होगा अब दहेज प्रथा का अंत क्योंकि आ गए हैं तत्वदर्शी संत

दहेज प्रथा: दहेज़ प्रथा कि शुरुआत कैसे हुई और इसका अंत कैसे होगा?

दहेज़ प्रथा कि शुरुआत कैसे हुई और इसका अंत कैसे होगा?

 दहेज के बारे में जानना, सरल शब्दों में दहेज वह धन, सामान या संपत्ति है जो एक महिला शादी के बाद अपने पति या उसके परिवार के लिए लाती है। दहेज पत्नी के लिए एक शर्त है। जो तलाक, दुर्व्यवहार या मारपीट की स्थिति में महिला का माना जाता है। दहेज में आभूषण और संपत्ति का उपयोग किया गया है जो अक्सर पति द्वारा अहस्तांतरणीय होता है। दहेज प्रथा की शुरुआत धनवान लोगों द्वारा की है। जिसके कारण बिचारे गरीब लड़की के मां बाप इस प्रथा में पिस रहे है। इसका अंत अब संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान से हो रहा है।

दहेज़ प्रथा की शुरुआत कब और कैसे हुई

जब पुरातन समय में दहेज प्रथा का विकास हुआ, तो इसका पालन मुख्य रूप से उच्च जातियों द्वारा दुल्हन को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता था, क्योंकि हिंदू कानून के तहत दुल्हन को संपत्ति विरासत में नहीं मिल पाती थी। इसका मुकाबला करने के लिए, दुल्हन के परिवार ने दूल्हे को दहेज दिया जो दुल्हन के नाम पर पंजीकृत होता था। दहेज़ प्रथा अब बेटियों को बहुत ही हानि कारक हो गया है , आए दिन सैकड़ों की संख्या में बेटियों की दहेज़ के कारण मौत हो रही है।

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दहेज प्रथा किसने चलाई 

इस प्रथा को राजस्थान के संपन्न परिवारों के राजपूतों ने ज्यादा बढ़ावा दिया था। इसके पीछे उनका मानना था कि वो जितना ज्यादा पैसा लड़की की विदाई में देंगे उतनी ही उनकी मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसके बाद दहेज़ प्रथा की शुरूआत हुई। जिसमें स्त्रीधन शब्द गायब हो गया। इसके बाद यह परंपरा इतनी बिगड़ गई की लोग बेटियों को दहेज़ देने के डर से बेटियों को गर्भ में मारना शुरू कर दिया। दहेज के लोभियों ने दहेज़ न मिलने पर बेटियों को प्रताड़ित शुरू कर दिया , तथा लाखों मृत्यु केस दहेज़ न मिलने के कारण आए है।  

दहेज़ प्रथा कानून

कानून दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार अध्यात्म मार्ग में दहेज लेने बालों का दंड प्रावधान है जो व्यक्ति दहेज़ लेता है , अगले जन्म में सामने बाला दामाद बनकर खुद की बेटी ले जाएगा और ढेर सारा दहेज लेकर अय्यासी में उड़ा देगा। बाद में बेटी को परेशान करेगा। कबीर साहेब जी कहते हैं। एक लेवा एक देवा दूतम, यहां कोई किसी का पिता न पूतम।

 ऋण संबंध जुड़ा एक ठाठा, अंत समय सब बारा बांटा।

दहेज़ प्रथा के कारण एवम निवारण

लैंगिक भेदभाव और अशिक्षा दहेज़ प्रथा का प्रमुख कारण है। दहेज प्रथा के कारण कई बार यह देखा गया है कि महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है तथा उन्हें शिक्षा या अन्य सुविधाओं के संबंध में दोयम दर्जे की सुविधाएँ दी जाती हैं। संत रामपाल जी महाराज द्वारा चलाई जा रही मुहिम जिसमें गुरुवाणी द्वारा मात्र 17 मिनट में न दहेज़ लेना और न देना होता है, जो की बाहरी आडंबर बिना रस्म और रीति रिवाज के द्वारा संपन्न होती है। लाखो और करोड़ों लोग इस मुहिम से जुड़कर अपना सुखी जीवन जी रहे हैं। 

निष्कर्ष

किशोर लड़कियों और लड़कों के समूहों को गठित करें और उनके समूहों को मजबूत करें। इन समूहों के माध्यम से उन्हें बाल विवाह तथा दहेज के दुष्प्रभाओं और सम्बंधित कानूनों के बारे में शिक्षित करें । स्कूलों में उनकी उपस्थिति और स्कूली पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रोत्साहित करें।

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