ईशा फाउंडेशन विवाद: सद्गुरु पर लगे आरोपों पर न्यायालय की नजर

ईशा फाउंडेशन विवाद: सद्गुरु पर लगे आरोपों पर न्यायालय की नजर

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 3 सितंबर, 1957 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ। उन्होंने 1992 में ईशा फाउंडेशन की स्थापना की, जो योग, शिक्षा, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करता है। उनके कार्यक्रम, जैसे “इनर इंजीनियरिंग” और “कावेरी कॉलिंग”, ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। “कावेरी कॉलिंग” नदियों के संरक्षण और वृक्षारोपण पर केंद्रित है, जिसने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया। उनकी सार्वजनिक छवि और विश्वसनीयता उनके कार्यों का आधार है, इसलिए इस तरह के दुरुपयोग से उनके मिशन को नुकसान पहुंच सकता है।

क्यों जग्गी वासुदेव चर्चा में

Jaggi Vasudev Exposed: 24 फरवरी को पत्रकार श्याम मीरा यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया गया था, जिसका टाइटल था “सद्गुरु का पर्दाफाश” “जग्गी वासुदेव के आश्रम में क्या हो रहा है” इस टाइटल के साथ आरोप लगाया की जग्गी वासुदेव के आश्रम में नाबालिकों के साथ शोषण किया जा रहा हैं। जिस को लेकर जग्गी वासुदेव ने हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की।

जग्गी वासुदेव ने कोर्ट में दायर की याचिका

Jaggi Vasudev Case:सद्गुरु ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उनकी अनुमति के बिना उनके नाम, छवि और आवाज के दुरुपयोग को रोकने की मांग की गई। विशेष रूप से, AI तकनीक के जरिए उनकी पहचान का गलत इस्तेमाल और बिना सहमति के उत्पादों की बिक्री का मुद्दा उठाया गया।

उनके वकीलों ने तर्क दिया कि इस तरह का दुरुपयोग न केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उनके लाखों अनुयायियों को भी भ्रमित करता है। याचिका में एक “डायनामिक इंजंक्शन” की मांग की गई, ताकि भविष्य में होने वाले उल्लंघनों को भी रोका जा सके।

जानिए मामले का विवरण

Jaggi Vasudev Exposed: सद्गुरु ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उनकी अनुमति के बिना उनके नाम, छवि और आवाज के दुरुपयोग को रोकने की मांग की गई। विशेष रूप से, AI तकनीक के जरिए उनकी पहचान का गलत इस्तेमाल और बिना सहमति के उत्पादों की बिक्री का मुद्दा उठाया गया। उनके वकीलों ने तर्क दिया कि इस तरह का दुरुपयोग न केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उनके लाखों अनुयायियों को भी भ्रमित करता है। याचिका में एक “डायनामिक इंजंक्शन” की मांग की गई, ताकि भविष्य में होने वाले उल्लंघनों को भी रोका जा सके।

क्या रही कोर्ट की कार्यवाही

30 मई, 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस सौरभ बनर्जी की बेंच के समक्ष इस मामले की सुनवाई हुई। सद्गुरु के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता साई कृष्णा राजगोपाल, ने जोरदार तरीके से उनका पक्ष रखा। उन्होंने AI की तेजी से बढ़ती तकनीक और इसके दुरुपयोग की गंभीरता पर प्रकाश डाला।

कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और एक अंतरिम आदेश जारी करने पर सहमति जताई, जिसका विस्तृत आदेश बाद में जारी किया जाएगा। सद्गुरु की व्यक्तिगत उपस्थिति ने इस मामले में उनकी गंभीरता को दर्शाया। हालांकि, अंतिम फैसला 31 मई, 2025 तक लंबित है, लेकिन अंतरिम आदेश एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 1 जून को सुनाया बड़ा आदेश

सद्गुरु अर्थात जग्गी वासुदेव की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम आदेश सुनाया है, जिसमें हाइकोर्ट ने एआई एवं विभिन्न वेबसाइट्स के जरिए नाम और छवि के अनधिकृत इस्तेमाल के खिलाफ रोक लगा दी है तथा जस्टिस सौरभ बनर्जी ने एकपक्षीय अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि वादी जग्गी वासुदेव का पक्ष ज्यादा भारी है। इस फैसले से जग्गी वासुदेव के पक्ष को बेहद ही राहत देखने को मिली है।

जनता और मीडिया की प्रतिक्रिया

मीडिया में इस मामले की व्यापक कवरेज हुई है। हिंदी न्यूज़18 जैसे स्रोतों ने इसकी विस्तृत रिपोर्टिंग की। सोशल मीडिया पर #SupportSadhguru जैसे हैशटैग ट्रेंड थे, जहां समर्थकों ने इसे एक जरूरी कदम बताया। वहीं, कुछ आलोचकों ने व्यक्तित्व अधिकारों की सीमा पर बहस छेड़ दी। यह विभाजित प्रतिक्रिया इस मुद्दे की जटिलता को दर्शाती है।

क्या है व्यापक प्रभाव

यह मामला डिजिटल युग की चुनौतियों को उजागर करता है। AI और डीपफेक तकनीक ने पहचान के दुरुपयोग को आसान बना दिया है, जिससे व्यक्तिगत गोपनीयता और अधिकारों की रक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गया है। सद्गुरु का यह केस न केवल उनके लिए, बल्कि अन्य आध्यात्मिक नेताओं और सार्वजनिक हस्तियों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है। यह सवाल उठाता है कि तकनीकी प्रगति और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।

क्या यही है सनातन के सतगुरु का स्वरूप?

ऐसे मामलों से जग्गी वासुदेव जैसे धर्मगुरुओं पर सवाल उठता है कि जब कोई व्यक्ति इनके खिलाफ आवाज उठाता है, तो ये अपनी शक्ति का उपयोग करके उसकी आवाज को दबा देते हैं। यूट्यूबर द्वारा लगाए गए आरोप कहीं न कहीं इस बात का प्रमाण हैं कि जनता की बातों को इन धर्मगुरुओं द्वारा किसी न किसी प्रभाव से दबा दिया जाता है।

यह मामला पहला नहीं है; आए दिन इन कथावाचकों एवं धर्मगुरुओं पर विभिन्न प्रकार के शोषण के आरोप लगाए जाते हैं, और किसी न किसी तरीके से ये लोग बच जाते हैं। इससे मन में यह सवाल उठता है कि ऐसा क्यों होता है? आखिर क्यों हर बार जनता की आवाज को दबा दिया जाता है?

जग्गी वासुदेव को कितना है अध्यात्मिक ज्ञान?

वर्तमान में सद्गुरु अर्थात् जग्गी वासुदेव, जो एक धर्मगुरु के रूप में जाने जाते हैं—यदि उनके वचनों को सुनकर थोड़ा विचार करें, तो यह स्पष्ट होता है कि उन्हें अध्यात्म का ‘क’ भी नहीं पता। वे अपने कई प्रवचनों में भगवान श्रीराम का अपमान कर चुके हैं। साथ ही, अपने कार्यक्रमों में स्वयं नाचते हैं और अपने अनुयायियों को भी साथ में नचाते हैं। यदि हम धार्मिक शास्त्रों को देखें, तो यह पूर्ण रूप से शास्त्र-विरुद्ध साधना है। किसी भी शास्त्र में इस प्रकार के कार्य करने की अनुमति नहीं दी गई है।

आखिर किसे है आध्यात्मिक ज्ञान?

अध्यात्मिक ज्ञान को पूर्ण परमात्मा ही आकर समझाते हैं अथवा उनका भेजा हुआ कोई महापुरुष उसे समझाता है। सूक्ष्मवेद में लिखा है कि जो संत महापुरुष सभी शास्त्रों के आधार पर भक्ति विधि प्रदान करते हैं, एकमात्र परमात्मा की भक्ति कराते हैं और स्वयं भी करते हैं—वे ही इस धरती पर पूर्ण संत होते हैं और उन्हें ही सभी शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान होता है।

वर्तमान में यह सम्पूर्ण जानकारी संत रामपाल जी महाराज प्रदान कर रहे हैं। हम आपसे आग्रह करते हैं कि संत रामपाल जी महाराज के सत्संग प्रवचनों को अवश्य सुनें, जिससे आपको अध्यात्म के असली खजाने की पहचान होगी।

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