Taliban News in Hindi: 15 अगस्त को एक तरफ भारत के लोग अपने देश का 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे और दूसरी ओर 1031 किलोमीटर की दूरी पर हमारे पड़ोसी देश अफगानिस्तान की सड़कों पर हर तरफ डर,अराजकता, जिंदगी से लड़ने और मौत से बचने की दोड़ लगी हुई थी। हर तरफ ट्रैफिक जाम था। अफगानिस्तान की सभी गाड़ियों का रूख एअरपोर्ट की तरफ था। तालिबान के डर से लोग इतने बौखलाए हुए थे की सभी लोग किसी अन्य महफूज जगह की तलाश में देश से पलायन करने के विकल्प को अपना रहे थे । 15 अगस्त रविवार के दिन अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने एक फेसबुक पोस्ट किया और कहा के वे खून खराबे को राकने के लिए देश छोड़ कर चले गए हैं और उसी बीच तालिबान के आतंकवादियों ने काबूल के प्रेसिडेंशियल ऑफिस पर कब्जा जमा लिया था।
आपको बता दे की अमरीकी सेना पिछले बीस सालों से अफगानिस्तान में तैनात थी और साल 2021 में ही अमरीका ने अपनी आर्मी को वापिस बुलाने का फैसला कर लिया था और ऐसे में यदि देश का राष्ट्रपति भी देश छोड़कर भाग जाए तो देश की जनता का बेसहाय महसूस करना लाज़मी है। काबुल पर अपने कब्ज़े के बाद तालिबान ने कहा है कि वे इस्लाम की शरिया क़ानूनी प्रणाली की सख़्त व्याख्या के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान पर शासन करेंगे. इस समूह ने राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद अपनी जीत का दावा किया है. इसके साथ ही देश में अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना की उपस्थिति को क़रीब दो दशक बाद ख़त्म कर दिया है.
तालिबान अब अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने की ओर बढ़ चला है, जल्द ही दोहा में इसको लेकर बैठक होनी है. इस बीच अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों से विरोध प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं, लोग तालिबान के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं. दोस्तों! आज से करीब 20 साल पहले, अमेरिका के नेतृत्व में दावा किया गया था कि अफगानिस्तान से तालिबानी शासन का सदा के लिए अंत हो गया है। लेकिन आज फिर अफगानिस्तान दो दशकों पीछे चला गया है। दिल को दहलाने वाली यह तस्वीरें काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट की हैं। ( एयरपोर्ट वाला वीडियो चलाए )
Taliban News in Hindi: हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भागने का एकमात्र मार्ग
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में भारी अफरातफरी का माहौल है। लोग जान बचाने के लिए देश से भाग जाना चाहते हैं और यहां से निकलने के लिए एयरपोर्ट ही एकमात्र रास्ता है। 15 अगस्त को काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट पर हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी और यह सभी विमान पर चढ़ने के लिए व्याकुल थे। लोगों के बीच हाहाकार मची थी, अफगानिस्तानियों में देश छोड़ने की होड़ लगी थी। प्लैन के अंदर जगह न मिलने पर कोई प्लैन की छत पर तो कोई पहियों के आगे लटक रहा था। प्लैन के रनवे पर दौड़ने वाले इन लोगों को बस किसी भी हालत में अपने ही देश और घरों को छोड़कर अफगानिस्तान से बाहर निकलना था।
सैकड़ों अफगानी काबुल हवाईअड्डे पर उड़ानों का आज भी इंतजार कर रहे हैं, हवाईअड्डे के एक सूत्र के अनुसार, प्रस्थान रुकने के कारण सीट न मिलने पर उन लोगों के बीच हाथापाई शुरू हो गई थी। स्थानीय टेलीविजन 1TV के अनुसार, अंधेरे के बाद राजधानी में कई विस्फोटों की आवाज सुनी गई। सहायता संगठन इमरजेंसी के अनुसार, अस्सी घायल लोगों को काबुल के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। टेलीविजन स्क्रीन पर यह सब देखकर ऐसा लग रहा था की यह 2021 नहीं बल्कि वर्ष 1996 है। अफगान में सन 1996 में काफी कुछ ऐसी ही स्थिति थी। तब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था, और आज एक बार फिर काबुल बर्बादी और गुलामी की जंजीरों में बंध गया है।
कहां से शुरुआत हुई तालिबान की और यह अफगानिस्तान के लिए आफत क्यों बना हुआ है?
उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम का कट्टरपंथी रूप सिखाने वाले एक मदरसे में तालिबान का जन्म हुआ। पश्तून भाषा में तालिबान का मतलब ‘छात्र’ होता है। 1990 के दशक में सोवियत काल के बाद जो गृहयुद्ध छिड़ा, तब उन शुरुआती सालों में तालिबान ने धीरे धीरे अपनी पकड़ जमाई। इसके बाद तालिबान ने अफगानिस्तान के कंधार शहर को अपना पहला केंद्र बनाया। अफगानिस्तान की जमीन कभी सोवियत संघ के हाथ में थी और 1989 में मुजाहिदीन नामक एक ग्रुप ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी मुजाहिदीन का कमांडर बना पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य- मुल्ला मोहम्मद उमर। उमर ने आगे चलकर तालिबान की स्थापना की। पाकिस्तान इस बात से हमेशा इनकार करता रहा है कि तालिबान के उदय के पीछे उसका ही हाथ रहा है।
Taliban News in Hindi: लेकिन यह सभी जानते हैं कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली। ताजा लड़ाई में भी पाकिस्तान तालिबान की पूरी मदद कर रहा है और इसी वजह से अफगानिस्तान की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध की मांग उठ रही है। शुरुआत में लोग उन्हें बाकी मुजाहिदीनों के मुकाबले इसलिए ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि तालिबान का वादा था कि भ्रष्टाचार और अराजकता खत्म कर देंगे। मगर तालिबान के हिंसक रवैये और इस्लामिक कानून वाली क्रूर सजाओं ने जनता में आतंक फैला दिया। तालिबान द्वारा संगीत, टीवी और सिनेमा आदि पर रोक लगा दी गई। अचानक से देश में मर्दों को दाढ़ी रखना जरूरी हो गया था, महिलाएं बिना सिर से पैर तक खुद को ढके बाहर नहीं निकल सकती थीं। तालिबान ने 1995 में हेरात और 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया था। 1998 आते-आते लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत हो चुकी थी।
Also Read: Happy Independence Day In Hindi: जानिए स्वतंत्रता दिवस का इतिहास
तालिबान का नेतृत्व क्वेटा शूरा नाम की एक काउंसिल करती है। यह काउंसिल पाकिस्तान के क्वेटा जिले से काम करती है। 2013 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की मौत हुई जिसके बाद उसके उत्तराधिकारी मुल्ला अख्तर मंसूर को 2016 की ड्रोन स्ट्राइक में मार गिराया गया। तबसे मावलावी हैबतुल्ला अखुंदजादा तालिबान का कमांडर है। उमर का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब भी हैबतुल्ला के साथ है। इसके अलावा तालिबान का सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी भी तालिबान का हिस्सा है।
Taliban News in Hindi: तालिबान के पास फंडस कहां से आते हैं?
तालिबान को पहले से ही पैसों की कोई कमी नहीं रही। बल्कि तालिबान हर साल एक बिलियन डॉलर से ज्यादा की कमाई करता है। एक अनुमान के मुताबिक, तालिबान ने 2019-20 में 1.6 बिलियन डॉलर कमाए। जिसमे ड्रग्स से 416 मिलियन डॉलर, खनन से 464 मिलियन डॉलर, रंगदारी से 160 मिलियन डॉलर, चंदे से 240 मिलियन डॉलर, निर्यात से 240 मिलियन डॉलर, और रियल एस्टेट से 80 मिलियन डॉलर। इसके अलावा रूस , ईरान, पाकिस्तान, और सऊदी अरब जैसे देशों से प्रति साल लगभग 100 मिलियन से 500 मिलियन डॉलर की सहायता इनको प्राप्त होती है।
अमेरिका और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने आपात रिजर्व फंड पर लगाई रोक
Taliban News in Hindi: तालिबान के कब्जे में आने के बाद से ही अफगानिस्तान पर प्रतिबंधों का दौर भी शुरू हो गया है.
IMF (इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड) के अनुसार तालिबान के कब्जे में आने के बाद अब अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. इसलिए संगठन ने यहां आपात इस्तेमाल के लिए रखे गए 34 अरब रुपये (460 मिलियन डॉलर) से ज्यादा की रकम के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला किया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, IMF ने अमेरिकी सरकार के दबाव के चलते ये फैसला लिया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार नहीं चाहती की तालिबान किसी भी तरह की सम्पत्ति का इस्तेमाल कर सकें. इस से पहले मंगलवार को अमेरिका ने भी अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक के 74.26 हजार करोड़ रुपये की फॉरेन रिजर्व रकम को जब्त कर लिया था
तालिबान शक्तिशाली कैसे बना और इसने काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान पर कैसे कब्जा जमाया?
तालिबान के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए 2014 से ही अमेरिका यहां पर सैनिकों की संख्या में कटौती कर रहा था। तालिबान इस बीच अपनी पकड़ मजबूत करता रहा। इस साल जब अमेरिका ने वापसी में जल्दबाजी दिखाई तो तालिबान को मौका मिल गया। आज और कुछ हफ्ते पहले के वक्त में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि अफगानिस्तान में अमेरिका का एक भी लड़ाकू विमान नहीं है। वहां के लिए खाड़ी और एयरक्राफ्ट कैरियर्स से विमान उड़ान भरते हैं। जिन मैकेनिक्स ने अफगान एयरफोर्स के विमान ठीक किए थे, वे भी चले गए हैं। दूसरी तरफ, तालिबान के पास करीब 85,000 लड़ाके (आतंकी) हैं और वे पिछले 20 सालों की सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं।
Taliban News in Hindi: अमेरिका अफगानिस्तान से अपने सैनिक लगातार क्यों हटा रहा था?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जनता से कहा है कि ,”अगर अफगानी सैनिक नहीं लड़ते तो मैं कितनी पीढ़ियों तक अमेरिकी बेटे-बेटियों को भेजता रहूं। उन्होंने कहा कि मेरा जवाब साफ है। मैं वो गलतियां नहीं दोहराऊंगा जो हम पहले कर चुके हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के फैसले का बचाव करते हुए अफगान नेतृत्व को बिना किसी संघर्ष के तालिबान को सत्ता सौंपने के लिए जिम्मेदार ठहराया और साथ ही तालिबान को चेतावनी दी कि अगर उसने अमेरिकी कर्मियों पर हमला किया या देश में उनके अभियानों में बाधा पहुंचायी, तो अमेरिका जवाबी कार्रवाई करेगा।
Also Read: Subhadra Kumari Chauhan Jayanti: कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविताएं
Taliban News in Hindi: अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने इस साल के अप्रैल महीने में कहा था कि वह अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाएगा (और यह काम 31 अगस्त तक पूरा हो जाएगा)। उसके बाद से ही तालिबान ने उन-उन इलाकों पर कब्जा कर लिया है, जहां सालों से उसकी हुकूमत नहीं थी। अब ऐसा समय आ गया है की लगभग हर राज्य की राजधानी पर तालिबान का शासन हो गया है। पिछले 10 दिनों में तालिबान ने लगभग पूरे देश पर कब्जा कर लिया है। तालिबान आज पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। करीब 20 साल तक जंग के बाद अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी अपने हाथ यहां से वापस खींच लिए है और मुमकिन है तालिबान इसे अपनी जीत समझ रहा है और हिंसा के ज़ोर पर आगे बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ क्यों नहीं उठा रहा है तालिबान के खिलाफ कठोर कदम?
तालिबान के मामले में संयुक्त राष्ट्र ठोस कार्रवाई के बजाय सिर्फ अपील करने को मजबूर है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र तभी कोई कदम उठा सकता है जब वीटो पॉवर वाले देश ऐसा करने के लिए राजी हो जाएं। वीटो पॉवर वाले देश हैं- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन।
तालिबान को लेकर इन देशों में एक राय नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ किसी देश में युद्ध रोकने में सीधा दखल नहीं देता।अगर कहीं हालात बिगड़े हुए हैं तो जब तक सभी पक्ष संयुक्त राष्ट्र को पंच मानने को तैयार ना हों, संयुक्त राष्ट्र कुछ नहीं कर सकता। वैसे भी संयुक्त राष्ट्र पीसकीपर की तरह है, वो शांति प्रवर्तन नहीं कर सकता है। यानी उसका काम सिर्फ शांति कायम करने की कोशिश भर है। सबसे बड़ी बात ये है कि अफगानिस्तान में रूस, चीन और अमेरिका जैसे बड़े देशों के दखल के कारण संयुक्त राष्ट्र की भूमिका छोटी हो जाती है।
मानवता के उद्धार के लिए कहां जाएं और किसकी खोज करें?
मुसलमान ला-इलाह इल्लल्लाह” का नारा लगाकर अल्लाह को याद करते हैं, उसके जैसा कोई नहीं है। वे यह भी कहते हैं कि ‘अल्लाहु अकबर’ का अर्थ है महान ईश्वर, अल्लाह महान है। अल्लाह सब को बराबर निगाह से देखता है।
जब लोगों के पास सही आध्यात्मिक ज्ञान होगा तब उन्हें पता चलेगा कि हम सभी एक ईश्वर की संतान हैं। हम अलग नहीं हैं। जब हम पूरी तरह से कुरान में लिखित ज्ञान से परिचित हो जाएंगे, तब हम किसी को गैर नहीं समझेंगे, हर कोई अपना प्रतीत होगा। जब तक हमें वह सच्चा ज्ञान समझ में नहीं आएगा तब तक हम अपने-अपने धर्म और कानून को श्रेष्ठ मानते रहेंगे और दूसरे धर्मों को निम्न दृष्टि से देखेंगे। यह तो हमारी आध्यात्मिक अज्ञानता है कि हम किसी भी को छोटा या बड़ा कहते हैं।
पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुरकानी 25 की आयत 52 से 59 में अल्लाह अपने रसूल मुहम्मद जी को किसी बाखबर संत की तलाश करने को कहता है, जो अल्लाह तआला कबीर की सच्ची इबादत बताता हो। हज़रत मुहम्मद जी जब 63 वर्ष की आयु में अपने 1 लाख शिष्यों के साथ आखिरी हज को गए जिसे हिज्जतूल भी कहते हैं अपने मुस्लिम भाईयों को यह संदेश दिया कि, ” खून खराबे व ब्याज आदि के करीब कभी नहीं फटकना “। जबकि आज का मुसलमान इसके विपरीत चल रहा है।
कुरान शरीफ में स्पष्ट है कि कुरान शरीफ का ज्ञान दाता अपने स्तर का ज्ञान प्रदान करता है और अंत में अल्लाहु अकबर के बारे में ‘बाख़बर/इल्मवाला’ से जानकारी पूछने का विकल्प छोड़ देता है। बाख़बर से अर्थ है, एक तत्वदर्शी संत (असली ज्ञान से युक्त संत)। हम सबका रचनहार और हमारी पूजा का एकमात्र असली अधिकारी वह सर्वशक्तिमान अल्लाहु अकबर है। जिसकी इबादत करने से हम एकजुट हो जाएंगे, वैश्विक भाईचारा बढ़ेगा, आतंकवाद और युद्ध समाप्त होंगेः वर्तमान समय में पूरे विश्व में एकमात्र बाखबर संत रामपाल जी महाराज हैं जो अल्लाह कबीर की सच्ची इबादत बताते है। जिनकी शरण में जाने से और मर्यादा में रहकर इबादत करने से जीव के सभी दुख,राग,द्वेष,अंहकार समाप्त हो जाते हैं। अफगानिस्तान, तालिबान, पाकिस्तान और विश्व के सभी लोगों को चाहिए की बाखबर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आएं और शांति और सौहार्द का जीवन जीएं।