Beta Beti Ek Saman: नमस्कार दर्शकों! “खबरों की खबर का सच” कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज की सोशल पड़ताल में हम बेटा और बेटी में किए जाने वाले भेदभाव पर चर्चा करेंगे और साथ ही जानेंगे की आखिर समाज बेटा और बेटी में अंतर क्यों करता है और मन से कैसे मिटाएं बेटा-बेटी में किए जाने वाले अंतर को?
दोस्तों! भारत देश ने तकनीकी क्षेत्र में बहुत तरक्की की है जिससे देश उन्नत हुआ, समाज विकसित और लोगों के रहन सहन में सकारात्मक बदलाव आया। लेकिन पुरानी और दकियानूसी रूढ़ियों के कारण आज भी समाज का एक महत्वपूर्ण वर्ग जिसे बेटी कहते हैं समानता के अधिकार से कोसों दूर जीवन जीने को मजबूर है। हमारे समाज की एक बहुत बड़ी बुराई यह है कि उसमें बेटा और बेटी में बहुत अधिक फर्क किया जाता है। क्या आपने कभी यह सोचा है कि भारत में लड़की के जन्म पर इतना दुख क्यों मनाया जाता है? क्योंकि लडक़े-लडक़ी को लेकर भेदभाव लैंगिक आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक कारणों की वजह से शुरू हुआ । क्या लड़की का जन्म माता पिता को इसलिए भी डराता है क्योंकि उसके विवाह में हैसियत से बढ़कर दहेज देना पड़ता है और उसकी इज्ज़त को बचाए रखने के लिए सदा चौकस रहना पड़ता है?
Beta Beti Ek Saman: भारत का प्राचीन काल और बेटियाँ
प्राचीन काल से ही भारत देश में बेटा बेटी में भेदभाव करने की गलत परंपरा रही है। यह भेदभाव इतने चरम पर था कि इसके कारण न जाने कितनी माओं की कोख उजाड़ी गई, कितनी ही महिलाओं ने अनगिनत तानें , यात्नाएं व शारीरिक पीड़ा सहीं। पहले , बेटी पैदा होते ही या तो उसे मार दिया जाता था,या गंगा में बहा देते थे या फिर ज़िंदा ही ज़मीन में गाड़ दिया जाता था।
बेटे के जन्म पर जहां थाल बजाए जाते थे, गांवों के गांवों को न्यौता दिए जाते थे तो बेटी के जन्म पर बेटी को जन्म देने वाली मां भयभीत और पूरे परिवार में शोक की लहर छा जाती थी मानों किसी की मौत हो गई हो। समाज की परंपराएं बड़ी ही दोगली रही हैं बेटे से विवाह करने के लिए तो लड़की चाहिए जिससे वंशबेल आगे बढ़ सके। परंतु एक औरत द्वारा पहली संतान बेटा होना चाहिए मानो बेटी का पैदा होना अभिशाप हो।
लोगों की मानसिकता ऐसी है कि बेटे को तो हर मायने में श्रेष्ठ समझा जाता है और बेटी को कमतर। बेटे की शिक्षा में कभी पैसों का हिसाब नहीं रखा जाता लेकिन बेटी को शिक्षा दिलाना किसी युद्ध में जीत की तरह होता था। बेटे को हर आज़ादी दी जाती है लेकिन बेटी को बचपन से ही उस की सीमाएं बता दी जाती हैं। दोस्तों, विचार कीजियेगा क्या ऐसी गलत मानसिकता के साथ कोई भी समाज तरक्की कर सकता है? लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना इस भेदभाव को खत्म करने में मदद कर सकता है।
आइए अब हम वर्तमान समय में बेटियों की स्थिति पर एक नज़र डालते हैं
आज बेटियां किसी भी कार्यक्षेत्र में पीछे नहीं हैं। चाहे वह खेल हो , कुश्ती , डॉक्टर , वकील , साइंटिस्ट ,पायलट, टीचर ,पुलिस अफसर आदि। वह घर ,परिवार और आफिस तीनों को बखूबी संभाल रही हैं। लेकिन फिर भी घर, परिवार ,आफिस और समाज के लोग उन्हें हमेशा पीछे ही रखने की कोशिश करते हैं। आज भी ऐसे बहुत से परिवार हैं जहाँ बेटे ओर बेटी में भेदभाव किया जाता है। बेटियों की पढ़ाई पर इसलिये रोक लगा दी जाती है की
- कहीं वो पढ़लिख कर लड़कों से आगे न निकल जाएं
- घर से दूर किसी देश में पढ़ने जाने और नौकरी करने की मांग न करें
- कहीं किसी लड़के के साथ प्रेमप्रसंग चला कर परिवार की इज्ज़त न खराब कर दें
- लड़की की पढ़ाई पर पैसा खर्च करने से उसे बचाना ज़्यादा अच्छा है क्योंकि बेटी की शादी में दहेज भी तो देना पड़ता है।
- उन्हें ये भी डर रहता है कि कहीं लड़की किसी अन्य जाति या छोटी जाति के लड़के के साथ भाग ना जायें।
Beta Beti Ek Saman: नाबालिक लड़कियाँ और शादी
अधिकतर परिवारों में समाज और बिरादरी के भय के कारण नाबालिक लड़की की या फिर लड़की के अठारह वर्ष की होते ही उसकी शादी कर दी जाती है । ऐसी उम्र में न तो लड़की मानसिक रूप से और न ही शारीरिक रूप से इतनी समझदार हो पाती है कि वह घर, परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी सही तरह से उठा सके। ऐसे समय पर यदि लडकियों की शादी कर दी जाती है और यदि पहला बच्चा लड़की ही हो जाती है तो जच्चा और बच्चा दोनों की जान के लिए परिवार वाले आफत ला देते हैं।
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अकसर घरों में लड़कियों को तो घर के सभी काम सिखाए जाते हैं परंतु लड़कों को अपने आप पानी का गिलास भरकर पीने पर भी ज़ोर नहीं दिया जाता। घर के पुरूष औरतों को अपने काबू में रखना अपना पौरूषत्व समझते हैं। बचपन से ही बेटियों को यह अहसास कराया जाता है की वो पराई अमानत हैं उन्हे जन्म से ही प्यार देने की बजाय बोझ समझा जाता है। कई परिवारों में तो बेटियां जिंदगीभर अपनेपन ,प्यार और समानता के अधिकार को तरस जाती हैं। दुख की बात तो यह है कि जब लड़की के मां बाप भी उनके मन की बात नहीं सुनते और लडकियों पर अपनी मनमानी थोपते रहते हैं । इज्ज़त और समाज के डर से मां बाप बेटियों की इच्छाओं को दबा देते हैं। बहुत कम मां बाप ऐसे होते हैं जो शुरु से ही बेटियों के मन की बात सुनते हैं। उन्हें बेटों जैसा लाडप्यार और दुलार देते हैं।
Beta Beti Ek Saman Essay in Hindi
कई परिवारों में ऐसा भी होता है की जब बेटियां अपनी बात सामने रखती हैं तो उनकी बात सुनने की बजाय उन्हें मारपीट कर चुप करा दिया जाता है। यदि किसी की बेटी भाग जाती है और कुछ समय बाद यदि फिर से लौटकर घर आती है तो घर के सदस्य उसको सहज रूप से स्वीकार नहीं करते हैं। अधिकतर बेटियों को आज भी परिवार की इज्ज़त के नाम पर मार दिया जाता है।
कलयुग के इस माडर्न समय में भी जहां शहरी लड़कियों को तो अपने हिसाब से जीने का, पढ़ने, पहनने, रहने , काम करने की आज़ादी है परंतु छोटे शहरों, राज्यों ,कस्बों और गांवों में बेटियों की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी आज़ादी ,आज़ाद भारत के प्रत्येक नागरिक को अर्थात बेटियों को भी मिलनी चाहिए । आज भी गरीब घरों और गांवों में बेटियों का जीवन स्तर बहुत खराब है।
- समाज में बेटों को कुल का चिराग बताया जाता है लेकिन लड़कियों को पराया धन कहा जाता है। मां-बाप हमेशा लड़कियों को यही कहते हैं कि वह तो पराया धन हैं।
- मां बाप के बुढ़ापे का सहारा तो बेटा व बेटी दोनों बन सकते हैं फिर यह भेदभाव क्यों? जहां एक ओर बेटियों को लक्ष्मी का रूप बताया जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें दहेज के लालच में जला दिया जाता है।
- वहीं दूसरी ओर भारत देश का नाम ऊंचा करने वाली ऐसी भी अनेकों बेटियां हैं जिन्होंने हर परिस्थिति का डट कर सामना किया और समाज को सोचने पर मजबूर किया है कि अब भेदभाव खत्म करो
भारत को महान देश बनाने के पीछे कई स्त्रियों का साहस और बलिदान भी है जिसे बिल्कुल नज़रांदांज़ नहीं किया जा सकता जैसे रानी लक्ष्मीबाई, रानी पद्मावती, माता सीता, द्रौपदी, कुंती से लेकर कल्पना चावला, बछेंद्री पाल,मैरी कॉम, पीटी ऊषा,.दीपा करमाकर.,मिताली राज,गीता फोगाट,सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी,सरला ठकराल,शिवांगी, असीमा चटर्जी, किरन बेदी आदि बेटियां भारत का गौरव हैं। लेकिन फिर भी वर्तमान समय में बेटा बेटी में फर्क किया जा रहा है।
अक्सर कहा जाता है की बेटा घर की शान होता है और बेटी आन होती है, आइए जानने की कोशिश करते हैं की यह सब कहां तक सही है..?
भारत में बेटा और बेटी में फर्क सदियों से किया जाता आ रहा है। अधिकतर समाज बेटी को केवल बोझ ही मानते हैं और केवल समाज में दिखावे के लिए ही बेटियों को महत्त्वता दी जाती है। यहां के कई हिस्सों में बेटियों के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता है बल्कि शोक मनाया जाता है और बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है। कई मामलों में लड़कियों के जन्म से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है और उनकी भ्रूण हत्या कर दी जाती है। अगर वह भ्रूण हत्या से बच जाती हैं तो उसे जन्म लेने के बाद या तो मार दिया जाता है या पेटी में बंद कर गंगा में बहा दिया जाता है या कचरे के डब्बे में फैंक दिया जाता है या फिर अनाथ आश्रम की सीढ़ियों पर छोड़ दिया जाता है। देश भर में कई लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए भी मजबूर कर दिया जाता है। पुरुषवादी सोच ने महिलाओं को पुरुषों से कमतर साबित किया है।
Beta Beti Ek Saman: आइए अब एक बेटी के साथ होने वाले अपराधों पर नज़र डालते हैं
आज देश की महिलाएं डॉक्टर, साइंटिस्ट, एस्ट्रोनॉट, पुलिस, आईएएस, प्रेसिडेंट,प्राइम मिनिस्टर, चीफ मिनिस्टर आदि तक बन रही हैं लेकिन इतनी प्रगति के बावजूद भी अधिकांश घरों में बेटा और बेटी में फर्क किया जाता है। जिसके चलते उनके साथ कई अपराध होते हैं। यह भेदभाव इतना विशाल है कि यह सब जगह साफ दिखाई देता है जैसे कि उनका यौन और मानसिक शोषण किया जाता है।
कन्या भ्रूण हत्या
गर्भपात के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या करना और करवाना कानूनन जुर्म होने के बावजूद जारी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में बाल लिंग अनुपात सबसे कम है, जो कि हर 1000 लड़कों के लिए सिर्फ 914 लड़कियों के साथ है। भारतीय समाज अभी भी बेटियों को सशक्त बनाने के महत्व के प्रति बहुत अधिक जागृत नहीं हुआ है। आंकड़े अभी भी कन्या भ्रूण हत्या, बालिका भेदभाव, और लिंग पूर्वाग्रह की एक गंभीर कहानी बताते हैं। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2013 से 2017 के बीच भारत में 4.6 करोड़ बेटियां जन्म से पहले ही लापता हुईं।
बाल विवाह
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में हर 3 भारतीय लड़कियों में से 1 बाल वधु है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 15 साल से कम उम्र की 45 लाख से अधिक लड़कियां हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है । इनमें से 70% लड़कियों के 2 बच्चे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक ही दशक में भारत में 1 करोड़ 20 लाख बाल विवाह हुए हैं।
दहेज प्रथा
दहेज जैसी कुरीति आज भी सेकडो माता पिता का खून चूस रही है। देश में हर एक घंटे में 5 दहेज के मामले देखे जाते है व 1 बेटी की मौत देखी जाती है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 से 2014 तक 24,771 बेटियो की दहेज के चलते मौत हो गई।
दहेज प्रथा के कारण हुई मौतों में उत्तर प्रदेश 7.048 सबसे आगे है वहीं बिहार 3.830 और मध्य प्रदेश 2.252 है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 3.48 लाख मामले पति और उनके परिवार द्वारा घरेलू हिंसा के दर्ज हुए है। घरेलू हिंसा सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल(61,259) मे हुआ है इसके बाद क्रमश: राजस्थान (44,311) और आंध्र प्रदेश (34,835) का नंबर आता है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अपहरण आदि शामिल हैं। साल 2017 में करीबन ऐसे 3 लाख 60 हजार मामले दर्ज हुए थे। वहीं साल 2015 और 2016 में इनकी संख्या 3.4 लाख और 3.3 लाख थी। यह दर्शाता है की साल प्रतिसाल देश की बेटियो के साथ होने वाले अपराधों में वृद्धि देखी जा रही है।
भारत और अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना भी ज्यादा चलन में है। विश्व के कई देश ऐसे हैं जहां लड़की के पैदा होने पर उनका खतना किया जाता है। दुनियाभर में लगभग 20 करोड़ से ज्यादा महिलाओं का खतना हो चुका है। जिसे फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) कहा जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जानने की कोशिश करते हैं की बेटा-बेटी में क्या अंतर होता है और इनमें भेदभाव करना कहां तक सही है?
दोस्तों! पवित्र वेद, कुरान, बाइबल आदि गवाही देते हैं की परमेश्वर ने सृष्टि की शुरुआत अपने ही स्वरूप अनुसार नर और नारी की उत्पत्ति कर की। परमेश्वर ने कभी अपनी संतानों में भेदभाव नहीं किया। हमारे पवित्र सद्ग्रंथ हमें बताते हैं की बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता। आध्यात्मिक ज्ञान बताता है परमेश्वर की इच्छानुसार ही प्राणी को संतान रूप में बेटा या बेटी प्राप्त होती है। बेटा या बेटी में भेदभाव करना एक घोर पाप है।
इसी विषय में परमेश्वर कबीर साहेब जी कहते हैं
नारी निंदा ना करो, नारी रत्न की खान।
नारी से नर होत है, ध्रुव प्रह्लाद समान।।
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने उन सभी महापुरुषों की माताओं को हाथ जोड़कर प्रणाम किया है जिन की कोख से ऐसे संत और भगत आत्मा उत्पन्न हुए।
इसी विषय में संत गरीबदास जी भी अपनी अमृत वाणी में बताते हैं
गरीब नारी नारी क्या करें नारी भक्त विलास ।
नारी शेती ऊपजे धना भक्त रविदास ।।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी कंचन सींध।
नारी से ऊपजे वाजिद और फरीद।।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी नर की खान।
नारी शेती उपजे नानक पद निरबान ।।
गरीब, नारी नारी क्या करें नारी निर्गुण नेश।
नारी सेती ऊपजे, ब्रह्मा विष्णु महेश।।
गरीबदास जी बताते हैं की धन्ना भगत, रविदास, वाजिद खान, शैख फरीद, गुरु नानक देव आदि महापुरुषों का जन्म भी नारी से ही हुआ है। वहीं ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवी देवताओं का जन्म भी एक नारी से ही हुआ है। इसीलिए नारी के साथ भेद भाव करना एक घोर अपराध है।
वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही सत्य आध्यात्मिक ज्ञान यानी तत्वज्ञान बता रहे हैं वे अपने सत्संगों के माध्यम से बताते हैं की – नर हो चाहे नारी उनकी आत्मा की कोई जाति नहीं होती। सभी प्राणी की आत्मा एक समान है उसमे कोई भी अंतर नहीं, इसीलिए हमने बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं करना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज पूरे भारत में दहेज मुक्त अभियान चला रहे हैं, जिसके चलते बिना कोई फिजूल खर्ची किए सादगीपूर्ण महज 17 मिनट में जोड़ो के विवाह करवाए जाते हैं जिन्हे रमैणी भी कहा जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयाई अपने गुरुजी के द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार बेटा व बेटी में कोई भी अंतर नहीं करते।
वर्तमान में सभी माताओं और बहनों से SA News की प्रार्थना है कि अपने बच्चों को वे आध्यात्मिक शिक्षा अवश्य दें। अपने बच्चों को बचपन से ही तत्वज्ञान से परिचित करवा कर सतभक्ति के मार्ग पर लगाएं ताकि बडे़ और बच्चे सभी समानता के अधिकार के साथ जी सकें।