USAID की 21 मिलियन डॉलर फंडिंग पर सियासी घमासान: भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने

USAID की 21 मिलियन डॉलर फंडिंग पर सियासी घमासान: भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने

नई दिल्ली। अमेरिका की सहायता एजेंसी USAID द्वारा 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग को लेकर भारतीय राजनीति में गरमा-गरम बहस छिड़ गई है। भाजपा ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने के आरोप लगाए हैं, वहीं कांग्रेस ने भाजपा को “अफवाहें फैलाने” के लिए आड़े हाथों लिया है।

मुख्य बिंदु: 

  •  21 मिलियन डॉलर की फंडिंग बना विवाद का कारण
  • राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने USAID की फंडिंग को अनावश्यक बताया 
  • भाजपा और कांग्रेस के बीच बढ़ी तकरार
  • 21 मिलियन डॉलर के विवाद पर IFES और USAID की प्रतिक्रिया
  • मामले पर नए खुलासे और USAID के आधिकारिक बयान का इंतजार
  • शास्त्रसम्मत तत्वज्ञान बनेगा सशक्त लोकतंत्र का आधार

क्या है 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग का विवाद?

शुक्रवार को भाजपा नेता अमित मालवीय ने दावा किया कि 2012 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी के नेतृत्व में भारतीय चुनाव आयोग और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए थे। IFES एक संगठन है जो जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है और जिसे मुख्य रूप से USAID द्वारा फंडिंग की जाती है। मालवीय ने कहा कि USAID की यह फंडिंग भारत में “मतदाता जागरूकता” के नाम पर चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का प्रयास था।

हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग वास्तव में 2022 में बांग्लादेश के लिए स्वीकृत की गई थी, न कि भारत के लिए। इस रिपोर्ट के सामने आते ही कांग्रेस ने भाजपा पर झूठी अफवाहें फैलाने का आरोप लगाया।

ट्रम्प के बयान से बढ़ा विवाद

इस विवाद को और हवा तब मिली जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी दी। उन्होंने कहा, “हम भारत में मतदाता जागरूकता के लिए 21 मिलियन डॉलर क्यों खर्च कर रहे हैं? यह एक किकबैक स्कीम लगती है।” उन्होंने इस धनराशि को लेकर संदेह व्यक्त किया और इसे अनावश्यक बताया।

ट्रम्प ने मियामी में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “यह पैसा किस उद्देश्य के लिए भेजा गया? किसी को कुछ पता नहीं। यह संभवतः किसी प्रकार का किकबैक ही होगा।” ट्रम्प के इस बयान के बाद भाजपा को अपने दावे को बल देने का मौका मिल गया। मालवीय ने ट्रम्प की टिप्पणी को साझा करते हुए कहा कि यह दिखाता है कि 21 मिलियन डॉलर की राशि वास्तव में भारत के लिए थी और यह मामला गंभीर अनियमितताओं की ओर संकेत करता है।

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने

भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि यूपीए सरकार के दौरान भारत की चुनावी प्रक्रिया में विदेशी संगठनों को प्रवेश की अनुमति दी गई थी। मालवीय ने कहा, “कांग्रेस ने जानबूझकर ऐसे संगठनों को चुनावी तंत्र में घुसपैठ करने दी, जो भारत के खिलाफ काम कर रहे थे।”

वहीं, कांग्रेस ने इस आरोप को मनगढ़ंत बताया। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा, “क्या यह राष्ट्रविरोधी नहीं है कि भाजपा बिना तथ्यों की पुष्टि किए विपक्ष पर आरोप लगा रही है? भाजपा खुद भी लंबे समय तक विपक्ष में रही है और उसने कई बार बाहरी ताकतों से समर्थन लिया है।”

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि भाजपा अमेरिका में बोले गए झूठ को भारत में फैला रही है। उन्होंने इसे भाजपा की “झूठ सेना” करार दिया।

क्या कहते हैं IFES और USAID?

इस पूरे विवाद में IFES और USAID की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, IFES पहले भी कह चुका है कि वह विभिन्न देशों में चुनावी जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करता है और उसकी भूमिका गैर-राजनीतिक होती है।

USAID के दस्तावेजों के अनुसार, इस एजेंसी का उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि 21 मिलियन डॉलर की राशि भारत के लिए थी या बांग्लादेश के लिए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट का कहना है कि यह धनराशि बांग्लादेश के लिए थी, लेकिन भाजपा का दावा है कि 2014 के बाद भी इसी तरह की कई फंडिंग भारत के चुनावों में हस्तक्षेप के लिए आईं।

USAID और IFES के आधिकारिक बयान से होगा स्पष्ट

USAID की फंडिंग को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच तकरार जारी है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने विदेशी ताकतों को चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने दिया, जबकि कांग्रेस इसे भाजपा की “झूठी कहानी” बता रही है।

ट्रम्प के बयान ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है, जिससे इस मुद्दे पर और अधिक बहस होने की संभावना है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले पर और क्या नए खुलासे होते हैं और क्या USAID या IFES इस पर कोई आधिकारिक बयान देते हैं।

विदेशी फंडिंग से नहीं बल्कि सच्चे तत्वज्ञान से मजबूत होगा लोकतंत्र

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