नमस्कार दर्शकों! खबरों की खबर का सच स्पेशल कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे की पिछले दो साल में देश दुनिया के लोगों की जिंदगी में किस प्रकार के बड़े परिवर्तन आए हैं और वर्तमान समय में लोग किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं? और साथ ही जानेंगे कि क्या है द ग्रेट रेज़िग्नेशन या इस्तीफा जिसे देश दुनिया के लोग बड़ी संख्या में जमा कर रहे हैं?
दोस्तों! समय के साथ परिवर्तन करते रहना प्रकृति का नियम व एक सामान्य बात है, लेकिन धरती पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए हम मनुष्यों को नित नए परिवर्तनों और संघर्षों से जूझना पड़ता है। पिछले कुछ दशकों और वर्षों में जिस तरह के परिवर्तनों का सामना मानव समाज को करना पड़ रहा है वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं कहा जा सकता। हम बात कर रहे हैं साल 2019 से फैले कोरोना महामारी के प्रकोप की, जिसके बाद से पूरे विश्व के लोगों की जीवनशैली में गंभीर रूप से परिवर्तन आया है।
पिछले 2 सालों में कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते पूरे विश्व को गरीबी, बेरोज़गारी, पलायन, बढ़ती मृत्यु दर, मानसिक कष्ट व शारीरिक परेशानियों, आर्थिक तंगी और देश दुनिया की अर्थव्यवस्था में आई भारी गिरावट जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है। कोरोना महामारी के दौरान लोगों के साथ हुई घटनाओं ने लोगों के जीवन जीने के ढंग और जीवन के प्रति उनके नज़रिए को पूरी तरह से बदल दिया है। बेरोजगारी के इस अखंड दौर में क्या कभी किसी ने सोचा था की एक दिन ऐसा भी आयेगा जब लोग नौकरियां तो ढूंढेगे परंतु नौकरियां उन्हें ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगी और लोगों को लगी लगाई नौकरियों से भी हाथ धोना पड़ेगा? आर्थिक तंगी और गरीबी की दोहरी मार के चलते बड़ी बड़ी कंपनियां भी अचानक एक दिन बंद हो जाएंगी और लोगों को पैदल ही पलायन करना पड़ेगा? खैर,कुदरत के खेल को कोई नहीं समझ सकता।
अचरज की बात है कि ” महामारी के दौर में भी विदेशों में लोगों ने दिए भारी इस्तीेफे”
- पूरी दुनिया में नौकरी करने वालों की संख्या 350 करोड़ के लगभग है और अब इनमें से 40 प्रतिशत यानी 140 करोड़ लोग अपनी वर्तमान नौकरी छोड़ना चाहते हैं, इसके लिए कई कारण ज़िम्मेदार हैं क्योंकि बहुत सारे लोग अब अपने काम से ब्रेक लेना चाहते हैं, काम का दबाव , मानसिक परेशानी , घरेलू समस्या, तो कुछ लोग अपना करियर बदलना चाहते हैं, यानी कुछ नया करना चाहते हैं।
- दोस्तों क्या आप जानते हैं, अमरीका में कोरोना वायरस महामारी के कारण लेबर मार्केट में बड़ी संख्या में एक ‘भूकंपीय बदलाव’ या भारी संख्या में रेज़िगनेशन देखने को मिला है। अमरीका में वर्तमान समय में लगभग 10 मिलियन यानी 1 करोड़ जॉब वैकेंसीस उपलब्ध हैं। आंकड़ों के मुताबिक अमरीका में लॉकडाउन के बाद करीब 4.3 मिलियन यानी 43 लाख लोगों ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यह सिलसिला अकेले अमरीका ही नहीं बल्कि कैनेडा, यूके, जर्मनी और यूरोप के कई अन्य देशों में भी देखने को मिला।
- Limeade के एक सर्वे के मुताबिक 40% लोग बर्नआउट की वजह से नौकरी छोड़ रहे हैं। लोग ऐसी नौकरी चाहते हैं, जो फ्लेक्सिबल हो, जिसमें काम के कम घंटे और हफ्ते में कम दिन वाले हों। काम वर्क फराम होम हो तो भी अच्छा यानी एक ऐसी नौकरी जो उनकी लाइफ स्टाइल के हिसाब के मुताबिक हो।
- अमेरिका की एजेंसी यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिक्स के अनुसार अगस्त के महीने में रिकॉर्ड तोड़ 4.3 मिलियन लोगों ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया। ये अमेरिका की कुल वर्क फोर्स (Work Force) का तीन प्रतिशत है और यह जुलाई में दिए गए 2,42,000 इस्तीफों से अधिक है। रिसर्च करने वाली एक संस्था के सर्वे के मुताबिक, अमेरिका के 50 प्रतिशत लोग अब करियर के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं।
नौकरी से इस्तीफा देने के क्या कारण रहे हैं?
लोगों के तेज़ी से अपनी नौकरियों से इस्तीफा देने का कारण यह है कि वे ज़रूरत से ज्यादा काम के दबाव से परेशान थे और अपनी लाइफ स्टाइल में अब कुछ चेंज करना चाहते हैं। नौकरी छोड़ रहे लोगों का मानना है कि कम सैलेरी, मालिकों के बुरे बर्ताव और ज्यादा समय तक काम करने को लेकर वह अब ऊब चुके हैं। महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन में आत्म चिंतन के बाद इन लोगों ने इस्तीफा देने का फैसला लिया है।
भारत में रोज़गार की स्थिति विपरीत है
भारत में लोग जहां रोज़गार के लिए परेशान हैं तो वहीं दूसरी तरफ यूरोप और अमेरिका में तेज़ी से लाखों लोग नौकरियां छोड़ रहे हैं।
भारत में जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम हैं
हालांकि भारत में नौकरी छोड़ने को लेकर ऐसा ट्रेंड नहीं दिखाई दिया। भारत में नौकरी की अर्थव्यवस्था यूरोप और अमेरिका से बिल्कुल अलग है। यहां लोग अपनी और अपने परिवार की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा को देखते हुए इतनी जल्दी नौकरी छोड़ना उचित नहीं समझते। दूसरा यह कि भारत में रोजगार कम हैं और जनसंख्या ज्यादा है। भारत एक ऐसी जगह है जहां पर एक एक जॉब- वेकेंसी के लिए सैकड़ों लोगों के कंपटीशन का सामना करना पड़ता है।
आखिर क्या कारण है की लोग विदेशों में नौकरियों से त्यागपत्र दे कर अपने घर में बैठ रहे हैं?
द वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारी मात्रा में नौकरियां छोड़ने की वजह से रिटेल, हॉस्पिटैलिटी, ट्रांसपोर्टेशन, प्रोफेशनल और बिजनेस सर्विसेज से जुड़े या फिर जो लोग नौकरी बदलने की सोच रहे हैं खासा प्रभावित हुए हैं। नौकरियां छोड़ने वालों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं।
■ Also Read: Mumbai Terror Attack (26/11 ): जब गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल उठी थी मुंबई, जानें क्या हुआ था उस दिन?
कई विशेषज्ञों के अध्ययन और स्टडी के बाद यह सामने आया है की लॉकडॉन के चलते कई कंपनियों के कर्मचारियों को कई महीनों तक ओवरटाइम करना पड़ा। कई महीनों के लगातार काम करने के कारण लाखों कर्मचारी मानसिक तनाव, डिप्रेशन, एंज़ाइटी और स्ट्रेस के शिकार हो गए। इस दौरान कर्मचारी अपने परिवार वालों को पूरा समय नहीं दे पा रहे थे। कई कर्मचारियों ने महीनों तक एक भी छुट्टी नहीं ली थी। ऐसे में अपनी होबिज़ के लिए समय न मिल पाना, खुद को पर्सनल टाइम न दे पाना आदि आदि परेशानियों से कर्मचारी निरंतर जूझते रहे। कोरोना महामारी में कई कर्मचारियों ने अपने परिवार के निजी सदस्यों को खो दिया, जिनसे वे एक गहरे सदमे में आ गए। महीने के 30 दिन और दिन के 12 से 15 घंटे मेहनत करने वाले कर्मचारी कम सैलेरी मिलने से परेशान हैं और मानसिक हैल्थ की अहमियत को समझ रहे हैं।
देश दुनिया में लोग खोज रहे हैं नौकरी के अन्य विकल्प
अमेरिका के साथ-साथ मध्य और पूर्वी यूरोप और जर्मनी में भी लोग नौकरी नहीं करना चाहते। दूसरा यह कि लोग तेज़ी से स्टार्टअप की ओर बढ़ रहे हैं। युवा या फिर कुछ वर्ष तक नौकरी कर चुके लोग अब अपना खुद का काम धंधा स्टार्ट करना चाहते हैं। जर्मनी में स्टार्टअप की बढ़ती संख्या यही दर्शाती है।
नौकरियां छोड़ने के साथ नौकरियां मिलने का सिलसिला भी तेज़ है
- एक तरफ जहां दुनिया भर में लोग तेजी से अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कंपनियां तेज़ी से लोगों को हायर भी कर रही हैं क्योंकि इस्तीफा देने से खाली हुए पदों को भरना भी ज़रूरी है। महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी ने कंपनियों को लोगों को तेजी से हायर करने के लिए प्रेरित किया है। इसके साथ ही लोगों के वेतन में भी बढ़ोतरी की जा रही है। यूरोप में जहां 3 से 5 फ़ीसदी की सैलरी में बढ़ोतरी हुई है। वहीं भारत में इस साल 7.7 फ़ीसदी सैलरी में बढ़ोतरी का अनुमान है।
- जर्मन न्यूज़ वेबसाइट डीडब्ल्यू (DW) में छपी एक खबर के अनुसार, अन्सर्ट एंड यंग, केपीएमजी, डेलाइट, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और पीडब्ल्यूसी समेत भारत के कई बड़े आईटी सेक्टर की कंपनियों में भी तेजी से नई भर्तियां हो रही हैं।
लोगों की ज़िंदगी में नौकरी में बदलाव के साथ और क्या क्या बदल रहा है?
आत्महत्या दुनिया भर में लोगों और उनके आसपास के जीवन को प्रभावित करती है, जो सभी राष्ट्रों, संस्कृतियों, धर्मों, लिंगों और वर्गों के व्यक्तियों को प्रभावित कर रही है। COVID-19 महामारी के दौरान आत्महत्या से होने वाली मौतों में वृद्धि की संभावना लंबे समय से चिंता का विषय रही है। हालाँकि, ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो (ABS) के नए जारी किए गए डेटा बताते हैं कि 2020 में आत्महत्या की दर पिछले वर्षों की तुलना में थोड़ी कम हुई है। 2019 में 12.9 और 2018 में 12.6 की तुलना में 2020 में आयु-मानकीकृत आत्महत्या दर प्रति 100,000 लोगों पर 12.1 थी।
भारत में NCRB की ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड’ रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2020 में आत्महत्या सबसे ज़्यादा दिहाड़ी मजदूरों ने की है। छात्रों में आत्महत्या से होने वाली मौतें 2019 में 10,335 से बढ़कर 2020 में 14,825 हो गईं। 21.20% की वृद्धि और सभी व्यवसाय श्रेणियों में साल-दर-साल इस तरह की सबसे अधिक वृद्धि हुई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आत्महत्या दुनिया में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है, जो हर 100 मौतों में से एक के लिए जिम्मेदार है। हर साल, एचआईवी, मलेरिया, कैंसर, युद्ध और हत्या से अधिक लोग आत्महत्या से मरते हैं। हालाँकि, हर साल 700,000 से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मर जाते हैं। भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में तो लॉकडाउन के दौरान आत्मघाती व्यवहार की रिपोर्ट में 67% तक की वृद्धि देखी गई है। worldometer और WHO के मुताबिक साल 2021 में अब तक पूरे विश्व में 9 लाख 62 हजार 400 से भी अधिक लोगों ने आत्महत्या की है। यह आंकड़ा सालाना औसत से कई गुना अधिक है।
वर्तमान समय की स्थिति में मानव समाज मानसिक दबाव बढ़ाने वाली धन की दौड़ और शक्तिशाली बनने की होड़ छोड़ आध्यात्मिकता की ओर क्यों मुड़ रहे हैं?
कोरोनाकाल के इस संघर्षमय और उथलपुथल के समय में लोग अब अपनी और अपनों की जिंदगी की अहमियत को भी समझने लगे हैं। परिणामस्वरूप लोग अपने जीवन का अधिकतर समय माया की दौड़ में और धन संग्रह करने में गंवाना नहीं चाहते। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, सैकड़ों लोगों का झुकाव आध्यात्मिकता की ओर भी हुआ है। यह झुकाव इसलिए भी हो रहा है क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान से ही मानसिक शांति स्थापित होती है और जब मन संतुष्ट होता है तो भौतिक वस्तुओं के संग्रह की होड़ स्वतः स्माप्त होने लगती है। आध्यात्मिक ज्ञान होने पर ही मनुष्य को अपने अस्तित्व का पता चलता है और परमात्मा पर विश्वास होने लगता है।
आज से लगभग 600 साल पहले पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने धरती पर प्रकट होकर सत्य आध्यात्मिक मार्ग की नींव रखी थी। वर्तमान समय में इसी सत्य आध्यात्मिक मार्ग को पूरे विश्व में पहुंचाने का कार्य संत रामपाल जी महाराज जी कर रहे हैं। पूर्ण परमात्मा के इस अद्वितीय ज्ञान में पूरे विश्व को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करने की शक्ति है, जिससे पूरे विश्व के प्राणी सुखी और सफल जीवन जी सकते हैं। इस तत्वज्ञान से माया की दौड़, सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र और धनी बनने की होड़, लोक दिखावा , बाह्य आडंबर, मानसिक तनाव, अशांति, भय, शौक, बीमारियों और अंधविश्वास को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। इस तत्वज्ञान से पूरे विश्व में ऐसा सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है जिस से पूरे विश्व में सतयुग की स्थापना हो सके और पृथ्वी स्वर्ग समान बन सके। आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी ,नानक जी को कबीर परमेश्वर अपने निजधाम सतलोक ले गए थे फिर वापिस बेई नदी पर छोड़ा था।
श्री नानक जी के जीवन परिचय में एक प्रसंग आता है जो इस प्रकार है
श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था। नानक जी को जब पूरा आध्यात्मिक ज्ञान समझ आ गया तो उन्होंने जीवनपर्यंत तक कबीर साहेब जी द्वारा सतभक्ति भी की और जीवनयापन के लिए खेती भी की। इस विडियो को देखने वाले सभी भाइयों बहनों से प्रार्थना है कृपया कर संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा बताए गए तत्वज्ञान को गहराई से समझें और व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन के प्रत्यक्षदर्शी बनें।