ग्लोबल वार्मिंग के कारण बार बार बाढ़ प्रभावित हो रहा है असम

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बार बार बाढ़ प्रभावित हो रहा है असम

नमस्कार दर्शकों! SA News Channel के खास कार्यक्रम खबरों की खबर का सच में आप का एक बार फिर से स्वागत है। आज की हमारी विशेष पड़ताल में हम चर्चा करेंगेे की आखिर क्यों पूर्वोत्तर के राज्यों को हर साल मानसून से पहले करना पड़ता है बाढ़ का सामना? और जानेंगे की असम, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय आदि राज्यों में प्रतिवर्ष स्थिति बाढ़ से क्यों बेकाबू हो जाती है ?

दोस्तों! एक कहावत है कि हम सबको हर समय एक साथ खुश नहीं रख सकते शायद यही बात देश और विश्वभर के मौसम पर भी लागू होती है। जहां एक ओर गर्मी और लू की मार झेल रहे देश और प्रदेश हैं तो यहां थोड़ी सी भी बारिश और ठंडी हवा चलने पर लोग राहत की सांसें भरने लगते हैं तो वहीं दूसरी ओर कहीं आंधी, चक्रवाती तूफान, बाढ़ ,तेज़ बारिश लोगों की जान की आफत बन जाती है।

भारत में हर साल जून के महीने में मानसून दस्तक देता है। भले ही मानसून के आने से देशभर के ज्यादातर लोगों को गर्मी और लू से राहत मिलती है, लेकिन असम और पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए यह एक अभिशाप से कम नहीं हैं। मानसून की वजह से असम में प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, जिसकी वजह से प्रदेश में जन, धान, धन और जानवरों की जान और माल दोनों का काफी नुकसान होता है। अभी असम के कई जिलों में बाढ़ की वजह से भीषण तबाही मची हुई है।

वर्तमान समय में भी असम और उत्तर पूर्वी राज्यों में भारी बारिश और बाढ़ का क़हर रुकने का नाम नहीं ले रहा है। असम के बाद अब अरुणाचल प्रदेश और मेघालय भी बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। इन तीनों राज्यों में सात लाख से ज़्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, जबकि 12 लोगों की मौत हो चुकी है। भारी बारिश और भूस्खलन के चलते असम के दीमा हसाओ ज़िले का हाफलोंग रेलवे स्टेशन पूरा पानी में डूब गया है। यहां पर पानी की तेज़ लहरें अपने साथ सबकुछ बहा ले जाने पर आमादा हैं। लगातार हो रही बारिश की वजह से नदियों का जल स्तर ख़तरे के निशान से काफ़ी ऊपर जा पहुंचा है। गांव के गांव, रिहायशी इलाक़े, मैदान, सड़कें और इमारतें सब कुछ डूब चुका है।

राज्य में बाढ़ की मौजूदा स्थिति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नजर बनाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र असम में बाढ़ की स्थिति पर लगातार नज़र रख रहा है और इस चुनौती से निपटने के लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। उन्होंने कहा, “सेना और एनडीआरएफ की टीमें बाढ़ प्रभावित इलाकों में मौजूद हैं। वे बचाव अभियान चला रहे हैं और प्रभावित लोगों की मदद कर रहे हैं। वायुसेना ने निकासी प्रक्रिया के तहत 250 से अधिक उड़ानें भरी हैं।

श्रृंखलाबद्ध ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा हैः

“पिछले कुछ दिनों के दौरान, असम के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। केंद्र सरकार लगातार नजर रख रही है तथा इस चुनौती पर विजय पाने के लिये हर संभव सहायता उपलब्ध कराने में राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है।”

बाढ़ प्रभावित राज्यों की मौजूदा स्थिति के बारे में?

इस समय बाढ़ प्रभावित राज्यों की स्थिति काफी गंभीर होने की वजह से आर्मी और पैरामिलेटरी फोर्स दिन रात लोगों को बचाने में लगी हुई है। सरकार ने एक परामर्श जारी कर लोगों को यात्रा से बचने को कहा है क्योंकि भारी बारिश के कारण भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं जिससे सड़कों की हालत खराब है। भारी बारिश और उसके कारण जमीन धंसने की वजह से कई मकान ढह गए है। वैसे तो राज्य के 35 में से 33 जिलों के 4 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में हैं लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर कछार और डिमा हसाओ जिलों में देखने को मिल रहा है।

राज्य के इकलौते पर्वतीय पर्यटन केंद्र हाफलांग का रेलवे स्टेशन पानी में डूब गया है और वहां खड़ी एक यात्री ट्रेन भी पानी और मलबे में फंस गई है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा कि फिलहाल 1790 गांव पानी में डूबे हुए हैं और पूरे प्रदेश में 63,970.62 हेक्टेयर की फसल क्षतिग्रस्त हो गयी है। इसी बीच बीते रविवार को कछार इलाके में एक ट्रेन बाढ़ में फंस गई जिसमें फंसे 119 यात्रियों को भारतीय वायुसेना ने रेस्क्यू किया।

लोग राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं

अब तक बाढ़ से हुई तबाही के कारण 47 लाख 72 हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। असम सरकार ने बेघर हुए लोगों के लिए 1425 राहत शिविर खोले हैं जहाँ दो लाख 31 हजार 819 लोगों ने शरण ले रखी है। असम में आई बाढ़ से एक लाख हेक्टेयर से अधिक फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही सड़कें टूट गई हैं और रेल मार्ग बाधित हुए हैं। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने 18 जून को एक बयान जारी कर एक दर्जन से अधिक यात्री ट्रेनों को रद्द करने की जानकारी दी है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाढ़ और भूस्खलन से सोमवार तक मरने वालों की संख्या 73 तक पहुँच गई थी। मृतकों में दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। क़रीब दो लाख लोगों को 744 राहत कैंपों में भेजा गया है। एनडीआरएफ़ और एसडीआरएफ़ ने क़रीब 30 हज़ार लोगों को सुरक्षित निकाला है।

भारतीय मौसम विभाग की एक ताजा रिपोर्ट में अगले कुछ दिनों तक बारिश जारी रहने की संभावना जताई गई है ऐसे में राज्य सरकार अब बचाव कार्य में सेना की ज्यादा मदद लेने की योजना बना रही है।

क्यों होता है असम और पूर्वोत्तर हर साल बाढ़ का शिकार?

असम और पूर्वोत्तर के अन्य सभी राज्य “फ्लड प्रोन स्टेट्स” के अंतर्गत आते हैं। यहां की 4.5 करोड़ जनता प्रतिवर्ष बाढ़ की गंभीर स्थितियों से किसी न किसी रूप में प्रभावित होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक असम एक ऐसा राज्य है जहां का 40% एरिया फ्लड प्रोन एरिया है जो की पूरे देश के फ्लड प्रोन एरिया से 4 गुना अधिक है। हर साल अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ आने से यह सारा पानी आगे चलकर असम में इकट्ठा होता है। रिसर्चर्स और एक्सपर्ट्स द्वारा असम में बाढ़ आने के पीछे ब्रह्मपुत्र नदी को सबसे मुख्य कारण माना जाता है।

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यह नदी हिमालय से अरुणाचल प्रदेश होते हुए असम में चलती है जिसकी रफ्तार अन्य नदियों के मुकाबले अत्यधिक मानी जाती है। असम में आने के बाद यह नदी अन्य नदियों के साथ मिल जाति है। जल संसाधनों के लिहाज से ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की छठे नंबर की नदी है, जो 629.05 घन किमी प्रति वर्ष पानी अपने साथ ले जाती है। नदी की कुल लंबाई 2,906 किलोमीटर है, जिसमें से 918 किमी भारत में और 640 किलोमीटर असम में बहती है। कुछ रिसर्चर्स के मुताबिक 1950 में आए एक भूकंप के बाद से ब्रह्मपुत्र नदी अस्थिर हो गई जिसके चलते 1950 से लेकर 2010 तक असम में कुल 12 गंभीर बाढ़ें देखी गई है। पिछले कुछ सालों से यह सिलसिला और बढ़ता नज़र आ रहा है।

यदि हम आंकड़ों देखें तो साल 2012 में 124, 2015 में 42, 2016 में 28, 2017 में 85, 2018 में 12 लोग बाढ़ की वजह से असम और पूर्वोत्तर राज्यों में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। साल दर साल सैकड़ों लोग बाढ़ की वजह से मारे जाते हैं और इसका लाखों लोगों की जिंदगी पर भी गंभीर रूप से प्रभाव पड़ता है। 2 साल पहले बाढ़ ने काज़ीरंगा नेशनल पार्क में तबाही मचाई थी जिसमें विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे गैंडों की संख्या को काफी क्षति पहुंची थी।

बारिश का बाढ़ ‘ में बदलने के पीछे विशेषज्ञों की राय क्या कहती है आइए जानते हैं

विशेषज्ञों का मानना है की पेड़ों और जंगलों की कटाई, कमजोर ड्रेनेज सिस्टम, तटबंधों और बांधो की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसे कई ऐसे मुख्य कारण हैं जिसके चलते प्रतिवर्ष पूर्वोत्तर को भयानक बाढ़ का सामना करना पड़ता है। असम में केवल 450 तटबंध मौजूद हैं जिनमें से आधे से भी अधिक काफी पुराने और कमजोर हैं जो कभी भी टूट सकते है। यदि हम जलवायु परिवर्तन की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के बढ़ने की वजह से हिमालय की बर्फीली चट्टानें काफी तेज़ी से पिघल रही हैं। चट्टानों के पिघलने से ब्रह्मपुत्र नदी में पानी का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी अपने आप में पहले से ही एक आक्रामक नदी है जिसमें जल का स्त्रोत अत्यधिक रहता है और पानी की रफ्तार भी अत्यधिक होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब बरसात के मौसम में पहले के मुताबिक अधिक दिनों तक बारिश नहीं देखी जाती। वातावरण में ठीक से संतुलन नहीं बन पाने के कारण अब कम समय में ही अत्यधिक वर्षा हो जाति है जिसके चलते असम जैसे राज्यों में बाढ़ जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यही कारण है की एक तरफ गर्मी के ठीक बाद और वर्षाऋतु के प्रारंभ में वर्षा की कमी के चलते अकाल जैसी स्थिति देखने को मिलती है और वहीं दूसरी तरफ कुछ ही दिनों बाद अत्यधिक वर्षा के चलते बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

मौजूदा बाढ़ की वजह, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और ऊपरी असम में हुई तेज बारिश है। इससे ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया और वह खतरे के निशान से ऊपर चले गए हैं। अतिरिक्त पानी ने कई जगहों पर तटबंध तोड़ दिए और पूरे रास्ते में बाढ़ के हालात बन बैठें है।

असम में बाढ़ कई वर्षों से लगातार आ रही है परंतु सरकार द्वारा पुराने तटबंधों को नया बनाने और मज़बूत करने की दिशा में कोई मज़बूत और ठोस कदम नहीं उठाया गया । मौजूदा स्थिति इतनी खराब है कि लोग अपने घर, परिवार ,मवेशी ,फसल और संपत्ति सब कुछ से हाथ धो बैठ रहे हैं। सेना की मदद से राहत शिविरों में शरण पाए लोगों की जान बचाने की कोशिशें काबिले तारीफ है।

क्या हर बुरी स्थिति को ठीक किया जा सकता है ? क्या बाढ़ को रोका जा सकता है? क्या लोगों को असमय मृत्यु से बचाया जा सकता है ? क्या हम यहां खुशी और खुशहाली से जी सकते हैं लेकिन आखिर कैसे ? आइए जान लेते हैं।

दोस्तों! मानव ने आज इतनी तरक्की हासिल कर ली है की इंसान अब चांद पर अपना प्लॉट बुक करवा रहे हैं। लेकिन दोस्तों प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना मनुष्यों को बहुत ही अधिक भारी पड़ रहा है। कभी बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, चक्रवात, ज्वालामुखी का फटना, सुनामी आना जैसी आपदाएं प्रकृति के संतुलन खोने के ही संकेत हैं या जिसे आप.ग्लोबल वार्मिंग या प्रकृति से छेडख़ानी करना कह सकते हैं।

पूर्वोत्तर में प्रतिवर्ष आ रही बाढ़ की स्थिति को काबू में लाने के लिए वहां की सरकार और केंद्र की सरकार को चाहिए की अधिक से अधिक पौधे लगवाएं जो आगे चलकर पेड़ बनें, बड़े बड़े बांध और तटबंधों का निर्माण करें जिससे की ब्रह्मपुत्र नदी की गति और दिशा पर नियंत्रण पाया जा सके। इसके अलावा नदी के आसपास के विस्तार में निर्माण के कार्यों पर भी रोक लगानी चाहिए जिससे की बाढ़ की स्थिति में अधिक मात्रा में लोगों को पलायन न करना पड़े।

यूं तो साइंस, टेक्नोलॉजी और देश दुनिया की सरकारें चाहे कितना ही प्रयत्न कर लें लेकिन वे प्रकृति पर नियंत्रण कभी नहीं पा सकते। प्रकृति पर तो केवल सर्वोच्च ईश्वर का ही नियंत्रण है। पृथ्वी पर प्राकृतिक बदलाव केवल एक पूर्ण संत ही ला सकते हैं। वर्तमान समय में पूरी पृथ्वी पर केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही ऐसे महापुरुष हैं जिनके पास अद्वितीय शक्ति है जिससे वे सकारात्मक प्राकृतिक बदलाव भी ला सकते है। मुरझा चुकी प्रकृति को वसंत में बदल सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी शास्त्र अनुसार सत्य भक्ति साधना बताते हैं।

पूर्ण संत द्वारा बताई गई साधना करने से समय पर वर्षा और पर्याप्त मात्रा में अन्न की उत्पत्ति होती है। इसके अलावा प्रकृति भी अपना संतुलन कभी नहीं खोती। जिस नगर में सत्य साधक रहते हैं उस नगर में न तो अकाल गिरता है और न ही बाढ़ आती है। न चक्रवात, ज्वालामुखी, भूकंप या सुनामी आदि से समाज दुख पाता है। वर्तमान समय में जगह जगह पर संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में शास्त्र अनुसार यज्ञ किए जा रहे हैं। जिससे वायुमंडल में सकारात्मक परिवर्तन हो रहा है और यदि विश्वभर के सभी मनुष्य केवल सत्य साधना करेंगे तो जल्द ही वातावरण स्वर्ग समान सुखदायी हो जाएगा।

इस कार्यक्रम को देखने वाले सभी दर्शकों से प्रार्थना है कि कृपया अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करें और शास्त्र अनुकूल सत्य भक्ति साधना अपनाकर, अपना व पृथ्वी का कल्याण करवाएं।

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