आम गुठली से हाइड्रोजेल तक की यात्रा

आम गुठली से हाइड्रोजेल तक की यात्रा

हाइड्रोजेल: भारत में आम का उत्पादन लगभग 26.3 मिलियन टन है, जो वैश्विक स्तर का लगभग 45 % हिस्सा है।   इन में से गुठलियों की मात्रा काफी है—जो अक्सर बर्बाद हो जाती है। उसी समस्या को अवसर में बदलने का काम Bihar Agricultural University (BAU) ने किया। अगस्त 21 2025 को BAU ने इस नवाचार के लिए पेटेंट प्राप्त किया। 

नवाचार का मूल

गुठली की समस्या

गुठलियाँ आम फल का लगभग 20‑25 % वजन बनाती हैं, लेकिन अधिकांश बागानों में इन्हें पीटा या जलाया जाता है, जिससे पर्यावरण व आर्थिक अवसर दोनों गंवाए जाते हैं। 

हाइड्रोजेल क्या है?

हाइड्रोजेल एक जैव‑पॉलिमर सामग्री है जो पानी को अपने वजन या मात्रा का कई गुना सोख सकती है और धीरे‑धीरे रिलीज़ कर सकती है, इसलिए यह सूखे में भी मिट्टी को नमी प्रदान कर सकती है। 

BAU का शोध‑तंत्र

BAU में वरिष्ठ वैज्ञानिकों (डी. आर. सिंह, ए. के. सिंह) के नेतृत्व में शोध‑टीम ने आम की गुठली कर्नल पाउडर को प्रोसेस करके हाइड्रोजेल विकसित किया है, जिसे पेटेंट अन्तर्गत दर्ज किया गया। 

किसानों व कृषि पर प्रभाव

जल‑सूखा प्रबंधन

लैब परीक्षण में इस हाइड्रोजेल ने अपने वजन का लगभग 400 % पानी सोखा है, जिससे यह सूखे या कम‑पानी वाले इलाकों में फसलों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। 

बर्बादी को लाभ में बदलना

गुठलियों को ‘बाय‑प्रोडक्ट’ या कचरे के रूप में देखा जाता था। इस इनोवेशन ने इसे मूल्यवान संसाधन में बदल दिया—एक ‘वेस्ट‑टू‑वेल्थ’ मॉडल।

बिहार व आम‑उत्पादक राज्यों के लिए अवसर

बिहार आम उत्पादन में तीसरे स्थान पर है, यहाँ इस प्रकार की टेक्नॉलॉजी लागू होती है तो किसान की आय में वृद्धि, रोजगार में सुधार व स्थानीय उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है। 

कृषि-निर्यात व मूल्य‑श्रृंखला

इस हाइड्रोजेल से आम बागानों की उत्पादकता व गुणवत्ता बेहतर हो सकती है, जिससे निर्यात‑क्षमता भी बढ़ सकती है।

आम गुठली से हाइड्रोजेल तक की यात्रा

नवाचार के आगे के चरण

व्यावसायीकरण व ग्लोबल संभावना

यह शोध फिलहाल पेटेंट चरण पर है; अब इसे व्यावसायीकरण करना, उद्योग‑सहयोग करना व वैश्विक बाजार में लाना महत्वपूर्ण होगा।

लागत‑प्रभाव व वितरण चुनौतियाँ

हाइड्रोजेल के उत्पादन‑लागत, किसानों तक पहुँच और पायलट परियोजनाओं का विस्तार अभी आगे की चुनौतियाँ हैं।

पर्यावरणीय‑सततता

उच्च पानी‑सोखने वाली सामग्री के रूप में, यह टेक्नॉलॉजी जल संरक्षण और मिट्टी की सेहत के लिए सकारात्मक पहल हो सकती है।

Also Read: जानिए क्यों मनाया जाता है विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, क्या है इसका इतिहास और महत्त्व?

नवाचार का मानव‑केंद्रित स्वरूप

संत रामपाल जी महराज की सतज्ञान की शिक्षाएं यह बताएँती हैं कि वास्तविक प्रगति सिर्फ तकनीक या मुनाफे से नहीं आती — बल्कि सेवा, नैतिक उत्तरदायित्व व मानव कल्याण से होती है। जब एक विज्ञान‑प्रोजेक्ट आम‑गुठली जैसी कचरे वाली वस्तु को पुनर्जीवित कर किसानों की सहायता करता है, तो यह सिर्फ तकनीक नहीं, मानव‑सेवा का उदाहरण बन जाता है।

यह हाइड्रोजेल नवाचार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं बल्कि किसान‑जीवन, ग्रामीण अर्थव्‍यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों के बुद्धिमान उपयोग का संकेत है। समय यही कह रहा है कि तकनीक का उद्देश्य शक्ति या बाजार‑विराधी प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि सामूहिक कल्याण और संतुलन होना चाहिए।

विस्फोटक संभावना से व्यावसायीकरण तक

BAU का यह नवाचार वास्तव में एक गेम‑चेंजर हो सकता है — पायलट चरण से निकलकर यदि व्यावसायीकरण में सफल हुआ, तो यह किसानों की आय, जल‑प्रबंधन, बाय‑वेस्ट उपयोग और निर्यात‑क्षमता सभी में योगदान कर सकता है।

हालाँकि चुनौतियाँ हैं: लागत, वितरण‑मॉडल, किसानों का प्रशिक्षण और टेक्नॉलॉजी‑स्वीकरण — लेकिन दिशा स्पष्ट है। यदि इन पर ठोस कदम उठे, तो यह सिर्फ बिहार या भारत की सफलता नहीं, वैश्विक स्तरीय ‘सस्टेनेबल एग्रीटेक’ उदाहरण बन सकता है।

FAQs: BAU का आम‑गुठली हाइड्रोजेल नवाचार

Q1. यह इनोवेशन कब पेटेंट हुआ?

21 अगस्त 2025 को BAU को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा गुठली‑हाइड्रोजेल नवाचार के लिए पेटेंट मिला। 

Q2. यह हाइड्रोजेल कितना पानी सोख सकता है?

लैब परीक्षणों में यह अपने वजन का लगभग 400 % पानी सोखने में सक्षम पाया गया। 

Q3. यह क्यों महत्वपूर्ण है?

यह कृषि‑जल प्रबंधन की समस्या, आम गुठलियों की बर्बादी और किसानों की आय को प्रभावित करने वाली चुनौतियों को समाधान की दिशा में ले जाता है।

Q4. यह नवाचार किस राज्य और विश्वविद्यालय का है?

यह नवाचार बिहार राज्य के क्षेत्रफल में स्थित बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (BAU), साबौर (भागलपुर) का है। 

Q5. आगे क्या होगा?

अब व्यावसायीकरण, उद्योग‑सहयोग और किसानों तक प्रभावी पहुँच सुनिश्चित करना है—जिसमें लागत‑मॉडल, प्रशिक्षण व वितरण प्रमुख भूमिका निभाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *