वर्तमान समय में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है। इन दिनों कोई भी स्थान प्लास्टिक से अछूता नहीं है चाहे वो घर, बाजार, सड़कें फैक्ट्रीयां, या कोई भी सार्वजनिक व निजी स्थान क्यों ना हो। एक आंकड़े के अनुसार पता लगता है कि हर वर्ष लगभग 8 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे महासागरों में पहुंचता है, जिससे जल-जीवन पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक मौजूद होगा।
अब तक 270 से अधिक समुद्री प्रजातियाँ इस प्लास्टिक मलबे से प्रभावित हो चुकी हैं, जिन्हें यह मलबा निगलने, उसमें उलझने या उसके रासायनिक ज़हर के कारण नुकसान पहुँचा रहा है। भविष्य की भयावह तस्वीर यह है कि अगले 30 वर्षों में 99% समुद्री पक्षी अपने शरीर में प्लास्टिक ले चुके होंगे।
प्लास्टिक प्रदूषण के प्रमुख कारण
• प्लास्टिक का अधिक उत्पादन: दुनिया भर में लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा केवल एक बार ही उपयोग में लिया जा सकता है।
• प्लास्टिक अवशिष्ट का गलत निपटान: हमारी सबसे बड़ी लापरवाही रहती है कुछ भी खाया पिया और वह बाकी प्लास्टिक का कचरा बिना कुछ सोचे समझे छोड़ दिया जो फिर हमारी नदियों महासागरों या लैंडफिल में जमा हो जाता है।
• मछुआरों द्वारा छोड़ा हुआ कचरा: यानी परित्यक्त, खोए हुए या त्यागे गए मछली पकड़ने के जाल व उपकरण, जो समुद्री मलबे का एक प्रमुख स्रोत बनते जा रहे हैं।
• रीसाइक्लिंग की कमी: प्लास्टिक का एक छोटा सा हिस्सा ही रीसाइकल होता है, शेष हिस्सा या तो जलाया जाता है या लैंडफिल में डाल दिया जाता है। इससे मिट्टी, जल और वायु का प्रदूषण बढ़ता है।
• लंबे समय तक नष्ट न होना: प्लास्टिक जैविक रूप से विघटित नहीं होता है इस कारण यह पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहकर दुष्प्रभाव देता रहता है।
•| औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोग: कई उद्योगों में भरी मात्र में प्लास्टिक का प्रयोग होता है जैसे पैकेजिंग, ऑटोमोबाइल, निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि। इसका बहुत सारा अपशिष्ट खुले स्थानों पर छोड़ दिया जाता है
• जनजागरुकता की कमी: एक बड़ी संख्या में लोग प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ हैं और वे अनजाने में इसका अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं और गलत तरीके से फेकते रहते हैं।
• समुचित कानून की कमी: बहुत स्थानों पर प्लास्टिक से जुड़े कानून या तो हैं ही नहीं या उनका पालन नहीं किया जाता।
प्लास्टिक का उपयोग क्यों बढ़ रहा है?
यह सस्ता, हल्का और टिकाऊ होता है। नमी और जंग से नहीं खराब होता, इसीलिए इसका उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है।ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मूल्य में सस्ता और उपयोग की दृष्टि से दीर्घकालीन निष्क्रिय होता है। वजन में हल्का होने के साथ ही जंग और नमी के प्रति प्रतिरोधी है। इन वजहों से इसके उपयोग में वृद्धि होना जायज है।
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अत्यधिक उत्पादन: हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक बनता है, जिसमें से अधिकांश एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है।
गलत निपटान: उपयोग के बाद प्लास्टिक को जैसे-तैसे फेंक दिया जाता है, जिससे यह नदियों, समुद्रों और ज़मीन में जमा हो जाता है।
पर्यावरण और जीव जंतुओं पर प्रभाव
प्लास्टिक कचरा जीव जंतुओं के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि वे इसे खाद्य समझकर ग्रहण कर लेते हैं जो उनके आंतों में जा कर चिपक जाता है और उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर देता है। वे प्लास्टिक को खाना समझकर खा जाते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है। जलीय जीवों जैसे कछुओं के लिए तो प्लास्टिक किसी श्राप से के नहीं है।
प्लास्टिक पानी वह मिट्टी दोनों को ही प्रभावित करता है, जो पर्यावरण के लिए एक विशाल चुनौती है। प्लास्टिक में कई हानिकारक जैसे पॉलीमर, मोनोमर्स, एडिटिव्स आदि केमिकल पाए जाते हैं। इसे गंभीर बीमारियां होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
मानव पर प्लास्टिक का प्रभाव
प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, पानी,हवा, जमीन में फैल जाते हैं जो कि वन्यजीवों मानव तथा हमारे प्राकृतिक संसाधनों के लिए क्षतिदायक होते हैं। यहां तक कि मानव खाद्य में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है, औसत व्यक्ति हर सप्ताह 5 ग्राम माइक्रो प्लास्टिक खा सकता है और यह सांस के माध्यम से भी हमारे शरीर मे पहुंच कर कैंसर जैसे गम्भीर रोंगों को जन्म देने की क्षमता रखता है। हाल ही में एक शोध हुआ है जिसमें दूध पिलाने वाली महिलाओं के दूध की जाँच करने पर उसमें भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।
प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती से निपटने के उपाय
• पुनः उपयोग (Reuse) और रीसाइक्लिंग : इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक को फेंकने के बजाय दोबारा प्रयोग करें। रीसाइक्लिंग प्लांट्स की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए तथा लोगों में यह जागरूकता फैलाई जानी चाहिए कि वे प्लास्टिक के कचरे को अलग रखें।
• सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध: मात्र एक बार प्रयोग में आने वाले प्लास्टिक जैसे थैलियां, स्ट्रॉ, प्लेट, पानी की बोतल आदि पर प्रतिबंध लगना चाहिए। इनके स्थान पर बायोडिग्रेडेबल विकल्प अपनाए जाने चाहिए।
• जागरूकता अभियान: लोगों को प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रचार से परिचित कराया जाना चाहिए। किस प्रकार वे व्यक्तिगत स्तर पर किए गए प्रयासों से बड़े परिवर्तन ला सकते हैं उन्हें अवगत कराया जाए। स्कूलों, कॉलेजों में शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए जाएं।
• मजबूत कचरा प्रबंधन प्रणाली: गीले और सूखे कचरे को अलग करने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं को सशक्त बनाकर प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन और तकनीक के संसाधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए।
• वैकल्पिक सामग्री का विकास: प्लास्टिक के स्थान पर वैकल्पिक सामग्री का विकास आवश्यक है जैसे जुट, बांस या अन्य इकोफ्रेंडली विकल्प
• कानून में सुधार: प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग पर नियम बनाए जाएं और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए। गैर कानूनी तरीके से प्लास्टिक बेचने पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
• उद्योगों की जवाबदेही: जो भी उद्योग प्लास्टिक से जुड़े हैं उन्हें अपने कचरे के सुरक्षित निस्तारण की विधि अपनानी चाहिए और रीसाइक्लिंग सुनिश्चित करना चाहिए।