विश्वविद्यालयों में गिरती शिक्षण व्यवस्था: कारण, नुकसान और समाधान

विश्वविद्यालयों में गिरती शिक्षण व्यवस्था कारण , नुकसान और समाधान

भारत में कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या हर साल बदलती रहती है। हाल ही में, AISHE (All India Survey on Higher Education) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों की संख्या लगभग 4 करोड़ (40 मिलियन) से भी अधिक है। यह संख्या विभिन्न कोर्सेज़ जैसे कला, विज्ञान, वाणिज्य, इंजीनियरिंग, और मेडिकल आदि में पढ़ाई कर रहे छात्रों की है।

AISHE (All India Survey on Higher Education) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शिक्षा का दायरा बहुत बड़ा है और इसमें हज़ारों संस्थान शामिल हैं। यहाँ कुछ प्रमुख आंकड़े दिए गए हैं:

1. विश्वविद्यालय: भारत में करीब 1,100 से अधिक विश्वविद्यालय हैं। इनमें केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय शामिल हैं।

2. कॉलेज: भारत में लगभग 42,000 से अधिक कॉलेज हैं, जो स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इनमें सरकारी और निजी दोनों प्रकार के कॉलेज शामिल हैं।

3. स्टैंडअलोन संस्थान: भारत में लगभग 12,000 से अधिक स्टैंडअलोन संस्थान हैं, जैसे कि इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट और टीचर ट्रेनिंग संस्थान।

इन आंकड़ों के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा का एक व्यापक ढांचा मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा व्यवस्था दिन ब दिन खराब हो रही है। 

आज का शिक्षा तंत्र उन मूल्यों और उद्देश्यों से दूर हो गया है जिनके लिए इसे स्थापित किया गया था। शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री या अंकों का अर्जन नहीं, बल्कि छात्रों का समग्र विकास, उनकी नई चीजों को जानने समझने की जिज्ञासा को संतुष्ट करना, और उन्हें जीवन के हर मोड़ पर सशक्त बनाना होना चाहिए। परंतु, वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कई ऐसी खामियां हैं जो इसकी गुणवत्ता को गिराने में कोई कमी नहीं छोड़ रही हैं।

आज के समय में छात्र अपनी पढ़ाई के लिए YouTube, ChatGPT, Coursera, Udemy, और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अधिक निर्भर हो गए हैं। भले ही ये स्रोत उन्हें त्वरित जानकारी और सरल व्याख्या उपलब्ध कराते हैं, लेकिन कॉलेज द्वारा ली जाने वाली मोटी फीस और संस्थान की जिम्मेदारी का अभाव एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। इन स्रोतों से छात्र पढ़ाई तो कर लेते हैं, परंतु उनमें एक स्थायी और गहरी समझ विकसित नहीं हो पाती जो एक शिक्षक के माध्यम से संभव होती है।

इसी मुद्दे पर कुछ महत्तवपूर्ण बिन्दु हैं जो बहुत से विद्यार्थियों से बातचीत करने के बाद सामने आए हैं उन्हे आपके सामने रखते हैं। 

1. प्रोफेसरों की भूमिका में गिरावट

उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों का मुख्य उद्देश्य छात्रों को उनके पाठयक्रम के हर विषय की गहराई से समझ देना होता है। परंतु कई संस्थानों में प्रोफेसर पढ़ाने के प्रति असंवेदनशील हो गए हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभा नहीं रहे हैं। शिक्षण का अभाव केवल छात्रों के ज्ञान को सीमित नहीं करता, बल्कि उनमें पढ़ाई के प्रति अरुचि भी उत्पन्न करता है। इस स्थिति का परिणाम यह है कि छात्र पढ़ाई को केवल एक औपचारिकता मानने लगे हैं, और उनमें सीखने की ललक धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।

कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में समय पर सिलेबस पूरा नहीं हो पाता है। सेमेस्टर के अंत तक भी, कई महत्वपूर्ण टॉपिक्स छूट जाते हैं या केवल सरसरी नजर से पढ़ा दिए जाते हैं। इससे छात्रों में विषय का केवल सतही ज्ञान रह जाता है, जबकि उद्योग और करियर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गहराई से समझना जरूरी होता है। अधूरे सिलेबस के कारण छात्रों को बाहरी स्रोतों से जानकारी जुटाने की आवश्यकता पड़ती है। 

2. केवल नंबरों पर केंद्रित शिक्षा

वर्तमान में, छात्र केवल अच्छे अंक लाने के लिए पढ़ाई करते हैं, जबकि शिक्षा का असली उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति और विकास होना चाहिए। शिक्षा का यह उद्देश्य कहीं न कहीं खो गया है, और अब केवल डिग्री और अंकों की दौड़ में ही सिमट कर रह गया है। परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना उनकी प्राथमिकता बन गया है, भले ही उन्हें उस विषय का सही ज्ञान हो या न हो। 

और इसी दौड़ मे आगे निकाने के लिए चीटिंग तक का सहारा लेने से नहीं कतराते । 

असाइनमेंट और थीओरी पर ही पूरा ध्यान केंद्रित है, जिससे छात्र प्रैक्टिकल Knowledge से वंचित रह जाते हैं।

3. लैब और प्रैक्टिकल की कमी

किसी भी तकनीकी या विज्ञान की शिक्षा में लैब और प्रैक्टिकल का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है। परंतु, अधिकतर कॉलेजों में लैब्स की स्थिति दयनीय है। कई लैब्स में जरूरी उपकरण ही नहीं हैं। यदि उपकरण हैं तो वे काम नहीं कर रहे, और यदि काम कर रहे हैं तो अध्यापक उपलब्ध नहीं हैं। प्रायोगिक ज्ञान के बिना छात्रों को केवल सैद्धांतिक जानकारी ही प्राप्त होती है, जिससे वे वास्तविक दुनिया के कार्यक्षेत्र (Real Practical World) में असक्षम रह जाते हैं। इस तरह का वातावरण उनके आत्मविश्वास और कुशलता पर गहरा असर डालता है।

4. ऑनलाइन स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता

उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की बढ़ती संख्या के बावजूद, इन संस्थानों की गुणवत्ता और पढ़ाई की गहराई निरंतर घट रही है। ऐसे में, छात्रों को मजबूरन अपने कॉलेज की पढ़ाई के अलावा YouTube, ChatGPT और अन्य ऑनलाइन स्रोतों पर निर्भर होना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल छात्रों के लिए निराशाजनक है, बल्कि अभिभावकों के लिए भी एक बुरे सपने जैसा है । लाखों करोड़ों रुपए फीस के रूप मे बहाकर भी अगर यूट्यूब का ही सहारा है तो फिर 21सदी मे हमारे लिए ये चिंताजनक है । 

उच्च शिक्षा संस्थानों में लाखों रुपये की फीस देने के बावजूद छात्रों को वैसी शिक्षा नहीं मिल रही है जैसी होनी चाहिए। प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालय अधिक फीस तो वसूलते हैं, लेकिन जब बात पढ़ाई की गुणवत्ता की आती है, तो वे छात्रों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। यह एक गंभीर समस्या है, जो छात्रों और उनके माता-पिता के लिए आर्थिक और मानसिक दबाव पैदा करती है।

5. व्यवस्था में व्यापक समस्याएं

छात्रों की समस्याओं को सुनने और उनका समाधान करने के लिए एक स्थायी तंत्र का अभाव है। न केवल छात्रों के शैक्षणिक, बल्कि मानसिक और शारीरिक विकास की भी उपेक्षा की जाती है। इसके अतिरिक्त, उचित मार्गदर्शन की कमी और करियर काउंसलिंग के अभाव में छात्रों को अपने भविष्य की दिशा चुनने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

6. प्रभावित होती समाज की बुनियाद

यह समस्या केवल छात्रों तक सीमित नहीं है। जब शिक्षा की गुणवत्ता गिरती है, तो समाज को कुशल और आत्मनिर्भर युवा नहीं मिल पाते। यह सीधे तौर पर देश के विकास को प्रभावित करता है। यदि युवा केवल डिग्री धारक बनकर रह जाएं, और उनमें सही ज्ञान व नैतिकता का अभाव हो, तो समाज में कुशलता और नवाचार की कमी हो जाती है।

नुकसान 

आत्मविश्वास की कमी

ऑनलाइन स्रोतों का अत्यधिक उपयोग छात्रों में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की कमी पैदा करता है। वे पढ़ाई में स्वयं का योगदान कम और तकनीकी सहारा अधिक लेते हैं। शिक्षकों की कमी या उनकी अनदेखी के चलते, छात्र न केवल सीखने की सही प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं, बल्कि वास्तविकता में अपने करियर के लिए भी अनभिज्ञ रह जाते हैं। इस कारण, कॉलेज की पढ़ाई महज डिग्री पाने का एक साधन बन कर रह गई है।

समाज और उद्योगों पर असर

जब छात्र इस प्रकार की अधूरी शिक्षा के साथ स्नातक होते हैं, तो उद्योगों और समाज में कुशल मानव संसाधन की कमी हो जाती है। उद्योगों में विशेष कौशल और ज्ञान की मांग होती है, परंतु छात्र उसमें कमी महसूस करते हैं। ऐसे में, उन्हें अपने करियर की शुरुआत में ही अतिरिक्त कोर्सेज या ट्रेनिंग लेने की आवश्यकता पड़ती है। 

Placements के आंकड़ों मे कमी 

IITs जैसे संस्थानों की campus placements मे भी दिन ब दिन गिरावट आती जा रही है जिसका एक मुख्य कारण शिक्षा का गिरता स्तर भी है। ऐसे मे विद्यार्थियों की और अभिभावकों की चिंता और भी बढ़ती जा रही है । जब IITs में ही विद्यार्थियों का Future Safe नहीं है तो फिर बाकी जगह से क्या उम्मीद की जा सकती है । 

समाधान की दिशा में कदम

व्यवसायिक दृष्टिकोण पर जोर

शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरियों के लिए तैयार करना नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों में नेतृत्व क्षमता, समस्याओं का समाधान करने का कौशल, और सामाजिक जिम्मेदारी का भी विकास करना चाहिए। उद्योगों और संस्थानों के बीच गहरे और नियमित संवाद को बढ़ावा देकर कोर्स की डिजाइनिंग की जाए ताकि उद्योग की मांगों के अनुसार छात्र तैयार हो सकें।

शिक्षकों की पुनःप्रशिक्षण (Re-Training) और उन्नति की जरूरत

शिक्षकों को नियमित रूप से प्रशिक्षण देना आवश्यक है ताकि वे न केवल पाठ्यक्रम में आधुनिक तकनीकों को शामिल कर सकें बल्कि उन्हें कैसे सिखाया जाए, इसका भी अपडेटेड दृष्टिकोण रख सकें। यह उनके प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए भी अनिवार्य है।

इंटर्नशिप और प्रैक्टिकल ज्ञान का महत्व

छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों में अनिवार्य इंटर्नशिप करने का अवसर देना चाहिए, जिससे वे वास्तविक दुनिया के अनुभव प्राप्त कर सकें। प्रैक्टिकल ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक उपकरणों और विशेषज्ञों की सहायता ली जाए।

अधिकारियों और शिक्षकों की जवाबदेही

प्रशासन और शिक्षकों को उनके कार्यों के प्रति जिम्मेदार ठहराना अनिवार्य है। संस्थानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों की पढ़ाई और उनका सर्वांगीण विकास संस्थान की प्राथमिकता में रहे। किसी भी लापरवाही पर कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों को जवाबदेह बनाया जाए कि वे समय पर सिलेबस पूरा करें।

छात्रों की राय और फीडबैक की अहमियत

संस्थानों को छात्रों की राय को प्राथमिकता देनी चाहिए। एक स्थायी फीडबैक तंत्र की स्थापना होनी चाहिए, ताकि छात्रों की समस्याओं को सही तरीके से सुना और समझा जा सके और आवश्यकतानुसार सुधार किए जा सकें।

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