Guru Nanak Jayanti [Hindi]: गुरु नानक जयंती पर जानिए वाहेगुरु सतनाम का भेद

Guru Nanak Jayanti in hindi

Guru Nanak Jayanti: 15 नवंबर, 2024: गुरू नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत 15 अप्रैल सन 1469 राय भेरी की तलवंडी (ननकाना साहेब पंजाब पाकिस्तान) पश्चिमी पाकिस्तान में हुआ तथा मृत्यु 22 सितंबर 1539 करतारपुर में हुई।

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गुरु पर्व/गुरू नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) क्या है?

सिख धर्म को मानने वाले गुरु नानक देव जी के जन्मदिन को ही गुरु पर्व कहते हैं। श्री गुरु नानक देव जी के जन्मदिन को सिख धर्म के लोग बहुत ही हर्ष, आदरभाव और समाजसेवा के भाव के साथ मनाते हैं। इस साल यानी 2024 में गुरू नानक देव जी की 555वीं जयंती है जो कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर, 2024, दिन को मनाई जाएगी।

नानक जयंती / गुरु पर्व क्या संदेश देता है?

गुरु पर्व का मूल संदेश यह है कि सभी को सतभक्ति करते हुए मोक्ष पाना चाहिए। नानक जी ने भी सभी को यही शिक्षा अपने जीवन मे दी।

श्री गुरु नानक जी का संपूर्ण जीवन परिचय

श्री गुरु नानक जी सिख धर्म के प्रवर्तक और प्रथम गुरु हैं। बचपन से ही गुरु नानक देव जी गंभीर स्वभाव के थे। चिंतन, मनन, अध्यात्म से उन्हें बहुत ही ज़्यादा लगाव था। श्री गुरु नानक जी के पिता जी कालूराम मेहता खत्री जी ने इन्हें हिंदी, अरबी और फारसी का भी ज्ञान दिलवाया। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी था । नानक जी गीता का नित पाठ किया करते थे और अध्ययन के‌ लिए गुरु बृजलाल पांडे जी के पास जाया करते थे (कबीर जी से सतज्ञान प्राप्ति होने के पश्चात् विष्णु उपासना छोड़ दी थी)।

जब नानक जी 16 वर्ष के हुए तब इनकी शादी पंजाब के गुरदासपुर जिले की रहने वाली सुलक्खनी देवी के साथ हुई ‌। 32 वर्ष की आयु में इन को प्रथम पुत्र श्री चंद्र और 4 वर्ष पश्चात लक्ष्मी दास दो पुत्र प्राप्त हुए। श्री गुरु नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था और बहनोई का नाम जयराम था। जयराम जी ने नानक जी को सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ मोदी खाने में काम पर लगाया था।

गुरु नानक वचन, सच्चे सरकार की नौकरी करूंगा

गुरु नानक जी जब एक दिन बेई नदी पर स्नान करने गए और वहां पर जिंदा महात्मा के रूप में आए कबीर परमात्मा से साक्षात्कार हुआ फिर उन्होंने सुल्तानपुर के नवाब की नौकरी छोड़कर परमात्मा की सतभक्ति के प्रचार में लग गए और उनका कहना था कि अब मुझे सबसे बड़ी सच्चे सरकार (सतपुरूख, पूर्ण परमेश्वर ) की नौकरी करनी है।

Guru Nanak Jayanti: नानक जी ने कई देशों में किया था सतज्ञान प्रचार

  • गुरु नानक देव जी के अनेकों शिष्य थे किंतु बाला, मरदाना, लहना (गुरु अंगद देव) और रामदास जी उनके साथ रहते थे। श्री गुरु नानक जी ने लहना (गुरु अंगद देव) को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
  • श्री नानक जी ने हिंदुस्तान के बहुत से स्थानों ( हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, बीकानेर, पुष्कर, दिल्ली, सोनीपत, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, द्वारिका, नर्मदा तट, मुल्तान, लाहौर ), साथ ही साथ अफगानिस्तान और अरब देश का भ्रमण परमात्मा की खोज में किया। इनका अंतिम स्थान करतारपुर रहा, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है ( परमात्मा कबीर साहेब जी को गुरू बनाने के बाद सतज्ञान का प्रचार प्रसार किया) ।

नानक जी के पिछले जन्मों का वर्णन

गुरू नानक जी सतयुग में राजा अम्बरीश थे जो कि बहुत धार्मिक होने के साथ विष्णु जी के उपासक थे। त्रेतायुग में यही आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता थे। राजा जनक जी भी विष्णु जी के उपासक हुए। उस समय सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे। सुखदेव/शुकदेव जी जिन्होंने भागवत कथा कलयुग में राजा परीक्षित को सुनाई थी (जिनको तक्षक कालसर्प का सातवें दिन डसने का श्राप लगा हुआ था)। सुखदेव जी अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परंतु सुखदेव जी ने गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था और जब सुखदेव जी विष्णु लोक के स्वर्ग गए तो गुरु ना होने के कारण वापस आना पड़ा था । विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ था।

पहले के जन्मों में गुरु नानक देव जी राजा थे सैकड़ों, हज़ारों नौकर हुआ करते थे। परंतु फिर सतसाधना व सतभक्ति मार्ग न मिलने से पुण्यों को स्वर्ग में क्षीण (खत्म) करके स्वयं यही आत्मा कलयुग में नानक जी के रूप में पैदा हुए और सुल्तानपुर के नवाब के यहां मोदी खाने पर नौकर लगे। 

Guru Nanak Jayanti: नानक जी को बेई नदी पर कौन मिला था?

एक बार जब गुरु नानक देव जी बेई नदी में स्नान कर रहे थे तब सतपुरुष जिंदा महात्मा के रूप में आकर गुरु नानक देव जी को मिले। गुरु नानक देव जी से कुछ ज्ञान चर्चा हुई , वाद विवाद भी हुआ परंतु श्री नानक जी ने जिंदा महात्मा के रूप में आए सतपुरुष का ज्ञान स्वीकार नहीं किया। जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिले सतपुरुष ने श्रीमद भागवत गीता से उनको अनेकों ऐसे प्रमाण दिए कि जब उन्होंने घर पर जाकर उन श्लोकों को देखा तो पाया जिंदा महात्मा सही कह रहे थे और आत्म चिंतन किया तो पाया कि सतपुरुष ने जो कहा था वह सौ का सौ सत्य था।

Guru Nanak Jayanti: अब श्री नानक जी बेचैन हो उठे और मन ही मन यह सोच रहे थे कि एक बार वह जिंदा महात्मा फिर मिल जाएं तो उनसे ज्ञान चर्चा करूं। एक बार फिर जब वह नदी के किनारे नहा रहे थे तो जिंदा महात्मा के रूप में सतपुरुष दोबारा आकर श्री नानक जी को मिले। श्री नानक जी ने कहा कि जो आप ज्ञान बता रहे हैं वह है तो सत्य किंतु आज तक किसी ने बताया नहीं इसलिए विश्वास नहीं हो रहा।

अगर आप हमें सचखंड दिखा कर लेकर आएं तो हम ज़रूर यकीन कर लेंगे कि हां ब्रह्मा, विष्णु , महेश, दुर्गा माता, गणेश, ब्रह्म और परम ब्रह्म से ऊपर भी एक पारब्रह्म है जिसे पूर्ण ब्रह्म कहते हैं जो सचखंड में रहता है जिसे सतलोक कहते हैं। तब जिंदा महात्मा के रूप में आए सतपुरुष ने उनको अपनी शक्ति के माध्यम से वहां से गायब करके सतलोक लेकर गए, तीन दिन तक नानक जी को वहां अपने पास रखा।

नानक जी सतनाम प्राप्त करने के लिए काशी गए

जब नानक जी सचखंड गए तब उन्होंने पाया कि वह जिंदा महात्मा कोई और नहीं वास्तव में सत्यपुरुष अविनाशी परमात्मा पूर्ण ब्रह्म अकाल मूरत है और 3 दिन तक श्री नानक देव जी उस सत्यपुरुष के साथ रहे और वहां के सारे नज़ारे देखे, सतलोक की शोभा देखी, वहां की सुंदरता देखी और उनको जिंदा महात्मा के रूप में सतपुरुष की सभी बातों पर संपूर्ण यकीन हो गया । तब उस परमात्मा ने कहा कि इस वक्त मैं पृथ्वी पर हिंदुस्तान में काशी शहर में लीला कर रहा हूं। काशी शहर में मैं ही सत्य ज्ञान दे रहा हूं आप वहां आना मैं आपको सतनाम मंत्र उपदेश दूंगा।

सतभक्ति करके आप दोबारा सचखंड वापस हमेशा के लिए आ सकते हैं। ऐसा कहकर श्री नानक जी की आत्मा को पृथ्वी पर वापस छोड़ दिया बस जैसे ही श्री नानक जी की आत्मा पृथ्वी पर आई उनको एक ही चीज दिखाई दे रही थी, वह थी कि उनको सतनाम प्राप्त करना है और उस पूर्ण गुरु की खोज करनी है।

परमात्मा का निज स्थान सतलोक में देखने के बाद से गुरु नानक देव जी संसार से विरक्त हो गए थे।
इसके बाद श्री नानक जी ने पहली यात्रा आरंभ की जिसे उदासियां कहते हैं। उदासी इसलिए कहते हैं क्योंकि नानक जी अब परमात्मा के बिछोह में बहुत उदास रहने लगे थे उनका दिल अब यहां संसार में नहीं लग रहा था। वह बस सचखंड जाना चाहते थे। सत्य पुरुष के बताए अनुसार वे हिंदुस्तान में ढूंढते हुए काशी पहुंचे और वहां पर उन्होंने उस पूर्ण परमात्मा को देखा और गदगद हो गए और उन्होंने उस पूर्ण परमात्मा के लिए कुछ शब्द बोले जो साखी के रूप में श्री गुरु ग्रंथ साहिब में आज भी मौजूद हैं जो इस प्रकार हैं-

प्रमाण पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर पर शब्द नं. 29

शब्द – एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल।
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मैं पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।

श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि उस ईश्वर (धाणक कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति (साख) रहनी थी न ही कोई अच्छी करनी (कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक (सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार (काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे (नानक जी कहते हैं) एक तेरे नाम की आस है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम, क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।

Guru Nanak Jayanti: नानक जी ने कबीर जो को ठग/ठगवाड़ा कहा

मुझे धाणक (जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति (स्वरूप) बहुत प्यारी व मनमोहनी है तथा सुन्दर वेष भूषा (जिन्दा रूप में) में मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् लगता है धाणक (जुलाहा) फिर बन गया जिंदा महात्मा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया कि यह कोई नीच जाति का है, भगवान (पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं।

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काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए श्री नानक साहेब जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक (जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परंतु है बहुत महिमा (बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप में स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने (नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस (वाद-विवाद) की तथा उन्होंने (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा (नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी कहते हैं कि मैं (नानक जी) कुछ करने करने योग्य नहीं था।

फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ (ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच, दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने स्वामी-मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप (जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया। श्री गुरु नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूरी सोच समझ से कह रहा हूँ कि मुझे परमात्मा धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में मिले थे।

प्रमाण सहित जानते हैं कि नानक देव जी का गुरु कौन था?

हमें इस जानकारी के लिए सिख धर्म के पवित्र शास्त्र “श्री गुरु ग्रंथ साहिब” में से प्रमाण देखना होगा। नानक देव जी ने स्वयं बोली वाणियों में अपने परमेश्वर कबीर साहेब जी जो काशी शहर में रहते थे उनके विषय में ठोककर गवाही दी है:

  • ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पृष्ठ नं. 721

यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
दुनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।
मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।
आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।
गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।

इस वाणी में कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है।

श्री गुरु नानक देव जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत कबीर) आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्य ज्ञान वाली नज़र रहित तथा आपके सत्य ज्ञान के सामने निरुत्तर अर्थात ज़ुबान रहित हो गया हूं। हे कुल मालिक ! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूं मुझे शरण में रखना।

समाज (झूठों) की रीत रही है सच को दबाने की

इसके बाद में श्री नानक जी ने इस सच्चे ज्ञान को सभी को बताना चाहा, किंतु वे जिस से भी बोलते जिससे भी बात करते, वह सब उनका विरोध करते श्री नानक जी ने अपनी पूरी कोशिश की कि सभी को सचखंड का रास्ता बताया जाए परंतु कोई उनकी बातों को नहीं समझता।

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उनकी सच्चाई से आहत होकर नकली धर्मगुरुओं ने श्री नानक जी को जेल भी भिजवाया कि गुरु नानक जी गलत ज्ञान दे रहे हैं और समाज को भ्रमित कर रहे हैं जबकि गलत ज्ञान वे स्वयं दे रहे थे और नानक जी सच बोल रहे थे। अंततः सच्चाई की जीत हुई श्री नानक जी जेल से बाहर आए और उन्होंने ज्ञान प्रचार जारी रखा जिन लोगों ने श्री नानक जी से उपदेश लिया उनके अनुयाई सिख कहलाये ।

Guru Nanak Jayanti: सिख शब्द का अर्थ क्या है?

सिख शब्द का अर्थ शिष्य होता है और श्री नानक जी के अमृत ज्ञान को स्वीकार करने वाले लोगों को सिख कहा गया और इस प्रकार सिख धर्म की शुरुआत हुई। सिख धर्म में परमात्मा को सतपुरुष, सतपुरुख, अलख पुरुष, अकाल पुरख, अकाल मूरत, शब्द स्वरूपी राम, निरंकार (माया से रहित) कहा गया है।

सिख धर्म में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का महत्व

श्री गुरु ग्रंथ साहिब लगभग 40 महापुरुषों, संतों और भक्तों की वाणियों का संग्रह है। उन वाणियों में, काल ब्रह्म को पहचानने से लेकर परम अक्षर ब्रह्म अर्थात अलख पुरुष (सत्पुरुष) को पाने का भेद भी छुपा हुआ है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पढ़ने पर ज्ञान यज्ञ का भी बहुत लाभ प्राप्त होता है क्योंकि इसमें पूर्ण परमेश्वर की जानकारी दी गई है।

नानक जी द्वारा की गई उदासियों का अर्थ क्या है?

नानक जी ने परमात्मा को पाने की तड़प में जो यात्राएं की थीं उन्हीं को उदासियां कहा जाता है। सबसे पहली उदासी उनकी बनारस,काशी शहर के लिए थी क्योंकि पूर्ण गुरु और उनसे मिलने वाले सतनाम को पाने की तड़प में वह बहुत ही उदास रहते थे। गुरु नानक देव जी को दोनों ही काम करने थे एक तो सतनाम का जाप करके स्वयं का उद्धार करना और दूसरा इस सत्य ज्ञान का प्रचार करके समाज का भी उद्धार करवाना और भ्रमित समाज उनके ज्ञान को स्वीकार भी नहीं कर पा रहा था। इसलिए वे उदास और चिंतित रहते थे इसलिए उनकी सभी यात्राओं को उदासियां कहा जाता है।

Guru Nanak Jayanti: नानक जी ने बताया कि वह उदास क्यों रहते थे?

एक बार गुरु नानक देव जी से किसी ने पूछा कि आप हमेशा उदास और चिंतित क्यों रहते हैं?
“तब गुरु नानक देव जी ने उत्तर दिया कि

न जाने काल की कर डारे, किस विधि ढल जाए पासा वे।
जिना ते सिर ते मौत खुड़क दी, ऊना नूं कैड़ा हासा वे।।

नानक जी कहते हैं ये काल का लोक है यहां किस बात की खुशी मनाएं । न जाने यहां किस घड़ी मौत और ग़म आ जाए। यहां तो केवल रब के नाम का ही सहारा है और उसी के नाम से सच्ची खुशी मिलती है। एक वही तो है जो हर हानि और दुख से बचाता है। इस संसार में एक पल का भी भरोसा नहीं है यह काल भगवान कभी भी कुछ भी कर सकता है तो इस संसार में किस बात की खुशी मनाऊं।

तो उस व्यक्ति ने पूछा, “क्या आप कभी भी खुश नहीं रहते?

गुरु नानक देव जी ने उत्तर दिया, “नहीं मैं खुश होता हूं ! जब मेरी प्यारी संगत मुझसे मिलने आती है , परमात्मा का ज्ञान सुनती और समझती है और वह समाज के बहकावे में नहीं आए हुए होते हैं, तब मुझे खुशी होती है और जब वे चले जाते हैं तो दोबारा मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि पता नहीं समाज के द्वारा कब वह भी भ्रमित कर दिए जाएं और भ्रमित होने से उनके जीवन का नाश हो जाए।

श्री गुरु नानक जी ने जिंदा महात्मा सत्य पुरुष अर्थात पूर्ण परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान को प्रचारित करना शुरू किया और जिन लोगों ने श्री गुरु नानक जी के द्वारा दिए गए ज्ञान को स्वीकार किया उनके नियमों को माना वे उनके शिष्य कहलाए।

Guru Nanak Jayanti: भाई बाले वाली जन्म साखी

गुरु नानक देव जी, बाला, मरदाना, भक्त प्रह्लाद वार्ता और एक महापुरुष अवतार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

जागो रे परमेश्वर के चाहने वालों ! प्रकट हो चुका है  तारणहार “भाई बाले वाली जन्म साखी में प्रमाण”

जन्म साखी (जन्मसाक्षी) उन रचनाओं को कहते हैं जो सिखों के प्रथम गुरु नानक का जीवनचरित्र है। पंजाबी साहित्य में जन्मसाखियों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। व्यापक अर्थ में किसी भी महापुरुष के आध्यात्मिक जीवन वृत्तान्त को जन्मसाखी कहते हैं, जैसे ‘कबीर जी की जनमसाखी’, रैदास की जनमसाखी इत्यादि।

एक महापुरुष के विषय में भाई बाले वाली जन्म साखी में प्रह्लाद भक्त की भविष्यवाणी

भाई बाले वाली जन्म साखी में लिखा गया विवरण स्पष्ट करता है कि संत रामपाल जी महाराज जी ही वह अवतार हैं जिन्हें परमेश्वर कबीर साहेब जी तथा गुरु नानक देव जी के पश्चात पंजाब की धरती पर अवतरित होना था।

इस विषय में”जन्म साखी भाई बाले वाली” हिंदी वाली में जिसके प्रकाशक हैं :- भाई जवाहर सिंह कृपाल सिंह एंड कंपनी पुस्तकां वाले, बाज़ार माई सेवां, अमृतसर (पंजाब)।
पंजाबी वाली के प्रकाशक हैं:- भाई जवाहर सिंह कृपाल सिंह पुस्तकां वाले, गली- 8 बाग रामानंद अमृतसर पंजाब।

भाई बाले वाली जन्म साखी: नानक जी का कलयुग में बहुत नाम होगा

एक समय भाई बाला तथा मर्दाना को साथ लेकर गुरु नानक देव जी भक्त प्रह्लाद जी के लोक में गए जो पृथ्वी से कई लाख कोस दूर अंतरिक्ष में है। प्रह्लाद जी ने कहा कि हे नानक जी! आपको परमात्मा ने दिव्य दृष्टि दी कथा कलयुग में बड़ा भक्त बनाया है। आपका कलयुग में बहुत प्रताप होगा यहां पर प्रह्लाद के लोक में पहले कबीर जी आए थे और आज आप आए हैं ,एक और आएगा जो आप दोनों जैसा ही महापुरुष होगा।

इन तीनों के अतिरिक्त यहां मेरे लोक में कोई नहीं आ सकता। भाई भक्त बहुत हो चुके हैं आगे भी होंगे परंतु यहां मेरे लोक में वही पहुंच सकता है जो इन जैसी महिमा वाला होगा और कोई नहीं इसलिए इन तीनों के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आ सकता । मर्दाने ने पूछा कि हे भक्त प्रह्लाद जी! कबीर जी जुलाहा थे, नानक जी खत्री है, वह तीसरा किस वर्ण (जाति) से तथा किस धरती पर अवतरित होगा।

भाई बाले वाली जन्म साखी: बरवाला में आएगा परमेश्वर का भेजा संत

भक्त प्रह्लाद ने कहा सुनो:- गुरु नानक जी के सचखंड जाने के सैकड़ों वर्ष पश्चात पंजाब की ही धरती पर जाट वर्ण में वह जन्म लेगा तथा उसका प्रचार क्षेत्र शहर बरवाला होगा ।

यदि कोइ भ्रम उत्पन्न करे कि दस गुरु सहिबानों में से भी किसी की ओर संकेत हो सकता है इसके लिए स्मरण रहे कि दस सिख गुरू साहिबानों में से कोई भी जाट वर्ण से नहीं थे। दूसरे सिख गुरू श्री अंगद देव जी खत्री थे। तीसरे गुरु जी श्री अमर दास जी भी खत्री थे। चौथे गुरु जी श्री रामदास जी भी खत्री थे तथा पांचवे गुरु जी श्री अर्जुन देव जी से लेकर दसवें तथा अंतिम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक श्री गुरु रामदास जी की संतान खत्री थे।

फिर भी हम सभी सिख गुरू साहिबानों का विशेष आदर करते हैं। भाई बाले वाली जन्म साखी में लिखा गया विवरण स्पष्ट करता है कि संत रामपाल जी महाराज ही वह अवतार है जिन्हें परमेश्वर कबीर जी तथा गुरु नानक देव जी के पश्चात पंजाब की धरती पर अवतरित होना था।

संत रामपाल जी हैं विशेष संत/अवतार/महापुरुष

संत रामपाल जी महाराज 8 सितंबर सन 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत हरियाणा प्रांत (उस समय पंजाब प्रांत) भारत की पवित्र धरती पर जन्मे। संत रामपाल जी महाराज वही अवतार हैं जो अन्य प्रमाणों के साथ- साथ जन्म साखी में लिखे वर्णन पर खरे उतरते हैं।

Credit: Satlok Ashram

Guru Nanak Jayanti: वाहेगुरु सतनाम

जब श्री नानक जी ने पूर्ण परमात्मा को सतलोक में भी देखा तथा फिर बनारस (काशी) में जुलाहे का कार्य करते देखा तब उमंग में भरकर कहा था ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु तथा इसी उपरोक्त वाक्य का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके।

अब उन को कौन छुटाए, इस नाम के जाप को जो सही नहीं है। क्योंकि वास्तविक मंत्र को बोलकर नहीं सुनाया जाता। उसका सांकेतिक मंत्र ‘सत्यनाम‘ है तथा वाहे गुरु कबीर परमेश्वर को कहा है। इसी का प्रमाण संत गरीबदास साहेब ने अपने सतग्रन्थ साहेब में फुटकर साखी का अंग पृष्ठ न. 386 पर दिया है।

गरीब – झांखी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिक्खों के गल पड़ी, कौन छुटावै ताह।।
गरीब – हम सुलतानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, कांशी माहे कबीर हुआ।।

गुरु नानक जी ने कबीर जी की सतलोक में महिमा और काशी में उस परमात्मा को जुलाहे रूप में कार्य करता देखकर उमंग में कहा था “वाहेगुरु सतनाम”। सतनाम जो मोक्षदायिनी गुप्त मंत्र है जिसे वर्तमान में देने के अधिकारी केवल, संत रामपाल जी महाराज जी हैं। गुरू नानक जी का उद्धार कबीर परमेश्वर जी ने किया और आपका उद्धार संत रामपाल जी महाराज की शरण में जाने से ही होगा। गुरु नानक जी के द्वारा बोली गई वाणियो को सरलता से समझने के‌ लिए संत रामपाल जी महाराज जी के अमृत वचन सुनिए यूट्यूब चैनल सतलोक आश्रम पर।

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