भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर नासा के मिशन के अनुसार इंटरनेशनल मिशन पर पहुंचे, लेकिन वहां से उनका वापस आने का रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। दरअसल, जिस यान से उन्हें स्पेस में भेजा गया था, उसमें कुछ खराबी आने के बाद विलियम्स और विल्मोर के बगैर ही वापस आ गया। नासा लंबे समय से उन्हें वापस लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक कोई रास्ता नहीं निकाल पाए हैं।
सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को वापस लाने के लिए नासा ने एक नया ऐलान किया है। नासा ने स्पेस में फंसे अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने के लिए दुनिया भर के इनोवेटर्स को एक जीवन रक्षक चंद्र बचाव प्रणाली डिजाइन करने के लिए आमंत्रित किया है। इसके लिए NASA ने बेस्ट प्लान देने वाले को $20,000 डॉलर का इनाम भी देने की घोषणा की है।
NASA के इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में फंसे अंतरिक्ष यात्रियों से जुड़ी मुख्य बातें:
1. सबसे बेस्ट समाधान देने वाले के लिए NASA ने $20,000 तक की ऑफर की घोषणा की है, जिसमें HeroX पोर्टल के माध्यम से 23 जनवरी, 2025 तक एंट्री कर सकते हैं।
2. नासा सितंबर 2026 के लिए निर्धारित आर्टेमिस मिशन की तैयारी कर रहा है, जिसका उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का पता लगाना है, जो अत्यधिक तापमान और ऊबड़-खाबड़ इलाकों से चिह्नित क्षेत्र है।
3. नासा की सारा डगलस ने बताया, “चंद्रमा के कठोर वातावरण की वजह से काफी चुनौतियां हैं, जिसके लिए नए समाधान की आवश्यकता है।”
4. प्रतियोगिता में ऐसे डिजाइन की मांग की गई है, जो पूरी तरह से अनुकूल अंतरिक्ष यात्री को दो किलोमीटर से अधिक, 20 डिग्री के झुकाव पर, रोवर से स्वतंत्र रूप से ले जाने में सक्षम हो।
5. सिस्टम को चंद्रमा की कठोर दक्षिणी ध्रुव स्थितियों में भी मजबूती से काम करना होगा और नासा के नए एक्सिओम एक्स्ट्रावेहिकुलर मोबिलिटी सूट के साथ संगत होना चाहिए।
6. डिजाइन हल्का और उपयोग में आसान होना चाहिए, जो अंतरिक्ष यात्री की सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
आर्टेमिस अभियान से क्या तात्पर्य है?
आर्टिमिस अभियान का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में चंद्रमा की देवी आर्टिमिस के नाम पर रखा गया है। आर्टिमिस अभियान (Artemis Program) नासा द्वारा चलाया जा रहा एक अंतरिक्ष अभियान है, जिसका उद्देश्य 2025 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजना और 2028 तक चंद्रमा पर एक स्थायी मानव बस्ती स्थापित करना है।
आर्टिमिस अभियान के मुख्य उद्देश्य हैं:
1. चंद्रमा पर मानव मिशन भेजना
2. चंद्रमा पर एक स्थायी मानव बस्ती स्थापित करना
3. चंद्रमा के संसाधनों का उपयोग करना
4. मंगल ग्रह पर मानव मिशन भेजने के लिए चंद्रमा का उपयोग करना है।
क्या है नासा का प्लान?
जो चंद्रमा पर फंसे एस्ट्रोनॉट्स को बचाएगा। उसके लिए नासा ने 20 हजार डॉलर यानी करीब 16 लाख 93 हजार रुपयों के ईनाम की भी घोषणा की है। यह डॉलर उस सिस्टम को बनाने वाले को दी जाएगी जिसे नासा चंद्रमा के ऊबड़ खाबड़ भूभाग में फंसे एस्ट्रोनॉट्स को सुरक्षित लाने के लिए सबसे सुरक्षित और कारगर डिजाइन माना जाएगा।
एस्ट्रोनॉट्स को ऊबड़ खाबड़ सतह और भारी स्पेस सूट जैसी चुनौतियां का सामना करना पड़ेगा
सिस्टम नासा के आर्टिमिस मिशन का हिस्सा है जिसमें एस्ट्रोनॉट्स को चरम तापमान, ऊबड़ खाबड़ सतह और भारी स्पेस सूट जैसी चुनौतियां झेलनी होगी। इसके लिए आवेदन आगामी 23 जनवरी 2025 तक हीरोएक्स पोर्टल पर जमा करने होंगे। इसमें कुल पुरस्कार 45 हजार डॉलर यानी 38 लाख रुपये है। सबसे अच्छे प्रस्ताव को नासा के सितंबर 2026 में भेजे जाने वाले आर्टिमिस अभियान में शामिल किया जाएगा।
नासा खुद को दुर्घटना संबंधित घटनाओं के लिए तैयार कर रहा है
नासा खुद को उन हालात के लिए तैयार कर रहा है, जिसमें कोई एस्ट्रोनॉट चोट लगने, मेडिकल इमरजेंसी या अभियान संबंधी दुर्घटना के कारण अभियान के लायक नहीं रह जाए और ऐसे में उसके साथियों को वापस लूनार लैंडर तक भेजने के लिए विश्वसनीय तरीके की जरूरत पड़ जाए।
चंद्रमा पर चुनौतियां कुछ कम नहीं हैं
चंद्रमा की सतह काफी ऊबड़ खाबड़ है, वहां नुकीली चट्टानें हैं, गहरे क्रेटर्स हैं, खड़ी ढलाने हैं, ऐसे में वहां नेवीगेशन यानी आवा–जाही आसान नहीं है। ऐसे में अगर किसी एस्ट्रोनॉट की हालत खराब हो जाए तो, तैयार रहने की जररूत होगी, क्योंकि नासा ने जो साइट चुनी है, उसकी भी चुनौतियां कुछ कम नहीं है।
सिस्टम चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव के चरम माहौल के लिए मुफीद होना चाहिए
इस प्रतियोगिता में ऐसा सिस्टम डिजाइन करना है जो पूरे सूट में एस्ट्रोनॉट को 20 डिग्री तक के ढाल वाली सतह पर 2 किलोमीटर से ज्यादा तक बिना रोवर के सही स्थान पर पहुंचा सके। जहां चंद्रमा का गुरुत्व एस्ट्रोनॉट के वजन को कम कर देगा, यात्रियों को ले जाना बहुत बड़ी चुनौती बना रहेगा। नासा की जरूरी शर्त ये है कि यह सिस्टम चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव के चरम माहौल के लिए मुफीद होना चाहिए और वहां भेजे गए रोवर निर्भर नहीं होना चाहिए।
विलियम्स की जगह स्पेस टूरिस्ट होता तो एक रेस्क्यू सिस्टम की ज़रूरत होती
सिस्टम को केवल चंद्रमा के ही लिए नहीं बल्कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जैसी जगहों के लिए भी बनाना बहुत ही ज़रूरी है। ऐसे रेस्क्यू सिस्टम तब और भी ज्यादा जरूरी होंगे जब स्पेस टूरिज्म की शुरुआत होगी। सुनीता विलियम्स के मामले में तो आपात लॉन्चिंग की जरूरत नहीं पड़ी पर अगर विलियम्स की जगह कोई स्पेस टूरिस्ट होता तो बेशक एक रेस्क्यू सिस्टम की ज़रूरत होती और फिलहाल ऐसा सिस्टम नहीं है। लेकिन भविष्य में ऐसा व्यापक सिस्टम बनाने की आवश्यकता है।
विज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति का संगम
विज्ञान ही सर्वोपरि नहीं है अगर ऐसा होता तो आज विज्ञान मदद के लिए विवश नहीं होता। विज्ञान भी आध्यात्मिक शक्ति के आगे कमज़ोर है, जब विज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति का संगम होता है तो सभी कार्य सफलतापूर्वक होते हैं। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी अपने सत्संग में बताते हैं कि आध्यात्मिक शक्ति बिना विज्ञान का कोई महत्व नहीं है।
दामोदर सेठ के हुए थे अकाज, अरज करी डूबता देख जहाज। लाज मेरी रखियो गरीब नवाज़, समुद्र से पार लंघाने वाले धन धन सतगुरु सत्य कबीर भक्त के पीर मिटाने वाले।।
संत रामपाल जी महाराज जी अपने सत्संग में बताते हैं कि एक दामोदर नाम के सेठ थे वह बहुत बड़े व्यापारी थे, उनका जहाज जब समुद्र में डूबने लगा तो उन्होंने पूर्ण परमात्मा को याद किया और आध्यात्मिक शक्ति से ही उनकी रक्षा हुई थी। व्यक्ति की सब जगह रक्षा होती है यदि वह तत्वदर्शी संत की शरण में हो और सतभक्ति करे।
अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज जी के यूट्यूब चैनल संत रामपाल जी महाराज जी को सब्सक्राइब करें।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से संबंधित मुख्य FQS
1. सुनीता विलियम्स 2024 में अंतरिक्ष में कब गई थी?
सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर जून 2024 में बोइंग विमान में सवार होकर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर पहुंचे थे।
2. अंतरिक्ष में सबसे लंबा समय किसने बिताया है?
रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको ने कक्षा में 878 दिनों से अधिक समय अंतरिक्ष में बिताया है।
3. अंतरिक्ष पृथ्वी से कितना किलोमीटर दूर है?
अंतरिक्ष पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर (250 मील) की दूरी पर है।
4. अंतरिक्ष में एक दिन कितने घंटे का होता है?
स्पेस स्टेशन 45 मिनट उजाले में तो 45 मिनट अंधकार में होता है इसलिए वहां 24 घंटे में दिन और रात मापी जाती है।
5. चंद्रमा पर जाने में कितने दिन लगते हैं?किसी अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग 3 दिन लगते हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी लगभग 384,400 किलोमीटर है।