Reality of Indian News Media: नमस्कार दोस्तों! आज के हमारे इस खास प्रोग्राम खबरों की खबर का सच में हम चर्चा करेंगे सार्थक पत्रकारिता की जिसके महत्व को ‘अकबर इलाहाबादी जी’ ने इन दो लाइनों में अच्छे से समझा दिया है।
खींचों न कमानों को, न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो, अखबार निकालो।।
दोस्तों सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज़ तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सभी तबकों तक पहुंचाने के दायित्व का पालन करना ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा पाया या (स्तंभ) भी कहा जाता है
पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त बनता है जब पत्रकारिता सामाजिक कर्तव्यों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभाये।
पत्रकारिता में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए इन सब पर पत्रकार को नज़र रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य सच्ची घटनाओं पर प्रकाश डालना और वास्तविकता को सामने लाना है। इसके बावजूद यह आशा की जाती है कि वह इस तरह काम करें कि ‘बहुजन हिताय’ की भावना सिद्ध हो। गांधी जी ने कहा था कि आज लोग पवित्र ग्रंथों से अधिक प्रेस पर विश्वास करते हैं।
महात्मा गांधी के अनुसार, ‘पत्रकारिता के तीन उद्देश्य होते हैं
पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाएं जागृत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को नष्ट करना है। गांधी जी ने पत्रकारिता के जो उद्देश्य बताए हैं, उन पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि पत्रकारिता का वही काम है जो किसी समाज सुधारक का हो सकता है।
पत्रकारिता नई जानकारी तो देता है, लेकिन वह इतने से संतुष्ट नहीं होता इसके साथ साथ वह घटनाओं, नई बातों, और नई व अहम जानकारियों की व्याख्या करने का प्रयास भी करता है। साथ ही घटनाओं का कारण, प्रतिक्रियाएं, उनकी अच्छाईयों और बुराइयों की विवेचना भी करता है।
भारत के नौवें राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के अनुसार, पत्रकारिता पेशा नहीं, अपितु जनसेवा का माध्यम है। लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने के साथ साथ शांति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में भी इसकी अहम भूमिका है।
Reality of Indian News Media
आइए अब समाज के विस्तृत क्षेत्र के संदर्भ में पत्रकारिता के उद्देश्य व दायित्व के बारे में चर्चा करते हैं। पत्रकारिता के उद्देश्यों में नई जानकारियाँ उपलब्ध कराना, सामाजिक जनमत को अभिव्यक्ति देना, समाज को उचित दिशा निर्देश देना, सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाना, धार्मिक- सांस्कृतिक पक्षों का निष्पक्ष विवेचन करना, सामान्य जन को उनके अधिकार समझाना, कृषि जगत व उद्योग जगत की उपलब्धियाँ जनता के सामने लाना, सरकारी नीतियों का विश्लेषण और प्रसारण करना, स्वास्थ्य जगत के प्रति लोगों को सतर्क करना, सर्वधर्म समभाव को पुष्ट करना, संकटकालीन स्थितियों में राष्ट्र का मनोबल बढ़ाना, वासुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रसार करना, और समाज में मानव मूल्यों की स्थापना के साथ जन जीवन को विकासोन्मुख बनाना पत्रकारिता का दायित्व माना गया है। पत्रकारिता के सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व के अनेकानेक आयाम हैं। अपने इन उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के लिए पत्रकार का एक हाथ हमेशा समाज की नब्ज़ पर होना अनिवार्य है। चूंकि पत्रकारिता का अंतिम लक्ष्य राष्ट्रहित ही होता है।
Reality of Indian News Media: आइए अब पत्रकारिता के धर्म की बात करते हैं
पत्रकारिता का पहला धर्म होता है: ” निष्पक्षता “
पत्रकार की लेखनी तब ही प्रभावी हो सकती है। जब निष्पक्ष होकर पत्रकारिता करें। आज की पत्रकारिता में इसकी बहुत आवश्यकता है। देश के पत्रकारों और पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। लेकिन निष्पक्ष रहकर पत्रकारिता करना एक पत्रकार का परम धर्म माना गया है।
पत्रकारिता का दूसरा धर्म होता है: ” सत्य के लिए संघर्ष करना “
पत्रकारिता का संपर्क सबसे और मित्रता सिर्फ सत्य से होनी चाहिए। आज समाज में नकारात्मक पत्रकारिता बढ़ती जा रही है। समाचार का विश्लेषण जरूरी है। आखिर कोई घटना क्यों घटी? इसकी जानकारी आमजन को मिलनी चाहिए। पत्रकार की तुलना अक्सर सीमा पर तैनात जवान से की जाती है, क्योंकि पत्रकारिता का धर्म सत्यता के लिए संघर्ष करना होता है।
पत्रकारिता का तीसरा धर्म होता है: ” मानवीय मूल्यों की रक्षा करना “
बदलते परिवेश में पत्रकारों के समक्ष कई चुनौतियां हैं। ऐसे में मानवीय मूल्यों की रक्षा करना पत्रकारिता का धर्म है। सरकार व प्रशासन को मीडिया के माध्यम से तथ्यों की जानकारी मिलती है। इसके जरिए प्रशासन पर दवाब बनता है और उसके कारण ही समस्याओं का समय पर समाधान हो पाता है। इसके लिए ज़रुरी है कि पत्रकार स्थापित मूल्यों को ध्यान में रखकर निर्भीक तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वाह करें।
पत्रकारिता का चौथा धर्म होता है: ” सामाजिक हित “
पत्रकारिता का मूल धर्म समाज का हित करना ही होता है। समाज कल्याण व सुधार के कार्यों में सहायता करना व इनमें बाधा उत्पन्न करने वाले तत्वों का विरोध करना ही पत्रकारिता का धर्म है।
पत्रकारिता का पांचवा धर्म होता है: ” अन्याय का पर्दाफ़ाश कर न्याय के लिए लड़ना “
पत्रकारिता को संविधान का चौथा खंभा भी इसलिए ही कहा गया है क्योंकि यह अन्याय को लोगों के सामने उजागर कर न्याय के लिए लड़ना सिखाता है। न्याय व्यवस्था को कायम रखने के लिए ज़रूरी है कि सूचनाओं की स्वतंत्रता और प्रामाणिकता हो।
दोस्तों परेशान करने वाली बात यह है कि पत्रकार और मीडिया हाउसेस आज स्वयं गुलाम हो गए हैं
आज देश के मीडिया और उसके बिज़नेस पर पुरी तरह से किसी और का कंट्रोल हो चुका है।आज का मीडिया स्वतंत्र नहीं है। मीडिया पर कंट्रोल का मतलब है, आपकी नागरिकता का दायरा छोटा हो जाना। वर्तमान समय में पत्रकारिता की भाषा में दो तरह के नागरिक शामिल हो गए हैं – एक, है नेशनल और दूसरा, एन्टी-नेशनल। एन्टी नेशनल वह है, जो सवाल करता है, और असहमति रखता है। और जो सरकार की नीतियों की प्रशंसा करता है और उसमें अपनी सहमति रखता है केवल वही लोग नेशनल के नज़रिए से देखा जाने लगा है।
Reality of Indian News Media: आपको बात दें की ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक पत्रकारिता में भारत 180 में से 142वें स्थान पर आया है, जो कि बेहद शर्मनाक है। यह स्थान दर्शाता है कि भारत में गलत सूचनाओं का प्रसार किस स्तर पर होता है। इसके साथ साथ यह भी दर्शाता है कि पारदर्शिता के इस युग में भी भारत में फैक न्यूज़ और येलो जर्नलिज़्म का बोलबाला चरम सीमा पर है।
वर्तमान समय में हो रही पत्रकारिता के ज़रिए यदि अगर आप किसी डेमोक्रेसी को समझने का प्रयास करेंगे, तो यह एक ऐसे लोकतंत्र की तस्वीर बनाता है, जहां सारी सूचनाओं का रंग एक है। यह रंग कभी सत्ता के रंग से मेल खाता है तो कभी विपक्ष के रंग से मेल खाता है। एक तरह से सवाल फ्रेम किए जा रहे हैं, ताकि सूचना के नाम पर गलत धारणा फैलाई जा सके।
Reality of Indian News Media: एंकर, जो अब बोलता कम और चिल्लाता ज़्यादा है
स्टूडियो में मेकअप से ढका एंकर अब बोलता नहीं है, चीखता है। चीखने चिल्लाने, और डिबेट में लड़े बिना शायद अब भारतीय टीवी एंकर्स अपना काम कर ही नहीं सकते। वर्तमान समय में मेनस्ट्रीम और TV मीडिया का ज़्यादातर हिस्सा गटर हो गया है। आज जनता सूचना के क्षेत्र में अपने स्पेस की लड़ाई लड़ रही है, तथ्यों को खोजने कि इस दौड़ में सैकड़ों लोगों ने टीवी देखना व अखबार पढ़ना भी छोड़ दिया है।
सूचनाओं के लिए वे नए फ्रीलांसर पत्रकारों ध्रुव राठी, आल्ट न्यूज, क्विंट, वायर, न्यूज़ लॉन्ड्री जैसे इंडिपेंडेंट यूट्यूब चैनल, और ऑनलाइन न्यूज़ वेब पोर्टल का सहारा लेने लगे हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि अख़बार दुरुस्त नहीं रहेंगे, तो फिर हिन्दुस्तान की आज़ादी किस काम की। आज अख़बार और टीवी मीडिया डर गए हैं। तथ्यों को छापने की बजाय फैक न्यूज़ दिखाकर प्रोपोगेंडा फैला रहे हैं।
दोस्तों, क्या आपको नहीं लगता कि अब नागरिक बने रहना थोड़ा मुश्किल हो गया है
सही और सटीक सूचना प्राप्त करने की इस लड़ाई में लोगों को नागरिक बनने के साथ साथ एक दर्शक बनने की भी तैयारी करनी पड़ रही है। दर्शक बनने से यह मतलब है की, सूचना प्राप्त करने से पहले सूचना की परख करना, इसके लिए एक से अधिक स्रोत से सूचनाओं को लेना अनिवार्य होता है। क्योंकि वर्तमान समय में न्यूज का फैक्ट चेकिंग और विश्लेषण अब दर्शकों को खुद करना पड़ रहा है।
Reality of Indian News Media: अधिकतर न्यूज़ चैनल्स जैसे Zee न्यूज़, आजतक, एबीपी न्यूज़, रिपब्लिक टीवी, इंडिया टीवी आदि सरकार से खुलकर सवाल नहीं पूछते उल्टा जनता को ही सवाल के कटघरे में खड़ा कर देते हैं क्योंकि यह सरकार की गुड बुक्स में बने रहना चाहते हैं। दूसरी तरफ एनडीटीवी, न्यूज़ 24, टाइम्स नाउ, न्यूज़ लॉन्ड्री, आदि टीवी चैनल्स हैं जो खुलकर सरकार की आलोचना तो करते हैं लेकिन कई बार विपक्ष से प्रश्न करना भूल जाते हैं।
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वर्तमान समय में मीडिया एक पॉलिटिकल एजेंडा का साधन नज़र आने लगा है। सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए ग्राउंड लेवल की रिपोर्टिंग भी कम होने लगी है। स्टूडियो में बैठ कर ही खबरों का विश्लेषण करने वाले पत्रकार न्यूज़ रूम से ही जान लेते हैं कि देश के कौने कौने में क्या घटनाएं घट रही हैं। सबसे पहले खबर दिखाने की इस दौड़ में आजकल तथ्यों को बरकरार रखने की कोई नहीं सोचता। ऐसे समय में बीबीसी इंडिया ने ” स्लो न्यूज़ ” का अनोखा तरीका अपनाया है। उन्होंने कहा है की देर से ही सही, लेकिन सही, सटीक और प्रमाणित खबर ही दिखाएंगे।
Reality of Indian News Media: Alt News
ऐसे में आल्ट न्यूज़ जैसे छोटे न्यूज़ पोर्टल ” फैक्ट चेकिंग ” कर गलत खबरों का पर्दाफाश करते हैं। चंद लोगों द्वारा चलाए जा रहे इस न्यूज़ पोर्टल से बड़े बड़े अखबारों और न्यूज़ चैनलों की गलत खबरों का प्रमाणों के साथ पर्दाफाश किया जाता है। इसके अलावा सैकड़ों यूट्यूब चैनलों पर पारदर्शिता के साथ मैन स्ट्रीम मीडिया से बेहतर रिपोर्टिंग और पत्रकारिता निभाई जा रही है।
Reality of Indian News Media: जैसा कि सारा देश जानता है कि अर्णब गोस्वामी जैसा पत्रकार टीआरपी के लिए क्या कुछ नहीं कर जाता। वहीं दूसरी ओर लगभग 90% मीडिया सरकार की योजनाओं को पारदर्शिता के साथ दिखाने की बजाय उनकी अंधाधुंध प्रशंसा इस प्रकार करती है जिससे ऐसा लगता है कि यह भारतीय मीडिया नहीं बल्कि सरकारी मीडिया है। ऐसे समय में भी रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई और संदीप चौधरी जैसे कई अन्य पत्रकार हैं जो सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना करते हैं और सरकार से खुलकर सवाल करते हैं, सरकार के सैकड़ों घोटालों को दर्शकों के सामने रखते हैं, ये अलग बात है कि सरकार इन पर विशेष ध्यान नहीं देती और ना ही इनके किसी प्रश्न का जवाब देती है।
दोस्तों, क्या आपको ऐसा लगता है कि भारत देश की मीडिया बिकाऊ हो चुकी है?
पत्रकारिता एक ऐसा धर्म है जो कभी बिक नहीं सकता। इसका सीधा सा अर्थ तो यही बनता है कि देश की बिकाऊ मीडिया जो कार्य कर रही है उसे पत्रकारिता नहीं कहा जा सकता। देश के लगभग हर टीवी चैनल पर एक जैसी ही खबर प्रसारित होती है, एक ही न्यूज एंगल का इस्तेमाल होता है। एक तरफा खबरों के इस दौर में सूचना नहीं बल्कि प्रोपोगेंडा फैलाया जाता है। आप चाहे कितने भी न्यूज़ चैनल बदल लें सब पर लगभग एक जैसी खबर ही दिखाई जाने लगी है। कुछ इक्का दुक्का न्यूज़ चैनल कुछ हटकर दिखाने का प्रयास करते हैं लेकिन वे इस भारी भीड़ के दबाव में ऊपर नहीं उठ पाते।
दोस्तों, क्या आपको ऐसा लग रहा है कि मीडिया जनता को गुमराह कर रही है?
सच्ची निष्ठा से पत्रकारिता निभाने वाले आज देश में चुनींदा हैं। कोई भी मीडिया हाउस आज जनता कि आवाज़ नहीं बन पा रहा है। पत्रकारिता का एक मूल उद्देश्य यह भी होता है कि वे जनता की आवाज़ बने और उसे सरकार तक पहुंचाए ताकि उन्हें न्याय मिल सके। लेकिन आज की मीडिया स्वतंत्र नहीं है, बल्कि किसी और एजेंडे से चलने वाली मीडिया फालतू खबरें दिखाकर काम के मुद्दों से देश की जनता का ध्यान हटाकर उन्हें गुमराह करती है। देश की जनता कि आवाज़ को दबाकर उनका शोषण करने वाली मीडिया को सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है। ऐसे में जनता के लिए देश की न्यायपालिका ही एकमात्र विकल्प रह गई है।
Reality of Indian News Media: मीडिया का काम होता है जनहित का कार्य करना, जनता कि आवाज़ को सरकार तक पहुंचाना। यदि आप अभी इस समय टीवी पर किसी भी न्यूज़ चैनल को चला कर देखेंगे तो यही पाएंगे की मीडिया जनता की आलोचना कर जनता को ही दोषी करार कर रही है। लोकडाउन के समय रिया चक्रवर्ती, राफेल विमान, और कंगना रनौत, की खबरें दिखा दिखा कर सैकड़ों लोगों के जीवन को बर्बाद करने वाले अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों को इन मीडिया हाउसों द्वारा दबाया दिया गया। लोगों के साथ हो रहे अन्याय को दिखाना तो मानो मीडिया का अब कर्तव्य ही नहीं रहा। कई ऐसी बड़ी खबरें होती हैं जिसे मैन स्ट्रीम मीडिया दिखाती ही नहीं है।
Lockdown के समय कई राज्यों में मजदूरों द्वारा कई जगहों पर आन्दोलन किया गया था, परिणामस्वरूप सरकार ने कई दिनों तक इंटरनेट सुविधा भी बंद कर दी थी, इसका कवरेज देश की मीडिया ने कभी नहीं दिखाया। NRC आन्दोलन हो या किसान आंदोलन या छात्र आंदोलन या किसी अबला का बलात्कार होने के बाद उसके द्वारा न्याय पाने की जंग इसके कवरेज को दबाने की भी अपने कर्तव्य से भटक चुका मीडिया बहुत कोशिश करता है। जब देश का शासक अधर्मी और मीडिया ग़ुलाम हो गया हो तो भी एक उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है।
Reality of Indian News Media: सच्चाई से रखता है दूर
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में उनके लाखों अनुयाई समाज सुधार का कार्य बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। Lockdown के समय में संत जी के आश्रम में सैकड़ों मजदूरों को मुफ्त भोजन, राशन व रहने की सुविधा दी गई थी। दहेज रूपी दानव को जड़ से खत्म करने के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिन प्रतिदिन सैकड़ों दहेज मुक्त विवाह करवाए जा रहे हैं। इसके अलावा रक्त दान, देह दान, गरीबों को भोजन, राशन आदि भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। प्रति वर्ष कबीर साहेब प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में लाखों लोगों के लिए भंडारा आयोजित किया जाता है। भारत वर्ष का सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद भी देश की मैन स्ट्रीम मीडिया इसका कवरेज कभी नहीं करती और न ही नशा मुक्त भारत अभियान,दहेज मुक्त विवाह और बिना खर्च और दवा के ठीक हो रहे लोगों के विचार ही जानने के लिए संत रामपाल जी के आश्रम जाकर सच्चाई जानने का प्रयास ही करती है।
अफसोस की बात ये है कि देश के पत्रकार निर्भिक, सच्ची और निष्पक्ष पत्रकारिता करना भूल चुके हैं और मीडिया चैनल फैक न्यूज़ दिखाकर सरकार की चम्मचागिरी कर अपना व्यापार चमका रहे हैं। राह से भटक चुके पत्रकारों को चाहिए की अपना कार्य ईमानदारी से करें और भगवान का डर रखें और अपनी ग़लती सुधार करके एक सच्चे पत्रकार होने का फ़र्ज़ निभाएं ताकि जनता और समाज दोनों उन्नत हो सकें तथा साथ ही सार्थक पत्रकारिता दोबारा से जन्म ले सके। धन्यवाद।