19वीं सदी के आते-आते जलवायु में पृथ्वी के तापमान में 1.9 डिग्री सेल्सियस का बढ़ोतरी हुई है तापमान में यह बढ़ोतरी औद्योगिक क्रांति के बाद शुरू हुई है औद्योगिक क्रांति में दुनिया के वैश्विक तापमान को बढ़ा दिया है इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के रूप में मौसम परिवर्तन ,नई-नई बीमारियों का उत्पन्न होना जीवों की जैविक सरंचना में परिवर्तन और जीवन चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। तापमान की यह बढ़ोतरी संख्या की दृष्टि से कम हो सकती है लेकिन इसका जनजीवन पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा है।
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटना एक विचारणीय विषय बना हुआ है इसके लिए दुनिया भर में अनेक संगठन बने हुए हैं जो इस पर क्रांतिकारी तरीके से कार्य कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन एक ज्वलंत मुद्दा है इस परिवर्तन को हम अपने दैनिक जीवन में भी महसूस कर सकते हैं जैसे की बरसात के समय में परिवर्तन होना, मौसम में परिवर्तन होना, वन्य जन जीवन में कई प्रजातियों का लुप्त होना,कीमती वनो का लुप्त होना, अनिश्चितकाल तक सर्दी या गर्मी का पड़ना ,सर्दी और गर्मी के दिनों में तापमान में अंतर देखा जाना, अनियमित बरसात , समुद्र का जलस्तर बढ़ना ग्लेशियर का पिघलना आदि अनेक कारण हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर मुख्य बिंदु
- जलवायु परिवर्तन क्या है
- जलवायु परिवर्तन के कारण
- परिवर्तन के प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए गए प्रयास
- जलवायु परिवर्तन और भारत सरकार
- भारत सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएं
जलवायु परिवर्तन के कारण
जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारण
- औद्योगीकरण का बढ़ना
- शहरीकरण
- ग्रीन हाउस गैसों का उपयोग
औद्योगीकरण का बढ़ना
आज से सदियों पहले पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत था । लेकिन जब से औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई है तब से जलवायु परिवर्तन में प्राकृतिक कारण के साथ-साथ मानवीय कारण के हस्तक्षेप के उत्पन्न होने वाला परिवर्तन अधिक प्रभावी हो रहा है । मानव के द्वारा अधिकाधिक उर्वरक का उपयोग ,अनापघटित होने वाले प्लास्टिक कचरे का उपयोग, पेट्रोल डीजल जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध प्रयोग आदि कार्यों से निरंतर बढ़ती जा रही है।
शहरीकरण
शहरीकरण बढ़ने से अधिक वाहनों का प्रयोग से उत्सर्जित होने वाली गैसों के कारण और प्लास्टिक कचरे की पड़ती हुई अनियमित अनियमित जो अब घटित नहीं हो रहा अब घटितस्थाई कचरे के रूप में अपनी जगह बना रहा है उसने पर्यावरण को प्रदूषित किया है और मौसम में जलवायु में परिवर्तन के लिए भी एक कारण हो सकता है।
ग्रीन हाउस गैसों का उपयोग
ग्रीन हाउस गैस ग्रीनहाउस गैस पृथ्वी के तापमान को संतुलन बनाए रखने के लिए पृथ्वी के चारों तरफ एक परत है इस परत में मीथेननाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैस से मिलकर एक परत बनी हुई है जो पृथ्वी के तापमान का संतुलन बनाए रखती है जिसे सर्दी गर्मी और सर्दी गर्मी का मौसम बने हुए हैंजैसे-जैसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी पर मानव के द्वारा बढ़ता जा रहा है उसी प्रकार प्रतियोगिता तापमान में बढ़ोतरी होती जा रही है।
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ग्रीनहाउस गैस में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बहुत तेजी से बढ़ रहा है कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन गैस का उत्सर्जन जीवाश्म इंधनों के जलने से जीवाश्म ईंधन के उपयोग से निकलती है और पेड़ों की संख्या कम होने से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है जब से औद्योगिक क्रांति शुरू हुई है तब से वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार औद्योगिक क्रांति के पश्चात लगभग 30% कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा में वृद्धि हुई है।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन यह ग्रीन हाउस गैस पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालता हैं जिस कारण से पृथ्वी पर तापमान में बढ़ोतरी और अल्ट्रावायलेट सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी पर आने से जलवायु परिवर्तन के कारण बनता जा रहा है जिसे मानवीय जीवन शैली में परिवर्तन हो रहा है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उत्सर्जन रेफ्रिजरेटर ऑटोमोबाइल से निकलती है जो लगातार ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचा रही है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- वैश्विक तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है ।
- वन्यजीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार में पहुंच रही है।
- बरसात की अनियमितता के कारण कभी बाढ़ आना तो कभी सुख पादना।
- धीरे-धीरे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है इससे तटीय प्रदेश जल मग्न हो रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हवाएं लंबे समय तक चलती है इस कारण जंगलों में आग लगना आम बात हो गई है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने का रक्षात्मक उपाय
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से संगठन कार्य कर रहे हैं इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य है हर वह विधि अपनाई जाए जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण को कम से कम किया जा सके ताकि आगे आने वाले भावी पीढ़ी के लिए एक अच्छा वातावरण प्राप्त हो सके उन्हें भी इस वातावरण को प्राप्त करने का हक है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले संगठन
- IPCC अंतर्राष्ट्रीय संगठन IPCC: एक अंतरराष्ट्रीयसंगठन है जिसमें 195 देश शामिल है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संचालित है । इसका उद्देश्य भविष्य की जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अनुकूल वातावरण के लिए रणनीति तैयार करना है।
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन: इस सम्मेलन की वार्षिक बैठक को COP कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी के नाम से भी जाना जाता है इसका मुख्य उद्देश्य ग्रीन हाउस गैसों के उपयोग पर नियंत्रित करना है। इस प्रोटोकॉल के आधार पर विश्व विख्यात क्योटो प्रोटोकॉल 1997 में बनाया गया।
- पेरिस समझौता: जलवायु परिवर्तन के को नियंत्रित करने के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सफल समझौता रहा है पेरिस समझौता के तहत ग्रीन हाउस गैस और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लक्ष्य दिया गया है।
- भारत सरकार के प्रयास: भारत सरकार ने NAPCC मिशन 2008 में शुरू किया गया था । राज्य और केंद्र सरकार द्वारा लगातार जलवायु परिवर्तन को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके साथ-साथ सरकार उद्योग और किसानों को सब्सिडी राशि प्रदान करती हैं ताकि प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सके। किसान पराली जलाने से बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकालतीं है।