Birsa Munda Jayanti [Hindi] : तीर-कमान के दम पर अंग्रेजों से लड़े और उन्हे हराया

Birsa Munda Jayanti तीर-कमान के दम पर अंग्रेजों से लड़े और उन्हे हराया

Birsa Munda Jayanti [Hindi] : धरती बाबा, महानायक और भगवान. बिरसा मुंडा को ये तीनों नाम यूं ही नहीं मिले. अंतिम सांस तक अंग्रेजों से अध‍िकारों की लड़ाई लड़ने वाले और प्रकृति को भगवान की तरह पूजने वाले बिरसा मुंडा की आज जयंती है.  देश में आज इनकी जयंती को जनजाति गौरव दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है.

बिरसा मुंडा का शुरुवाती जीवन (Life History of Birsa Munda in Hindi)

बिरसा की जेल में संदेहास्पद अवस्था में 9 जून 1900 को मौत हो गई. अंग्रेजी सरकार ने बताया कि हैजा के चलते बिरसा की मौत हुई है. हालांकि आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि बिरसा की मौत कैसे हुई. बिरसा मात्र 25 साल की उम्र में देश के लिए शहीद होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को प्रेरित किया. जिसके चलते देश आजाद हुआ. मुंडा आदिवासियों द्वारा बिरसा को आज भी धरती बाबा के नाम से पूजा जाता है.क जीवन बेहद गरीबी में बीता. उनके पिता के नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था.

बिरसा के माता-पिता घुमंतू खेती के द्वारा अपना गुजर-बसर करते थे. बचपन में बिरसा भेडों को चराने जंगल जाया करते थे और वहां बांसुरी बजाते थे. बिरसा बहुत अच्छी बांसुरी बजाने थे. इसके अलावा बिरसा ने कद्दू से एक तार वाला वादक यंत्र तुइला का भी निर्माण किया था.

अंतिम सांस तक आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे 

Birsa Munda Jayanti (बिरसा मुंडा जयंती): आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा का जन्‍म झारखंड के खूंटी जिले में 15 नवंबर, 1875 को हुआ था. आदिवासी परिवार में जन्‍मे बिरसा मुंडा के पिता सुगना पुर्ती और मां करमी पूर्ती निषाद जात‍ि से ताल्‍लुक रखते थे. बिरसा मुंडा का सारा जीवन आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए जागरुक करने और आदि‍वासियों के हित के लिए अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए बीता. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलनों के कारण कई बार इनकी गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन न तो यह सफर थमा और न ही अधिकारों की लड़ाई मंद पड़ी.

बिरसा पर हिंदू धर्म का प्रभाव

बिरसा ने ईसाई स्कूल को छोड़ने के बाद हिंदू धर्म के प्रभाव में आ गए. जिसके बाद वो ईसाई धर्म परिवर्तन का विरोध करने के साथ ही आदिवासियों में जागरूकता फैलाने लगे. दरअसल उसी समय इस इलाके में रेललाइनें बिछाने का काम चल रहा था. अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों का शारीरिक और चारित्रिक शोषण किया जा रहा था. आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जा रहा था. बिरसा ने सरकार की इन नीतियों का जमकर विरोध किया. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान दिया, गौ हत्या का विरोध किया.

Birsa Munda Jayanti: ऐसे शुरू हुआ संघर्ष

ब्रिटिश सरकार के समय शोषण और दमन की नीतियों से आदिवासी समुदाय बुरी तरह जूझ रहा था. इनकी जमीनें छीनीं जा रही थीं और आवाज उठाने पर बुरा सुलूक किया जा रहा था. अंग्रेजों का अत्‍याचारों के खिलाफ और लगान माफी के लिए इन्‍होंने 1 अक्‍टूबर 1894 को समुदाय के साथ मिलकर आंदोलन किया. 1895 में इन्‍हें गिरफ्तार किया गया और  हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल करावास की सजा दी गई.

अंग्रेजों से लोहा भी लिया और हराया भी

अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा मुंडा की लड़ाई यूं तो बहुत कम उम्र में ही शुरू हो गई थी, लेकिन एक लम्‍बा संघर्ष 1897 से 1900 के बीच चला. इस बीच मुंडा जात‍ि के लोगों और अंग्रेजों के बीच युद्ध होते रहे. बिरसा और उनके समर्थकों ने तीर कमान से ही अंग्रेजों से युद्ध लड़ा भी और जीता भी. बाद में अपनी हार से गुस्‍साए अंग्रेजों ने कई आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार भी किया. 

■ Also Read: सुभद्रा कुमारी चौहान की जयंती पर गूगल ने बनाया डूडल (Google Doodle), ‘झांसी की रानी’ कविता उनकी देन

जनवरी 1900 में डोम्बरी पहाड़ पर एक जनसभा को सम्‍बोधित कर रहे बिरसा मुंडा पर अंग्रेजों ने हमला किया. इस हमले में कई औरतें व बच्चे मारे गए. शिष्यों की गिरफ्तारियों के बाद 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने इन्‍हें भी बंदी बना लिया. 

बेहद प्रभावशाली रहा छोटा सा जीवन

3 मार्च 1900 को बिरसा मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने चक्रधरपुर के जामकोपई जंगल में अपनी आदिवासी छापामार सेना के साथ सोते समय गिरफ्तार कर लिया था। 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की छोटी उम्र में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि उन्होंने जीवन का एक छोटा सा समय जीया और यह तथ्य है कि उनकी मृत्यु के तुरंत बाद आंदोलन समाप्त हो गया। बिरसा मुंडा को अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समुदाय को लामबंद करने के लिए जाना जाता है और उन्होंने औपनिवेशिक अधिकारियों को आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों को पेश करने के लिए मजबूर किया था।

भारत सरकार मना रही जनजातीय गौरव दिवस

1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं। 10 नवंबर 2022 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

Birsa Munda Jayanti 2024: पीएम मोदी के संबोधन की बड़ी बातें

हमारे जीवन में कुछ दिन बड़े सौभाग्य से आते हैं, और जब ये दिन आते हैं तब हमारा कर्तव्य होता है कि उनकी आभा, उनके प्रकाश को अगली पीढ़ियों तक और ज्यादा भव्य रूम में पहुंचाए। आज का ये दिन ऐसा ही पुण्य-पुनीत का अवसर है।

Credit: Narendra Modi

15 नवंबर की ये तारीख, धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती, झारखंड के स्थापना दिवस और देश की आजादी के अमृत महोत्सव का कालखंड। ये अवसर हमारी राष्ट्रीयआस्था का अवसर है, भारत की पुरातनआदिवासी संस्कृति के गौरवगान काअवसर है।

बिरसा की जेल में संदेहास्पद मौत

बिरसा की जेल में संदेहास्पद अवस्था में 9 जून 1900 को मौत हो गई. अंग्रेजी सरकार ने बताया कि हैजा के चलते बिरसा की मौत हुई है. हालांकि आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि बिरसा की मौत कैसे हुई. बिरसा मात्र 25 साल की उम्र में देश के लिए शहीद होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को प्रेरित किया. जिसके चलते देश आजाद हुआ. मुंडा आदिवासियों द्वारा बिरसा को आज भी धरती बाबा के नाम से पूजा जाता है.

Birsa Munda Quotes in Hindi

 “एक सैनिक का नैतिक धर्म यही होता है, देश के लिए क़ुर्बान को जाना”- बिरसा मुंडा 

 “जितना मैं आदिवासी समाज के उथ्थान के लिए चिंतित हूँ, उससे दुगना समाज मेरे लिए चिंतित है”.

 “यदि हमे देश का वास्तविक विकास करना है तो, हमे सभी धर्म व्  जाती के लोगो को साथ लेकर चलना होगा’.  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *