भी यही हाल होगा व इस मंदिर में रंक से लेकर राजा तक सभी एक थाली में जीमने चाहिए, अर्थात सभी के साथ समान रूप से व्यवहार होना चाहिए जिसके बाद इस आदेश का पालन करते हुए आज तक जगन्नाथ मंदिर में छुआ छात नहीं हुई।
किस महापुरुष ने जगन्नाथ मंदिर को समुद्र से बचाया?
जब जगन्नाथ मंदिर को बार-बार बनवाया गया परंतु तूफान के कारण मंदिर बार-बार टूटने लगा तब जगन्नाथ मंदिर को बनाने के लिए स्वयं कबीर परमात्मा को ही आना पड़ा। कबीर परमात्मा ने जगन्नाथ मंदिर को अपने वचन के कारण बनवाया था। जब कबीर परमात्मा जोगजीत रूप में काल के पास आए थे तब काल ने परमात्मा को वचन वध करवा कर एक प्रार्थना की कि जब द्वापर युग में जगन्नाथ मंदिर बनेगा तब समुद्र जगन्नाथ मंदिर को बने नहीं देगा उसे वक्त आपकी कृपा से ही मंदिर बन सकता है तब कबीर परमात्मा ने वचनबद्ध होने के कारण काल को मन्दिर बनाने की स्वीकृति दे दी इसी कारण से जब द्वापर युग में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ वह समुद्र ने बार-बार तूफान में बदलकर उसे नष्ट कर दिया सब कबीर परमात्मा ने ही मंदिर की रक्षा करी व समुद्र को रोक कर मंदिर पूरा बनवाया कबीर परमात्मा ही वास्तव में वह महापुरुष थे। जिन्होंने जगन्नाथ मंदिर को समुद्र से बचाया था।उन्होंने ही उसकी रक्षा करी थी।
कहे कबीर एक चोरा बनवाओ ,जिस पर बैठ राम नाम लो लाऊंगा।।
जिस पर बैठ मैं समुद्र को रोकूं, और मंदिर को बचाऊंगा।।
राजा इन्द्रदमन की रानी को अपना सोना क्यों बेचना पड़ा?
जब श्री कृष्ण जी के आदेश अनुसार जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कार्य होने लगा व समुद्री तूफान के कारण मंदिर बार बार टूटने लगा तब राजा को अपना साही खजाना मंदिर के निर्माण कार्य में लगाना पड़ा। राजा ने भगवान श्री कृष्ण का आदेश मानकर जगन्नाथ मंदिर को अत्यधिक सुंदर बनाने की चेष्टा करी व बहुत सारा धन मंदिर को बनाने के लिए लगाया। परंतु समुद्री तूफान के कारण मंदिर जैसे ही मंदिर पूरा बनने वाला होता तभी मंदिर दोबारा से नष्ट हो जाता। इस प्रकार राजा ने अपना सारा धनकोष जगन्नाथ मंदिर को बनाने में जुटा दिया। राजा ने मंदिर को पांच बार शाही खजाने से बनवाया परंतु मंदिर बार-बार तूफान के कारण मंदिर नष्ट हो जाता। पांच बार मंदिर को बनाने के लिए जब राजा को अपना शाही खजाना लगाना पड़ा तब छुट्टी बार राजा का शाही खजाना खत्म हो गया जिस कारण से वह मंदिर को बनाने में असमर्थ था।
धन न होने के कारण राजा मंदिर का निर्माण कार्य नहीं कर पा रहा था। जिस कारण से वह बहुत दुखी व मायूस हो गया क्योंकि अब राजा के पास धन नहीं था। और वह मंदिर को नहीं बनवा सकता था जिससे भगवान श्री कृष्ण के मंदिर बनाने के आदेश का उलंघन हो जाता। राजा को अत्यधिक चिंता में देखकर राजा की रानी ने मंदिर को बनवाने के लिए अपना सोना भेज दिया ताकि मंदिर बन सके। व भगवान का आदेश का पालन हो सके। यही वास्तविक कारण था की राजा इंद्र दमन की रानी को अपना सोना बेचना पड़ा छठी बार रानी के सोना बेचने से जो धन आया उस से मंदिर का निर्माण कार्य दोबारा से प्रारंभ किया गया। व तब छठी बार मंदिर को रानी के सोने के धन से बनाया गया। और तब कबीर परमात्मा ने छठी बार मंदिर की समुद्र से रक्षा करी।।
कहे कबीर एक मंदिर बनवाओ,ये टूटे ना मेरे रहने से।।
छटी बार मन्दिर बनवाया,राजा ने रानी के गहने से।।
जगन्नाथ मंदिर समुद्र के पास क्यों बना?
ओडीसा के राजा इन्द्रदमन को सपने में भगवान श्री कृष्ण दिखाई दिए व मंदिर बनाने का आदेश दिया। जब राजा के सपने में श्री कृष्ण जी आए तब श्री कृष्ण जी ने उन्हें जगन्नाथ का मंदिर समुद्र के पास बनाने का आदेश दिया।व कहा की जगन्नाथ मंदिर समुद्र के तट के निकट होना चाहिए।जब राजा अगले दिन नींद से उठे वह रानी को सपने में भगवान श्री कृष्ण के आने का बताया व मंदिर को बनाने का भगवान का आदेश बताया। तब राजा ने रानी को बताया कि भगवान ने सपने में उन्हें मंदिर को बनाने का स्थान भी बताया है। जगन्नाथ मंदिर उसी स्थान पर बनेगा तब से राजा ने अपने शाही खजाने से जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कार्य समुद्र के तट के किनारे शुरू कर दिया। जगन्नाथ मंदिर समुद्र के तट के किनारे होने कारण जैसे ही मंदिर पूरा होता तभी समुद्र तूफान का रूप लेकर मंदिर को नष्ट कर देता। मंदिर का समुद्र के किनारे बन्ना पहले से ही निर्धारित था।
द्वारिका समुद्र में क्यों डूबी?
राजा इंद्र दमन जब जगन्नाथ मंदिर को जब श्री कृष्ण जी के आदेश से बनवा रहे थे तब समुद्र बार-बार तूफान में बदलकर मंदिर को नष्ट कर देता था।समुद्र बार-बार तूफान में इस कारण बदलकर मंदिर को नष्ट कर देता है क्योंकि त्रेता युग में जब श्री कृष्णा वाली आत्मा राम अवतार में थी व रामसेतु पुल का निर्माण हो रहा था। तब राम जी तीन दिन तक घुटनों पानी में रहे वह समुद्र को रास्ता देने की प्रार्थना करते रहे। जब तीन दिन तक समुद्र से याचना करने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा तब तीसरे दिन राम जी ने क्रोधित होकर अपने अग्निबाण से समुद्र को भस्म करना चाह। तब विप्र रूप धारी समुद्र ने राम से समुद्र में अग्निबाण ना छोड़ने की याचना करें। तब राम जी ने समुद्र विप्र रूप धारी को धमकाते हुए कहा यह लातों के भूत बातों से नहीं मानते लक्ष्मण ला मेरा अग्नि बाण दे। मैं इस समुद्र को सुखा दूं। राम जी ने पूरी सभा के सामने यह वचन समुद्र रूप में विप्र को कहा था जिसका समुद्र ने बड़ा दुख माना। व राम से बदला लेना चाहा।
राम से अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए समुद्र बार-बार तूफान में बदलकर जगन्नाथ मंदिर को नष्ट कर देता। बदला लेने के भाव से समुद्र ने जगन्नाथ मंदिर को पांच बार तूफान में बदलकर नष्ट कर दिया। जब समुद्र ने छठी बार मंदिर को नष्ट करना चाह। परंतु कबीर परमात्मा के होने के कारण मंदिर को नष्ट नहीं कर पाया। तब समुद्र ने कबीर परमात्मा से करबद्ध प्रार्थना करते हुए कहा,कि हे भगवान कृपया कर रास्ता छोड़ दे मैं जगन्नाथ मंदिर को नहीं बनने दूंगा क्योंकि राम अवतार में कृष्ण जी ने भरी सभा में मेरी बेइज्जती की थी मैं उसका बदला लेना चाहता हूं जिस कारण से मैं मंदिर नहीं बनने दूंगा। तब कबीर परमात्मा ने कहा,कि यदि समुद्र मंदिर को नष्ट कर सकता है तो करें परंतु समुद्र मंदिर को नष्ट नहीं कर पाया। तब कबीर परमात्मा ने ही समुद्र को एक विकल्प देते हुए कहा,कि समुद्र द्वारिका को डुबो ले जिससे समुद्र अपना बदला ले लेगा व मंदिर भी नहीं नष्ट होगा तब कबीर परमात्मा का आदेश सुनकर समुद्र ने द्वारिका को अपने अंदर समा लिया।व अपने अपमान का बदला द्वारिका को डूबो कर लिया। यही वह अनसुनी सच्चाई है द्वारका डूबने की।
एक मिल वह सागर हट गया, जोड़कर के दोनों हाथ ।।
पुरी द्वारका डुबो ली थी ,श्री कृष्ण जी की बिगाड़ी जात।।