प्रिय पाठकजनों! इस लेख के माध्यम से आज हम एक ऐसे आध्यात्मिक रहस्य का खुलासा करने जा रहे हैं, जिसे पढकर लोग दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाएंगे, आज का विषय है श्राद्ध कैसे करें? पाठको! हिंदू धर्म के अंदर काफी समय पहले से एक परंपरा चली आ रही है, जिसे श्राद्ध के नाम से जानते हैं। ब्राह्मण पंडित कहते हैं कि श्राद्ध के महीने में अपने पूर्वजों को एक दिन आहार अवश्य कराना चाहिए। आइए विस्तार से जानते है क्या है पूरी सच्चाई?
पितृ पक्ष के बाद मातृ पक्ष का श्राद्धकर्म भी जरूरी?
हमारे पवित्र शास्त्रों में, पितृ पक्ष के बाद मातृ पक्ष का श्राद्धकर्म करने का भी विधान लिखा है। पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक होती है, इस दौरान सभी पितरों और पूर्वजों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। दिवाकर पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष के बाद 3 अक्टूबर को मातामह यानि (नाना-नानी) का भी श्राद्ध करने का विधान है।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि आश्विन माह में इस दौरान हमारे पितृ प्रथ्वी पर आते हैं और ऐसे में उन्हें भोजन करवाकर अथवा मनवांछित भोजन खिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता हैं जिससे हमारे पूर्वज खुश होकर आशीर्वाद देते हैं और धन धान्य के परिपूर्ण करते हैं
श्राद्ध का अर्थ: ‘श्राद्ध’ शब्द संस्कृत के ‘श्रद्धा’ से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है विश्वास या श्रद्धा। यह एक ऐसा कर्म है जो पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाता है। वर्ष 2024 में पितृ विसर्जन अमावस्या 2 अक्टूबर को होगी तथा इस दिन पितरों का श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे। तथा अगले ही दिन यानी 3 अक्टूबर को मातृ पक्ष का श्राद्ध किया जाएगा, इस दिन नाना-नानी का श्राद्ध किया जायेगा जिससे उन्हें शांति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।
क्या श्राद्ध करने से होती है पूर्वजों की तृप्ती?
हिंदू धर्म और संस्कृति में आश्विन मास का विशेष महत्व है। यह प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है। यह मास न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक परिवर्तनों का भी प्रतीक भी माना जाता है। आश्विन मास, जो सामान्यतः सितंबर-अक्टूबर के महीनों में पड़ता है, हिंदू पंचांग के अनुसार छठा महीना माना जाता है। इस मास की विशेषता है इसमें आने वाला पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष, जो हिंदू परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस समयान्तराल में शरद ऋतु का आरंभ होता है यह समय प्रकृति में महत्वपूर्ण बदलावों का साक्षी होता है, जैसे तापमान में गिरावट और दिन की लंबाई में कमी। साथ ही किसानों के लिए यह समय विशेष रूप से खरीफ की फसलों की कटाई करने का होता है । इसके अलावा भी आश्विन मास में कई महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार आते हैं, जैसे नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दशहरा और शरद पूर्णिमा आदि आदि ।
श्राद्ध की अवधारणा और महत्व
श्राद्ध, जो आश्विन मास का एक प्रमुख अंग है, हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने की एक विधि है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि हर व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति ऋणी होता है। श्राद्ध इस ऋण को चुकाने का एक माध्यम है। श्राद्ध को मृत आत्माओं की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक माना जाता है। यह माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
आश्विन मास के पहले पखवाड़े को विशेष रूप से पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है। यह माना जाता है कि इस अवधि में पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा करते हैं।
Shradhh 2024: तिथि का निर्धारण
श्राद्ध का आयोजन मृतक की तिथि के अनुसार किया जाता है, जिसे हिन्दू पंचांग के अनुसार निर्धारित किया जाता है। प्रत्येक वर्ष, इसी दिन श्राद्ध का अनुष्ठान किया जाता है। वर्ष 2024 में पितृ विसर्जन अमावस्या 2 अक्टूबर को होगी तथा इस दिन पितरों का श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे। तथा अगले ही दिन यानी 3 अक्टूबर को मातृ पक्ष का श्राद्ध किया जाएगा, इस दिन नाना-नानी का श्राद्ध किया जायेगा।
शास्त्र अनुकूल साधना से होगा मोक्ष
मनुष्य जिन देवताओं की खोज में मंदिर और तीर्थ धामों में दौड़ता फिरता है, वे उसके भीतर बने कमलों में नियत स्थान पर विराजमान हैं। इसका पूरा विवरण शास्त्रों में है जिनकी जानकारी सन्त रामपाल जी महाराज अपने सत्संगों के माध्यम से देते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने कभी नहीं कहा कि इनकी साधना मत करो बल्कि ये बताया कि शास्त्रों में कहे अनुसार साधना करो।
“कबीर तीनों देवा कमल दल बसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।
प्रथम इनकी वंदना फिर सुन सतगुरु उपदेश”।।
श्राद्ध क्रियाओं का शास्त्रों में प्रमाण: क्या है वास्तविक विधि
गीता के अध्याय 9, श्लोक 25 के अनुसार, जो व्यक्ति पितरों की पूजा करता है, वह पितरों को प्राप्त करता है; जो देवताओं की पूजा करता है, वह देवताओं को प्राप्त होता है और जो परम अक्षर ब्रह्म की पूजा करता है, वह पूर्ण परमात्मा को ही प्राप्त होता है।
पवित्र श्रीमद्भागवत गीता में व्रत का उल्लेख
पवित्र गीता अध्याय 6, श्लोक 16 में कहा गया है कि, पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति न अधिक खाने वाले की न बिल्कुल ना खाने वाले की न ही ज्यादा जागने वाले की तथा न हीं ज्यादा शयन करने वाले की सफल होती है, इसलिए व्रत रखना शास्त्रों के अनुसार व्यर्थ सिद्ध हुआ है।
अब प्रश्न उठता है कि देवी दुर्गा की वास्तविक साधना क्या है?
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