भारत में धर्म और आस्था का प्रभाव बहुत गहरा है—यहाँ के हर त्योहार और परंपरा में किसी न किसी रूप में धार्मिकता और अध्यात्म का समावेश देखा जा सकता है। सावन महीने में आयोजित होने वाली कांवड़ यात्रा का भी विशेष महत्व है। हर वर्ष लाखों, बल्कि करोड़ों लोग गंगा नदी से जल भरकर पैदल यात्रा करते हैं और शिवालयों में इस जल का अभिषेक करते हैं। यह यात्रा अक्सर कई दिनों तक चलती है, जिसमें भक्तजन अनेक कठिनाइयाँ सहते हैं। उनके विश्वास के अनुसार, इस यात्रा से उन्हें पुण्य की प्राप्ति होगी, पाप क्षमा होंगे और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा।
लेकिन यहाँ एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है—क्या यह विश्वास शास्त्रों के अनुसार उचित है? क्या मात्र कांवड़ यात्रा कर लेने से मोक्ष संभव है? क्या मोक्ष जैसी गूढ़ और आध्यात्मिक उपलब्धि केवल कठिन यात्रा के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है, या फिर यह अब एक परंपरागत लोक-आस्था भर रह गई है? इन सभी प्रश्नों पर गंभीरता और गहराई से विचार करना आवश्यक है, ताकि हम इसकी वास्तविकता और महत्व को समझ सकें।
कांवड़ यात्रा का इतिहास और इसका उद्देश्य
कांवड़ यात्रा का इतिहास गहराई से पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हलाहल विष को भगवान शिव ने लोककल्याण के लिए ग्रहण किया था, जिससे उनके कंठ में अत्यधिक जलन और ताप उत्पन्न हो गया। ऐसी मान्यता है कि देवताओं और शिवभक्तों ने गंगाजल अर्पित कर शिवजी को उस विष के प्रभाव से राहत प्रदान करने का प्रयास किया। इसी आधार पर यह परंपरा विकसित हुई कि जल अर्पण से शिवजी शांत होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं।
समय के साथ यह धार्मिक परंपरा एक व्यापक सामाजिक आयोजन में परिवर्तित हो गई है। सावन माह में लाखों श्रद्धालु हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश एवं अन्य राज्यों से हरिद्वार, ऋषिकेश या गंगोत्री जैसी पवित्र स्थलों पर जाकर गंगाजल एकत्र करते हैं और उसे अपने नगर अथवा ग्राम के शिवमंदिर में अर्पित करते हैं। वर्तमान में कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक आयोजन भी है। मार्ग में अनेक सेवा शिविर स्थापित किए जाते हैं, जिनमें भोजन, विश्राम तथा स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। श्रद्धालु यात्रा के दौरान ‘बोल बम’ एवं ‘हर हर महादेव’ के जयघोष करते हुए आगे बढ़ते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय एवं उत्साहपूर्ण हो जाता है।
वर्तमान में कांवड़ यात्रा का स्वरूप
समकालीन समय में कांवड़ यात्रा का स्वरूप काफी बदल गया है। पूर्व में यह यात्रा पूर्णतः श्रद्धा और सादगी के साथ संपन्न होती थी, किंतु वर्तमान में अनेक स्थानों पर यह एक प्रकार के प्रदर्शन अथवा मनोरंजन का माध्यम बनती जा रही है। तेज़ डीजे संगीत, लाउडस्पीकर, नृत्य-गान, महंगी सजावट, मोटरसाइकिल काफ़िले तथा स्टंटबाजी जैसी गतिविधियों ने यात्रा की आध्यात्मिकता को प्रभावित किया है। अब कई लोग इसे केवल शौक या समूहिक साहसिक यात्रा के रूप में भी लेने लगे हैं।
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इसके अतिरिक्त, कांवड़ यात्रा के दौरान दुर्घटनाएँ, विवाद तथा झगड़े की घटनाएँ भी प्रायः सामने आती हैं। अनेक बार यह यात्रा भक्तों के लिए जानलेवा भी सिद्ध होती है। वर्षा ऋतु के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बनी रहती है, जिससे थकावट, बीमारियाँ और दुर्घटनाएँ आम होती जा रही हैं। ऐसे संदर्भ में यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है कि क्या इस प्रकार की कठिनाइयों को सहन कर की गई यात्रा वास्तव में मोक्ष का मार्ग बन सकती है?
शास्त्रों का दृष्टिकोण
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार कांवड़ यात्रा जैसी साधना शास्त्रसम्मत नहीं है। हिंदू धर्म के प्रमुख शास्त्र, जैसे वेद और श्रीमद्भगवद्गीता, इनमें कहीं भी कांवड़ यात्रा का उल्लेख नहीं मिलता। गीता के अनुसार, जो व्यक्ति शास्त्रों को छोड़कर अपनी इच्छानुसार पूजा करता है, उसे न तो सिद्धि प्राप्त होती है, न सुख, और न ही मोक्ष संभव है।
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श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16, श्लोक 23-24 में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि “जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाने आचरण करता है, उसे न सिद्धि मिलती है, न सुख और न ही परमगति (मोक्ष)।” इसी तरह, गीता के अध्याय 18, श्लोक 62 में अर्जुन को निर्देश दिया गया है कि “हे अर्जुन! तू उस परमेश्वर की शरण में जा, जिससे शाश्वत स्थान (मोक्ष) की प्राप्ति सम्भव है।”
संत रामपाल जी महाराज यह भी स्पष्ट करते हैं कि गीता और वेदों में जिन ‘पूर्ण ब्रह्म’ या परमेश्वर का उल्लेख है, वह कोई देव, ब्रह्मा, विष्णु या शिव नहीं, बल्कि कबीर साहेब हैं। वेद और गीता में वर्णित मोक्षदाता वही पूर्ण परमात्मा हैं।
मोक्ष की वास्तविक परिभाषा क्या है?
मोक्ष का अर्थ है आत्मा का जन्म और मृत्यु के चक्र से पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना। ऐसी मुक्ति केवल वही सत्ता दिला सकती है जो स्वयं जन्म-मरण के बंधन से सर्वथा मुक्त हो। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 4, श्लोक 5-9 में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है कि उनका भी जन्म होता है। ऐसे में, जो स्वयं जन्म और मृत्यु के अधीन हैं, वे किसी अन्य को मोक्ष कैसे प्रदान कर सकते हैं?
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, केवल पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही जन्म-मरण से रहित हैं और वे ही वास्तविक मोक्षदाता हैं। अतः, केवल उनकी भक्ति से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
मोक्ष प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है?
संत रामपाल जी महाराज के विचारों के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति के लिए तीन मुख्य शर्तें अनिवार्य मानी गई हैं।
सबसे पहले, साधना या भक्ति का तरीका वही होना चाहिए, जैसा शास्त्रों में वर्णित है—व्यक्ति को अपनी इच्छा से कुछ नया नहीं जोड़ना चाहिए।
दूसरी आवश्यकता है कि साधक को किसी तत्वदर्शी, यानी वास्तविक ज्ञान रखने वाले संत से नाम दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए। वर्तमान समय में कई लोग स्वयं को गुरु घोषित करते हैं, किंतु शास्त्रों के अनुसार योग्य संत का चयन अति आवश्यक है।
तीसरी और अंतिम शर्त है पूर्ण परमात्मा की भक्ति करना। इसका अर्थ है कि साधना का लक्ष्य सीधा सर्वोच्च परमात्मा तक पहुँचना होना चाहिए, न कि किसी अन्य माध्यम या अवांछित मार्ग पर भटकना।
सच्चा सतगुरु वही माना जाता है, जो वेद, गीता और अन्य प्रमाणित ग्रंथों के अनुसार पूर्ण ब्रह्म की भक्ति का मार्गदर्शन करता है। बिना ऐसे सच्चे संत की शरण लिए मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं मानी गई है।
कांवड़ यात्रा से मिलने वाले पुण्य और पाप का सच
कई लोगों के बीच यह धारणा प्रचलित है कि कठिन यात्राएँ करके व्यक्ति पुण्य अर्जित कर सकता है, लेकिन यदि हम सतज्ञान और शास्त्रों के आधार पर देखें तो यह केवल एक भ्रांति है। इस तरह की यात्राओं में अनगिनत सूक्ष्म जीव-जंतु अनजाने में पैरों के नीचे आकर मारे जाते हैं, जिससे व्यक्ति पाप का भागी बनता है। इसके अतिरिक्त, रास्ते में अवरोध उत्पन्न करना, ध्वनि प्रदूषण फैलाना और दूसरों के लिए असुविधा का कारण बनना भी पाप की श्रेणी में आते हैं। स्पष्ट है कि पाप से कभी पुण्य की प्राप्ति नहीं हो सकती।
शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सतभक्ति करता है, तो न तो किसी जीव की हत्या होती है और न ही कोई व्यवधान उत्पन्न होता है। साथ ही, परमात्मा भी प्रसन्न होते हैं। अतः वास्तविक पुण्य वही है, जो शास्त्रसम्मत हो और जिससे आत्मा का कल्याण सुनिश्चित हो सके।
समाज को क्या सीख लेनी चाहिए?
कांवड़ यात्रा सामाजिक दृष्टि से सहयोग, सहनशीलता और सामुदायिक एकता का प्रतीक अवश्य है। इसमें सम्मिलित लोग आपसी तालमेल और भाईचारे का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जो कि सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ करता है।
किन्तु, जब आध्यात्मिक लाभ या मोक्ष की बात की जाए, तो केवल परंपरा या लोकाचार का पालन पर्याप्त नहीं है। शास्त्रीय दृष्टिकोण से मोक्ष की उपलब्धि के लिए शास्त्रों में बताए गए मार्ग का अनुसरण करना आवश्यक है।
यदि पूजा-पद्धति शास्त्रीय विधि के अनुसार नहीं है, तो श्रद्धा या भक्ति चाहे जितनी भी गहन क्यों न हो, उसका अंतिम उद्देश्य—मोक्ष—प्राप्त होना संभव नहीं है। अतः अंधविश्वास, बाह्य प्रदर्शन अथवा स्वनिर्मित विधियों को त्यागकर शास्त्रसम्मत मार्ग अपनाना ही श्रेयस्कर है।
निष्कर्ष
कांवड़ यात्रा एक पारंपरिक धार्मिक आयोजन है, जिसकी जड़ें इतिहास में गहराई तक फैली हुई हैं। किंतु, यदि मोक्ष की बात करें, तो इसकी प्राप्ति इस यात्रा से सीधे-सीधे नहीं जुड़ी है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मोक्ष केवल पूर्ण ब्रह्म, अर्थात् कबीर परमात्मा की भक्ति से ही संभव है, और वह भी तब, जब साधक किसी सच्चे गुरु द्वारा निर्देशित मार्ग पर चले।
वर्तमान समय में आवश्यकता इस बात की है कि लोग सत्य ज्ञान को समझें, शास्त्रों के अनुसार साधना करें, और जीवन के वास्तविक उद्देश्य — मोक्ष — को अपनाएँ।
सुझावित ग्रंथ
यदि आप अधिक जानना चाहते हैं, तो संत रामपाल जी महाराज द्वारा रचित ‘ज्ञान गंगा’ एवं ‘जीने की राह’ पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करें। ये दोनों पुस्तकें निःशुल्क उपलब्ध हैं और इनके अध्ययन से आपकी आध्यात्मिक दृष्टि में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है।