आज के मनुष्य ने अपनी सोच में इतना परिवर्तन कर लिया है कि अपनी संस्कृति को छोड़कर विदेशी संस्कृतियों को अपनाना शुरू कर दिया है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि ब्रिटिश शासन के अधीन रहने के बावजूद, हमारे प्रयासों ने उन्हें हमारे देश से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी समय पर जिन्हें हमने देश से भगाने की भरसक कोशिशें कीं थी। आज उन्हीं अंग्रेजों की पाश्चात्य संस्कृति को आज हम स्वयं अपनाने लगे हैं। हमारे पूर्वजों ने, महापुरुषों ने अपनी भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए ना जाने कितने संघर्ष किए, लेकिन आज हमारे कारण हमारी भारतीय संस्कृति पतन की ओर जा चुकी है। आखिर अब भारतीय संस्कृति का उत्थान कैसे हो? आइए इस लेख में जानते हैं –
भारतीय संस्कृति के पतन का कारण
भारतीय संस्कृति, जो हजारों वर्षों की धरोहर और विविधता का प्रतिनिधित्व करती है, आज विभिन्न चुनौतियों और संकटों का सामना कर रही है। इसके पतन के पीछे कई जटिल और बहुआयामी कारण हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- समाजिक और पारिवारिक संरचना में परिवर्तन:
संयुक्त परिवारों का विघटन: भारतीय समाज की पारंपरिक संरचना संयुक्त परिवारों पर आधारित थी, जहां विस्तारित परिवार के सदस्य एक साथ रहते थे और सामूहिक रूप से निर्णय लेते थे। आजकल, न्यूक्लियर परिवारों के प्रचलन ने पारिवारिक सामंजस्य और सामाजिक संबंधों में कमी लाई है।
परिवार में रिश्तों का बदलाव: पारंपरिक भारतीय परिवारों में रिश्तों की गरिमा और सम्मान पर जोर दिया जाता था। अब, आधुनिक धारावाहिकों और रियलिटी-शो में परिवार के सदस्यों के बीच विवाद और असहिष्णुता को प्रमुखता दी जाती है, जिससे रिश्ते कमजोर पड़ गए हैं।
- पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव:
पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण: आधुनिक मीडिया, खासकर टीवी-शो और फिल्में, पाश्चात्य संस्कृति के तत्वों को प्रमुखता देती हैं, जिससे भारतीय संस्कृति के पारंपरिक तत्वों की अनदेखी होती है। पश्चिमी फैशन, जीवनशैली और मूल्यों को भारतीय संदर्भ में अनुकूलित किए बिना अपनाया जा रहा है।
सांस्कृतिक पहचान का संकट: भारतीय संस्कृति की पहचान धीरे-धीरे पाश्चात्य प्रभाव से धुंधली हो रही है, जिससे युवाओं में अपनी सांस्कृतिक धरोहर को लेकर जागरूकता की कमी महसूस हो रही है।
- मीडिया और मनोरंजन उद्योग का प्रभाव:
टेलीविजन धारावाहिक और रियलिटी शो: आधुनिक टेलीविजन धारावाहिकों में पारिवारिक संबंधों को विवादित और नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इन धारावाहिकों में दिखाए गए रिश्ते और संवाद भारतीय संस्कृति के मूल्यों के विपरीत होते हैं, जिससे समाज में गलतफहमियाँ और नैतिक भ्रम उत्पन्न होता है।
सांस्कृतिक अशुद्धता: मीडिया में प्रदर्शित सामग्री अक्सर भारतीय सांस्कृतिक मानकों के विपरीत होती है, जिसमें असभ्य भाषा और अनुशासनहीनता को बढ़ावा दिया जाता है। यह युवा पीढ़ी को नकारात्मक दिशा में ले जाती है।
- आर्थिक और सामाजिक बदलाव:
शहरीकरण और वैश्वीकरण: तेजी से शहरीकरण और वैश्वीकरण ने पारंपरिक सांस्कृतिक प्रथाओं को प्रभावित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों की सांस्कृतिक परंपराएँ भी शहरों के तेजी से बदलते माहौल में खो रही है।
आर्थिक असमानता: आर्थिक असमानता और सामाजिक तनाव भी सांस्कृतिक पतन को बढ़ावा दे रहे हैं। आर्थिक दबाव और सामाजिक संघर्ष पारंपरिक सांस्कृतिक मान्यताओं और प्रथाओं को कमजोर कर रहे हैं।
- शैक्षिक और धार्मिक शिक्षा में कमी:
मूल्य आधारित शिक्षा की कमी: स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक और सांस्कृतिक शिक्षा की कमी है। पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति और परंपराओं को उचित स्थान नहीं दिया गया है, जिससे नई पीढ़ी में सांस्कृतिक जागरूकता का अभाव है।
धार्मिक शिक्षाओं का ह्रास: धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा की कमी के कारण युवा पीढ़ी भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से अनभिज्ञ हो रही है।
इन कारणों से भारतीय संस्कृति पतन की ओर जा रही है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण और पुनरुत्थान के लिए आवश्यक है कि इन विषयों की पहचान की जाए और ठोस कदम उठाए जाएँ।
भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
भारत एक विविधताओं से भरा देश है और इसे अपनी समृद्ध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। भारत में संगीत, नृत्य-नाटक, लोक परंपराओं, प्रदर्शन कला, धार्मिक रीति-रिवाजों, चित्रकला और लेखन के क्षेत्र में विशाल संग्रह है, जिसे मानवता की ‘अस्पष्ट सांस्कृतिक विरासत’ के रूप में जाना जाता है। विश्व इतिहास में भारतीय संस्कृति का विशिष्ट महत्व है और यह दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक मानी जाती है।
भारतीय संस्कृति एक कार्य उन्मुख संस्कृति है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद इसे मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताओं का समकालीन माना गया है। ऐतिहासिक होने के साथ-साथ इसकी एक विशेषता इसकी अमरता भी है। चीनी संस्कृति को छोड़कर, प्राचीन दुनिया की अन्य संस्कृतियां जैसे मेसोपोटामिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोन और चाल्डियन संस्कृतियां, और मिस्र, ईरान, ग्रीस और रोम की संस्कृतियां समय के साथ समाप्त हो गई हैं, केवल कुछ खंडहर छोड़कर। लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है और हजारों वर्षों से समय के कठिन आघात को सहन करती आ रही है।
भारतीय संस्कृति की तीसरी विशेषता है कि यह विश्व का गुरु रही है। इसका श्रेय इस तथ्य को दिया जाता है कि इसने न केवल भारत जैसे महाद्वीप को सभ्यता का पाठ पढ़ाया, बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों की जंगली जनजातियों, साइबेरिया, श्रीलंका (सिंहली), मेडागास्कर, ईरान और अफगानिस्तान को भी सभ्य बनाया। इसके प्रभाव ने बोर्नियो द्वीप समूह से लेकर समुद्र के विशाल क्षेत्रों तक, और रेत तक फैलाया है। भारतीय संस्कृति अपनी सर्वांगीणता, विशालता, उदारता, प्रेम और सहिष्णुता के मामले में अन्य संस्कृतियों पर अग्रणी स्थान रखती है।
भारतीय संस्कृति क्या सिखाती है?
भारतीय संस्कृति में सदियों से विकसित मूल्य, विश्वास और परंपराएं शामिल हैं जो एक शांतिपूर्ण और सभ्य समाज के निर्माण में मदद करती हैं। इसके प्रमुख तत्वों में शांति, समानता, मानवता, और अध्यात्म शामिल हैं। भारतीय संस्कृति में सभ्य संचार, शिष्टाचार और आचरण को महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें त्याग, तपस्या, कर्म में संयम, धर्म में भक्ति, और पारिवारिक जीवन का महत्व भी शामिल है। विविधता के मामले में, भारतीय संस्कृति विभिन्न भाषाओं, धर्मों, रंगों, और भोजन का समावेश करती है। जबकि पारंपरिक भारतीय शादियों में आकर्षक सजावट, संगीत, और नृत्य होते हैं, आजकल दहेज की प्रथा के कारण विवाह की पवित्रता पर असर पड़ा है। संत रामपाल गुरु महाराज के नेतृत्व में दहेज मुक्त विवाह की पहल की जा रही है। अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
भारतीय संस्कृति का महत्व
भारतीय संस्कृति का महत्व बहुआयामी और विश्वस्तरीय है, जो न केवल भारत के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभावशाली है। इसके महत्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:
ऐतिहासिक धरोहर: भारतीय संस्कृति का इतिहास लगभग 5,000 साल पुराना है, जिसकी जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होती हैं। यह प्राचीन ज्ञान, विज्ञान, और कला की एक निरंतर परंपरा को दर्शाती है। ऐतिहासिक स्थल, जैसे कि मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा, और प्राचीन ग्रंथ, जैसे वेद और उपनिषद, इस सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
धार्मिक विविधता और सहिष्णुता: भारतीय संस्कृति विभिन्न धर्मों और आस्थाओं का संगम है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख ईसाई और अन्य धर्म शामिल हैं। इस विविधता के बावजूद, भारतीय संस्कृति धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सामंजस्य का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती है।
आध्यात्मिक और दार्शनिक मूल्य: भारतीय संस्कृति में योग, ध्यान, और वेदांत जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं का गहरा महत्व है। ये प्रथाएँ मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शित करती हैं, और वैश्विक स्तर पर भी इन्हें मान्यता प्राप्त है।
कला और साहित्य: भारतीय संस्कृति की कला और साहित्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध है। शास्त्रीय संगीत, नृत्य, चित्रकला, और साहित्य की विविध शैलियाँ न केवल भारत के भीतर बल्कि विश्व स्तर पर भी सराही जाती हैं। महाभारत, रामायण, और अन्य ग्रंथ विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
भोजन और वेशभूषा: भारतीय भोजन की विविधता उसकी सांस्कृतिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण पहलू है। विभिन्न क्षेत्रीय व्यंजन और पारंपरिक खाद्य पदार्थ भारतीय संस्कृति की सांस्कृतिक पहचान को व्यक्त करते हैं। इसी तरह, पारंपरिक वेशभूषा जैसे साड़ी, कुर्ता, और शेरवानी भी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं।
त्योहार और उत्सव: भारतीय संस्कृति विभिन्न त्योहारों और उत्सवों की अनूठी विविधता को मान्यता देती है। दीवाली, होली, ईद, और क्रिसमस जैसे त्योहार सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करते हैं और सामूहिक खुशी और उत्साह का प्रतीक हैं।
भारतीय संस्कृति का महत्व इन सभी पहलुओं से स्पष्ट होता है, जो इसे न केवल एक समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर बनाते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका ऊँचा स्थान रहा है।
भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में संत रामपाल जी महाराज की भूमिका
भारतीय संस्कृति की वर्तमान स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि कैसे समाज में बुराइयाँ और कुरीतियाँ तेजी से फैल रही हैं। इस संदर्भ में, संत रामपाल जी महाराज जी ने एक नई दिशा और उम्मीद की किरण दिखाई है। उन्होंने सभी बुराईयों को जड़ सहित नष्ट करने और एक पारदर्शी और स्वच्छ समाज बनाने के लिए एक अद्भुत कदम उठाया है।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना
- समाज के भ्रटाचार को खत्म करना
- विश्व को सत् भक्ति देकर मोक्ष प्रदान करना
- समाज से जाति-पाती का भेद मिटाना
- दहेज रूपी कुरीति को खत्म करना
- युवाओं में अध्यात्मिक जाग्रति लाना
- समाज में शांति व भाईचारा स्थापित करना
- समाज से हर प्रकार के नशे को दूर करना
संत रामपाल जी महाराज के इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति अपने पुनरुत्थान की ओर अग्रसर हो रही है। इसलिये यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम सभी संत रामपाल जी महाराज जी के मार्गदर्शन पर चलें। उनके बारे में अधिक जानने और उनके सत्संग को सुनने के लिए, कृपया पवित्र पुस्तक “ज्ञान-गंगा” और “जीने की राह” पढ़ें और नीचे दिए गए लिंक पर जाकर उनका सत्संग देखें: