Child Labour in Delhi: शहर में बाल श्रम को रोकने के लिए हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को सख्त कदम उठाने को कहा

Child Labour in Delhi बच्चे आने वाले कल का भविष्य होते हैं

बाल श्रम या बाल मज़दूरी किसी भी देश के लिए कलंक है। इसी गंभीर समस्या को ध्यान में रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने जनहित में एक याचिका पर सुनवाई की है। जिसमें देश के विभिन्न भागों से तस्करी कर लाए गए और दिल्ली में बंधुआ मजदूरों के रूप में कार्य करने को मजबूर 1000 से अधिक नाबालिगों को बचाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने विभिन्न स्थानों पर काम कर रहे बाल मजदूरों को छुड़ाने के लिए छापा मार कर कार्रवाई करने की मांग पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अलावा राजस्व विभाग, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को भी नोटिस जारी किया।

बच्चे आने वाले कल का भविष्य होते हैं

जिन नन्हें-नन्हें हाथों में खेलने के लिए खिलौने होने चाहिएं और अपना उज्ज्वल भविष्य लिखने के लिए हाथों में कलम होनी चाहिए, जिससे वह अपने भविष्य को नया आयाम दे सकें। उन्हीं हाथों में आज श्रम रूपी मजबूरी है जिससे इन नन्हें बच्चों का जीवन अंधकारमय बन चुका है। माया की दौड़ ने इंसान को इतना अंधा बना दिया है कि बाल श्रम जैसे अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। हमारे देश और समाज के लिए बाल श्रम गंभीर समस्या बनती जा रही है। शहरों में छोटे-छोटे बच्चों को मज़दूरी करते देखना आम बात हो गई है। पढ़ें पूरा लेख।

Child labour in Delhi: बाल श्रम पर मुख्य बिंदु 

•2011 की जनगणना के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या तकरीबन 1 करोड़ है। इन आंकड़ों में 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां शामिल हैं।

•बाल मज़दूरी निषेध एवं नियमन अधिनियम, 1986 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को किसी कारखाने या अन्य ढाबा, होटलों जैसे जोखिम भरे स्थानों में काम करवाना दंडनीय अपराध है।

•15 जुलाई 2024 को बाल श्रम के खिलाफ हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जारी किया था नोटिस

•कार्यकारी चीफ़ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार के अलावा, राजस्व विभाग, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय बाल और संरक्षण आयोग को भी जारी किया था नोटिस

•बाल श्रमिक दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में काम करने को मजबूर हैं। उनसे बंधुआ मज़दूरों की तरह 12 से 13 घंटे काम करवाया जाता जाता है

•याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायतों में 245 बच्चों और 772 किशोरों को छुड़ाने को कहा था

•बाल श्रम के मामले में याचिकाकर्ता का कहना है कि कानून के मुताबिक शिकायत मिलने के 24 से 48 घंटो के अंदर कार्यवाही करने का प्रावधान है लेकिन अधिकारियों ने नहीं की कोई कार्यवाही

•मानव को तत्वज्ञान की है आवश्यकता, जिससे बाल श्रम पर लगेगा अंकुश

याचिका रोहतास नामक व्यक्ति ने दायर की है 

याचिकाकर्ता ने एनजीओ सहयोग केयर फॉर यू नाम के काम का समर्थन करते हुए कहा है कि अब तक विभिन्न प्राधिकारों को इन बाल श्रमिकों को छुड़ाने के लिए 18 शिकायतें कर चुके हैं। ये बाल श्रमिक दिल्ली के विभिन्न स्थानों में काफी असुरक्षित वातावरण में काम करने को मजबूर हैं। उनसे बंधुआ मज़दूरों की तरह 12-13 घंटे काम लिया जाता है।

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याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि इन बाल श्रमिकों में अधिकतर को तस्करी कर लाया गया है, जो नियोक्ता के यहां ही रहते हैं और काम करते हैं. उन्हें खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर किया जाता है।

दिल्ली सरकार ने बाल श्रम की कार्यवाही पर हाई कोर्ट को क्या आश्वासन दिया 

गुरुवार 18 जुलाई को दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को आश्वासन दिया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से तस्करी करके लाए गए और यहां बंधुआ मज़दूर के रूप में कार्य करने को मजबूर नाबालिगों को बचाने के लिए “कार्यवाई योग्य सूचना” मिलने पर कारवाई की जायेगी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा “पूर्ण प्राथमिकता” का है और सरकारी वकील को जल्द से जल्द मामले पर कार्यवाही रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के जवाब पूछने पर क्या जवाब दिया (Child Labour in Delhi) 

दिल्ली सरकार की स्थाई वकील (सिविल) संतोष कुमार त्रिपाठी ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता ने बाल मज़दूरी कराए जाने वाले संदेह स्थान का कोई उचित पता नहीं दिया है। ऐसे में निश्चित पते की पहचान न होने से कारवाई करना सम्भव नहीं है।

बाल श्रम से संबंधित कुछ आंकड़े 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, बाल श्रम में लगे बच्चों की संख्या दुनियाभर में 160 मिलियन बताई जा रही है। वहीं भारत में पुराने आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार बाल श्रमिकों की संख्या 10.12 मिलियन थी।

बाल श्रम (Child Labour) का क्या अर्थ है?

किसी भी बच्चे को बाल्यकाल से वंचित करके, उन्हें मजबूरी में काम करने के लिए विवश करते हैं, उन्हें बाल श्रम या बाल मज़दूरी कहते हैं अर्थात् 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खेल-कूद, शिक्षा के अधिकार से वंचित करके उनका बचपन छीनकर, चंद रुपयों की लालच में काम में लगाकर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित करना बाल श्रम कहलाता है अथवा बचपन को श्रम में बदलकर उनका शोषण करना बाल श्रम कहलाता है।

Child Labour या बाल मजदूरी के क्या कारण हैं?

रिपोर्ट के मुताबिक, बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण निर्धनता और अभिभावकों का अशिक्षित होना है। निर्धन परिवार अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ होते हैं और उनकी सोच यह रहती है कि वे कुछ काम सीख जाएं, तो उतना जल्दी पैदा कमा सकते हैं इसलिए वे अपने बच्चों को मज़दूरी पर भेजते हैं। पंरतु अभिभावक इस बात से अपरिचित हैं कि यदि बच्चा अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो भविष्य में उसकी आमदनी की व्यवस्था अच्छी हो सकती है। 

बाल श्रम को इसलिए भी बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि बच्चे को काम करने के प्रतिफल में कम रुपए दिए जाते हैं, जिसके कारण लोग बच्चों को अधिक काम में रखना पसंद करते हैं। हमारे देश में लाखों की संख्या में अनाथ बच्चे हैं। माफिया उन बच्चों को डरा धमका कर, बुरी तरह मार-पीट कर, नशे की लत लगवाकर उन्हें भीख मांगने पर मजबूर करते हैं जो कि बाल श्रम बढ़ने का मुख्य कारण भी है। इन सभी कारणों के अलावा बाल श्रम में अहम भूमिका भ्रष्टाचार निभा रही है। जिसकी वजह से बड़े बड़े ढाबों, होटलों और कारखानों पर उनके मालिक बिना किसी भय के बालकों को काम पर रख देते हैं। उन्हें पता होता है कि पकड़े गए तो वे घूस देकर छूट जायेंगे। 

(Child Labour in Delhi) बाल श्रम के दुष्परिणाम 

मज़दूरी करने वाले बच्चे अक्सर कुपोषण के शिकार होते हैं, जिन जगहों पर बाल मजदूर काम करते है मालिकों के अभद्र व्यवहार से मानसिक रूप से बच्चे प्रताड़ित होते हैं। जिसकी वजह से उनका शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास नहीं हो पाता। 

बाल मजदूरी करते समय कई बच्चे और बच्चियों का शारीरिक शोषण किया जाता है, जो कि उन पर दोहरी मार है। रिपोर्ट के अनुसार 40% बच्चों के साथ शोषण होता है और इन बातों पर सरकार कभी ध्यान नहीं देती है। बचपन से मजूदरी करने के कारण बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं और उनको जीवन की सही राह प्राप्ति नहीं होती। बाल मजदूरी करने से देश का आने वाला कल अंधकार की ओर जाने लगता है इसके साथ ही देश में गरीबी, और बेरोज़गारी बढ़ती है।

बाल श्रम पर अंकुश लगाने और बाल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने निम्न नियम लागू किए हैं 

•बाल श्रम को रोकने के लिए कई अधिनियम पारित किए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति 14 से 18 वर्ष के किसी बच्चे को जोखिम भरे व्यवसाय में काम करवाता है तो उसे 1 से 6 महीने का कारावास और 20,000 से 50,000 तक जुर्माना हो सकता है।

• वैश्विक स्तर पर बाल श्रम पर अंकुश लगाने के लिए 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध जागरूकता दिवस मनाया मनाया जाता है। 

•बाल श्रम निषेध और विनियम अधिनियम, 1986 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मज़दूरी पर लगाना दंडनीय अपराध है।

•देखभाल और संरक्षण अधिनियम, 2000 के तहत कोई व्यक्ति बच्चों को मज़दूरी करने के लिए मजबूर करता है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही का प्रावधान है।

•निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम (RTE Act), 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराना और साथ ही प्राइवेट स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए 25% सीट आरक्षित करने का प्रावधान इस अधिनियम के अंतर्गत रखा गया है।

आध्यात्मिक ज्ञान से ही बाल श्रम जैसे जघन्य अपराध का नाश हो सकता है 

आज मानव ही मानव का शत्रु बन गया है। माया की दौड़ ने इंसान को अंधा बना दिया है, जो मानव को विनाश की ओर ले जा रहा है। इस विनाश से केवल आध्यात्मिक ज्ञान से बचा जा सकता है। परमात्मा कबीर जी कहते हैं –

कबीर मात पिता सो शत्रु हैं, बाल पढ़ावैं नाहीं।

हंसन में बगुला यथा, तथा अनपढ़ सो पंडित माहीं।।

अर्थात् अभिभावक को चाहिए कि बच्चे के उत्तम भविष्य और जीने की राह सुगम बनाने के लिए उन्हें स्कूली शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा अवश्य दिलानी चाहिए। जिससे वे आध्यात्मिक अर्थात तत्वज्ञान की भी प्राप्ति कर सकते हैं। आज विश्व में संत रामपाल जी महाराज एक ऐसे संत हैं, जिन्होंने समाज सुधार के साथ-साथ मानव समाज में नैतिकता और भाईचारा स्थापित करने का बीड़ा उठाया है। हमारा पाठकों से निवेदन है कि अपने आसपास बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ ज़रूर उठाएं और आपसे अनुरोध है कि अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक जीने की राह।

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