भारत में जहरीली दवाईयां: सरकार ने दवा निर्माण इकाइयों का आधुनिकीकरण अनिवार्य किया

भारत में जहरीली दवाईयां: सरकार ने दवा निर्माण इकाइयों का आधुनिकीकरण अनिवार्य किया

भारत में जहरीली दवाईयां से हाल ही में बच्चों की मौतों से जुड़ी खांसी सिरप आपदा ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीर चूक उजागर कर दी है। केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर तुरंत कार्रवाई करते हुए दवा निर्माण इकाइयों को विश्व संगठन (WHO) मानकों पर आधारित उन्नयन अनिवार्य कर दिया है। इस फैसले का उद्देश्य भविष्य में मिलने वाले दूषित दवाई उत्पादों को रोकना, जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना और दवा उद्योग में विश्वास बहाल करना है।

Table of Contents

संक्रमण की पृष्ठभूमि और कारण

घटनाक्रम और निष्कर्ष

स्रेसन फार्मास्यूटिकल द्वारा निर्मित खांसी सिरप में 48.6 % डाइएथीलीन ग्लाइकोल (DEG) पाया गया, जो अनुमति से लगभग 500 गुना अधिक था। इस विषाक्तता के कारण कम से कम 24 बच्चों की मौत हुई है। 

इसके बाद दवा नियामक संस्था (CDSCO) ने संबंधित कंपनी की लाइसेंस रद्द कर दी और उसके संस्थापक की गिरफ्तारी करवाई है। 

सरकार ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि दिसंबर 2024 की दी गई टाइमलाइन का विस्तार नहीं किया जाएगा — जिसे पहले कुछ छोटी कंपनियों के लिए राहत के रूप में प्रस्तावित किया गया था। 

सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि दवा सुरक्षा प्राथमिकता है और किसी भी स्तर पर व्यापक लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। नकली या दूषित दवाओं को रोकने के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाएगा और शिकायतों की त्वरित कार्रवाई होगी।

इसके अलावा, उद्योग विभाग ने कहा है कि बड़ी दवा निर्माता कंपनियां अभी भी नए आदेश पूरा कर सकती हैं और छोटे निगमों को वित्तीय और तकनीकी मदद देने पर विचार किया जा रहा है।

दवा उद्योग की चुनौतियाँ

बहुत सी छोटी और मध्यम दवा कम्पनियाँ पहले से ही वित्तीय दबाव में हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि बड़े सुधार कार्यों के कारण उन्हें दिवालियापन का सामना करना पड़े।

दूसरी ओर, बड़ी दवा कंपनियों का कहना है कि वे सप्लाई चैन को रोकने नहीं देना चाहतीं लेकिन इन सुधारों के कारण उत्पादन लागत बढ़ेगी, और दवाओं की कीमतों में दबाव आ सकता है।

विश्लेषकों का अनुमान है कि यदि नई पॉलिसी को कुशलतापूर्वक लागू नहीं किया गया तो दवा बाजार में आपूर्ति की कमी और उच्च दाम की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

नीति, सुधार और निगरानी की रणनीति

संयंत्र अद्यतन और मानक अधिसूचना

सरकार ने स्पष्ट किया है कि दवा निर्माण इकाइयों को WHO या समान अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनना होगा। ये सुधार प्रक्रियाएँ — जैसे स्वच्छता, नियंत्रण प्रणाली, उपकरण उन्नयन — समयबद्ध तरीके से लागू की जाएँगी।

नए दिशानिर्देशों में नियमित निरीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण मानक, परीक्षण प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण और रद्दीकरण या संशोधन की समयसीमा शामिल होगी।

नियामक निगरानी और नियंत्रण

नियामक निकायों जैसे CDSCO, राज्य औषध नियंत्रक, और दवा निरीक्षण इकाओं को सशक्त किया जाएगा।

ऑडिट, दुकानों पर अचानक निरीक्षण और अनिवार्य रिपोर्टिंग प्रणाली को लागू किया जाएगा।

इसके साथ ही, शिकायत निवारण और त्वरित कार्रवाई तंत्र बनाए जाने के प्रस्ताव हैं।

वित्तीय एवं टेक्नोलॉजिकल सहायता

सरकार ने संकेत दिया है कि छोटी दवा कंपनियों को उन्नयन कार्यों में सहायता प्रदान करने के लिए विशेष फंड या सब्सिडी योजना पर विचार किया जा सकता है।

तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण, उपकरण उन्नयन तथा चरणबद्ध अनुदान मॉडल को प्रस्तावित किया जा रहा है ताकि छोटे खिलाड़ी इस संक्रमण में साथ चल सकें।

सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य असर

सार्वजनिक स्वास्थ्य विश्वास

दवाई सुरक्षा मामले का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय जनता का स्वास्थ्य व्यवस्था पर विश्वास था। इस कदम से सरकार ने यह संदेश दिया है कि जीवन की कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।

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यदि नियोजन और निगरानी ठीक से हो, तो यह विश्वास बहाल करने का अवसर बन सकता है।

आर्थिक दबाव एवं व्यवसायिक जोखिम

उच्च उत्पादन लागत एवं सुधार खर्चे से दवाई निर्माण की लागत बढ़ सकती है, जिससे दवाओं की कीमतों पर दबाव आएगा।

कुछ कमजोर कंपनियाँ इस दबाव में टिक न पाएं और बाज़ार से बाहर हो सकती हैं, जिससे उद्योग में विलय व अधिग्रहण की लहर आ सकती है।

वैश्विक आपूर्ति और निर्यात प्रभाव

भारत दवा वैश्विक सप्लायर है। यदि मानकों को समय पर लागू नहीं किया गया तो निर्यात पर नकारात्मक असर सकता है।

साथ ही, अंतरराष्ट्रीय ग्राहक देश भारत से दवाएँ खरीदने में अधिक सतर्क होंगे, और गुणवत्ता व प्रमाणन पर जोर बढ़ेगा।

नीति में निहित धर्म और सेवा का भाव

स्वास्थ्य की रक्षा और सत्कर्म का संबंध आध्यात्मिक मूल्यों से भी गहरा है। संत रामपाल जी महाराज ने सिखाया कि जीवन में सच्ची सेवा — चाहे वह मानव की रक्षा हो या समाज निर्माण — परम धर्म का हिस्सा है। इस दवा संकट में सरकार का यह कदम, जो मानव जीवन की रक्षा को सर्वोपरि मानता है, उसी सत्कर्म की ऊर्जा से प्रेरित हो सकता है। जैसे धर्मशास्त्रों में कहा गया कि “मानव कल्याण ही परम धर्म है,” यह नीति यदि निष्पक्षता, ईमानदारी और निगरानी के साथ लागू हो, तो समाज व राष्ट्र हित में बलवती सिद्ध हो सकती है।

चुनौतियाँ और आगे की राह

निष्पादन और समयसीमा

सरकार ने समयसीमा को विस्तार नहीं देने का निर्णय लिया है, लेकिन लागू करने की गति, निरीक्षण तंत्र और जवाबदेही तय करना बड़ी चुनौती होगी।

अगर समीक्षा ढीली हुई या निरीक्षण कमजोर रह गया, तो नीति अपने लक्ष्य में विफल हो सकती है।

अनुपालन की समानता

छोटी और सीमित संसाधन वाली कंपनियों को यदि सहयोग न मिले तो वे नीति का बोझ उठाने में असमर्थ होंगी।

नियंत्रक यह सुनिश्चित करें कि व्यवसायिक दबावों के कारण सुरक्षा मानकों में समझौता न हो।

सार्वजनिक जागरूकता

मामले की भयावहता और नीति परिवर्तन की जानकारी जनता तक पहुंचनी चाहिए।

मीडिया, नागरिक अभियानों और हेल्थ कैम्पेन के माध्यम से जनता को यह समझाना आवश्यक है कि केवल निवारक उपाय पर्याप्त नहीं, बल्कि निगरानी व जवाबदेही भी ज़रूरी है।

स्वास्थ्य नीति की सफलता के लिए एक साझा जिम्मेदारी

सरकार का यह कदम — दवा निर्माण इकाइयों के उन्नयन को बाध्यकारी करना — स्वच्छ स्वास्थ्य नीति की दिशा में महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। यदि इसे निष्पक्षता, समयबद्धता और उचित निगरानी के साथ लागू किया जाए, तो यह भविष्य की त्रासदियों को रोकने में सक्षम हो सकता है। लेकिन इसके साथ-साथ चुनौतियाँ भी बड़ी हैं — वित्तीय दबाव, अनुपालन क्षमता और उद्योग‑सरकार संतुलन।

स्वास्थ्य सुरक्षा, सार्वजनिक विश्वास और औद्योगिक स्थिरता — ये तीनों इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए आपस में जुड़े हैं। भारत के नागरिक, चिकित्सा क्षेत्र और नियामक संस्थाओं को मिलकर इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभानी होगी ताकि “दवाई सुरक्षा का भारत” की कल्पना साकार हो सके।

Vedio Credit: India TV

FAQs: दवा सुरक्षा नीति और खांसी सिरप विवाद

Q1: यह खांसी सिरप मामला कब सामने आया?

Sresan Pharmaceutical द्वारा निर्मित सिरप से जुड़े बच्चों की मौतों की घटना हाल ही में सामने आई, जिसमें विषाक्त डाइएथीलीन ग्लाइकोल (DEG) की मौजूदगी पाई गई। 

Q2: DEG क्या है और यह खतरनाक क्यों है?

DEG (डाइएथीलीन ग्लाइकोल) एक विषाक्त द्रव है, जो गुर्दे व मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है और कई मामलों में घातक हो सकता है।

Q3: सरकार ने क्या आदेश दिया है?

सरकार ने कहा है कि दवाई कंपनियों को अपने निर्माण संयंत्रों को WHO स्तर के मानकों के अनुसार अपग्रेड करना अनिवार्य है, और दिसंबर 2024 की समयसीमा का विस्तार नहीं किया जाएगा। 

Q4: किन दवा कंपनियों पर यह आदेश लागू होगा?

यह आदेश सभी दवा निर्माण इकाइयों पर लागू होगा — चाहे वे बड़ी हों या छोटी — लेकिन विशेष ध्यान और समर्थन छोटी कंपनियों को दिया जाएगा।

Q5: क्या इससे दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी?

संभावना है कि सुधार और उपकरण उन्नयन की लागत को कवर करने के लिए कुछ दवाओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जबकि सरकार इस प्रभाव को कम करने के लिए सब्सिडी या वित्तीय सहायता योजनाएँ भी देख सकती है।

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