Bhagat Singh Jayanti 2024: जानिए युवाओं के ह्रदय सम्राट, भगत सिंह के छोटे से जीवन की, बड़ी अमर कहानी 

Bhagat Singh Jayanti in Hindi

Bhagat Singh 117th Birth Anniversary (Jayanti): “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा।” युवाओं के ह्रदय सम्राट भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान को कोई नहीं भूल सकता। इन नौजवानों ने बहुत ही कम उम्र में अपना बलिदान देकर राष्ट्र के युवाओं को भारत देश को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान देने की प्रेरणा दी। मां भारती के इस वीर सपूत की 28 सितंबर के दिन 117वीं जयंती मनाई जाएगी। शहीद-ए-आजम भगतसिंह की इस जयंती पर जानते हैं उनके छोटे से जीवन की बड़ी अमर कहानी। साथ ही जानेंगे कि क्यों आज भी भगतसिंह युवाओं के ह्रदय सम्राट हैं।

भगतसिंह का जीवन परिचय

भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को बंगा, जिला लायलपुर जो कि अब पाकिस्तान में स्थित है, में मां विद्यावती कौर की कोख से, सरदार किशन सिंह संधू के घर, एक सिक्ख परिवार में हुआ। वे सात भाई बहन थे। भगत सिंह के पिता और चाचा अजीत सिंह पहले ही ब्रिटिश सरकार के विरोध में थे, उसी के चलते बहुत ही कम उम्र में ही उन्होंने देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया था। लाहौर के डीएवी स्कूल और नेशनल कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की।

भगतसिंह के अंदर क्रांतिकारी बदलाव 

13 अप्रैल 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, उस समय भगत सिंह की आयु मात्र 12 वर्ष की थी। इस घटना ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। एक तरफ़ गांधी जी का असहयोग आन्दोलन जिसमें अहिंसात्मक तरीके को अपनाया गया था, वहीं दूसरी तरफ क्रान्तिकारियों के उग्र आन्दोलन। भगत सिंह दोनों में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे। हालांकि भगत सिंह अन्य साधारण जनता की तरह गांधी जी का सम्मान करते थे लेकिन फिर भी उन्होंने देश को आजाद करने के लिए उग्रवाद के मार्ग को अपनाना अनुचित नहीं समझा।

इसके बाद भगतसिंह 1925 में, नौजवान भारत सभा से जुड़ गए और बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य बन गए। वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए।

                           सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

                            देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।

1928 में, लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, भगत सिंह और उनके साथियों ने मिलकर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी। अंग्रेजों को यह बताने के लिए कि हिंदुस्तानी जाग चुके हैं और उनके अत्याचारों को अधिक सहन नहीं करेंगे। इसलिए उन्होंने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई जिसका उद्देश्य केवल विरोध करना था, न कि किसी को नुकसान पहुंचाना।

उस योजना के तहत 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगतसिंह ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में ऐसी जगह पर बम फेका, जिससे किसी को कोई नुकसान न हो। बम फटने के बाद उन्होंने “इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!” का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिए। पर्चे में उन्होंने कहा: “व्यक्तियों को मारना आसान है, लेकिन आप विचारों को नहीं मार सकते। महान साम्राज्य ढह गए, जबकि विचार बच गए।” इसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।  

भगतसिंह की जेल यात्रा 

गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह 2 साल तक जेल में रहे। लेकिन वहां भी उन्होंने पुस्तकों का अध्ययन जारी रखा। अपने साथियों व पिता से वह अलग अलग पुस्तकें मंगवाकर, उन्हें पढ़ने में व्यस्त रहते थे। भगत सिंह जेल से पत्रों व लेखों के माध्यम से युवाओं में क्रांतिकारी भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते थे।

उन्होंने अंग्रेजी में एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था – मैं नास्तिक क्यों हूं (Why i am atheist)? जेल में रहते हुए भी उन्होंने 64 दिन तक भूख हड़ताल की, जिसमें उनका एक साथी मृत्यु को प्राप्त हो गया।    

मरकर भी अमर हैं युवा हृदय सम्राट भगतसिंह 

          “हवा में रहेगी मेरे ख़याल की बिजली,

         ये मुश्ते-ख़ाक है फ़ानी, रहे रहे न रहे।”

23 मार्च 1931 का वो दिन, जब जॉन सॉन्डर्स की हत्या व केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने की सजा फांसी दी गई। भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरु को वार्डन चरत सिंह ने आकर बताया कि उन्हें कल सुबह 6:00 बजे की बजाय आज शाम को 7:30 बजे ही फांसी दी जाएगी। उस समय भगतसिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब उनसे उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे लेनिन की जीवनी को पूरा पढ़ना चाहते हैं, उन्हें थोड़ा वक्त चाहिए और साथ में यह भी वे आखिरी बार अपने घर का खाना खाना चाहते हैं।

जब फांसी देने का वक्त आ गया तब तीनों क्रांतिकारी एक दूसरे से गले मिले और गीत गाते जा रहे थे –

मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे।

मेरा रंग दे बसन्ती चोला। माय रंग दे बसन्ती चोला॥

23 मार्च 1931, शाम को करीब 07 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई।

इस घटना ने युवाओं को स्वतंत्रता की वेदी में बलिदान देने के लिए प्रेरित किया और भगतसिंह मरकर भी देश के लिए अपना बलिदान देकर सदा के लिए अमर हो गए।

भगतसिंह के क्रांतिकारी विचार (Thoughts Of Bhagat Singh)

  • “किताबें और बंदूकें दोनों ही क्रांति के लिए जरूरी हैं। किताबें हमें सोचना सिखाती हैं और बंदूकें हमारी रक्षा करती हैं।”
  • “गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए सबसे बड़ा हथियार शिक्षा है।”
  • भगत सिंह ने कहा था कि “वे एक ऐसे समाज का सपना देखते हैं जहाँ शोषण न हो और सभी को समान अवसर मिलें।”
  • भगत सिंह मानते थे कि सच्चा क्रांतिकारी वह है जो न केवल बाहरी परिस्थितियों को बदलता है, बल्कि खुद को भी बदलता है।
  • उन्होंने कहा था, “क्रांति सिर्फ खून बहाने के लिए नहीं होती, बल्कि एक नए समाज के निर्माण के लिए होती है।”
  • “मेरे लिए देशभक्ति का मतलब अपने देशवासियों की भलाई के लिए काम करना है।”
  • “जिस दिन हमारे देश का हर व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख जाएगा, उस दिन हम वाकई आजाद होंगे।”
  • “मैं एक ऐसे समाज का सपना देखता हूं जहां हर व्यक्ति को समान अवसर मिलें।”
  • भगत सिंह ने कहा था कि वे मृत्यु से नहीं डरते, बल्कि अपने सिद्धांतों से समझौता करने से डरते हैं।
  • भगत सिंह ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था, “मैं एक क्रांतिकारी हूं, एक कट्टरपंथी नहीं।”
  • “जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।”
  • “क्रांति के लिए खून की जरूरत होती है, स्याही से नहीं, मैं अपना खून देने के लिए तैयार हूं।”

आलोचना और स्वतंत्र सोच एक क्रांतिकारी के दो अनिवार्य गुण हैं

ये विचार भगत सिंह के साहस, देशभक्ति और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। उनके इन विचारों से यह पता चलता है कि भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक गहन चिंतक और समाज सुधारक भी थे। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे।

आत्मा की आजादी का असली संघर्ष, वंचित रह गए भगतसिंह

भारत को आजाद कराने के लिए भगतसिंह के साथ कई अन्य क्रांतिकारियों ने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। उनके प्रयत्नों से हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए लेकिन क्या आप जानते हैं हम अभी भी एक बहुत बड़े मकड़ जाल में फंसे हुए हैं। हमारा निज घर, निज धाम, सतलोक है जहां हम बहुत खुश रहते थे लेकिन काल ब्रह्म की बातों में आकर हम अपने परमपिता से बिछड़कर इसके साथ इसके लोक में आ गए। काल ब्रह्म 21 ब्रह्मांड का स्वामी है जो नहीं चाहता कि हम वापस अपने घर चले जाएं। पूर्ण परमात्मा हम सभी का शुभचिंतक है, वह प्रत्येक युग में आकर तत्व ज्ञान को अपने दोहों व शब्दों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाते हैं। वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज, कबीर परमेश्वर के अवतार, इस धरती पर आए हुए हैं जो सत्य भक्ति साधना देकर काल के जाल से निकलने का सही मार्ग बता रहे हैं।

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FAQ About Bhagat Singh Jayanti

Q1.भगत सिंह का जन्म कब हुआ था?

Ans. 28 सितंबर 1907।

Q2.भगतसिंह के पिताजी का नाम क्या था?

Ans. सरदार किशन सिंह संधू।

Q3. भगतसिंह को फांसी कब दी गई?

Ans. 23 मार्च 1931।

Q4. भगतसिंह के साथ और किसे फांसी दी गई?

Ans. सुखदेव और राजगुरु।

Q5. भगतसिंह की माता का नाम क्या था?

Ans. विद्यावती कौर।

One thought on “Bhagat Singh Jayanti 2024: जानिए युवाओं के ह्रदय सम्राट, भगत सिंह के छोटे से जीवन की, बड़ी अमर कहानी 

  1. वंदे मातरम! शत शत नमन है देश के शहीदों को। बहुत अच्छा और सामयिक लेख है। भगतसिंह के क्रान्तिकारी विचार बहुत प्रेरक लगे। लेखक व प्रकाशक को साधुवाद!

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