चौरी चौरा कांड: महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की शुरुआत 1920 में हुई थी। यह आंदोलन अहिंसा और असहयोग के सिद्धांतों पर आधारित था। पढ़ें पूरा लेख और जाने पूरी जानकारी विस्तार से
चौरी चौरा कांड क्या है
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की शुरुआत 1920 में हुई थी। यह आंदोलन अहिंसा और असहयोग के सिद्धांतों पर आधारित था। जिसमें भारत की जनता को ब्रिटिश शासन का सहयोग न करने के लिए आह्वान किया गया था। इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं सरकारी नौकरियां सरकारी कॉलेज नामांकन वापस लेना और ना कर देने जैसी गतिविधियों का बहिष्कार किया गया था। इस आंदोलन को देश भर में बहुत ही ज्यादा समर्थन मिला था। और साथ ही इस आंदोलन में बड़ी में स्थानीय निवासी किसान और मजदूर लोग शामिल हुए थे।
चौरी चौरा कांड कब और क्यों हुआ
4 फरवरी सन 1922 को वह दिन था जिस दिन चौरी चोरा के पास एक बाजार में असहयोग आंदोलन के समर्थन में एक बड़ा जुलूस निकाला गया। बड़ी संख्या के साथ स्थानीय किसान और मजदूर इस जुलूस में शामिल हुए थे। थाने के पास से जुलूस निकलते हुए पुलिसकर्मियों ने जुलूस को रोकने का प्रयास किया, वही बड़ी संख्या में जुलूस को रोकने पर कुछ लोग उत्तेजित हुए और पुलिस के साथ झड़प हो गई। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने जुलूस पर गोलीबारी शुरू कर दी जिससे कई लोग घायल हो गए और तत्काल कुछ लोगों की मृत्यु हो गई।
पुलिस द्वारा भीड़ पर गोलीबारी से नाराज लोगों ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया और थाने को चारों तरफ से घेर लिया। और उसमें आग लगा दी इस आगजनी के कारण अंदर बैठे 22 पुलिसकर्मी जिंदा जल गए। इस कांड से बौखलाई ब्रिटिश सरकार ने कठोर कदम उठाए जितने भी लोग घटना में शामिल थे उन्हें पकड़ने के लिए व्यापक छानबीन की गई।
इसके उपरांत ब्रिटिश पुलिस ने 225 लोगों को गिरफ्तार किया और इनमें से 172 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई, किंतु अपील के बाद मात्र 19 लोगों को फांसी की सजा बरकरार रखी और बाकी जो लोग थे उनकी सजा कम कर दी गई।
चौरी चौरा घटना का क्या प्रभाव पढ़ा
इस घटना ने महात्मा गांधी को स्थागित कर दिया था। उन्होंने अहिंसा का मार्गदर्शन सिद्धांत माना था। जब यह घटना हुई तब महात्मा गांधी ने इस हिंसा और आंदोलन की दिशा पर उन्हें पुनर्विचार करने के लिए पुनः मजबूर कर दिया था। इस असहयोग आंदोलन को गांधी जी ने तुरंत समाप्त करने का फैसला लिया उन्होंने कहा कि भारत की जनता अभी अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। इस तरह की हिंसक और कृत्यों से हमे स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। चौरा चोरी कांड के बाद स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली जिसमें यह स्पष्ट हो गया आंदोलन के लिए एक संगठन और अहिंसक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
चौरी चौरा कांड से मिली सीख
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चोरा चोरी कांड का महत्वपूर्ण मोड़ था। इस कांड के बाद भारत की जनता और नेताओं को यह शिक्षा मिली थी की आजादी संग्राम को सफल बनाने के लिए अनुशासित और संगठित प्रयास की जरूरत है। महात्मा गांधी जी के अहिंसा की नीति में चौरी चौरा कांड घटना के बाद और मजबूती से जड़ें जमाई तथा भारत की स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई।
चौरी चौरी कांड का नया नाम
जिस तरीके से योगी सरकार ने काकोरी ट्रेन लूटकांड को अब काकोरी ट्रेन एक्शन नाम दिया था गया था ठीक उसी प्रकार चौरी चोरा कांड का भी नाम बदलकर योगी सरकार ने चौरा चोरी क्रांति करने का फैसला लिया है। योगी सरकार का मानना था कि यह कोई कांड नहीं था बल्कि यह तो देश की आजादी के लिए भारत के वीर सपूतों की लड़ाई थी। आप जी को अवगत करा दें कि नाम में बदलाव के लिए देश के बहुत से इतिहास कारकों की सबसे बड़ी आपत्ति यह है की चौरा चोरी कांड नहीं था बल्कि सर्वजन का सहज प्रतिरोध था
चौरी चौरा का शहीद स्मारक
देश की आजादी के कुछ साल बाद सन 1971 में गोरखपुर जिले के लोगों में मिलकर एक समिति बना बनाई थी। 13500 की लागत से चौरा चौरी शहीद स्मारक बनाया गया। यह स्मारक सन 1973 में 12.2 मीटर ऊंची एक शहीद मीनार का निर्माण कराया था। मीनार के दोनों और शहीदों को फांसी पर लटकाते हुए दर्शाया गया था। हालांकि कुछ समय उपरांत भारत सरकार ने चौरा चौरी कांड के शहीदों की याद में एक अलग से शहीद स्मारक बनाया था। जो कि आज मुख्य शहीद स्मारक के रूप में जाना जाता है। स्मारक पर शहीदों के नाम अंकित है ।
शहीदों के नाम से दो ट्रेन चलाई गई, जो कि आज भी चलती है, इनमें से एक का नाम शहीद एक्सप्रेस और दूसरे का नाम चौरा चौरी एक्सप्रेस के नाम से चलती है। भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी में 4 फरवरी 1922 को आग लगा दी थी जिसमें छुपे हुए 22 पुलिसकर्मी जिंदा जलकर मर गए थे। इस हिंसा के उपरांत गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। पंडित मदन मोहन मालवीय ने चोरा चोरी कांड के अभियुक्तों का मुकदमा लड़कर उन्हे बचा लिया था। इतिहास के उन वीरों की शहादत के नाम से चौरी चौरा का शहीद स्मारक उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास एक कस्बा जो कि (वर्तमान में तहसील) है वहा बना है।
निष्कर्ष
चौरी चौरा कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ था। इस घटना ने न केवल महात्मा गांधी को अहिंसा के सिद्धांत पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया, बल्कि भारतीय जनता और स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को अनुशासन और संगठन की अहमियत का भी एहसास कराया। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिंसा का मार्ग नहीं, बल्कि संगठित और अहिंसक प्रयास ही कारगर हो सकते हैं।
योगी सरकार द्वारा इसे “चौरा चोरी क्रांति” के नाम से पुकारे जाने का निर्णय इसे एक नई पहचान देने की कोशिश है, जिसमें इस ऐतिहासिक घटना को देश की आजादी के लिए वीर सपूतों की लड़ाई के रूप में मान्यता दी जा रही है। चौरी चौरा कांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और यह साबित किया कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में एकजुटता और अनुशासन कितने आवश्यक हैं।