अयोध्या दीपोत्सव 2025 में 80,000 दीयों की रंगोली — एक नया सांस्कृतिक ROMANCE
अयोध्या, जहां रामायण की कथा जीवित है, वहां दीपोत्सव 2025 को एक नए स्वरूप में मनाया जा रहा है। इस बार राम की पैड़ी पर 80,000 दीयों से बनी रंगोली भारत की सांस्कृतिक चेतना और सौंदर्यबोध का जीवंत उदाहरण बन रही है।
राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की छात्राओं की टीम द्वारा बनाई जा रही इस रंगोली में कमल, स्वस्तिक, कलश जैसे प्रतीकों को दीयों के माध्यम से सजीव किया जाएगा। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक कलात्मक, भावनात्मक और राष्ट्रवादी उत्सव बन चुका है।
लेकिन इस सुंदरता के पीछे एक गहन प्रश्न भी उभरता है — क्या यह उत्सव केवल परंपरा है या शास्त्रीय रूप से धर्म का अंग?
दिवाली: परंपरा, इतिहास और शास्त्रीय प्रश्न
दिवाली की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं।
- एक मत के अनुसार यह पर्व भगवान राम के 14 वर्षों बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है।
- कहीं इसे लक्ष्मी पूजा से जोड़ा जाता है, तो कहीं नरकासुर वध से।
- बंगाल में इसे माँ काली की आराधना के रूप में मनाया जाता है।
परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) या गीता, उपनिषदों जैसे मुख्य शास्त्रों में दिवाली मनाने का कोई आदेश या निर्देश नहीं मिलता।
वास्तव में, यह एक लोक-परंपरा है, जो समय के साथ एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में विकसित हुई है।
दिवाली का प्रतीक और आधुनिक रूप

आधुनिक युग में दिवाली का स्वरूप और भी बहुआयामी हो गया है:
- दीप जलाना — प्रकाश का प्रतीक
- लक्ष्मी पूजा — धन की कामना
- आतिशबाज़ी — आनंद और रोमांच
- मिठाई — प्रेम और बाँटने का भाव
- सजावट — सौंदर्यबोध
दिवाली अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आयामों से जुड़ा एक राष्ट्रीय त्योहार बन चुका है।
लेकिन क्या यह स्वरूप केवल बाह्य है?
क्या यह उत्सव आत्मा के विकास से भी जुड़ा है?
या फिर यह केवल मनोरंजन और दिखावे का त्यौहार बनकर रह गया है?
क्या दिवाली मनाना शास्त्र-सम्मत है? — एक दृष्टिकोण
भगवद्गीता अध्याय 16, श्लोक 23‑24 में श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं:
“जो पुरुष शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न सुख और न परमगति।”
“इसलिए शास्त्र ही तेरे लिए प्रमाण है कि क्या करना है और क्या नहीं।”
इस संदर्भ में जब हम दिवाली की पूजा, लक्ष्मी पूजन, दीपदान आदि क्रियाओं को देखते हैं, तो पाते हैं कि —
- इनमें से कोई भी शास्त्रों में वर्णित नहीं है।
- वेदों में लक्ष्मी पूजन या दीपावली जैसी कोई विधि नहीं मिलती।
- गीता में शास्त्रविरुद्ध भक्ति को निष्फल कहा गया है।
इसलिए, Satgyan की दृष्टि से यह निष्कर्ष निकलता है कि
दिवाली एक सामाजिक परंपरा हो सकती है, परंतु मोक्षदायक धार्मिक अनुष्ठान नहीं।
दिवाली: परंपरा, प्रकाश और आध्यात्मिकता के मध्य एक पुनर्विचार
Sant Rampal Ji Maharaj के अनुसार:
“प्रकाश का असली अर्थ बाहरी दीप नहीं, बल्कि ज्ञान का दीपक है — जो आत्मा के अंधकार को दूर करे।”
दिवाली तभी सार्थक है जब:
- वह केवल बाह्य उत्सव न होकर आंतरिक ज्ञान की ओर ले जाए
- अंधविश्वास, मिथ्या पूजन और आडंबर से बाहर निकालकर सत्पथ की ओर मोड़ दे
- केवल धन की प्रार्थना न होकर आत्मिक शुद्धता और सत्यभक्ति का दीप जले
Also Read: आगे आने वाले समय में ऐसे मनाएं “दीवाली”
Satgyan यह भी स्पष्ट करता है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए आवश्यक है:
- तत्वदर्शी संत की प्राप्ति (गीता 4:34)
- शास्त्रविधि से की गई भक्ति
- सही नाम दीक्षा और साधना
जब तक यह नहीं होता, तब तक कोई भी त्योहार — चाहे वह कितनी भी श्रद्धा से क्यों न मनाया जाए — आध्यात्मिक दृष्टि से निष्फल होता है।
दीपावली की पुनर्परिभाषा — ज्ञान का प्रकाश
दिवाली को त्योहार के रूप में मनाना अनुचित नहीं है, परंतु यदि उसे ईश्वर प्राप्ति का माध्यम मान लिया जाए, तो यह शास्त्रविरुद्ध हो जाता है।
अतः हमें अपने भीतर यह अंतर स्पष्ट करना होगा:
- त्योहार = सामाजिक, सांस्कृतिक उत्सव
- भक्ति = शास्त्र-सम्मत साधना, तत्वज्ञान, नाम दीक्षा
Sant Rampal Ji Maharaj का Satgyan हमें सिखाता है कि —
“सच्ची दिवाली तब है जब भीतर ज्ञान का दीप जलाया जाए, अज्ञान का अंधकार हटाया जाए, और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाली शुद्ध साधना की शुरुआत हो।”
इस दिवाली पर आइए — केवल घर नहीं, हृदय भी उजागर करें।
दिये जलाएँ — लेकिन साथ में ज्ञान का दीपक भी प्रज्वलित करें।
परंपरा निभाएँ — लेकिन सत्य के साथ।
FAQs: दिवाली — परंपरा या शास्त्रविरुद्ध?
Q1. क्या वेदों में दिवाली का कोई उल्लेख है?
नहीं, चारों वेदों में दिवाली मनाने का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता।
Q2. क्या लक्ष्मी पूजन शास्त्र-सम्मत है?
वेदों व गीता में लक्ष्मी पूजन की विधि या आदेश नहीं है; यह एक लोक-परंपरा है।
Q3. गीता क्या कहती है शास्त्रविरुद्ध पूजा के बारे में?
गीता 16:23-24 में स्पष्ट कहा गया है कि शास्त्रविरुद्ध पूजा निष्फल होती है।
Q4. क्या दीप जलाने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है?
दीप जलाना प्रतीक हो सकता है, परंतु आत्मा की उन्नति के लिए शुद्ध साधना आवश्यक है।
Q5. सच्ची दिवाली कैसे मनाएँ?
सच्ची दिवाली वह है जिसमें आत्मा के भीतर Satgyan का दीप जले — तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर शास्त्र-सम्मत साधना शुरू करें।
📌 क्या आप जानना चाहते हैं?
- दिवाली के पीछे का सत्य क्या है?
- शास्त्रों के अनुसार मोक्ष कैसे मिलेगा?
- तत्वदर्शी संत कौन हैं और सही साधना क्या है?
👉 जानने के लिए देखें: www.jagatgururampalji.org