जल ही जीवन है यह हमने कई जगहों पर लिखा देखा है, लेकिन क्या हम अपने जीवन अर्थात जल को बचाने में सहयोग कर रहे हैं ? जहां एक और हम जल ही जीवन है जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं वहीं दूसरी ओर इसी जल को प्रदूषित करने में हम पीछे नहीं रहते ! हमारी ही गलतियो की वजह से हमारा जीवन अर्थात जल आज संकट में है यानी कि प्रदूषित हो रहा है और यह कार्य किसी और के द्वारा नहीं हमारे ही द्वारा किया जा रहा है !
यदि आज देखा जाए कि जल प्रदूषण का सबसे बड़ा और मुख्य कारण क्या है ? तब यही सामने आएगा कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओ कि पूर्ति तथा स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर रहा है ! आज मनुष्य अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका है कि भविष्य में आने वाले महासंकट से अनभिज्ञ बनकर केवल वर्तमान को देखते हुए अपने स्वार्थवस प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने में लगा हुआ है , जल प्रदूषण इसी का परिणाम है !
जल प्रदूषण क्या है ?
परिभाषा : –
“ जल में किसी पदार्थ के मिलाने अथवा किसी भी प्रकार से जल के भौतिक एवं रासायनिक लक्षणों में ऐसा परिवर्तन करना जिससे कि जल की उपयोगिता प्रभावित हो जल प्रदूषण कहलाता है ! “
जल प्रदूषण के स्रोत / कारण
2.1 वाहित माल : –
वाहित मल में मुख्यतः कार्बनिक पदार्थ, मानव मल, घरेलू अपशिष्ट, साबुन तथा अन्य अपमार्जक पाए जाते हैं यह जल स्रोत में मिलकर जल प्रदूषण करते हैं ! वाहित मल तालाबो, झीलों एवं नदियों के जल में मिलते रहते हैं। यह प्रक्रिया लगातार होने तथा जल स्रोत की ठीक से सफाई नहीं होने से जल प्रदूषित हो जाता है और उपयोग के लायक नहीं रहता है।
2.2 औद्योगिक बहिः स्त्रावी पदार्थ : –
विभिन्न औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले पदार्थों में अकार्बनिक तथा कार्बनिक दोनों प्रकार के प्रदूषक पाये जाते हैं, जैसे तेल, ग्रीस, प्लास्टिक,प्लास्टिसाइजर, धात्विक अपशिष्ट तथा निलम्बित ठोस, फीनॉल्स आदि। इनमें से अनेक प्रदूषक अपघटित नही होते और गंभीर समस्या उत्पन्न करते हैं ! इसी प्रकार कोयले की खानों से निकला सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) गम्भीर प्रदूषक का कार्य करता हैं जो न केवल जल की कठोरता बढ़ाता है बल्कि जीवों पर हानिकारक प्रभाव भी डालता है !
2.3 कृषि विसर्जित पदार्थ : –
कृषि को आधुनिक पद्धति में अनेक प्रकार के रासायनिक उर्वरकों, पीड़कनाशियों तथा अन्य मृदा एडिटिव्स का प्रयोग किया जाता है। इन पदार्थों की कुछ मात्रा सिंचाई, वर्षा, जल निकास के माध्यम से नदियों एवं तालाबों में पहुँचकर प्रदूषण की समस्या उत्पन्न करते हैं।
रासायनिक उर्वरकों एवं संश्लेषित चारे के अत्यधिक प्रयोग से प्रायः जल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। मानव अथव जन्तुओं के लिए जब ऐसा जल पीने के उपयोग में लाया जाता है तब ये नाइट्रेट शरीर के अन्दर पहुँच जाते हैं जहाँ आँत में स्थि जीवाणु नाइट्रेट को जहरीले नाइट्राइट में परिवर्तित कर देते हैं। नाइट्राइट रुधिर की हीमोग्लोविन के साथ संयोजित होकर मीथेमोग्लोवि बनाते हैं जिससे रुधिर की ऑक्सीजन परिवहन क्षमता कम हो जाती है। इस व्याधि को मीथेमोग्लोबिनेमिट या ब्लू बेबी सिन्ड्रोम कहते हैं। यह एक घातक व्याधि है जिससे कैंस भी हो सकता है !
2.4 भौतिक प्रदूषण
रासायनिक उद्योगों, तापीय एवं न्यूक्लियर पाँवर संयन्त्रों में जल का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में होता है। इन संयंत्रों में प्रयुक्त होने के बाद जल बहुत अधिक गर्म हो जाता है।और जब यह जल नदियों या झीलों में डाला जाता है तो इसके कारण जलीय जीवन अत्याधिक प्रभावित होता है। इसे ही तापीय प्रदूषण कहते हैं !
जल प्रदूषण के प्रभाव / परिणाम
जल प्रदूषण का प्रभाव बहुत हानिकारक होता है इससे मानव तो बुरी तरह प्रभावित होता ही है साथ ही जलीय जीव जंतु तथा जलीय पादप और पशु पक्षी भी प्रभावित होते हैं
3.1 जलीय पादपो पर प्रभाव : –
- प्रदूषित जल में शैवाल तेजी से उगने लगते हैं और कुछ विशेष प्रकार के पौधों को छोड़कर शेष सभी जलीय पादप नष्ट हो जाते हैं !
- नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की अधिकता के कारण जल सतह पर काई की अधिकता होने से सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुंच पाता जिससे जलीय जीव की प्रकाश संश्लेषण क्रिया और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है !
- प्रदूषित जल में प्रदूषकों के कारण कुछ जलीय खरपतवार जैसे जलीय फर्न आदि की वृद्धि हो जाती है !
- मलयुक्त जल में कवक, शैवाल, बैक्टीरिया आदि तेजी से बढ़ना शुरू हो जाते हैं उन्हें मल कवक कहते हैं जो जल की सतह पर एकत्रित हो जाते हैं !
- औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ जल की सतह पर फैल कर जलीय पादपो की श्वसन क्रिया को प्रभावित करते हैं !
3.2 जलीय जंतुओं पर प्रभाव : –
- जल में BOD अर्थात बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा में कमी के कारण जलीय जंतुओ की संख्या कम होने लगती है !
- जल के प्रदूषित हो जाने के कारण स्वच्छ जल में रहने वाले जंतु धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं !
- मछलियों में तरह-तरह की बीमारियां हो जाती है !
- जल स्रोत के आसपास रहने वाले जीव जंतु भी प्रदूषण जल के उपयोग के कारण प्रभावित होते हैं !
3.3 मनुष्य पर प्रभाव
- पप्रदूषित जल में कई प्रकार के रोगजनक, विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ आदि उत्पन्न होने लगते हैं ,ऐसे प्रदूषित जल को पीने से कई प्रकार की जानलेवा बीमारियां ; जैसे – हेपेटाइटिस, हैजा, अमिबीय पेचिश, डायरिया आदि का संक्रमण हो जाता है !
- बहुत सी भारी धातु है जैसे कैडमियम, मर्करी, क्रोमियम, निकिल, जिंक आदि बड़े-बड़े उद्योगों तथा कृषि क्षेत्र से निकलकर पीने वाले जल की वितरण प्रणाली में मिलकर गंभीर समस्या उत्पन्न करते हैं !
- नाइट्रेट युक्त पानी पीने से कैंसर जैसी बीमारी उत्पन्न होती है जो की एक लाइलाज बीमारी है !
- प्रदूषण जल के पीने से कई प्रकार की संक्रामक बीमारियां उत्पन्न हो जाती है !
प्रमुख जल स्रोत संकट में
आज जल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या के रूप में हमारे सामने है जिसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं ! आज जो जल प्रदूषण की समस्या का हम सामना कर रहे हैं वह हमारे द्वारा किए गए क्रियाकलापों का ही परिणाम है ! हमारे द्वारा किए गए इन क्रियाकलापों के कारण आज हमारा एक प्राकृतिक संसाधन जल संकट में है ! यदि देखा जाए तो कोई भी ऐसा जल स्रोत नहीं बचा है जो प्रदूषण से रहित हो ! वर्तमान में छोटे जल स्रोत ; जैसे तालाब, पोखर, झील, से लेकर बड़े जल स्रोत; जैसे नदियां, बड़े तालाब, समुद्र आदि का जल भी प्रदूषण हो रहा है !
हमारे पवित्र नदियां आज प्रदूषण का कहर जेल रही है गंगा नदी जिसे बहुत ही पवित्र नदी माना जाता है यह भी इस प्रदूषण से अछूती नहीं है आज गंगा नदी में भी प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक हो गई है की यह जल पीने योग्य नहीं बचा है यदि इसे बिना फिल्टर किया उपयोग किया जाए तो !
यमुना नदी की स्थिति का अंदाजा आप इस तस्वीर को देखकर लगा सकते हैं की यमुना नदी में प्रदूषण का स्तर कितना अधिक बढ़ रहा है ! दिल्ली के कुल कचरे की आधे से भी अधिक मात्रा यमुना में डाली जाती है, जिससे इस पवित्र नदी का क्षरण हो रहा है। कूड़ा-कचरा निपटान और सीवेज निकासी की वजह से अब यमुना नदी भारत की सबसे प्रदूषित नदी बन गई है। यमुना नदी में बढ़ता हुआ जल प्रदूषण हमारे देश की धरोहर ताजमहल के लिए घातक सिद्ध हो रहा है !
मानव मल और पशु अपशिष्ट का निपटान, बढ़ती जनसंख्या घनत्व और गंगा नदी में औद्योगिक अपशिष्ट का निपटान नदी में जल प्रदूषण बड़ाने के सबसे मुख्य कारण हैं। इसके साथ ही मानव द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट के कारण भी गंगा का पानी दूषित हो गया है ! गंगा नदी लगभग 200 शहरों से होकर गुजरती है, जिसमे कुल आबादी लगभग 150,000 से 200,000 है, और 48 बस्तियाँ हैं ! गंगा में सीवेज के पानी की एक बड़ी मात्रा के लिए यह जनसंख्या ज़िम्मेदार है, इस पानी का कार्बनिक भार बहुत अधिक होता है!
गंगा के तट पर कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पटना जैसे अनेक औद्योगिक शहरों की स्थापना के साथ-साथ अनेक चमड़े के कारखाने, रासायनिक संयंत्र, कपड़ा मिलें, शराब बनाने की भट्टियां, बूचड़खाने और अस्पताल फलते-फूलते और विकसित होते हैं, तथा ये शहर गंगा में अनुपचारित अपशिष्ट डालकर सक्रिय रूप से गंगा को प्रदूषित करने में योगदान देते हैं !
धर्म की परंपराएँ भी गंगा के प्रदूषण का कारण है! त्योहारों के समय 70 मिलियन से अधिक व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति के लिए गंगा स्नान करने आते हैं जिनके द्वारा गंगा में सामान, जैसे कि भोजन, कूड़ा-कचरा या पत्ते, फेंके जाते हैं, जो गंगा जल में प्रदूषण का कारण है। पारंपरिक गलत मान्यताओं के अनुसार गंगा के तट पर दाह संस्कार करने और नदी में प्रवाहित करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है,जिस कारण प्रति वर्ष वाराणसी में लगभग 40,000 मृत शरीरों को जलाया और गंगा में बहाया जाता है !
जल प्रदूषण नियंत्रण
नगर पालिका वाहित मल में शहरों एवं कस्बों से निकली गंदगी, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु होते हैं जो कई प्रकार की संक्रामक बीमारियां पैदा करते हैं इस वाहित मल से नदी, तालाब, झील आदि जल स्रोतों का पानी प्रदूषित होता है ! इस समस्या के उपचार के लिए वाहित मल का शुद्धिकरण करना आवश्यक होता है !
वाहित मल के शुद्धिकरण में सबसे पहले प्राथमिक उपचार के रूप में जल में उपस्थित गंदगी को विशेष निस्यंदन यंत्रों द्वारा छानकर अलग किया जाता है ! प्राथमिक उपचार की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद द्वितीयक उपचार की प्रक्रिया शुरू की जाती है जिसमें प्राथमिक उपचार में प्राप्त गंदगी को संयंत्र की तली में नीचे बैठने दिया जाता है ! जिसके कारण कार्बनिक पदार्थ तथा अकार्बनिक पदार्थ अलग-अलग हो जाते हैं और बचा हुआ कार्बनिक पदार्थ जल में निलंबित एवं घुलित अवस्था में बच जाता है !
अब द्वितीयक उपचार से प्राप्त पदार्थ का खनिजीकरण किया जाता है ! परिणाम स्वरूप वह अकार्बनिक पदार्थ में बदल जाते हैं जिसके बाद इसमें ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाती है ! ऑक्सीजन हरे शैवालो की प्रकाश संश्लेषण क्रियाओ द्वारा उत्पन्न होती है इस प्रकार शैवाले गंदे जल में जीवाणुओं को अपनी प्रकार संश्लेषण क्रियाओ द्वारा ऑक्सीजन उपलब्ध कराती है और बदले में जीवाणु जटिल कार्बनिक पदार्थ के ऑक्सीकरण द्वारा शैवलो को पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं वाहीत मल के उपयुक्त शुद्धिकरण प्रक्रिया के लिए विशेष प्रकार के खुले तालाबों का प्रयोग किया जाता है इस प्रकार तृतीयक उपचार की प्रक्रिया पूरी होती है !
जल प्रदूषण रोकथाम के लिए कुछ अन्य कार्य भी किया जाना आवश्यक है जैसे की –
- जल स्रोतों के आसपास विशेषकर नदियों तालाबों के निकट किसी भी प्रकार के औद्योगिक कारखाने नहीं बनाए जाने चाहिए !
- शहरों तथा नगरों से निकलने वाला सीवेज का पानी को डायरेक्टली नदी के जल में प्रवाहित नहीं किया जाना चाहिए इस प्रकार के जल को सर्वप्रथम उपचारित किया जाना चाहिए उसके बाद ही नदियों के जल में मिलाया जाना चाहिए !
- कारखाने से निकलने वाले अपशिष्ट जैसे बेकार तेल तथा धातु युक्त पदार्थ तथा अन्य हानिकारक पदार्थ को जल स्रोतों में नहीं मिलना चाहिए !
- घरों से निकलने वाले कूड़े करकट को नगरों अथवा शहरों से दूर गहरे गड्ढे बनाकर उनमें दवा देना चाहिए !
- पशुओं को नदी, तालाब आदि में नहीं नहलाना चाहिए साथ ही पशुओं तथा बच्चों को तालाबों में मलमूत्र नहीं त्यागने देना चाहिए !
- नदियों में मृत शरीर तथा उनके अवशेष नहीं बहाने चाहिए !
- कुछ जल स्रोत जैसे कुए आदि में पोटैशियम परमैग्नेट डालना चाहिए !
- जल स्रोतों की समय-समय पर अच्छी प्रकार से साफ सफाई की जानी चाहिए !
- आम जन समाज को जल प्रदूषण रोकने में आगे आकर सहयोग करना ! चाहिए जल प्रदूषण रोकना हमारी जिम्मेदारी है !
- जल प्रदूषण रोकने हेतु सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए तथा जल प्रदूषण रोकने हेतु बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए तथा अन्य जन समाज को भी जागरूक करना चाहिए !
- एक जिम्मेदार नागरिक की तरह हमें हमारे आसपास के क्षेत्र में स्थित जल स्रोतों की साफ सफाई तथा उसके आसपास होने वाली गतिविधियों का भी ध्यान रखना चाहिए !
- यदि जल स्रोतों के आसपास किसी भी प्रकार की गैर कानूनी गतिविधियां होते हुए दिखाई दे तो तुरंत उन्हें ऐसा करने से मना करें तथा उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधि से होने वाले नुकसान से उन्हें अवगत कराए !
- रासायनिक उद्योगों तापीय एवं न्यूक्लियर पावर संयंत्र में प्रयोग होने वाले जल को बिना उपचारित तथा बिना शीतलन किए सीधे जल स्रोतों में नहीं बहाना चाहिए !
जल प्रदूषण अधिनियम
जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम 1974
यह अधिनियम जल की गुणवत्ता के संरक्षण एवं जल प्रदूषण नियंत्रण करने हेतु बनाया गया है !
जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण उपकरण अधिनियम 1977
तटवर्ती नियमन क्षेत्र अभीसूचना 1991
यह अधिनियम तटवर्ती क्षेत्रों में होने वाले विभिन्न क्रियाकलापों जिसे निर्माण आदि का नियमन करता है इसके अतिरिक्त यह है अप्रवाही जल तथा ज्वारनदमुखो को सुरक्षा उपलब्ध कराता है !