Devi Shitla Judwas in Hindi : छत्तीसगढ़ का मुख्य त्यौहार देवी शीतला जुड़वास का अनसुना सच 

Devi Shitla Judwas छत्तीसगढ़ का मुख्य त्यौहार देवी शीतला जुड़वास

Devi Shitla Judwas in Hindi: भारत के उत्तरी भागों सहित छत्तीसगढ़ में शीतला देवी जिन्हें माता शीतला के नाम से भी पुकारा जाता है, हिंदू देवी के रूप में हिंदू समुदाय पूजा करता है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में इनके कई मंदिर  हैं। 

छत्तीसगढ़ में मान्यता है कि गांव में गर्मी से राहत, प्राकृतिक आपदा से निजात और सुख, समृद्धि एवं शांति स्थापित करने के लिए देवी शीतला की पूजा की जाती है और शीतला जुड़वास का त्यौहार मनाया जाता है। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि वास्तविक साधना किसकी करनी चाहिए जिससे हमें इस जीवन में लाभ और मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।

Table of Contents

क्या देवलोक से आईं थी देवी शीतला माता?

प्रचलित लोककथा के अनुसार देवी शीतला देवलोक से हाथ में दाल के दाने लेकर तमोगुण शिव के पसीने से बने ज्वरासुर राक्षस को अपने साथ पृथ्वी पर लाई थीं। तत्कालीन राजा विराट ने देवी को अपने राज्य में रहने से मना कर दिया, इस बात से देवी क्रोधित हो गई। उनके क्रोध से लोगों के शरीर में लाल दाने होने लगे, गर्मी से लोग परेशान हो गए। राजा ने देवी से क्षमा याचना कर उनके क्रोध को शांत करने के लिए देवी को ठंडा दूध और लस्सी चढ़ाया। बताया जाता है कि जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष बासी भोजन चढ़ाने की परंपरा प्रचलित हो गई।  

Devi Shitla Judwas in Hindi: देवी शीतला जुड़वास से जुड़ी रोचक जानकारी 

  • लोकवेद के अनुसार तमोगुण शिव की अर्धांगिनी देवी शीतला देवलोक से ज्वरासुर के साथ पृथ्वी पर आई थीं।
  • शीतला देवी को चेचक की देवी अथवा रोग निवारण की देवी भी कहा जाता है।
  • छत्तीसगढ़ में शीतला देवी को ग्राम देवी कहा जाता है, शीतला जुड़वास के नाम से त्योहार गांव में शांति स्थापित करने और रोग दूर भगाने के लिए मनाया जाता है।
  • पवित्र हिंदू शास्त्रों, वेद, गीता से अपरिचित लोग शीतला जुड़वास के त्यौहार के अवसर पर लगाते हैं व्यवसाय के कार्यों में पाबंदी, उल्लंघन करने पर होता है कठोर दंड का प्रावधान।
  • देवी शीतला एवं जुड़वास जैसे त्यौहार के विषय में पवित्र सदग्रंथ ने दिया निर्णायक ज्ञान।
  • पूर्ण परमात्मा सभी प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन करने में सक्षम है।
  • तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर मर्यादित भक्ति करने से लाईलाज रोग भी ठीक होते है।

शिव की अर्धांगिनी है देवी शीतला 

हिंदू धर्म में शीतला देवी को महत्वपूर्ण देवी का दर्जा दिया जाता है। इनको भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती का रूप मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला हाथों में झाड़ू एवं नीम के पत्ते धारण करती हैं। इनका वाहन गधा है। इनके पीछे कई दंतकथाएं प्रचलित होने के कारण लोकवेद के आधार से इन्हें माता दुर्गा की बहन और ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता हैं, जो केवल मिथ्या मात्र है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पुस्तक ‘ज्ञान गंगा’ में सृष्टि रचना।

किन अवसरों पर होती हैं देवी शीतला की पूजा 

देवी शीतला की पूजा भारत के अधिकांश भागों में की जाती है। इनके मंदिर छत्तीसगढ़ के लगभग अधिकांश गांवों एवं शहरों में देखने को मिलते हैं जिसे ग्राम देवी भी कहा जाता हैं। धार्मिक कार्यक्रम, त्यौहार एवं घरों में हो रहे हर्षोल्लास के अवसर पर इनकी पूजा को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। इसके आलावा इन्हें कई रोगों के निवारण की देवी भी कहा जाता है। भौतिक ताप से बचने, खेतों में होने वाले रोग, फोड़े-फुंसी, हैजा, त्वचा रोग, महामारी तथा चेचक जैसे विषाणु जनित रोग आदि के निवारण के लिए गांवों में इनकी पूजा को महत्व दिया जाता हैं। इन्हें चेचक की देवी भी कहा जाता है।

उत्तर भारत में हिंदू नव वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को बासोड़ा(शीतला अष्टमी) का त्यौहार मनाया जाता हैं इस अवसर पर शीतला देवी को बासी भोजन चढ़ाया जाता है।

छत्तीसगढ़ में तंत्र विघा अथवा त्यौहार के अवसर पर बेजुबान जानवरों की बलि जैसे शर्मनाक कृत्य शीतला देवी के मंदिरों में किए जाते हैं। 

वैरियोला वायरस के कारण होता है चेचक रोग 

चेचक एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है जो वैरियोला वायरस के कारण होती है।

वर्तमान में इसके टीके (वैक्सीन) उपलब्ध है।

इसे चिकनपॉक्स या माता भी कहते हैं, जो सीधे हाइजीन से संबंधित होता है। लोग संक्रमित व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई हवा में सांस लेने या खांसने से संक्रमण प्राप्त कर सकते हैं।

शिक्षा के प्रसार के बावजूद भारत में इस रोग को माता शीतला से जोड़कर उनका प्रकोप माना जाता है तथा अंधविश्वास के चलते इन मरीज़ों का दवाइयों से दूर, नीम के पत्तों से उनका इलाज किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में कैसे मनाया जाता है देवी शीतला जुड़वास का त्यौहार 

जुड़वास से जुड़ी (जुड़ अर्थात ठंड, गर्मी से राहत) छत्तीसगढ़ में मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की गर्मी से जीव जंतुओं को बचाने तथा मौसम के उतार चढ़ाव के कारण पशुओं में होने वाले रोग, फसल रोग, मानव में होने वाले विषाणु जनित रोग से निजात एवं गांव में शांति स्थापित करने के लिए ग्रामीण अंचलों में शीतला जुड़वास का त्यौहार मनाते है। 

त्यौहार के दिन गांव के मुख्य पुजारी (बैगा) द्वारा शीतला देवी की पूजा की जाती है। तथा इस दिन बकरा और मुर्गी जैसे बेज़ुबान जानवरों के बलि जैसे शर्मनाक कृत्य भी इनके मंदिरों में होते हैं। बता दें कि छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला यह त्यौहार दो भागों में विभाजित हैं – 

1) इनमें वे लोग शामिल हैं जो पूरे वर्ष सप्ताह के प्रत्येक सोमवार अथवा गुरुवार को शीतला जुड़वास का त्यौहार मनाते है।

2) दूसरे नंबर पर वे शामिल हैं जो वर्ष के 5 सोमवार अथवा गुरुवार को यह त्यौहार मनाते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक परिवर्तन के दौरान होने वाली हानि की रोकथाम के लिए भी इस त्यौहार को मनाने की परंपरा बनी हुई है।

व्यवसाय के कार्य इस दिन वर्जित होते हैं 

शीतला जुड़वास के दिन गावों में व्यवसाय, मजदूरी, खेतों के कार्य पूर्णतः वर्जित होते हैं, जो पवित्र गीता जी से विपरीत क्रिया है। यदि कोई व्यक्ति पवित्र सद्ग्रंथों के आधार पर भक्ति साधना करता है अथवा इनके बनाए मनमाने नियमों का उल्लंघन करता हैं तो उसके लिए गांव के मुखिया द्वारा कठोर दंड का भी प्रावधान होता हैं। 

जबकि गीता जी अध्याय 3 श्लोक 8 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि कर्म अर्थात दैनिक क्रिया करते हुए शास्त्रों के अनुसार भक्ति करना चाहिए अर्थात शास्त्र आधारित भक्ति करनी है।

अध्याय 3 का श्लोक 8

नियतम्, कुरु, कर्म, त्वम्, कर्म, ज्यायः, हि, अकर्मणः,

शरीरयात्र, अपि, च, ते, न, प्रसिद्धयेत्, अकर्मणः।।8।।

गीता जी से अनुवाद – “तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा ॥8॥”

भक्ति करने के लिए किसी विशेष समय का प्रावधान आवश्यक नहीं 

कबीर साहेब जी कहते हैं – परमात्मा के स्मरण के लिए किसी विशेष क्षण या विशेष दिन की प्रतीक्षा में ना रहकर प्रत्येक क्षण काम करते हुए, खाते, बैठते उठते नाम जाप करना चाहिए अर्थात भक्ति कर्म करना चाहिए। 

कबीर, नाम उठत नाम बैठत, नाम सोवत जाग रै। 

नाम खाते नाम पीते, नाम सेती लाग रे।।

परमात्मा के विधान से समयानुसार प्राप्त होता है पाप एवं पुण्य का फल 

परमात्मा का विधान बताता है मनुष्य द्वारा किए गए पाप पुण्य का फल समय अनुसार प्राप्त होता हैं। जिस क्षेत्र के लोगों में पाप अधिक होगा उसका फल उन्हें किसी मौसम के ताप क्रम के उतार चढ़ाव (गर्मी, सर्दी, बारिश) से होने वाले हानि या रोग से भोगना पड़ता है। 

उदाहरण के लिए वर्ष के प्रारंभ में भारत के ज्योतिष शास्त्र जानने वाले बताते हैं कि – वर्ष 2023 में बिहार में भीषण गर्मी तथा हरियाणा, राजस्थान समेत कुछ राज्यों में बेमौसम वर्षा होगी, जिससे जन हानि होने की संभावना है। इसके अलावा अलग अलग क्षेत्र के आधार पर उनके द्वारा कुछ संभावनाएं बताई जाती हैं। जो उस क्षेत्र की स्थिति बयां करता है। अर्थात परमात्मा के विधान अनुसार उस क्षेत्र में किए पाप का फल निश्चित समय में वर्षा के माध्यम से जनहानि तथा पुण्य का फल फसल लाभ के माध्यम से प्राप्त होता है।

शीतला जुड़वास जैसे त्यौहार मनाना व्यर्थ क्रिया है ?

शीतला माता किसी भी प्रकार के पाप कर्म को नहीं काट सकती और ना ही वे प्राकृतिक परिवर्तन करने में सक्षम हैं। शीतला जुड़वास (Shitla Judwas) का त्यौहार शास्त्र विपरीत मनमाना आचरण होने से यह व्यर्थ की क्रिया है। समय रहते इसे त्यागने में मानव समाज की भलाई है।

गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है कि जो लोग शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते है उन्हें न ही सुख, न सिद्धि न मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

हिंदु शास्त्र के विपरीत है माता शीतला की पूजा करना

पवित्र हिंदू धर्म के सद्ग्रंथ वेद, गीता एवं पुराण में देवी शीतला (Devi Shitla) की पूजा का कहीं भी ज़िक्र नहीं हैं और ना ही ये साधक को किसी भी प्रकार के लाभ दे सकती हैं। जो देवी- देवता क्रोध वश साधक को नुकसान पहुंचाए अथवा किसी जीव की बलि मांगे वे कतही पूजनीय नहीं है। इनकी पूजा करना शास्त्रों के विरुद्ध है। कबीर साहेब जी कहते है; 

“कबीर, माई मसानी शेठ शीतला, भैरव भूत हनुमंत। परमात्मा उनसे दूर है, जो इनको पूजंत ।।”

राम भजै तो राम मिलै, देव भजै सो देव। 

भूत भजै सो भूत भवै, सुनो सकल सुर भेव।।”

कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि खेतों में बने माई मसानी, पितर, भैरव, भूत, बेताल, हनुमान, देवी शीतला एवं देवताओं की पूजा करने वाले को परमात्मा वाले लाभ प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात उनका मोक्ष संभव नहीं है। पवित्र गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में भी यही बताया गया है कि देवताओं को पूजने वाले देवता को तथा पितरों को पूजने वाले पितरों को और भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात इनकी साधना करना व्यर्थ है।

शास्त्रों के अनुसार वर्णित पूजा त्याग कर उपरोक्त की पूजा करने से साधक को परमात्मा वाले लाभ प्राप्त नहीं हो सकते। केवल पूर्ण परमात्मा परम अक्षर पुरुष पूजनीय है। जिनकी शरण में गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 से 66 में जाने को कहा गया है  तथा वेदों में उन्हें कविर्देव/ कबीर साहेब कहा गया है।

वेदों अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव पाप नाशक हैं

यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13, ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १६३, मंत्र १, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 82 मंत्र 1, 2 और 3 में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव है जो हमारे पापों का नाश करते हुए लाईलाज बीमारी को ठीक कर रोगमुक्त जीवन प्रदान कर सकते हैं। 

पूर्ण परमात्मा कविर्देव किसी भी प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन करने और प्राकृतिक आपदा को टालने, पशु रोग, फसल रोग आदि को दूर करने में सक्षम हैं। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर करनी चाहिए। शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से पूर्ण परमात्मा प्रत्येक प्रकार से भक्त की रक्षा करते हैं। 

सद्भक्ति करने से मिलेंगे लाभ 

वर्तमान में तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने पवित्र वेदों एवं गीता के गुढ़ रहस्यों को मानव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है। उन्होंने अध्यात्म के नाम पर समाज में व्याप्त पाखंडवाद, बाह्य आडम्बर को जनता के सामने प्रस्तुत किया है तथा सद्भक्ति प्रदान की है।

 उनसे नाम दीक्षा लेकर सद्भक्ति करने से लाखों लोगों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हुए है। आज सन्त रामपाल जी महाराज ही विश्व में एकमात्र ऐसे संत है जिन्होंने भक्ति की पूरी विधि पवित्र सद्ग्रंथों से प्रमाणित करके बताई है जिससे पूर्ण मोक्ष संभव है। अध्यात्म की अधिक जानकारी के लिए आप Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel विज़िट करें और पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।

FAQS about Devi Shitla Judwas in Hindi

माता शीतला कौन है?

उत्तर:- शिव जी की पत्नी जिसे चेचक की देवी कहा जाता है।

चेचक रोग कौन से वायरस से होता है?

उत्तर:- वैरियोला वायरस।

क्या माता बलि मांगती है?

उत्तर:- नहीं, जो देवी देवता जीवों की बलि मांगे वे कतही पूजनीय नहीं है, वह तो शैतान समान हैं।

क्या शीतला देवी की पूजा और जुड़वास त्यौहार से साधक को लाभ प्राप्त हो सकता है?

उत्तर:-नहीं, पवित्र हिंदु धर्म के वेद गीता में देवी शीतला की पूजा का कहीं भी जिक्र नहीं है। गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार शास्त्रों के विपरीत क्रिया कर मनमाना आचरण करना व्यर्थ बताया है अर्थात जुड़वास त्यौहार व्यर्थ की क्रिया है।

क्या माता शीतला साधक के रोग दूर और प्राकृतिक परिवर्तन कर सकती है।

उत्तर:- बिलकुल नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *