Gyanvapi Masjid Case in Hindi [News] | गुरुवार को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे को लेकर वाराणसी कोर्ट के फैसले और यूपी के मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य किए जाने को लेकर AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का बयान सामने आया है। ओवैसी ने ज्ञानवापी मामले में कहा कि वह बाबरी मस्जिद पहले ही खो चुके हैं, अब एक और मस्जिद नहीं खो सकते। वहीं ओवैसी ने मदरसों में राष्ट्रगान को लेकर कहा कि हमें भाजपा और योगी आदित्यनाथ से देशभक्ति का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए।
क्या है ज्ञानवापी का मतलब
ज्ञानवापी शब्द इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है। इसका मुख्य कारण वाराणसी स्थित वो ज्ञानवापी परिसर है, जहां काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के साथ ही साथ मस्जिद भी है। ज्ञानवापी शब्द ज्ञान+वापी से बना है, जिसका मतलब है ज्ञान का तालाब। कहते हैं कि इसका ये नाम उस तालाब की वजह से पड़ा, जो अब मस्जिद के अंदर है। वहीं भगवान शिव के गण नंदी मस्जिद की ओर आज भी मुंह किए बैठे हैं।
ज्ञानवापी का इतिहास (Gyanvapi Masjid History in Hindi)
- कहा जाता है कि विश्वनाथ मंदिर को सबसे पहले 1194 में मोहम्मद गौरी ने लूटा और तोड़फोड़ की। इसके बाद 15वीं सदी में राजा टोडरमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
- इसके बाद 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करवाया। कहा जाता है कि औरंगजेब ने जब काशी का मंदिर तुड़वाया तो उसी के ढांचे पर मस्जिद बनवा दी, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। यही वजह है कि इस मस्जिद का पिछला हिस्सा बिल्कुल मंदिर की तरह लगता है।
- दूसरी ओर सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी के मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) का जीर्णोद्धार कराया। इस दौरान पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने करीब एक टन सोना मंदिर के लिए दान किया था।
ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर भी होगी वीडियोग्राफी
बता दें कि वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वे कराने के लिए नियुक्त कोर्ट कमिश्नर को पक्षपात के आरोप में हटाने संबंधी याचिका बृहस्पतिवार को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर भी वीडियोग्राफी कराई जाएगी। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को हटाने संबंधी अर्जी नामंजूर कर दिया। साथ ही विशाल सिंह को विशेष कोर्ट कमिश्नर और अजय प्रताप सिंह को सहायक कोर्ट कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया। अदालत ने इसके साथ ही संपूर्ण परिसर की वीडियोग्राफी करके 17 मई तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश भी दिए हैं।
Gyanvapi Masjid Case in Hindi [News] | नारायण भट्ट की लेखनी भी गवाह
ज्ञानवापी के झंझावात नारायण भट्ट लिखित पुस्तक त्रिस्थली सेतु में भी वर्णित हैं। इसमें वर्णन है कि यदि कोई मंदिर तोड़ दिया गया हो और वहां से शिवलिंग हटा दिया गया हो या नष्ट कर दिया गया हो तब भी स्थान महात्म्य की दृष्टि से वह स्थान विशेष पूजनीय है। इसकी परिक्रमा करके पूजा-अभिषेक संपन्न किया जा सकता है।
परमात्मा शरण की गवाही से खारिज हो गई थी दावेदारी
कागजातों के अनुसार 1936 में चले मुकदमे में प्रो. एएस अल्तेकर समेत कई लोगों के बयान हुए। इसमें यूनिवर्सिटी आफ लंदन के बनारसी मूल के इतिहासकार प्रो. परमात्मा शरण ने 14 मई 1937 को अतिरिक्त सिविल ब्रिटिश सरकार की ओर से बतौर साक्षी बयान दिया। उन्होंने औरंगजेब के दरबार के इतिहास लेखक मुश्तैद खां द्वारा लिखित ‘मा आसिरे आलम गिरि’ पेश करते हुए बताया था कि यह 16वीं शताब्दी के अंतिम चरण में एक मंदिर था।
- 1936 में पूरे ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में दायर किया गया था मुकदमा
- 7 गवाह दावेदारों की ओर से और 15 गवाह ब्रिटिश सरकार की ओर से पेश किए गए थे
- 15 अगस्त 1937 को मस्जिद के अलावा अन्य ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को नामंजूर कर दिया गया था
- 10 अप्रैल 1942 को सब जज के फैसले को सही ठहराते हुए अपील निरस्त कर दी थी हाई कोर्ट ने
- (इसका उल्लेख एआइआर (29) 1942 एएलएएबीएडी 353 में है)
Gyanvapi Masjid Case in Hindi [News] | आजादी के बाद.. 1991 में दायर हुआ था मुकदमा
- 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन का अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने वाद दायर किया था।
- 1998 में हाईकोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से दो याचिकाएं दायर की गई थी इस आदेश के खिलाफ, 7 मार्च 2000 को पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई।
- 11 अक्टूबर 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को वाद मित्र नियुक्त किया मामले की पैरवी के लिए।
- 8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर कर पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया।
अदालत का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघनः ओवैसी
- ज्ञानवापी मामले पर कोर्ट का आदेश आने के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष ने इसका कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि आज दिया गया कोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है।
- उन्होंने ट्वीट किया, ”कोर्ट का आदेश पूजास्थल अधिनियम 1991 का स्पष्ट उल्लंघन है। यह बाबरी मस्जिद मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।”
- उन्होंने कहा, ”योगी सरकार को तत्काल इन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी चाहिए क्योंकि 1991 एक्ट कहता है कि जो व्यक्ति किसी धार्मिक स्थान की 15 अगस्त 1947 की स्थिति बदलने की कोशिश करता है तो कोर्ट में दोषी पाए जाने पर उन्हें तीन साल तक की सजा दी जा सकती है।”
- उन्होंने आगे कहा, ”यह खुला उल्लंघन है और मुझे उम्मीद है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मस्जिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट जाएगी। मैं बाबरी मस्जिद खो चुका हूं और मैं और मस्जिद नहीं खोना चाहता।”
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर साल 1991 का विवाद क्या है?
साल 1991 का विवाद ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के अस्तित्व पर सवाल खड़े करता है। दरअसल 1991 में कोर्ट में एक केस दर्ज हुआ था, जिसमें ये दावा किया गया था कि जिस जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद बनी है, वो काशी विश्वनाथ की जमीन है और इस जगह पर छोटे-छोटे मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।
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इस मामले में हिंदू पक्ष ने ये अपील की थी कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जांच करवाई जाए। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 सितंबर 2021 को इस केस में ASI के सर्वेक्षण पर रोक लगा दी।
हालांकि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, उसको लेकर एक और मामला कोर्ट में है। वाराणसी के व्यास परिवार का दावा है कि इस जमीन पर उनका मालिकाना हक है और बीते 150 सालों से उनका परिवार इस जमीन पर मालिकाना हक की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहा है।
कोर्ट ने क्या दिया आदेश?
अदालत ने कहा कि कोर्ट कमिश्नर 17 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपे. मिली जानकारी के अनुसार अदालत ने सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक सर्वे के आदेश दिए हैं. अदालत ने कहा है कि 17 मई तक राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से सर्वे पूरा कराया जाए. अदालत ने कहा है कि सर्वे की कार्रवाई के दौरान अगर दोनों में से कोई एक कोर्ट कमिश्रर एबसेंट भी रहेगा तब भी कार्रवाई होगी.
ज्ञानवापी (Gyanvapi Masjid) मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामले को लेकर गुरुवार को वाराणसी (Varanasi) की सिविल कोर्ट (Civil Court) ने फैसला सुना दिया. अदालत ने सर्वे के काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है. इसके अलावा कहा गया है कि अगर गेट की चाभी नहीं भी मिलती है तो ताले को तोड़ा जा सकता है. इसके साथ ही सर्वे के दौरान वीडियोग्राफी के भी निर्देश दिए गए हैं.