‘खबरों की खबर का सच’ के स्पेशल कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। इस बार हम भीख मांगने वाले लोगों के बारे में चर्चा करेंगे और देश दुनिया में भिखारियों की स्थिति के बारे में भी जानेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज का कार्यक्रम।
दोस्तों! जब आप सुबह घर से ऑफिस या व्यवसाय के लिए बाहर निकलते हैं, तो आपको रेलवे स्टेशन, बस स्टाप या मार्केट में ‘अल्लाह के नाम पर दे दे बाबा या फिर ‘भगवान के नाम पर दे दे बाबा जैसे शब्द अकसर सुनाई पड़ते होंगें। हर गली, नुक्कड़, चौक-चौराहों, रेड लाइट्स और खाने पीने की दुकानों के आसपास भिखारियों की अच्छी खासी तादाद इस बात का सबूत है कि भारत में भीख मांगना अब एक धंधा बन चुका है। सोमवार को शिव मंदिर, मंगलवार को हनुमान मन्दिर, गुरुवार को साईं मन्दिर, शुक्रवार को मस्जिद, शनिवार को शनि मन्दिर और रविवार को गुरूद्वारे के आस पास भीख मांगने वालों से मुलाकात हो ही जाती है। अमीर भगवान से मांगने मंदिर के अंदर जाता है और भिखारी भगवान से डारेक्टली न मांग कर इंसान से ही भीख लेने के लिए गिड़गिड़ाता है।
शहर के लगभग हर एक चौराहे और ट्रैफिक सिग्नल पर प्लास्टिक का डिब्बा, बर्तन, टिन का कटोरा, या बॉक्स आदि हाथ में पकड़े, फटे पुराने कपड़े पहने, बेहद बुरी हालत में दिखने वाले और मासूम सी शक्ल वाले बच्चे, बूढ़े, नौजवान, और विकलांग लोग भीख मांगते दिखाई देते हैं।कुछेक जगह पर अंधे, बहरे, या गूंगे भी गले में “हेल्प मि” का बैनर लगाकर भीख मांगते फिरते हैं। शहर की गलियों में अपंग महिला रेडी पर लेटकर और स्पीकर में रिकार्डेड आवाज़ में लड़की का दहेज इकट्ठा करने के लिए भीख मांगती अकसर सुनाई पड़ती है। कई जगहों पर हाईवे के टोल पर या ट्रेन, बस आदि के अंदर हिजड़े भी भीख मांगते दिखाई देते है।
भारत में भीख मांगने का स्वरूप
सड़कों पर और मंदिरों के बाहर भीख मांगने का चलन बहुत पुराना रहा है।
सड़क पर भीख मांगना दुनिया भर के अधिकांश समाजों में विधमान है, हालांकि इसकी व्यापकता और सटीक रूप अलग-अलग हैं। पहले के समय में भीख मांगना एक स्वीकार्य व्यवसाय माना जाता था जिसे पारंपरिक सामाजिक ढांचे में अपनाया गया था। भिखारियों और गरीबों को भीख मांगने और भिक्षा देने की यह प्रणाली अभी भी भारत में व्यापक रूप से प्रचलित है, जिसमें 2015 में 400,000 से अधिक भिखारी शामिल थे।
समकालीन भारत में, भिखारियों को अयोग्य के रूप में कलंकित किया गया। लोग अक्सर मानते हैं कि भिखारी बेसहारा नहीं हैं और इसके बजाय उन्हें पेशेवर भिखारी कहते हैं। ‘आश्रय अधिकार अभियान’ जैसे अनुसंधान संगठनों द्वारा इस दृष्टिकोण का खंडन किया गया है, जो दावा करते हैं कि भिखारी और अन्य बेघर लोग अत्यधिक बेसहारा और कमजोर वर्ग हैं। उनके अध्ययन से संकेत मिलता है कि घोर गरीबी, ग्रामीण गांवों से संकटपूर्ण प्रवास और रोजगार की अनुपलब्धता के कारण 99 प्रतिशत पुरुष और 97 प्रतिशत महिलाएं भीख मांगती हैं।
धार्मिक भिखारियों के अलावा अन्य तीन प्रकार के भिखारी होते हैं जैसे-
- पेशेवर भिखारी
- बच्चे भिखारी
- और अपराधी भिखारी
New trend: इंटरनेट द्वारा भीख मांगने का नया चलन
अब लोगों को व्यक्तिगत रूप से नहीं बल्कि इंटरनेट के माध्यम से दूसरों को पैसे देने के लिए कहने का आधुनिक चलन शुरू हो चुका है। इंटरनेट भीख मांगने में, चिकित्सकीय देखभाल , असाध्य बीमारी का इलाज ,पढ़ाई का खर्च और आश्रय जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में मदद के अनुरोध शामिल हो सकते हैं।
भीख मांगना गंदा है पर क्या करें ये एक धंधा है
सब भिखारी एक जैसे नहीं होते। कहीं शारीरिक विकलांगता भीख मांगने पर मजबूर करती है तो कहीं अच्छा भला आदमी भीख के लिए खुद के विकलांग होने का ढोंग रचता है। यह बात साबित करने की कतई ज़रूरत नहीं, बल्कि अक्सर आते-जाते कोई ऐसा भिखारी दिख ही जाता है जो शरीर से हस्ट-पुष्ट हो फिर भी शारीरिक विकलांगता का ऐसा ढोंग रचता है जैसे वह किसी दुर्घटना का शिकार हुआ हो। आजकल भीख मांगना केवल पेट पालने तक सीमित नहीं रह गया है। बल्कि भीख मांगना विशाल कारोबार का रूप ले चुका है। भारत में आपरेट होने वाला भीख का धंधा विदेशों में बैठे इनके सरगनाओं के इशारे पर चलता है। हर साल इस पेशे से जुड़े करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। बड़े-बड़े गैंगेस्टर गिरोह की शक्ल में इस धंधे को चला रहे हैं। एक सच यह भी है कि बड़े-बड़े अपराधी अपराध के बाद या तो अंडरग्राउंड हो जाते हैं या फिर किसी दूसरे राज्य या शहर में जाकर भिखारी की वेशभूषा में रहकर जिंदगी गुजार रहे होते हैं। कानून से बचने के लिए खतरनाक अपराधियों का यह सटीक और अचूक हथियार माना जाता है। इसके अलावा कई बच्चों की किडनैपिंग कर उन्हें अपंग बनाकर देश विदेश में आजीवन भीख मंगवाई जाति है। ऐसे ऐसे भिखारियों के कई रैकेटों का पर्दाफाश पुलिस ने भूतकाल और वर्तमान में भी किया है।
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भारत जैसे विकासशील देश में रोजगार के पर्याप्त साधन न होने के चलते इस पेशे को बढ़ावा मिलता है। यहां तक कि कभी-कभी ऐसे लोग भी दिख जाते हैं जो शिक्षित तो हैं पर उनके पास रोजगार नहीं है, तथा थक-हार कर वो इस पेशें से जुडऩे में तनिक भी संकोच नहीं करते। वहीं दूसरी और नशे के आदी लोगों को जब नशे के लिए पर्याप्त धन नहीं मिलता तो वह गलत तरीकों को अपना लेते हैं। इस प्रकार के लोग या तो चोरी करने लगते हैं या फिर भीख मांगकर अपने नशे की लत को पूरा करते हैं। दुख की बात तो यह है की इस समुदाय में पैदा होने वाले बच्चे भी आजीवन भीख मांगने पर मजबूर हो जाते हैं। उनके पैदा होते ही ये तय हो जाता है कि वे आगे चलकर सिर्फ और सिर्फ भिखारी ही बनेंगे। पीढिय़ों की रवायत और जमाने की मौजूदा रफ्तार की अनदेखी इन्हें इससे आगे सोचने भी नहीं देती। ऐसे समुदाय अपने नसीब को ईश्वरीय देन मानकर उसी पेशे से जुड़े रहते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार भिखारियों के आंकड़े
यदि हम सरकारी आंकड़ों की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 4,13,670 जिनमें से 2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक तो लक्ष्वदीप में सबसे कम भिखारी मौजूद है। इसके अलावा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक भिखारी है।
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है की असल आंकड़े इस से कई गुना अधिक हो सकते हैं। इसके अलावा अफ्रीका, नाइजीरिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, आदि कई देश हैं जहां भिखारियों की संख्या अत्यधिक है।
भारत एक विकासशील देश है और अभी भी लगभग 40 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे है, जो बमुश्किल अपना गुज़ारा करती है। देश के भिखारियों को रोज़ कोई न कोई व्यक्ति इन पर तरस खाकर और अपना फर्ज़ जानकर इनको 1-2 रूपए देते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, कि आप जिस भिखारी को सिक्कों और रुपयों की भीख देते हैं, वह वास्तव में करोड़पति निकलें तो ?आपके चेहरे का भाव निश्चित तौर पर देखने लायक होगा।
जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है और जो किसी गैवरमेंट अफसर से भी अधिक पैसे एक महीने में कमा लेते हैं।
ये हैं भारत के सबसे अमीर भिखारी, जिनके नाम हैं ” भरत जैन “। फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाला यह भिखारी मुंबई के लोअर परेल रेलवे स्टेशन पर आज भी भीख मांगता है। इसके पास 70-70 लाख के 2 फ्लैट्स हैं और महंगी महंगी 2 दुकानें है। इसकी मासिक आय 65 हजार से भी अधिक है।
- हिंदुस्तान की सबसे अमीर भिखारियों की लिस्ट में दूसरे नंबर हैं कोलकाता की रहने वाली लक्ष्मी
- मुंबई की रहने वाली गीता अमीर भिखारियों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आती हैं
- फिर आते हैं, भीख मांग कर गुजारा करने वाले चंद्र प्रकाश आजाद के पास । इनका गोवंडी में अपना घर है। 2019 में एक दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद मुंबई पुलिस ने उनकी सारी प्रॉपर्टी ढूंढ निकाली थी।
- इसके बाद पटना में पप्पू कुमार नामक एक भिखारी है जिसके पास 1 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस है। जो उसने केवल भीख मांग मांग कर जमा किया है।
दोस्तो! यह कमाई किसी भिखारियों के रैकेट की नहीं है जिसमे 20-25 से लेकर 500-1000 भिखारी शामिल होते हैं, बल्कि यह केवल एक भिखारी की कुछ सालों की कमाई का आंकड़ा है। ऐसे ऐसे सेकडो करोड़ भिखारी देश में खुलेआम घूम रहे हैं जो किसी रेड लाइट या टोल बूथ पर आपकी दया का गैर फायदा उठाकर करोड़पति बन रहे हैं। ऐसे भिखारियों से पूछताछ करने पर वे बताते हैं की किसी अन्य धंधे में दिन रात मेहनत कर इतने पैसे कभी नहीं कमाए जा सकते। कुल मिलाकर अकेले भारत में भिखारियों की सालाना कमाई अरबों खरबों की मानी जा सकती है।
भारत समेत कई देशों में भीख मांगना घोर अपराध है
भारत समेत विश्व के कई देशों जैसे ग्रीस,हंगरी,फ्रांस,इंग्लैंड और वैलस,डेनमार्क,चाइना,कनाडा,बुल्गारियापोर्टूगल,कतर आस्ट्रिया इत्यादि में भीख मांगना इलीगल है और कड़ी सज़ा का भी प्रावधान है।
भारत में ‘बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट’, बीपीबीए (1959) के अनुसार मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में भीख मांगना अपराध है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता पाया जाता है तो उसे दोषी ठहराया जाता है, और उन्हें जेल हिरासत, प्रशिक्षण गृह और रोजगार के लिए एक से दस साल तक की अवधि के लिए ‘भिखारी घरों’ नामक प्रमाणित संस्थानों में भेजा जाता है, जिन्हें ‘सेवा कुटीर’ भी कहा जाता है।
दिल्ली सरकार ने भीख मांगने के अपराधीकरण के अलावा ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने के ‘उपद्रव’ को कम करने और यातायात के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए भीख मांगने को भी अपराध बताया है।
People’s Union for Civil Liberties and Democratic Rights (PUCLDR).
‘आश्रय अधिकार अभियान’ और पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज, पीयूसीएल People’s Union for Civil Liberties and Democratic Rights (PUCLDR) ने इस अधिनियम की आलोचना की है और इसे हटाने की वकालत की है। बीपीबीए की धारा 2(1) मोटे तौर पर ‘भिखारियों’ को उन व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करती है जो सीधे भिक्षा मांगते हैं और साथ ही जिनके पास निर्वाह का कोई साधन नहीं है और वे भिखारी के रूप में घूमते पाए जाते हैं। इसलिए, इस कानून के क्रियान्वयन के दौरान बेघरों को अक्सर भिखारी समझ लिया जाता है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है
दिल्ली हाईकोर्ट का तर्क
‘बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट’ ,के तहत अभी तक राजधानी दिल्ली में भीख मांगना अपराध था, लेकिन अगसत 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है। यानी अब दिल्ली में भीख मांग रहे किसी भी व्यक्ति को पुलिस जेल में नहीं डाल सकती।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले पर कहा है कि कोई अपनी खुशी से भीख नहीं मांगता, बल्कि मजबूरी में भीख मांगता है, क्योंकि उनके पास जीवित रहने का ये आखिरी तरीका है। कोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार सभी को रोजगार, खाना या बुनियादी सुविधाएं नहीं दे सकी है, ऐसे में भीख मांगना अपराध कैसे हो गया? कोर्ट का मानना है कि इसे अपराध कहना मौलिक अधिकारों का हनन करना है।
देश के अधिकतर राज्यों में भीख मांगना एक अपराध होने के बावजूद हर राज्य में भिखारी मौजूद हैं। बहुत से भिखारी तो भीख मांगने को इतना सहज महसूस करते हैं कि अपराध होने के बावजूद वह इसे छोड़ते नहीं हैं।
लेकिन क्या इतनी जानकारी होने के बाद भी किसी को भीख या भिक्षा देना सही है? क्या हमारे पवित्र सद्ग्रंथ इस बात की गवाही देते हैं की भिक्षा मांगना सही है? आइए आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इस पहलू पर विचार करते हैं-
दोस्तों, भिक्षा या दान मांगना शास्त्र विरुद्ध है। परमात्मा का संविधान यह बताता है की केवल पूर्ण परमात्मा से ही मांगना चाहिए क्योंकि वास्तव में सभी वस्तुओं का दाता तो पूर्ण परमात्मा ही है, वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है।
इसी विषय में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी और उनके प्रिय शिष्य संत गरीबदास जी महाराज अपनी अमृतमय वाणी में बताते हैं-
कबीर, मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
कबीर, बिन माँगे मोती मिलें, माँगे मिले न भीख।
माँगन से मरना भला, यह सतगुरू की सीख।।
गरीब, नट, पेरणा कांजर सांसी, मांगत हैं भठियारे।
जिनकी भक्ति में लौ लागी, वो मोती देत उधारे।।
गरीब, जो मांगै सो भड़ूवा कहिए, दर-दर फिरै अज्ञानी।
जोगी जोग सम्पूर्ण जाका, मांग ना पीवै पानी।।
इसी विषय में दान की परिभाषा को परमात्मा कबीर साहेब जी समझाते हैं की घर आए साधु को कभी भूखे वापिस नहीं जाने देना चाहिए।
कबीर, वो नर तो मूए जो घर मांगण जा।
उनसे पहले वो मरे जा मुख निक्सेे ना।
पवित्र मुस्लिम धर्म की पुस्तक कुरान शरीफ में लिखा है की अपनी कमाई का 10वा अंश अवश्य दान करना चाहिए। इसके अलावा , पवित्र श्रीमद भागवत गीता में लिखा है की दान केवल सुपात्र को ही करना चाहिए, कुपात्र को दिया दान पाप का कारण बनता है।
दान पुण्य का महत्व बताते हुए कबीर साहेब जी और संत गरीबदास जी अपनी वाणी में बताते हैं-
दसवां अंश गुरु को दिजे जीवन जन्म सफल कर लीजे।
गुरु बिन माला फेरते,गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछ लो वेद पुराण।।
गुरु बिन दान पुण्य जो करही, मिथ्या होई कभू न फल ही।
रोटी माता रोटी पिता, रोटी काटे सकल बीथा।
दास गरीब कहे दरवेशा, रोटी बाटों सदा हमेशा।
वर्तमान समय में पूरे विश्व में केवल जगत गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही एक मात्र सच्चे गुरु है जिन्होंने दान की सच्ची परिभाषा समझाई है। संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है की किसी भिखारी को दान में न पैसे, न बिना सिला हुआ कपड़ा आदि कुछ नहीं देना है। यदि कोई दान रूप में कुछ मांगने आए तो उसे खाना खिला दें, चाय, दूध, लस्सी, पानी आदि पिला दे ,और यदि उसे इलाज की ज़रूरत है तो वह भी करा दें परंतु पैसा बिलकुल नहीं देना है। न जाने वह भिक्षुक उस पैसे का दुरूपयोग कर ले।
जैसे एक व्यक्ति ने किसी भिखारी को उसकी झूठी कहानी सुनकर भावनावश 100 रु दे दिए। वह भिखारी पहले पाव शराब पीता था उस दिन उसने आधा बोतल शराब पी और घर जाकर अपनी पत्नी को इतना पीट डाला, की उसकी पत्नी ने बच्चों सहित आत्म हत्या कर ली। उस व्यक्ति द्वारा किया हुआ वह दान उस परिवार के नाश का कारण बना। संत रामपाल जी समझाते हैं की यदि आप चाहते हो कि आप किसी दु:खी व्यक्ति की मदद करें तो उसके बच्चों को डॉक्टर से दवाई दिलवा दें, लेकिन पैसा न दें। विश्व के सभी प्राणियों को चाहिए की वे संत रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लें और उनके बताए नेक विचारों पर चलें ताकि पूरे विश्व में कोई किसी से भीख नहीं मांगे और सब परमात्मा की भक्ति करके परमात्मा से ही सबकुछ प्राप्त करेंगे।