जलवायु परिवर्तन(Climate change) पूरे विश्व के लिए आज एक बड़ी चुनौती है। मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है किन्तु जलवायु में बदलाव होने में काफी समय लगता है। जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होना अति आवश्यक है क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य, आवास, फसल और अन्य जीव-जंतुओं को वृहत् रूप से प्रभावित करता है। तो चलिए इस लेख में हम जलवायु परिवर्तन की विस्तृत जानकारी, इसके कारणों, प्रभावों और समाधानों पर चर्चा करते हैं।
मुख्य बिंदु (Key Points) :
- चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, यूरोपिय संघ व ब्राजील इन देशो का 2020 में जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कारको का उत्सर्जन करने मे लगभग आधा हिस्सा था।
- ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारक ग्रीनहाउस गैसेस के उत्सर्जन में वृद्धि है।
- विगत शताब्दी मे वैश्विक समुन्द्र स्तर मे 8 इंच की वृद्धि देखी गई है।
- भारत का तापमान 1900 से वर्तमान तक लगभग 2°C बढ़ गया है
- पिछले 130 वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 130 वर्षों में वैश्विक तापमान लगभग 1°C बढ़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह दर 1.5°C से अधिक हुआ तो और भी कई गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) क्या है?
जलवायु परिवर्तन को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि जलवायु क्या है? जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दीर्घकालिक औसत स्थिति को दर्शाता है। जिसमें तापमान, वर्षा, वायुदाब, आर्द्रता, धूप, हवाएं और अन्य मौसम संबंधी कारकों का समावेश होता है। अब सरल शब्दों में कहें तो, जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव है। यह बदलाव प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण:
जलवायु परिवर्तन में मानवीय कारणों का अधिक व प्राकृतिक कारणों का आंशिक योगदान रहता है।
प्राकृतिक कारण :
सौर चक्र: सूर्य की गतिविधि में प्राकृतिक रूप से होने वाले बदलाव पृथ्वी के तापमान को थोड़ा प्रभावित कर सकते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी विस्फोट बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों और धूल को वायुमंडल में छोड़ते हैं, जो तापमान को अस्थायी रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
ग्रहों की कक्षाएं: पृथ्वी और अन्य ग्रहों की सूर्य के चारों ओर कक्षाओं में परिवर्तन हजारों सालों में जलवायु को बदल सकते हैं।
मानवीय कारण:
- जीवाश्म ईंधन का जलना: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में उत्सर्जित होती हैं, जो सूर्य के ताप को फँसाकर धरती को गर्म करती हैं।
- वनों की कटाई: पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वनों की कटाई से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। और ग्रीन हाउस प्रभाव डालती है।
- कृषि: उर्वरकों का उपयोग और पशु पालन, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं।
- औद्योगिक गतिविधियाँ: औद्योगिक गतिविधियाँ, जैसे विनिर्माण और निर्माण, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं।
जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)
जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारक है वैश्विक या भूमंडलीय तापमान में वृद्धि यानी ग्लोबल वार्मिंग(Global Warming) क्योंकि प्राकृतिक या मानवीय कारणों से सर्वप्रथम वैश्विक तापमान में वृद्धि ही देखी जाती है। फिर अन्य जलवायु परिवर्तन देखे जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 130 वर्षों में वैश्विक तापमान लगभग 1°C बढ़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह दर 1.5°C से अधिक हुआ तो और भी कई गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
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ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) का मुख्य कारक ग्रीनहाउस प्रभाव
ग्रीनहाउस गैसें, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) तथा नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) सूर्य से आने वाली ऊष्मा को फँसाकर पृथ्वी के वातावरण में जमा करती है। यह अतिरिक्त ऊष्मा धीरे-धीरे वायुमंडल और महासागरों को गर्म करती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग होती है। हालांकि, ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक घटना है जो पृथ्वी को रहने योग्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मानवीय गतिविधियों, जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई, और औद्योगिक प्रक्रियाओं ने ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि की है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव तीव्र हो गया है और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा उत्पन्न हुआ है।
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यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ग्लोबल वार्मिंग का एकमात्र कारण ग्रीनहाउस प्रभाव नहीं है। प्राकृतिक कारक जैसे कि ज्वालामुखी विस्फोट और सौर चक्र में परिवर्तन भी तापमान को हल्का प्रभावित कर सकते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के प्रभाव:
- मौसम की चरम घटनाओं में वृद्धि: गर्मी लहरें, सूखा, जंगल की आग, तूफान और बर्फबारी जैसी घटनाएं अधिक तीव्र और लगातार हो रही हैं।
- समुद्र का बढ़ता स्तर: तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों का पिघलना समुद्र के स्तर को बढ़ा रहा है, जिससे तटीय बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ रहा है।
- वर्षा पैटर्न में बदलाव: कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक हो रही है तो कुछ क्षेत्रों में कम हो रही है। इससे सूखा, बाढ़ और कृषि उत्पादन में गिरावट जैसी समस्याएं आ रही है।
- जैव विविधता का नुकसान: कई पौधे और जानवरों की प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के अनुकूल न होने के कारण विलुप्त होने के खतरे में हैं।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: गर्मी से संबंधित बीमारियां, श्वसन संबंधी समस्याएं, वेक्टर जनित रोग और कुपोषण जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही हैं।
जलवायु परिवर्तन(Climate change) का प्रभाव भारत पर:
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से यह कई चुनौतियों का सामना करता है:
- अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर करती है, जो वर्षा पर निर्भर करती है।
- गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों पर करोड़ों लोग निर्भर करते हैं, जो हिमालय के ग्लेशियरों से पानी प्राप्त करते हैं।
- तटीय शहरों में बाढ़ और तूफान का खतरा बढ़ते क्रम में है।
क्या हम जलवायु परिवर्तन (Climate change) को रोक सकते हैं?
हाँ, लेकिन इसके लिए हमें तत्काल और महत्वपूर्ण कार्रवाई की आवश्यकता है-
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने की आवश्यकता है।
- वनों की कटाई को रोकने और जंगलों को बहाल करने की आवश्यकता है।
- हमें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की आवश्यकता है।
एक ऐसा देश जहां ना सर्दी है ना गर्मी
दोस्तों! इन सब घटनाओं से रहित एक लोक ऐसा भी है जहां कोई दुख नहीं, कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, वहां ना गर्मी है ना सर्दी केवल एकरस परम शांति है। जिसका उल्लेख पवित्र श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में है। वह सनातन परमधाम सतलोक है। जो स्वर्ग तथा महास्वर्ग से संखो गुना श्रेष्ट है। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि सतलोक के सुख को आँखों देखकर संत गरीबदास जी महाराज (गाँव-छुडानी, जिला-झज्जर हरियाणा वाले) ने अमर ग्रंथ साहेब में लिखा है —
“ गरीब, संखो लहर मेहर की उपजे, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।”
स्वर्ग तथा महास्वर्ग का सुख सतलोक की तुलना में कुछ भी नही
अभी तक हिन्दु धर्म के धर्मगुरुओं ने केवल यही बताया है कि भक्ति करके स्वर्ग में जाने के बाद मनुष्य सुखी हो सकता है लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि स्वर्ग जाने के बाद फिर लौटकर संसार में आना पड़ता है। यह बात केवल संत रामपाल जी महाराज ने गीता अध्याय 8 श्लोक 16 से प्रमाणित किया है। जिसमें लिखा है कि ब्रह्मलोक अर्थात महास्वर्ग भी पुनरावृत्ति अर्थात जन्म-मरण के चक्र में है। जब स्वर्ग-महास्वर्ग ही नहीं रहेंगे तब साधक का ठीकाना कहां होगा, कृपया विचार करें। इसलिए जो तत्वदर्शी संत होते हैं, वे स्वर्ग-महास्वर्ग से भी ऊपर सतलोक को प्राप्त करने की साधना बताते हैं।
क्या सतलोक जाया जा सकता है?
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 श्लोक 62 व क़ुरआन शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 59 में प्रमाण है कि पूर्ण संत की शरण ग्रहण करके उसकी दी हुई भक्ति से सतलोक जाया जा सकता है तथा श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा श्लोक 16 व 17 में पूर्ण संत की पहचान बताई है कि जो उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी हिस्सों को समझा देगा, वही पूर्ण संत है।
वर्तमान में पूर्ण संत कौन है?
आज से 626 वर्ष पूर्व पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी स्वयं पूर्ण संत /तत्वदर्शी संत के रूप काशी में प्रकटे थे। सतज्ञान का प्रचार करते हुए 120 वर्ष की लीला करके वे सशरीर ही सतलोक चले गए थे। उन्होंने पूर्ण संत यानी सच्चे गुरु के बारे में बताया है कि –
“कबीर, सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरै बैन बिनोद।
चार वेद षट शास्त्र, वो कहै अट्ठारह बोध ।।”
भावार्थ है कि सच्चा गुरु (पूर्ण संत) वह होगा जो सभी धर्मग्रंथों और शास्त्रों का ज्ञाता होगा। वर्तमान समय में केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं जो सभी धर्मों के पवित्र सद्ग्रंथों से प्रमाणित ज्ञान व भक्ति प्रदान कर रहे हैं। साथ ही गीता अध्याय 15 के श्लोक 1- 4 के अनुसार भी वे ही पूर्ण संत, सच्चे गुरु और तत्वदर्शी संत हैं।