इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव एक बार फिर विवादों में हैं। हाल ही में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अपने भाषण में दिए गए बयानों के कारण उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। “कानून बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा” जैसी टिप्पणी करने के बाद उन्हें अहम मामलों की सुनवाई से हटा दिया गया है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव विवाद: मुख्य बिंदु
- संवेदनशील मामलों की सुनवाई से हटाए गए जस्टिस यादव
- शीर्ष अदालत ने मामले को लिया संज्ञान में
- विपक्षी दलों ने संसद के उच्च सदन में पेश किया महाभियोग प्रस्ताव
- जस्टिस यादव ने विहिप के कार्यक्रम में दिया था विवादित बयान
- राजनीतिक दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने जाहिर की नाराज़गी
- विवादित बयान से न्यायिक निष्पक्षता पर पैदा होता है संदेह
- जस्टिस यादव के न्यायिक करियर पर खड़े हुए सवाल
- सुप्रीम कोर्ट और संसद के निर्णय से थमेगा विवाद
- तत्वज्ञान से मिलेगा सभी विवादों का समाधान
नए रोस्टर में सीमित जिम्मेदारियां
इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 दिसंबर से लागू होने वाले नए रोस्टर के तहत जस्टिस यादव अब केवल निचली अदालतों से आने वाले मामलों और 2010 से पहले दर्ज किए गए मामलों की ही सुनवाई करेंगे। पहले वे बलात्कार और अन्य संवेदनशील मामलों की सुनवाई भी करते थे, लेकिन अब उन्हें इनसे हटा दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट
जस्टिस यादव के विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। यह कदम तब उठाया गया जब मीडिया में उनके भाषण का वीडियो वायरल हुआ और इसमें कही गई बातों को लेकर आलोचना शुरू हो गई।
राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव
जस्टिस यादव के विवादित भाषण ने न केवल न्यायपालिका बल्कि राजनीति में भी हलचल मचा दी है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। विपक्षी सांसदों का कहना है कि न्यायमूर्ति यादव का यह बयान उनके संवैधानिक कर्तव्यों के विपरीत है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
विवाद का केंद्र: विहिप कार्यक्रम में भाषण
जस्टिस यादव हाल ही में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) पर अपने विचार साझा किए। अपने भाषण में उन्होंने कहा, *”यह हिंदुस्तान है और यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। यह कानून है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि परिवार और समाज के संदर्भ में केवल वही स्वीकार्य होगा जो बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी को सुनिश्चित करता है। इस दौरान उन्होंने “कठमुल्ला” जैसे शब्द का भी इस्तेमाल किया, जिसने उनके बयान को और अधिक विवादास्पद बना दिया।
विपक्ष और कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
जस्टिस यादव के बयान के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर नाराजगी व्यक्त की है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह बयान भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उनका तर्क है कि एक न्यायाधीश को अपने भाषणों में इस प्रकार की पक्षपातपूर्ण और विभाजनकारी टिप्पणियों से बचना चाहिए।
जज के तौर पर निष्पक्षता पर सवाल
जस्टिस यादव के बयान ने न्यायपालिका में निष्पक्षता के सवाल भी खड़े किए हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी जज का इस तरह का बयान देना उनकी न्यायिक निष्पक्षता पर संदेह पैदा करता है। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत हर नागरिक को समानता और न्याय का अधिकार है। ऐसे में इस तरह की टिप्पणियां न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
जस्टिस यादव का न्यायिक करियर
जस्टिस शेखर कुमार यादव को 12 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। अपने करियर के दौरान वे कई अहम और संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर चुके हैं। लेकिन हालिया विवाद ने उनकी न्यायिक जिम्मेदारियों और भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट और संसद का दखल होगा महत्वपूर्ण
जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित बयान ने न्यायपालिका, राजनीति और समाज के विभिन्न वर्गों में एक नई बहस छेड़ दी है। यह मामला न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट और संसद इस पर क्या कदम उठाते हैं और यह विवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है।
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