Justice Delayed is Justice Denied: क्यों हैं आज भी बंद बेगुनाह सलाखों के पीछे?

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नमस्कार दर्शकों! हमारे विशेष कार्यक्रम खबरों की खबर का सच में आप सबका एक बार फिर से स्वागत है। इस बार हम भारत देश की न्याय व्यवस्था पर चर्चा करेंगे और साथ ही जानेंगे की देश की जेलों में कितने बेगुनाह आज भी बंद हैं और क्यों भारत की जेलों में बंद निर्दोष कैदियों को समय पर न्याय मिलना कठिन है? तो चलिए शुरू करते हैं हमारी विशेष पड़ताल। 

न्याय मुश्किल में और चारों तरफ है राजनीति

कानून का एक मूलभूत सिद्धांत है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह सिद्धांत भी व्यावहारिक स्तर पर खरा उतरता नहीं दिखता। कानूनी प्रक्रिया की खामियों के पीछे तमाम पैचिदा वजहें हैं जिनकी वजह से कई बार निर्दोष लोगों को खुद को निर्दोष साबित करने में ही कई साल और पूरी उम्र भी लग जाती है यहां तक कि कई बार अभियुक्तों की मौत तक हो जाती है। वहीं देश भर में करीब तीन चौथाई कैदी विचाराधीन मामलों में विभिन्न जेलों में बंद हैं यानी उनके मामलों में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है और सिर्फ सुनवाई की वजह से उन्हें जेल में रखा गया है और जमानत नहीं मिल रही है। दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अभय सिंह बताते हैं कि अस्सी के दशक तक हत्या जैसे गंभीर मामलों में भी सत्र न्यायालय से ज़मानत मंजूर हो जाती थी लेकिन अब तो कई बार छोटे-छोटे मामलों में भी हाई कोर्ट जाना पड़ता है।

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क्या कानून निर्दोष व्यक्ति के बीते समय को लौटा सकता है

भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। देश की जेलों में जितने लोग बंद हैं उनमें 50 प्रतिशत से अधिक लोग निर्दोष हैं। यह कानून व्यवस्था की कमी ही है कि हजारों ऐसे लोग भी जेलों में बंद पड़े हैं जिन्हें सरकार की भाषा में हवालाती या अंडर ट्रायल कहा जाता है। इसका अर्थ है कि अभी इन आरोपियों पर आरोप सिद्ध नहीं हो सका कि उन्होंने अपराध किया भी है या नहीं। यह ऐसे लोग हैं जो बिना अपराध सिद्ध हुए वर्षों तक जेल की सलाखों में बंद हैं। अपराध के लिए जितना दंड कानून की किताब में उनके लिए लिखा है उससे कहीं ज्यादा समय वे आरोपी के रूप में सलाखों के पीछे बिता चुके हैं। जब यह अदालतों द्वारा बरी कर दिए जाते हैं तो इसका कोई जवाब नहीं होता कि उन्हें किस दोष के लिए जेल की सज़ा काटनी पड़ी। क्या कोई उनके समय का मुआवजा दे सकता है? क्या कोई उनकी उम्र के बीते हुए दिन लौटा सकता है?

ललितपुर के विष्णु तिवारी पर रेप और हरिजन एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। निचली अदालत ने उन्हें सजा सुना दी लेकिन हाई कोर्ट से वो बरी कर दिए गए और बीस साल तक आगरा जेल में रहने के बाद अपने गांव लौटे। विष्णु तिवारी ने 20 साल जेल में काटे इस दौरान विष्णु ने मां, पिता को खोने के अलावा दो भाईयों को भी खो दिया। विष्णु तिवारी की बदनसीबी ये रही कि वो किसी के अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं हो सके। विष्णु तिवारी को जेल से बाहर निकलवाने के लिए उनके घरवालों ने जमीन तक बेच डाली लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। हत्या के आरोप में निचली अदालत से सज़ा पाए विष्षु तिवारी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीस साल बाद यह कहकर बरी कर दिया कि उन्होंने यह सब किया ही नहीं था।

ऐसे निर्दोष लोगों को जेलों में तिल तिलकर जीते देखकर लोगों का देश की न्यायपालिकाओं पर से विश्वास ही उठता चला जा रहा है। दिन प्रतिदिन सोशल मीडिया पर भी लोग देश की न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था की आलोचना करते दिखाई देते हैं। दूसरा उदाहरण,उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक व्यक्ति को निर्दोष साबित होने में 14 साल लग गए लेकिन ये 14 साल उसके जेल में ही कट गए। बलिया जिले के रेवती गांव के रहने वाले मुकेश तिवारी जेल से 14 साल सजा काटने के बाद निर्दोष साबित होने पर घर लौटे। परिजन उनके घर लौटने से खुश हैं लेकिन जीवन के 14 अनमोल वर्ष उनके जो बर्बाद हुए, उसकी भरपाई कौन करेगा और जो उनके परिवार ने उनकी गैर मौजूदगी में भुगता उसका क्या?

विचाराधीन कैदी कौन होते हैं?

India Justice Report 2020 टाटा ट्रस्ट ने कई अन्य संस्थानों की मदद से तैयार की थी। विचाराधीन कैदियों में वे कैदी शुमार होते हैं जिन्हें अदालत द्वारा अभी न तो बरी किया गया है और न ही दोषी करार देकर सजायाफ्ता ही करार दिया गया है। भारत में न्याय का पहिया इतनी धीमी गति से घूमता है कि न्याय पाने की प्रक्रिया ही देश की जनता के लिए सज़ा बन जाती है। विचाराधीन केसेज में जिनको कानून के संदिग्ध उल्लंघन के लिए जेल भेजा गया है लेकिन दोषी साबित होने तक वे निर्दोष हैं उनको निष्क्रिय आपराधिक न्याय प्रणाली का खामियाजा भुगतना पड़ता है।

विचाराधीन कैदियों की संख्या के आंकड़े

दोस्तों , क्या आप जानते हैं देश की 1412 जेलों में इस समय 48,65,176 कैदी बंद हैं जबकि कुल 82,20,195 कैदी रजिस्टर्ड हैं।
NCRB की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि हिंदुस्तान की जेलों में बंद 69 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं, यानि इनकी सज़ा पर अदालत ने अभी अपनी अंतिम मुहर नहीं लगाई है। संभव है कि इन विचाराधीन कैदियों में से हजारों कैदी आने वाले वक्त में अदालत से निर्दोष करार दिये जाने पर जेलों से बाहर आ जायें।

न्याय के इंतज़ार में काल कोठरीे में बीत गई उम्र

अंधाधुंध गिरफ्तारी, जांच में देरी और धीमी गति से चलने वाले मुकदमे जेल में निर्दोष कैदियों की बढ़ती संख्या में योगदान करते हैं। वर्तमान समय में जमानत एक अपवाद बन गई है, नियम नहीं। चार साल पहले एक रिपोर्ट में, विधि आयोग ने उल्लेख किया था कि भारत में केवल 28 प्रतिशत अभियुक्तों को ही जमानत मिलती है। सीधे शब्दों में तीन लोगों में से केवल एक को ही जमानत मिल पाती है। 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के अक्षरधाम आतंकी हमले के छह निर्दोष लोगों को जेल में एक दशक की सजा काटने के बाद बरी कर दिया। पिछले साल मार्च में सूरत की एक अदालत ने 127 लोगों को आतंकवाद के आरोपों से बरी कर दिया था। 20 साल की कैद के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। जगजीवन राम यादव नामक एक कैदी ने बिना दोषी साबित हुए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी के कीमती 38 साल बिता दिए। यानी दब्बू व ढीले पुलिस प्रशासन और कमज़ोर न्याय पालिका के चलते यह कैदी 1967 से 2006 तक जेल में रहा। उसकी रिहाई का आदेश देने वाले तत्कालीन एडिशनल सेशन जज ने लिखा था- ‘यह अफसोसनाक है कि जघन्यतम अपराध करने वाले मुल्जिम बाहर आज़ाद घूम रहे हैं और यह शख्स बिना सुनवाई के 38 साल से जेल में पड़ा रहा। भारत देश में ऐसे ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिसमें निर्दोष लोगों को सैकड़ों वर्षों तक जेल में बंद कर के रखा गया हो जबकि जघन्य अपराध करने वाले सैकड़ों लोग सड़कों पर खुले आम अपराध करते घूमते फिरते हैं।

न्यायपालिका में कर्मचारियों की भारी कमी है

भारतीय न्याय प्रणाली पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका और जेलों की एक तिकड़ी पर खड़ी है। जिसके फलस्वरूप, किसी को भी ठीक से न्याय प्राप्त नहीं हो पाता। संयुक्त राष्ट्र ने सिफारिश की है कि प्रति 100,000 लोगों पर 222 की आबादी के लिए एक पुलिस की जरूरत होती है। फिर भी, भारत में प्रति 100,000 लोगों पर केवल 137 पुलिस कर्मी हैं। न्यायपालिका में भी कर्मचारियों की भारी कमी है। भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 21 न्यायाधीश हैं। जबकि चीन में प्रति मिलियन लोगों पर 147 जज हैं। यूएस में प्रति मिलियन लोगों पर 102 जज हैं। जेल में बंद कैदियों में से अधिकतर विचाराधीन कैदी हैं, जो की अमानवीय परिस्थितियों में जेल में बंद हैं। ज़मानत देने में अदालतों द्वारा विवेक का प्रयोग न कर अकसर अभियुक्तों को उनके स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। यही कारण हैं की आज देश की जेलों में बंद कैदी अमानवीय , शोषित,पराधीनता से भरा जीवन जीने को मजबूर हैं।

जब पुलिस और न्यायालय राजनेताओं के दबाव में निर्दोष लोगों को जेल भेजती हैॽ

बदला लेने के उद्देश्य से किसी को भी फंसाना आसान है। फिर चाहे मामला पारिवारिक ,व्यक्तिगत, सामाजिक ,धार्मिक या राष्ट्रीय हो। राजनेताओं के दबाव में पुलिस, न्यायालय, निर्दोष लोगों को जेल भेजती हैॽ उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य झूठे मुकदमे दर्ज करा कर जेल भेजने में कामयाब हो जाते हैं ,और न्यायालय भी पुलिस के आधार पर देशभक्तों और न्याय की मांग करने वालों को बिना सोचे समझे जेल भेज देती है और फिर जमानत पर रिहा नहीं करती। देश में रोज़ हिंदू, मुसलमान को अलग करने के नाम पर समाज में नफरत फैला कर देश की एकता को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। कई राजनीतिक गुट भारी राजनीतिक षड्यंत्रों के तहत लोगों को देशद्रोही बताने मे लगे हुए हैं।

देशद्रोह क्या हैॽ

जो भी बुद्धिजीवी ,छात्र ,मानवाधिकार कार्यकर्ता, समाजसेवी, जर्नलिस्ट, संत अपने और समाज के अधिकारों के लिए सरकार के जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बोलता है, लिखता है, प्रदर्शन आंदोलन करता है, उसे देशद्रोही करार कर दिया जाता है। जबकि यदि कोई व्यक्ति या समूह सत्ता परिवर्तन किए जाने के उद्देश्य से देशविरोधी बयान देता है,जनता, समाज को भड़काता है। और उससे भारी पैमाने पर हिंसा भड़कती है, तब देशद्रोह माना जाता है। देशद्रोह क्यों लगाती है पुलिसॽ क्यों झूठे केस में जेल भेजती है ॽ क्यों न्यायपालिका राजनीतिक षड्यंत्र को समझे बिना निर्दोष लोगों को जेल भेजती है। क्या न्यायालय का काम मात्र लोगों को जेल भेजने का हैॽ न्याय देने का या इंसाफ करने का नहीं हैॽ

द प्रिंट के editor-in-chief शेखर गुप्ता के अनुसार पुलिस राजनीति की मिलीभगत से देशद्रोह का आरोप किसी को भी जेल भेजने के लिए पसंदीदा हथियार है। न्यायपालिका , जेल नहीं बेल सिद्धांत , को नकार रही है।

अगर आप ऐसे शख्स हैं जिसे शासक वर्ग नापसंद करता है। तो वह आसानी से ऐसे पुलिस अधिकारी खोज सकता है, जो आपके ऊपर आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत मामला दायर कर सकता है। भले ही उनके पास लेश मात्र सबूत भी ना हों फिर भी आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि वे आपको मजिस्ट्रेट के सामने तो जरूर पेश करेंगे,जो आसानी से पकड़ लेगा की सबूत तो है ही नहीं। राजनीतिक और धार्मिक षडयंत्र के शिकार बन चुके मुनव्वर फारुकी, नवदीप कौर, उमर खालिद ( अभी भी जेल में हैं) , दिशा रवि , आर्यन खान ,कफील खान इत्यादि के मामले देखे जा सकते हैं।

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उत्तर प्रदेश सरकार में चल रहे जंगलराज में दलित क्रांति के नेता चंद्रशेखर आजाद, एस आर दारापूरी को रासुका के तहत जेल में डाला गया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित हत्या की झूठी साजिश में भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, वरवर राव सहित 15 बुद्धिजीवियों ,समाजसेवियों को अर्बन नक्सली करार देकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। अभी फरवरी में वरवर राव को जमानत दे दी गई। मुंबई हाई कोर्ट ने कहा कि हम आंख मूंदकर अन्याय होते देख नहीं सकते, सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के कुछ ऐतिहासिक निर्णय से मेरा पुनः विश्वास जाग उठता है, अन्यथा मैंने तो न्याय की आस ही छोड़ दी है क्योंकि मेरे साथ आज तक अन्याय ही हुआ है ,मुझे न्याय नहीं मिला। राजनेताओ के दबाव में पुलिस प्रशासन एवं न्यायपालिका काम करते हैं और जो लोग सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष करते हैं , लड़ते हैं, लिखते हैं , बोलते हैं उन्हें सुनियोजित षड्यंत्र के तहत किसी पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया जाता है या किसी को नक्सली करार देकर या किसी को आतंकी बता कर जेल में ठूंस दिया जाता है और उनकी जिंदगी तबाह कर दी जाती है। इसलिए इस अन्याय के खिलाफ इस व्यवस्था के खिलाफ हम सबको लड़ना पड़ेगा संगठित संघर्ष करना पड़ेगा। अन्यथा कोई भी व्यक्ति जनहित के लिए आवाज नहीं उठा सकेगा, संघर्ष नहीं कर सकेगा, इसलिए देश के बुद्धिजीवी, कानूनविद , शिक्षाविद, साहित्यकार, लेखक, पत्रकार ,सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, संगठित संघर्ष कर इस साजिश को बेनकाब किए जाने के लिए एकजुट हो जाओ ।

कमज़ोर न्याय व्यवस्था का यह सिलिसिला आज से नहीं बल्कि बरसों से चलता आ रहा है। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, गुरु नानक देव, गांधी जी, ईसा मसीह,कबीर साहेब जी, भगत सिंह, जैसे सैकड़ों महापुरुषों को अपने सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा। देश की आजादी की लड़ाई में बेकसूर सैकड़ों शूरवीरों को सलाखों के पीछे कई वर्षों तक रहना पड़ा। वर्तमान समय में विश्व को सच्ची आजादी दिलाने के लिए एक ऐसे ही महापुरुष दिन रात संघर्ष कर रहे हैं जिन्हे उन्हीं महापुरुषों की तरह बेवजह सलाखों के पीछे कैद कर दिया गया है। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के साथ भी पिछले कई वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है। संत रामपाल जी महाराज पूरी तरह से सामाजिक परोपकार के लिए समर्पित संत हैं। उनके जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है वह है सामाजिक कल्याण। संत रामपाल जी पूरी तरह से निर्दोष होते हुए भी पिछले सात सालों से भारत की हिसार (हरियाणा प्रांत) जेल में देशद्रोह और हत्या के झूठे केस में बंद हैं उन्हें न्यायालय द्वारा उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है जबकि अभी तक उन पर कोई भी केस साबित नहीं हुआ है बल्कि वह सदा निर्दोष ही पाए गए हैं।

देश के भ्रष्ट जज और न्यायालय की गिरती गरिमा के चलते संत रामपाल जी महाराज जी के ऊपर झूठे मुकदमे दर्ज करवाए गए। जिनके चलते 2006 से 2008 के बीच संत जी को निर्दोष होने के बावजूद 21 महीने जेल में रहना पड़ा। 2014 में बरवाला कांड के चलते संत जी पर अनेकों झूठे मुकदमे दर्ज करवाए गए जिनमें से अधिकतर मुकदमों में संत जी को बाइज्जत बारी भी किया गया है। देश द्रोह और हत्या के झूठे मुकदमों के चलते नवंबर 2014 से वर्तमान समय तक यह महापुरुष निर्दोष होने के बावजूद आज तक सलाखों के पीछे है।

“innocent until proven guilty” – संविधान की यह पंक्ति एक शब्द मात्र ही बनकर रह जाती है जब एक ऐसे कल्याणकारी व परोपकारी महापुरुष जो समाज सुधार व विश्व कल्याण के कार्यों में दिन रात प्रयत्नशील रहते हैं, समाज में व्याप्त बुराइयां जैसे नशाखोरी, दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, चोरी, ठगी, मिलावट, भ्रूण हत्या आदि को जड़ से समाप्त करने के लिए संत जी दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। ऐसे निर्दोष संत को बिना कसूर जेल में देख कर जनता का देश की न्यायव्यवस्था और सरकार के प्रति विश्वास चकनाचूर हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज जी के लाखों अनुयाई पिछले 7 सालों से CBI जांच की मांग कर रहे हैं लेकिन इस लोकतांत्रिक देश की बहरी सरकार लोगों की एक नहीं सुन रही है। 

ऐसे में SA News चैनल की देश की सरकार व न्यायपालिका से अपील है की पूरे विश्व के मुक्तिदाता परोपकारी संत रामपाल जी महाराज जी को और दिन जेल में न रखें । वह पूर्णतया निर्दोष हैं। यह भारत देश के जज, न्यायालय, न्यायपालिका, पुलिस प्रशासन, सरकार , आर्यसमाजी और अन्य षडयंत्रकारी बखूबी जानते हैं। संत जी को जेल में बंद रखने से मानवता शर्मसार हो रही है और समाज अंधकार में गिर रहा है।

देश की सरकार से हमारा दोनों हाथ जोड़कर निवेदन है की इस मामले की CBI जांच करवाकर संत रामपाल जी महाराज जी पर लगे सभी झूठे आरोपों को खारिज कर उनसे क्षमा याचना करें और उन्हें बाइज्जत बरी किया जाए। चूंकि एक संत को सताने का परिणाम बहुत ही भयावह होता है। ऐसे घोर अपराध को करने से देश की सरकार को बचना चाहिए।

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