Manipur Violence [Hindi] : उत्तर पूर्वी राज्य बीते तीन महीनों से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। जिसे लोगों में डर का माहौल बना हुआ है। इस हिंसा में अब तक 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है तो वहीं 400 से ज्यादा लोग घायल हैं। इसके अलावा हजारों लोगों को राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है। आइये जानते हैं मणिपुर में हो रही जातीय हिंसा की वजह और इसका क्या है समाधान?
मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) भड़कने का कारण
मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले एक दशक से मैतेई को जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रही थी। जिसके लिए उसने मणिपुर हाईकोर्ट पर याचिका दायर कर रखी थी। मैतेई समुदाय की दलील थी कि साल 1949 में मणिपुर का भारत में विलय से पहले उन्हें जनजाति का दर्जा प्राप्त था। इसलिए हमें पुनः आदिवासी का दर्जा दिया जाए। जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किये जाने की सिफारिश की। इसके साथ ही मणिपुर सरकार फॉरेस्ट लैंड सर्वे कर रही है, जिसमें अवैध रूप से कब्जा जमाए लोगों को हटाया जा रहा था। इन दोनों वजहों से कुकी आदिवासियों में नाराजगी थी। जोकि आगे चलकर मैतेई और कुकी समुदाय के मध्य जातीय हिंसा (Manipur Violence) में बदल गया।
मणिपुर में हिंसा की शुरुआत
Manipur Violence [Hindi] : मणिपुर में हो रही जातीय हिंसा की शुरुआत 28 अप्रैल को पुलिस व कुकी आदिवासियों के मध्य चुराचांदपुर जिले में हुई हिंसा से माना जाता है जोकि मणिपुर की राजधानी इंफाल से करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। परन्तु यह हिंसा तब जातीय हिंसा के रूप में भड़क गई जब 3 मई को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने आदिवासी एकता मार्च निकाला।
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जिसमें मैतेई और कुकी समुदाय के लोग आमने सामने थे। जिससे स्थिति ज्यादा बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। वहीं इस हिंसा ने इतना भयावह रूप ले लिया कि महिलाओं के साथ यौन शोषण, दरिंदगी जैसे निंदनीय कृत्य भी सामने आए हैं। इस जातीय हिंसा को करीब 80 दिन बीत चुके हैं, लेकिन मणिपुर की हवा में आगजनी की दुर्गंध आज भी गूंज रही है।
कुकी व नगा, मैतेई के एसटी में शामिल करने के विरोध में क्यों हैं?
मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर कुकी व नगा समुदाय विरोध क्यों कर रहे हैं इसे जानने के लिए सबसे पहले मणिपुर की भौगोलिक और राजनैतिक स्थिति जानना बेहद जरूरी है। मणिपुर के बीचों बीच इम्फाल घाटी स्थित है ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें राज्य की 57 प्रतिशत आबादी रहती है। बाकी प्रदेश के 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। वहीं मणिपुर की कुल जनसंख्या करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी।
मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं, जबकि नगा और कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं और अनुसूचित जनजाति वर्ग में आते हैं। मैतेई की आबादी राज्य की करीब 50% आबादी है और जिनका 10% हिस्से में फैली इम्फाल घाटी में दबदबा है। जबकि नगा और कुकी की आबादी करीब 34% है जो राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं। वहीं मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं और बाकी 20 विधायक जनजातियों से हैं। घाटी और पहाड़ी के इस अंतर के कारण ही मणिपुर में कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। यहीं वजह है कि मैतेई बहुल राज्य होने के कारण ही नगा और कुकी, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासी समाज में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं।
कैसे थमेगी मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) ?
किसी भी समस्या का समाधान आपसी चर्चा होती है। परंतु जब स्थिति ज्यादा खराब हो जाये तो ऐसे में पूर्णसंत का ज्ञान अर्थात परमेश्वर का विधान ही ऐसी जातीय हिंसाओं का समाधान होता है। वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज वह संत हैं जो समाज से जातीय, धार्मिक भेदभाव को समाप्त कर लोगों को भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। उनका कहना हैं कि
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई।
आर्य, जैनी और बिश्नोई, एक प्रभु के बच्चे सोई।।
कबीरा खड़ा बाजार में, सब की माँगे खैर।
ना काहूँ से दोस्ती, ना काहूँ से बैर।।
अर्थात चाहे आज हम भले ही अनेक धर्मों व जातियों में बंट चुके हैं लेकिन हम सभी एक परमात्मा के बच्चे हैं। इसलिए हमें आपस में राग द्वेष नहीं करना चाहिए बल्कि प्रेम पूर्वक रहना चाहिए।