मीराबाई सोलहवी(1498-1547) सदी की एक कृष्ण भक्त तथा कवियत्री थी। और वह कबीर परमेश्वर जी के समकालीन थी। मीराबाई ने कबीर साहेब जी के आदेश से संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया था।
परन्तु बाद में पूर्ण दीक्षा कबीर साहेब जी से ली थी। राजपूत समाज में जन्म होने के कारण भगवान की भक्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा।। जिसके कारण पूर्ण परमात्मा ने उसकी अनेक बार रक्षा की।
आइए जानते हैं मीराबाई के साथ क्या-क्या घटनाएं हुई
- मीराबाई का जीवन परिचय
- मीराबाई के बचपन की कहनी
- मीराबाई को कैसे कबीर परमेश्वर जी की शरण मिली
- मीराबाई की मां द्वारा मीराबाई को सत्संग में जानें को रोकने की व्यर्थ कोशिश करना ।
- मीराबाई के साथ परमात्मा ने अनेक चमत्कार किए
- मीराबाई का घर छोड़ने के बाद राजा के राज्य में उपद्रव होना
- मीराबाई का पत्थर की मूर्ति में समाधि लेना।
मीरा बाई का जीवन परिचय
मीरा बाई जन्म सन् 1498 में ग्राम कुड़की जिला पाली राजस्थान में राजपूत समाज में जशोदा राव रतन सिंह राठौड़ के घर हुआ था।
मीरा बाई की मां धार्मिक प्रवृत्ति थी इस कारण से मीरा बचपन से ही कृष्ण की भक्ति करने लगी थी। श्री कृष्ण जी भक्ति ईष्ट पति रूप में पूजा किया करती थी।
श्री कृष्ण की भक्ति में आरूण होने कारण मीरा ने विवाह करने से इंकार कर दिया था। परंतु मीरा बाई का विवाह उनकी इच्छा के बिना चित्तौड़गढ़ के राजा भोज राज सिंह सिशोधिया से हुआ था।
मीराबाई के विवाह के चार वर्ष पश्चात युद्ध में मीराबाई के पति की मृत्यु हो गई थीं। उसके बाद मीराबाई का देवर विक्रमादित्य राजा बना जो मीराबाई को भक्ति करने में बाधक बनता था।
मीराबाई के बचपन की अद्भुत कथा
बचपन में मीरा बाई के पड़ोस में एक लड़की का विवाह हो रहा था । मीरा अपनी सहेलियों के साथ विवाह देखने गई थी। उसने अपनी सहेलियों से सुना इसका इसका विवाह हो रहा है इसका दूल्हा आया है।
घर आकर मीरा बाई अपनी मां से जिद्द करने लगी। मेरा भी विवाह करा दे मेरा भी दूल्हा ला दो। मीरा छोटी थी मीरा को बहुत उसकी मां ने समझाया फिर भी जिद्द करती रही।
नहीं मानी।
बार बार जिद्द करने पर मीरा की मां ने श्री कृष्ण की रखी मूर्ति मीरा को पकड़ा दी और बोला ले ये तेरा दूल्हा हैं। तभी से मीरा श्री कृष्ण की अपने पति रूप में पूजने लग गई। और श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई। जब विवाह के योग्य हुई तो विवाह करने से मना कर दिया कि मां बार-बार विवाह नहीं करवाया करते।
लेकिन समाज के लोक लाज के भय से मीरा का विवाह चित्तौड़ गढ़ के राजा भोज राज सिंह से हुआ। जो धार्मिक प्रवृत्ति के थे मीरा को भक्ति करने से कभी नहीं रोका। मीरा का पूरा साथ देता था। मीरा के साथ दो चार नौकरानियां भेज दिया करता था।
मीराबाई को कैसे कबीर परमेश्वर की शरण प्राप्त हुईं ।
मीराबाई श्री कृष्ण के मंदिर में जाती थी। उसी रास्ते में एक बगीचा था। एक उसमें कबीर परमेश्वर जी और संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे। सुबह का समय था मीरा ने देखा संत महात्मा हैं सत्संग हों रहा है तो सत्संग सुन कर चलते हैं।
मीरा सतसंग में बैठ गई सत्संत में कबीर परमेश्वर ने संक्षिप्त में सृष्टि रचना सुनाई। और बताया श्री कृष्ण अर्थात श्री विष्णु जी से ऊपर कोई अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं । श्री कृष्ण अर्थात श्री विष्णु पूर्ण परमात्मा नहीं है ये अविनाशी नहीं है। इनका जन्म मरण होता है। तथा प्रमाण दिया
परमेश्वर कबीर जी ने बताया गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2, में स्पष्ट कह रहा है। हे अर्जुन तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चूके है तू नहीं जानता हैं मैं जानता हूं। इससे स्वसिद्ध है श्री कृष्ण जी का जन्म मरण समाप्त नहीं हैं। यह अविनाशी नहीं है।
इसलिए गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 में गीता बोलने ने कहा है हे भारत तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा तू सनातन परम धाम को अर्थात परम शांति को प्राप्त होगा।
और कबीर परमेश्वर जी ने बताया अगर जन्म मरण नहीं मिटा तो भक्ति करना, “भक्ति ना करने” के ही समान है । जब जन्म मरण श्री कृष्ण अर्थात श्री विष्णु का ही समाप्त नहीं हुआ तो उनके पुजारियों का कैस हो सकता है। परमेश्वर कबीर जी मुख कमल से ये वचन सुनकर मीरा बाई ने परमात्मा का बहुत आभार व्यक्त किया। हे महात्मा जी ये ज्ञान आज तक मैंने कहीं नहीं सुना ।
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मीराबाई के मन में एक शंका थी। मीराबाई ने परमेश्वर कबीर जी प्रश्न किया कि हे महात्मा जी आज तक मैंने कहीं नहीं सुना । श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई और पूर्ण परमात्मा हैं। तब कबीर परमेश्वर ने कहा ये दोष आपका नहीं है ये दोष आपके अज्ञानी धार्मिक गुरुओं का जिन्हें अपने सद्ग्रंथका स्वयं ज्ञान नहीं। कि सद्ग्रंथक्या ज्ञान बताते हैं। जबकि
देवी पुराण के तीसरे स्कंद में श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार करते हैं। मैं ( विष्णु ), ब्रह्मा तथा शंकर नाशवान हैं हमरा तो आविर्भाव( जन्म ) तथा (तिरोभाव ) मृत्यु हुआ करता हैं ।
मीराबाई ने कहा मुझे स्वयं साक्षात प्रकट होकर दर्शन देते हैं तो परमेश्वर कबीर जी ने अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है तो आप श्री कृष्ण जी से ही पूछ लीजिए। ये संत कभी झूठ नहीं बोलते।
मीराबाई के सामने साक्षात श्री कृष्ण का प्रकट होकर कबीर परमेश्वर से दीक्षा लेने के लिए बोलना ।
घर जाकर मीराबाई हर रोज की तरह ध्यान मग्न होकर श्री कृष्ण जी को याद किया। और श्री कृष्ण जी साक्षात मीराबाई के सामने प्रकट हुए। तथा मीराबाई ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया। क्या आपसे ऊपर कोई और पूर्ण परमात्मा हैं। श्री कृष्ण ने उत्तर दिया हां है परंतु वो किसी को दर्शन नहीं देता है। हमने बहुत समाधि और साधना करके देख लिया।
और मीराबाई ने प्रश्न क्या आप जीव का जन्म मरण समाप्त कर सकते हो। श्री कृष्ण जी ने उत्तर दिया जीव का जन्म मरण समाप्त नहीं हो सकता। मीराबाई ने कहा संत कबीर बताया है कि मेरे पास भक्ति मंत्र है जिससे जीव का जन्म मरण समाप्त हो जाएगा।
गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में लिखा है। तत्वज्ञान तथा तत्वदर्शी संत की खोज के पश्चात परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहां जानें के पश्चात् साधक फिर लौटकर कभी संसार में नहीं आता है। अर्थात् जन्म मरण समाप्त हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।
मीराबाई ने श्रीकृष्ण जी से कहा मुझे मोक्ष चाहिए। रास्ता बताए। तब श्री कृष्ण जी ने मीरा बाई से कहा। मीरा तू उस संत से नाम ले और अपना कल्याण करवाओ।
मीराबाई की परीक्षा के लिए कबीर परमेश्वर के आदेश से संत रविदास जी से दीक्षा दिलाना
कबीर परमेश्वर जी जी से तत्वज्ञान समझने के पश्चात मीराबाई कबीर साहेब जी से नाम दीक्षा लेने की प्रार्थना करती हैं।तो कबीर साहेब जी मीरा को दीक्षा देने के लिए संत रविदास जी जी के पास भेज देते हैं । संत रविदास जी को आदेश दे दिया ।मीराबाई को नाम दीक्षा दे दे।
मीराबाई संत रविदास जी के पास बैठ जाती हैं। संत रविदास जी मीराबाई से बोलते हैं मैं नीचे कुल से शुद्र जाति से हूं। चर्मकार का काम करता हूं। आप ठाकुरों की बेटी हों। आपको ठाकुर समाज भला बुरा कहेगा। अगर मुझे गुरु बना लिया मीराबाई अधिकारी आत्मा थी। हमेशा परमात्मा के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहती थी।
मीरा बाई ने कहा संत जी आप मेरे पिता मैं आपकी पुत्री। नाम दीक्षा दो मेरा कल्याण करो। कल कहीं मेरी मृत्यु हों जायेगी मैं कुतिया बनी घुमूगी तब ये समाज क्या कर लेगा । कबीर परमेश्वर जी से सत्संग सुन लिया था।
कबीर,कुल करनी के कारने, हंसा गया बिगोया। तब कुल क्या लेगा, जब चार पाओं का होय।।
मीराबाई के मुख से ये वचन सुनकर संत रविदास जी ने सब बाते कबीर परमेश्वर जी को बताई परमेश्वर कबीर जी ने कहा प्रथम मंत्र दीक्षा में देदो। कबीर परमेश्वर जी और रविदास जी वहा एक महीने रुके। पहले तो मीराबाई मंदिर में दिन में ही जाती थी।
जब कबीर परमेश्वर का सत्संग मिलने के पश्चात् मंदिर जाना छोड़ दिया था। फिर मीराबाई दिन रात्रि दोनों समय सत्संग जानें लगी। जिसके कारण मीराबाई का देवर और ज्यादा मीराबाई का विरोध करने लगा था।
कबीर परमेश्वर जी द्वारा मीराबाई को वृंदावन में पूर्ण दीक्षा देना।
संत रविदास से दीक्षा लेने के पश्चात मीरा बाई वृन्दावन में रहने लगीं थीं। और उनकी आस्था कुछ श्री कृष्ण में भी थी। इस कारण वो वृन्दावन में गई थीं। वृन्दावन में पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) साधु प्रकट हुए ।
मीराबाई से ज्ञान चर्चा हुई। तब मीराबाई को ज्ञान हुआ। अभी पढ़ाई शेष है मीराबाई को संत रविदास जी ने ने केबल प्रथम नाम दिया था। फिर साधु में प्रकट पूर्ण परमात्मा ने वही रूप दिखाया जिस रूप संत रविदास जी के साथ मीराबाई को सत्संग मिले थे।
फिर कबीर परमेश्वर जी ने मीराबाई को सतनाम का मंत्र जाप करने को दिया।
मीराबाई की मां द्वारा मीराबाई को सत्संग में जानें को रोकने की व्यर्थ कोशिश करना ।
कबीर परमेश्वर जी सत्संग दिन और रात्रि दोनों समय किया करते थे। तो मीराबाई रात्रि में भी सत्संग में जानें लगी। मीरा का रात्रि को सत्संग में जाता देखकर मीराबाई का देवर राणा जलभुंज गया। मीरा बाई को सत्संग में जानें से रोकना तूफान को रोकने समान था। इसलिए राणा ने अपनी मौसी अर्थात् मीरा की मां को बुला लिया। कि मीरा रात्रि में सतसंग में नहीं जाया करे। कि बेटी मां की बात मानती हैं मीरा की मां कई प्रकार से मीरा को समझती है कि बेटी सत्संग में मत जाया कर ।
सतसंग में जाना मीरां छोड़ दे ए, आए म्हारी लोग करैं तकरार।
सतसंग में जाना मेरा ना छूटै री, चाहे जलकै मरो संसार।।टेक।।
थारे सतसंग के राहे मैं ऐ, आहे वहाँ पै रहते हैं काले नाग,
कोए-कोए नाग तनै डस लेवै। जब गुरु म्हारे मेहर करैं री,
आरी वै तो सर्प गंडेवे बन जावैं।।1।।
थारे सतसंग के राहे में ऐ, आहे वहाँ पै रहते हैं बबरी शेर,
कोए-कोए शेर तनै खा लेवै। जब गुरुआं की मेहर फिरै री,
आरी व तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।।2।।
थारे सतसंग के बीच में ऐ, आहे वहां पै रहते हैं साधु संत,
कोए-कोए संत तनै ले रमै ए। तेरे री मन मैं माता पाप है री,
संत मेरे मां बाप हैं री, आ री ये तो कर देगें बेड़ा पार।।3।।
वो तो जात चमार है ए, इसमैं म्हारी हार है ए।
तेरे री लेखै माता चमार है री, मेरा सिरजनहार है री।
आरी वै तो मीरां के गुरु रविदास।।4।।
शब्दार्थ -: मीरा की मां कहती हैं मीरा सतसंग में न जाया कर लोग भला बुरा कहेंगे। मीरा कहती हैं मां मेरा सत्संग में जाना नहीं छूट सकता है चाहे संसार जल के मर जाए। आगे मीरा की मां कहती हैं तुम रात्रि सत्संग में जाती काले नाग तुम्हें डस लेंगे मीरा कहती हैं मेरे की मेहर से सर्प गंदेवे बन जायेगे फिर मीरा की मां कहती हैं। तुम्हारे सत्संग की राह में बबरी शेर रहते हैं जो तुम्हें खा लेंगे। मीरा कहती हैं मेरे गुरु कि मेहर परेगी तो शेरों के गीदड़ बन जायेगे। आगे मीरा की मां कहती हैं तुम्हारे सत्संग में साधु संत युवा पुरूष आते हैं। कोई तुम्हें भला बुरा कहेगा। तब मीरा कहती हैं हे तेरे मन में पाप है साधु संत मेरे मां बाप जो हमारा मोक्ष करवा देंगे। मीरा की मां कहती हैं। तेरे गुरु नीची जाति चमार जाति हैं और हम ठाकुर समाज से हैं चमार को गुरु बनाना हमारी बेज्जती हैं। मीरा बाई कहती हैं तेरे लिए माता वो चमार है मेरा तो सिरजनहार हैं।
मीराबाई के साथ परमात्मा ने अनेक चमत्कार किए
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब जी) लोगों की भक्ति में आस्था बनाए रखने के लिए अपने प्रिय भगत की स्वयं मदद किया करते हैं । मीराबाई के साथ जो चमत्कार हुए वो इस प्रकार हैं।
- जहरीले सांप का हीरे मोतियों का सुन्दर हार बनना
- जहर का अमृत बनना
- राजा द्वारा मीराबाई को तलबार से मारने में असफल होना।
जहरीले सांप का हीरे मोतियों का सुन्दर हार बनना
मीराबाई की मृत्यु के बाद मीराबाई का देवर राजा बन गया था। कुल के लोगों के कहने पर मीराबाई को मंदिर जानें से रोकने लगा।परंतु वो नहीं मानती थीं।। तो राजा ने मीराबाई को मारने की योजना बनाई अपने लड़के का जन्म दिन रख दिया। और उसमें रिश्तेदारों और अनेक गणमान्य लोगों आमन्त्रित किया था।
राजा ने मीराबाई की बांदी को बुलाकर कहा इसमें बेशकीमती हार हैं।मीरा को दे देना हैं मेरे बेटे का जन्म दिन पहन लेगी। नहीं लोग कहेंगे भाई की मृत्यु के बाद राजा अपनी भाभी को अच्छे नहीं रखता। आभूषण का डिब्बा बांदी ने मीराबाई को दे दिया मीरा बाई ने सोचा मेरे लिए तो मिट्टी पहन लेती पड़ा रहेगा गले में अगर नहीं पहनूंगी तो राजा दुखी करेगी।
आभूषण के डिब्बे में राजा ने काले सफेद रंग का जहरीला सांप भेजा था। सोचा डिब्बा खोलते ही सांप मीराबाई को डस लेगा मीरा मर जायेगी। सभी रिश्तेदार आए हुए कोई मुझे बुरा नहीं कहेगा। सभी रिश्तेदार कहेंगे सांप ने काट लिया मर गई। जब मीराबाई ने आभूषण का डिब्बा खोला। तो उसमें सांप की जगह हीरे मोतियों का सुंदर हार निकला।
जब राजा अपने सैनिकों के साथ मीराबाई के कमरे में गया तो मीराबाई सुंदर हार पहनकर बैठी थी। राजा ने मीराबाई से बोला ये हार किस यार कहां से लाई हैं । मीराबाई के आंखों में आंसू थे। मीराबाई ने राजा से कहा ये हार आपने ही भेजा है। राजा ने बांदी को बुलाया। बांदी से कहा डिब्बा कहां हैं? बांदी ने पलंग के नीचे निकाल कर डिब्बा दिखाया और कहा ये है डिब्बा जो आपने दिया था। फिर राजा ने सोचा सचमुच मरी और राजा बापस चला जाता हैं।।
जहर (विष) का अमृत बनना
मीरा बाई को सांप से मारने में असफल होने के बाद राजा ने एक सपेरे से जहरीले सांप का विष मगवाया और सपेरे से कहा ऐसा जहर ला दो कि जीभ लगाते ही मर जाए। सपेरे ने एक कप विष का लाकर राजा को दे दिया। राजा विष लेकर मीराबाई के पास जाता है और अपनी तलबार निकाल लेता है। और मीराबाई से कहता है इसमें विष हैं इसे पी ले नहीं तेरी अभी गर्दन काटता हूं।
मीराबाई सोचती हैं तलबार से काटेगा तो दर्द होगा इसलिए जहर पी लेती हूं। मीराबाई विष का प्ल्याला उठाकर परमात्मा का नाम लेकर पी जाती हैं। मीराबाई को कोई असर नहीं होता है। काफी देर राजा इंतज़ार करता हैं मीराबाई नहीं मरी। राजा सपेरे को बुलाकर कहता है। नकली जहर लाकर दिया है। इसका कोई असर नहीं हुआ।
सपेरे कहता है जहर का प्याला कहां हैं। राजा विष का प्याला सपेरे को देता है सपेरे उस विष के खाली प्याले में दुध डालकर कुत्ते को मिलाता है राजा के सामने कुत्ते की जीभ लगाते ही मृत्यु हों जाती हैं। सपेरा कहता है इसमें तो जहर का कुछ अंश था। तब कुत्ता तुरन्त मर गया। सपेरे ने कहा राजन किसे विष पिलाया कि असर नहीं हुआ। राजा ने नहीं बताया कहा तू अपना काम कर राजा चला गया।
मीराबाई को तलबार से मारने में असफल होना।
मीरबाई का देवर राजा जब देखती हैं मीराबाई सांप से नहीं मरी जहर से नहीं मरी ।तो राजा तलवार लेकर माराबाई के कमरे में जाता है। मीराबाई सो रही होती है। दरवाजा खटखटा है। दरवाजा नहीं खुलता है तो दरवाजे में जोर से लात मारता हैं। तो दरवाजा टूट जाता है। एक विशाल सांप मीराबाई के दरबाजे पर खड़ा था।
जो राजा को डंक मारने के लिए राजा पर झपटता हैं। राजा भागकर अपनी जान बचाता हैं। जब राजा देख लेता हैं। मीराबाई किसी तरह नहीं मर रही तो फिर राजा ने मीराबाई को मंदिर जानें से नहीं रोका। मीराबाई के साथ नौकरानियां और पुरूष रक्षक भी भेजने लगा।
मीराबाई के घर छोड़ने के बाद राजा के राज्य में उपद्रव होना ।
राजा के अत्याचारों से तंग आकार मीराबाई घर छोड़कर वृंदावन रहने लगीं थीं। तो राजा के सम्राज्य में अकाल मृत्यु, महामारी, अकाल (दुर्भिक्ष) की मार हो गई। ज्योतिषियों से पता चला कि आपके सम्राज्य से कोई संत दुखी होकर गया है। जिस कारण ये उपद्रव हो रहा है।
और समाधान बताया गया कि अगर वह संत हो और उसे प्रसन्न करके वापस लाया जाए और वो संत आशीर्वाद दे तो सब ठीक हो सकता है। राजा ने अपने सभापतियो से प्रश्न किया कि कौन सा संत हैं जो हमारे सम्राज्य से रूष्ट होकर गया है
राणा का चाचा (मीराबाई का चाचा ससुर) भवन सिंह राजा का महामंत्री था। जिसने मीराबाई के साथ संत रविदास जी से नामदीक्षा ले रखी थी। मीराबाई को अपनी बेटी की तरह मानता था तथा एक साध्वी की तरह सम्मान देता था। लेकिन अपने अत्याचारी भतीजे से डरता था। मीराबाई को सांत्वना देता था भक्तो का भगवान रक्षक होता है।
भवन ने राजा से कहा था। मीराबाई संत थी जो चली गई इस कारण यह सब उपद्रव हो रहा है। राजा ने आदेश किया कौन मीराबाई को वापस ला सकता है। प्रतिज्ञा करता हूं कि मीराबाई को कोई कष्ट नहीं दूंगा।
दो सिपाही जो राजा ने मीराबाई की निगरानी के लिए छोड़ रखे थे जिन्हें मीराबाई के साथ छाया की तरह रहने का आदेश दे रखा था। मीराबाई से ज्ञान चर्चा सुना करते थे। मीराबाई के दुःख में दुखी हुआ करते हैं । मीराबाई के घर से जाने के बाद उनकी दशा खराब थी वो घंटों रोते थे।
दोनों ने खड़ा होकर सभा में कहा हम मीराबाई को ला सकते हैं। अगर वो जिंदा मिल गई। राजा ने बोला अगर नहीं आई तो क्या करोगे। दोनों सिपाहियों ने कहा हम भी बापस नहीं आएंगे।
मीराबाई का पत्थर की मूर्ति में समाधि लेना।
दोनों सिपाही मीराबाई की खोज के लिए निकल पड़ते है। खोजते उन्हें पता लगाता है। बहुत से साधु संत वृन्दावन में रहते हैं। दोनों सिपाही वृंदावन पहुंच जाते। और वृंदावन में मीराबाई मिल जाती है। मीराबाई को सारी कहानी बताते हैं कि राज्य में उपद्रव हो रहा है। मीराबाई से प्रार्थना करते हैं।आप वापस चलो राजा ने प्रतिज्ञा की है कि आपको कोई कष्ट नहीं देगा।
मीराबाई कहती हैं भाई अब मैं नहीं जाऊंगी। सिपाही बोलते हैं हम राजा से प्रतिज्ञा करके आए। अगर मीराबाई मुझे जिंदा मिल गई तो हम अवश्य लाएंगे। राजा ने कहा मीराबाई नहीं आई तो क्या करोगे। तो हमने हम भी वापस नहीं आएंगे। बहन हमारे परिवार की ओर देखकर चलो।
मीराबाई कहती हैं अगर मैं संसार छोड़ कर चली जाती तो भी आपको घर वापस जाते। सिपाही ने कहा फिर तो वापस लौटना ही था। उसी समय मीराबाई ने एकतारा वाला यंत्र उठाया। परमात्मा की स्तुति करने लगीं। आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे। उसी समय कृष्ण की मूर्ति में समा गई।
संत गरीब दास साहेब जी के अमरग्रन्थ साहेब के
पारख के अंग की वाणी नंबर 60
मीरा बाई पद मिली , सतगुरू पीर कबीर। देह छतां ल्यौ लीन हैं ,पाया नहीं शरीर।।
शब्दार्थ -: मीरा बाई को जब कबीर परमेश्वर जी की शरण तो वो भक्ति में आरूण हो गई सहशरीर मूर्ति में समा गई उनका शरीर भी नहीं मिला।
दोनों सिपाहियों वापस आ गए। और राजा से बोला वो
निष्कर्ष -:
परमात्मा ने भक्ति का बहुत महत्व बताया है। मीराबाई ने भक्ति की संघर्ष किया तो उसे कबीर परमेश्वर की शरण प्राप्त हुईं तथा मोक्ष का मार्ग मिला।
परमात्मा की भक्ति के कारण ही आज मीराबाई की महिमा गाई जाती है। भगवान पर आश्रित भगत मोक्ष प्राप्त कर लेते है तथा उनकी समाज में महिमा अमर हो जाती हैं
परमात्मा की भक्ति प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए पूर्ण परमेश्वर कबीर जी के अवतार संत रामपाल जी महाराज से नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाना चाहिए।
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