Social Research: प्रदूषित पृथ्वी और शाश्वत परम धाम की तुलना

Social Research प्रदूषित पृथ्वी और शाश्वत परम धाम की तुलना

खबरों की खबर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में हम बात करेंगे पृथ्वी को बदसूरत बनाने वाली गंदगी की और एक ऐसे स्थान के बारे में जानेंगे जहां की सुंदरता स्थाई और अनश्वर है। यह पृथ्वी बहुत बड़ी है और इसके बारे में जो भी जानकारी मिली वह कम ही लगती है और अधिक जानने को मन करता है।

पृथ्वी जिसे अंग्रेज़ी में Earth कहते हैं। सौरमंडल का एक ग्रह है जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है। यह दूरी के आधार पर सूर्य से तीसरा ग्रह है। यह एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन पाया जाता है। इसकी सतह का 71% (इकहत्तर प्रतिशत) भाग जल से तथा 29% ( उन्नत्तीस प्रतिशत) भाग भूमि से ढका हुआ है। इसकी सतह विभिन्न प्लेटों से बनी हुए है। इस पर पानी तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके दोनों ध्रुवों पर बर्फ की एक मोटी परत है।

पृथ्वी ग्रह बाकी ग्रहों से बिल्कुल अलग है। पृथ्वी पर जल , ऑक्सीजन , जंगल , जनजीवन , पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, जलचर ,पहाड़ , नदियां आदि मौजूद हैं। यहाँ सभी जीवों के खाने व रहने की व्यवस्था इतने सुचारू ढंग से ईश्वर द्वारा रची गई है कि जिसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम लगती है। परंतु पृथ्वी पर प्रत्येक चीज़ की आयु भी निश्चित है।

जहाँ जीव हैं तो वहाँ गन्दगी भी होगी। सभी जीवों में सबसे ज़्यादा गन्दगी फैलाने वाले जीव- मनुष्य ही हैं। यहां , जंगल खत्म करके आकाश को छू लेने वाली इमारतें, आलीशान घर, झुग्गी, झोपड़ियां, बस्तियां,नगर, गांव,शहर, कारखाने, फैक्ट्रीज़ बना लिए गए, जल निरंतर दूषित किया जा रहा है, ईंधन के जलने से वायु दूषित हो रही है। अपनी सुविधा के लिए न जाने कितने ही वाहन बनाये जा रहे हैं जो वायु दूषित करने के साथ-साथ वातावरण में ध्वनि प्रदूषण भी फैला रहे हैं। वायु प्रदूषण पृथ्वी पर हर पुरुष, महिला और बच्चे की संभावित जीवन को लगभग दो साल घटा देता है।वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

प्रदूषण क्या है?

वायु, जल, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना’, जिसका सभी जीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा वायुमंडलीय तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

हर जगह प्रदूषण , मल , फैक्ट्रीज़ से निकलने वाला waste , daily consume करने वाली चीजों से, तथा घरेलू कचरे से गन्दगी फैल रही है। इस गन्दगी के कारण न जाने कितने ही लोग बीमार हो रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों ,बूढों/बुजुर्गों पर देखने को मिल रहा है। प्रदूषण से ओज़ोन स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी है तथा मानव को अनेक प्रकार के चर्म रोगों का सामना करना पड़ रहा है। 

सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक,

स्‍वच्‍छ सर्वेक्षण रैंकिंग साफ-सफाई के आधार पर 434 ( चार सौ चौंतीस) शहरों को दी जाती है। इस वार्षिक रैंकिंग में सबसे खराब अपशिष्‍ट प्रबंधन वाले शहरों को ऊपर स्‍थान दिया जाता है जबकि कचरे के निपटान का उचित प्रबंधन करने वाले शहरों को नीचे स्‍थान थे दिया जाता है। रैंकिंग के अनुसार, इंदौर देश का सबसे साफ शहर है। यह स्थिति तब है जब इस शहर में ठोस अपशिष्‍ट के निपटान की कोई मूलभूत सुविधा मौजूद नहीं है।

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस के द्वारा जारी आंकड़े

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस द्वारा भारत के 26 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक झारखंड देश का पहला सबसे गंदा राज्य है। गंदगी के मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है। वहीं तीसरे और चौथे नंबर पर ओडिशा और मध्यप्रदेश हैं और यह गंदगी कई संक्रामक रोगों का कारण बन रही है.

भारत स्वच्छता अभियान

भारत को स्वच्छ रखने का सपना महात्मा गांधी ने भी देखा था और जीवित रहते हुए उन्होंने इस दिशा में कई कार्य भी किए थे। वह घर घर जाकर लोगों के रहन-सहन तथा शौचालयों का निरीक्षण भी किया करते थे।

स्वच्छता के जन अभियान की अगुआई करते हुए प्रधान मंत्री मोदी ने जनता को महात्मा गांधी के स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक वातावरण वाले भारत के निर्माण के सपने को साकार करने के लिए प्रेरित किया। धूल-मिट्टी को साफ़ करने के लिए झाडू उठाकर स्वच्छ भारत अभियान को पूरे राष्ट्र के लिए एक जन-आंदोलन का रूप दिया और कहा कि लोगों को न तो स्वयं गंदगी फैलानी चाहिए और न ही किसी और को फैलाने देना चाहिए। उन्होंने “न गंदगी करेंगे, न करने देंगे।” का मंत्र भी दिया। स्वच्छ भारत अभियान के संदेश ने लोगों के अंदर उत्तरदायित्व की एक अनुभूति जगा दी है।

पृथ्वी एक ग्रह है, जो पांच तत्वों से बना है। केवल पृथ्वी ही एक ऐसा लोक है जो मानव निर्मित तथा प्राकृतिक गन्दगी से भरा हुआ है। यहाँ की हवा से लेकर पानी तक दूषित हो चुका है। ज़मीन बंजर होती जा रही है। पृथ्वी को स्वच्छ रखना और बनाना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व है क्योंकि गन्दगी भरी जगहों पर रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। स्वच्छ जगह व गन्दगी रहित जगह पर रहने का एक ही समाधान है और वो है ऐसी जगह की जानकारी होना जहाँ गन्दगी हो ही नहीं।

आध्यात्मिकता की दृष्टि से जानें तो यह मालूम चलता है कि “100 योजन (1280 किलोमीटर) तक जात है या दुनिया की दुर्गंध

इस दुनिया में, इस लोक में उत्पन्न होने वाली गन्दगी की इतनी दुर्गंध है कि वो इस लोक से 1280 किलोमीटर दूर तक जाती है। तो इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जिस पृथ्वी पर हम रह रहे हैं वो कितनी गन्दगी और दुर्गंध से भरी है।

वहीं दूसरी तरफ हमारे ग्रंथो में एक ऐसी दुनिया भी बताई गई है जहाँ किसी प्रकार की गन्दगी नहीं है, वो जगह अपने आप में ही स्वच्छता से भरपूर है। वहाँ जो मांगो वो मिलता है। वहाँ का भोजन इतना लाजवाब है कि भोजन खाने के बाद भी शरीर हल्का ही रहता है अर्थात शरीर में मल और मूत्र नहीं बनता। वहाँ की हर चीज़ अविनाशी यानी, अमर है। वहाँ रहने वाले भी अमर हैं। वे ऐसा लोक है जहाँ केवल वातावरण ही स्वच्छ नहीं है बल्कि वहाँ रहने वालों के मन भी स्वच्छ हैं। उस लोक का नाम है सतलोक। सतलोक को सुख का सागर भी कहा जाता है। इसके लिए महान सन्त गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है-

“संखो लहर मेहर की उपजे, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।”

उस लोक में, सतलोक में कोई कहर नहीं है।वहां न तो शारीरिक वेदना है न प्राकृतिक आपदा का कहर। वहाँ सब एक तत्व- नूर तत्त्व का बना है। पृथ्वी लोक पांच तत्वों: आकाश, वायु, अग्नि, जल और मिट्टी से बना है और यहाँ के शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बने हैं। ये पांच तत्वों से बना शरीर हाड, चाम, लहू, विष्टा, थूक, आदि गन्दगी से भरे पड़े हैं।

“विष्टा जिनकी देह में, वो मगन फिरे दिन रात।”

इस शरीर मे इस गन्दगी को लिए हम सभी अपनी अपनी जिंदगी में मस्त हैं।

हाड जले ज्यों लाकड़ी, केश जले ज्यों घाँसा।
सोने जैसी काया जलगयी, कहाँ करो घर बासा।।

न जाने कब इस देह का अंत हो जाएगा, मृत्यु के बाद इस देह को जला दिया जाता है

जिस अमर लोक यानी सतलोक के बारे में हम आपको बता रहे हैं वहाँ किसी तरह की गन्दगी नहीं है। वहाँ रहने वालों के शरीर एक तत्व- नूर तत्व से बने हैं जो कभी नाश में नहीं आते। वहाँ सब सुंदर है। वहाँ रहने वालों के शरीर का 16 सूर्यों जितना प्रकाश होता है। वहाँ न सर्दी है, न गर्मी है। एक सा मौसम रहता है। न कोई अकाल न आपस में कोई राग द्वेष। ऐसा स्वच्छ लोक है सतलोक। तो क्यों न हम सब भी उसी लोक में चलने के बारे में अधिक जानें जहां जाने के बाद कभी लौटकर इस पृथ्वी , इस संसार में न आना पड़े।

हम सभी चांद पर जाने की इच्छा तो रखते हैं परंतु कभी उस अमरलोक सतलोक पर जाने के बारे में नहीं जान पाए थे। हम स्वर्ग और‌ नरक तक सीमित कर‌ दिए गए थे परंतु अब हम अपने परमानेंट स्थान सतलोक जाने के बारे में गहनता से विचार करेंगे।

सतलोक जाने का एक ही रास्ता है जो अब तक रहस्य ही बना रहा। बहुत से सन्तो, महंतों, ऋषियों ने इसका रास्ता खोजना चाहा पर उनका किया सब व्यर्थ रहा। हारकर उन्होंने स्वर्ग को ही सबसे उत्तम स्थान मान लिया। परंतु अब उस अमर लोक का रास्ता with map एक सन्त ने बताया है।

वह महान अवतारी सन्त हैं- जगतगुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज जिन्होंने प्रमाण सहित सतलोक का रास्ता बताया है। उन्होंने यह भी बताया है कि सतलोक हमारा निज घर है, पहले हम सब वहीं रहा करते थे पर एक भारी गलती के कारण इस पृथ्वी लोक पर सज़ा काट रहे हैं। अब सतलोक जाना मुश्किल नहीं है। उन्होंने सतलोक का जो वर्णन किया है वहाँ पहुंचने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। सतलोक जाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को सतभक्ति करनी होती है।
आप सभी से अनुरोध है कि सन्त रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें और उनके बताए नियमों पर चलकर अपने निज धाम सतलोक पहुंचे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *