Climate Change News [Hindi] | नमस्कार दर्शकों! खबरों की खबर का सच कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। चाहे समाचार पत्र पढ़ें, रेडियो सुनें, टेलिविज़न देखें या सोशल मीडिया में जाएँ, हर जगह जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापन, climate change और global warming जैसे शब्द बार बार सुनने को मिल जाते हैं। लोग उसके प्रति चिंता के स्वर में बोलते हैं । आज के इस अंक में हम दर्शकों को इसी विषय पर जानकारी देंगे – क्या ग्लोबल वार्मिंग, पूरी पृथ्वी से मानव जाति को खत्म कर देगी ?
जब से सृष्टि की रचना हुई है तब से जलवायु में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। फिर वर्तमान में यह विषय चर्चा में क्यों है? आपके सामने कुछ तथ्य रखते हैं –
Climate Change News [Hindi] | 19 वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के बाद से जलवायु में बड़े परिवर्तन मानव द्वारा किये गए कार्यों से हुए हैं। औद्योगिक क्रांति 1850 से 1900 ईसवी के कालखंड में हुई। मशीनों का अत्यधिक उपयोग प्रारंभ हो गया। जीवाश्म ईंधन जिसे अंग्रेजी में fossil fuel भी कहते है, उसके दहन से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने वाले इंजन का प्रयोग होने लगा। सवारी और माल ढोने के लिए प्रयुक्त वाहन चलने लगे। इन सबसे ग्रीनहाउस गैसों सहित कई प्रदूषक निकलने लगे।
दर्शक भली भांति जानते हैं कि जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) तीन प्रकार के होते है – पत्थर का कोयला, पेट्रोलियम तेल और प्राकृतिक गैस। ये जीवाश्म ईंधन कार्बनिक तत्वों से बने होते हैं। उनको जलाने पर कार्बन डाई आक्साइड (CO2) गैस उत्सर्जित होती है। यही गैस लकड़ी और अन्य किसी भी बायोमास को जलाने से भी उत्सर्जित होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु विज्ञान निकाय, IPCC के अनुसार जीवाश्म ईंधन दुनिया के 64% और कोयला 40% CO2 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। मीथेन मानव-जनित वार्मिंग के लगभग एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है।
पिछली शताब्दी में कॉर्पोरेट जगत के अंधाधुन्ध विस्तार ने वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित किया है। जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि हुई है। वैश्विक उष्णता की दर लगभग दोगुनी हुई है। 1950 और 2010 के बीच, औसत तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यदि समय रहते उपाय नहीं किये गए तो अगले 100 वर्षों में तापमान 1 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है।
हालांकि ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो पृथ्वी के तापमान का संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। इसी कारण पृथ्वी रहने योग्य ग्रह बनने में सक्षम होता है। मनुष्य ने पैसे की बेहताशा होड़ में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों को आवश्यकता से अधिक झोंक दिया है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप एक अप्रत्याशित और भयावह ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा हो रहा है। नाटकीय रूप से तूफान, अकाल, जंगलों में आग और चरम तापमान आदि का खतरनाक ढंग से होना और इनकी आवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को तो छोड़ो, विशेषज्ञों को भी चकमा दे देती है। अच्छा हो कि हम शीघ्र ही अपने व्यवहार पर अंकुश लगा लें।
यहाँ यह जानना आवश्यक है की पृथ्वी, सूर्य की ऊर्जा से गर्म होती है। उस ऊर्जा को वायुमंडल में फिर से विकीर्ण किया जाता है। वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से मौजूद ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के चारों ओर एक कंबल की तरह कार्य करती हैं, जिससे वायुमंडल में सूर्य की कुछ ऊर्जा संचित हो जाती है और वातावरण गर्म हो जाता है। कुछ ग्रीनहाउस गैसें तो सदियों तक वातावरण में रह सकती हैं।
Climate Change News [Hindi] | IPCC के अनुसार वैज्ञानिक 95% की निश्चिंतता के साथ कह सकते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस गैसों और दूसरे मानव कृत उत्सर्जन बढ़ने के कारण हुई है। IPCC – Intergovernmental Panel on Climate Change; यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में बदलाव और ग्रीनहाउस गैसों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर मार्गदर्शन करता है। दर्शकों को ज्ञात होना चाहिए कि इस संस्था को उत्कृष्ट कार्यों के लिए 2007 में शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अब ग्रीन हाउस गैसों के बारे विस्तार से जानते है। भूमंडलीय तापमान बढ़ाने में सबसे ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड है। मिथेन गैस दूसरे और नाइट्स-ऑक्साइड तीसरे नंबर पर हैं। इनके बाद क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और अन्य गैसें आती हैं। इन गैसों की किरणों को शोषित करने की क्षमता भिन्न भिन्न होती है। कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा, मीथेन में उष्मन क्षमता 21 गुना और वही नाइट्रस-ऑक्साइड में 310 गुना होती है। वायुमंडल में कार्बन, मीथेन, या अन्य ग्रीनहाउस गैसों में से प्रत्यक के स्तर की वृद्धि, स्थानीय मौसम और वैश्विक जलवायु को उत्तेजित, भीषण गर्म बनाती है।
ग्लोबल वार्मिंग का अंदाजा पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि से लगाया जाता है। किसी समय विशेष में बढ़ते औसत वैश्विक तापमान के साथ, पृथ्वी के कुछ हिस्से वास्तव में ठंडा हो सकते हैं जबकि अन्य गर्म। इसलिए ‘औसत वैश्विक तापमान’ की गणना को उपयुक्त मानते है।
आईए जानने का प्रयास करते है – जलवायु परिवर्तन क्या है?
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में होने वाले जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तनों से है। IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर 6) कहती है –
- पूर्व औद्योगिक काल के बाद से मानव गतिविधियों से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों ने लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा दी है। और यह आंकड़ा आर्कटिक में दोगुना से अधिक है।
- अगले 20 वर्षों में औसत, वैश्विक तापमान वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने या उससे भी अधिक होने की आशंका है।
- यदि अभी नियंत्रण नहीं किया गया तो अगले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर को पार कर लेगी। तत्काल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना जरूरी है।
- ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से गर्म हवाओं में वृद्धि होने से लंबे समय तक गर्म मौसम और ठंडे मौसम छोटे होंगे।
- ग्लोबल वार्मिंग के 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से, गर्मी चरम सीमा पर होगी जो कृषि और स्वास्थ्य के लिए कठिन होगी।
- जलवायु परिवर्तन हवाओं में गीलापन और सूखापन, बर्फ और तटीय क्षेत्रों और महासागरों में परिवर्तन ला सकता है।
- जलवायु परिवर्तन जल चक्र को तेज कर रहा है। यह एक ओर अधिक तीव्र वर्षा और बाढ़ लाता है, दूसरी ओर कई क्षेत्रों में अधिक तीव्र सूखा भी लाता है।
- जलवायु परिवर्तन वर्षा पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। उच्च अक्षांशों में वर्षा में वृद्धि होने की संभावना है। जबकि उपोष्णकटिबंधीय के बड़े हिस्सों में इसके कम होने का अनुमान है।
- मानसून वर्षा में परिवर्तन की उम्मीद है, जो क्षेत्रों के अनुसार भिन्न होगा। तटीय क्षेत्रों में 21 वीं शताब्दी में समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी, जो निचले इलाकों और तटीय क्षरण में अधिक, लगातार और गंभीर तटीय बाढ़ में योगदान देगा।
- चरम समुद्र स्तर की घटनाएं जो पहले 100 वर्षों में एक बार हुई थीं, इस शताब्दी के अंत तक हर साल हो सकती हैं।
- आगे वार्मिंग पर्माफ्रॉस्ट विगलन को बढ़ाएगी, और मौसमी बर्फ कवर का नुकसान, ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने और गर्मियों में आर्कटिक समुद्री बर्फ का नुकसान होगा।
- वार्मिंग, अधिक – लगातार समुद्री हीटवेव, महासागर अम्लीकरण और कम ऑक्सीजन के स्तर सहित महासागर में परिवर्तन होंगे। ये परिवर्तन समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र और लोगों दोनों को प्रभावित करते हैं।
न्यूयार्क स्थित नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (GISS) के मौसम विज्ञानियों के अनुसार वर्ष 2007, वर्ष 2008 के साथ शताब्दी की दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। GISS द्वारा दर्ज किये गए आठ सबसे गर्म वर्ष 1998 के बाद के वर्ष रहे हैं। जबकि 14 सबसे गर्म वर्ष 1990 के बाद हैं। GISS के निदेशक जेम्स हासेन ने कहा है कि पिछले 30 वर्षों से पृथ्वी पर जो गर्मी बढ़ रही है उसकी मुख्य वजह मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसें हैं।
Climate Change News [Hindi] | इस शोध के लिये शोधकर्ताओं ने पृथ्वी पर विभिन्न मौसम केन्द्रों से प्राप्त तापमान के आँकड़ों का इस्तेमाल किया। जबकि उपग्रहों के माध्यम से समुद्र में मौजूद हिमखंडों के तापमान लिये गए। पहले यह तापमान जहाजों द्वारा लिया जाता था। इन आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 में उत्तरी ध्रुव क्षेत्र और इनसे लगते ऊँचाइयों वाले क्षेत्रों के तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गई।
हमारे वायुमंडल के मानव-जनित कार्बन प्रदूषण की मात्रा गत 60 वर्षों में लगभग दोगुनी हुई है। यह दर तेजी से बढ़ना जारी है।
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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार जलवायु परिवर्तन ने पूर्वानुमान एजेंसियों द्वारा गंभीर घटनाओं का सटीक अनुमान लगाने की क्षमता को बाधित किया है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारी बारिश की घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है और हल्की बारिश की घटनाओं में कमी आई है। जलवायु परिवर्तन ने वायुमंडल में अस्थिरता को बढ़ा दिया है, जिससे संवहनी गतिविधि में वृद्धि हुई है – आंधी, बिजली और भारी वर्षा। अरब सागर में चक्रवातों की गंभीरता भी बढ़ती जा रही है। स्थिति से निपटने के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग अधिक रडार स्थापित कर रहा है और अपनी उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग प्रणाली को अपग्रेड कर रहा है। भारत 2025 तक ‘अधिक विशिष्ट और सटीक’ पूर्वानुमान सूचना को पंचायत स्तर के समूहों और विशिष्ट क्षेत्रों तक प्रदान करने में सक्षम होगा।
अब जानते है मौसम और जलवायु के बीच का अंतर
मौसम – थोड़े समय (कुछ घंटों या कुछ दिनों) में तापमान और वर्षा जैसी वायुमंडलीय स्थितियों को संदर्भित करता है। मौसम वह है जो आप दिन-प्रतिदिन अनुभव करते हैं।
जलवायु – किसी स्थान विशेष के लिए लंबे समय – कम से कम 30 वर्षों में मौसम के औसत पैटर्न को प्रदर्शित करता है। जलवायु परिवर्तनशीलता – जलवायु में प्राकृतिक भिन्नता जो महीने से महीने, ऋतु से ऋतु साल से साल और दशक से दशक तक होती है, को जलवायु परिवर्तनशीलता कहा जाता है (जैसे, पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत में गीले और सूखे मौसम के वार्षिक चक्र)।
आईपीसीसी जलवायु परिवर्तन के लिये निम्न कारणों को उत्तरदायी मानता है-
1. औद्योगीकरण (1880) से पूर्व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 280 पीपीएम थी जो 2005 के अन्त में बढ़कर 379 पीपीएम हो गई है।
2. औद्योगीकरण से पूर्व मीथेन की मात्रा 715 पीपीबी थी और 2005 में बढ़कर 1734 पीपीबी हो गई है। मीथेन की सान्द्रता में वृद्धि के लिये कृषि एवं जीवश्म ईंधन को उत्तरदायी माना गया है।
3. इधर के वर्षों में नाइट्रस ऑक्साइड की सान्द्रता क्रमशः 270 पीपीबी से बढ़कर 319 पीपीबी हो गई है।
4. समुद्र का जलस्तर 1-2 मि.मी. प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है।
5. पिछले 100 वर्षों में अंटार्कटिका के तापमान में दोगुना वृद्धि हुई है तथा इससे बर्फीले क्षेत्रफल में भी कमी आई है।
6. मध्य एशिया, उत्तरी यूरोप, दक्षिणी अमेरिका आदि में वर्षा की मात्रा में वद्धि हुई है तथा भूमध्य सागर, दक्षिणी एशिया और अफ्रीका में सूखा में वृद्धि दर्ज की गई है।
7. मध्य अक्षांशों में वायु प्रवाह में तीव्रता आई है।
8. उत्तरी अटलांटिक से उत्पन्न चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हुई है।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि समस्त विश्व के पास ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिये मात्र 10 वर्ष का समय और है। यदि ऐसा नहीं होता है तो समस्त विश्व को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।
Climate Change News [Hindi] | जलवायु परिवर्तन के परिणाम क्या हैं?
- मानव स्वास्थ्य (मानसिक और शारीरिक) – बीमारी का प्रसार, तूफान की घटना के बाद चिंता की दर में वृद्धि
- अर्थव्यवस्था का बिगाड़ना विशेषकर पिछड़े वर्गों के लिए
- परिवहन – सड़कों, पुलों, जलमार्गों को नुकसान
- खाद्य सुरक्षा – बढ़ते मौसम और स्थानीय बढ़ती क्षमताओं में परिवर्तन
- जल सुरक्षा – बाढ़, तूफान की वृद्धि के कारण खारे पानी की घुसपैठ
- ऊर्जा सुरक्षा – संसाधनों के नाश होने का प्रभाव
Climate Change News [Hindi] | भविष्य के अनुमान (यदि कुछ नहीं किया जाए)
- समुद्र का स्तर सन 2100 तक लगभग 1 मीटर तक बढ़ सकता है।
- वार्षिक वर्षा में 100 मिमी की वृद्धि हो सकती है।
- गर्म दिन सात गुना अधिक हो सकते हैं।
- बर्फ पड़ने के दिन कम हो सकते है।
- औसत वार्षिक तापमान 2080 तक लगभग 4 डिग्री बढ़ सकता है।
- कृषि के लिए मौसम लंबे और छोटे हो सकते हैं।
- अधिक उपयुक्त आवासों की तलाश में प्रजातियों का पलायन हो सकता है।
अब जानते है ग्लोबल वार्मिंग कैसे समुद्री संपदा को नुकसान पहुचाती है?
Climate Change News [Hindi] | IPCC की रिपोर्ट के अनुसार समुद्र के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से 90% प्रवाल भित्तियों का नुकसान हो सकता है। 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि प्रवाल भित्तियों के पूर्ण क्षय का कारण बन सकती है। प्रवाल भित्तियों को कई वैश्विक और स्थानीय खतरों का सामना करना पड़ता है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन और स्थानीय खतरों के संयोजन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ी गिरावट आई है। पिछले 50 वर्षों में 30% से अधिक मूंगे नष्ट हो गए हैं।
Climate Change News [Hindi] | आपको बता दें प्रवाल भित्तियाँ या प्रवाल शैल-श्रेणियाँ (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं।
IPCC की आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और परिमाण अनुमान से कहीं अधिक बड़े हैं ।
हमारे दैनिक जीवन में पड़ने वाले इन प्रभावों को कई मायनों में समझा जा सकता है:
- यह पौष्टिक भोजन उगाने और पर्याप्त स्वच्छ पेयजल प्रदान करने की क्षमता को कम करता है। परिणामस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- बढ़ती गर्मी और चरम मौसम पौधों और जानवरों के पलायन का कारण बनता है। भूमि और महासागर दोनों में, अपेक्षाकृत ठंडे क्षेत्रों की ओर चाहें पहाड़ों पर ऊंचाई में, या महासागरों में गहरे क्षेत्रों में। इससे पौधों और जानवरों के प्रजनन पर असर पड़ता है। पूरी जैव विविधता श्रृंखलाएं प्रभावित होती हैं।
- जो प्रजातियां नई परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को नहीं बदल पाती हैं या तेजी से पलायन नहीं कर पाती हैं वे विलुप्त होने लगती हैं।
- तापमान और वर्षा में परिवर्तन दुनिया भर में गंभीर सूखे और विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। सभी प्राणियों, वन्यजीवों और कृषि में बीमारियां बढ़ती हैं।
- लंबे समय तक जंगल की आग, लंबे गर्म महीनें भी वन्यजीवन, मानव स्वास्थ्य और कृषि पर तनाव को बढ़ाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन तेजी से चोटों, बीमारी, कुपोषण, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए खतरे बढ़ते हैं। यहां तक कि मौतों का कारण बन जाते हैं। यह गर्म क्षेत्रों को और भी गर्म बना रहे है। परिणाम स्वरूप श्रमिक लंबे समय काम नहीं कर सकते हैं और इस प्रकार उनकी आय भी कम हो जाती है।
- यह स्पष्ट हो जाता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुआयामी हैं जो भोजन और पानी की आपूर्ति, और बुनियादी ढांचे और ऊर्जा उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
अब आपको जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण शरणार्थियों के बढते संकट के बारे में बताते हैं
आपने युद्ध और राजनीतिक उत्पीड़न के कारण शरणार्थियों के बारे में कई बार सुना होगा। लेकिन जिन परिवारों को पर्यावरण क्षय के कारण अपना घर छोड़ कर जाना पड़ता है उनके बारे में संख्या बताने से सरकारें बचती रही हैं। अभी कोई लंबे समय की बात नहीं है 1990 के दशक के मध्य में भूमि क्षरण, सूखा और प्राकृतिक आपदाओं के कारण ढाई करोड़ लोगों को अपने घरों को छोड़कर विस्थापित होना पड़ा था। रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने उनकी 2001 की विश्व आपदा रिपोर्ट में लगभग ढाई करोड़ “पर्यावरण शरणार्थियों” के अनुमान दोहराया।
2050 तक 20 करोड़ जलवायु प्रवासियों के प्रोफेसर मायर्स का अनुमान स्वीकार्य आंकड़ा बन गया है। IPCC के अनुमान के अनुसार 2050 तक दुनिया में प्रत्येक 45 लोगों में से एक को जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होना पड़ेगा। यह विस्थापन वर्तमान वैश्विक प्रवासी आबादी से भी अधिक होगा। इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के अनुसार, लगभग 19 करोड़ लोग अपने जन्म स्थान के बाहर रहते हैं।
Climate Change News [Hindi] | कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में भयानक गर्मी से 569 मौतें
Climate Change News [Hindi] | 25 जून और 1 जुलाई, 2021 के बीच, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया ने भयानक गर्मी का अनुभव किया। एक उच्च दबाव वाली मौसम प्रणाली गर्मी ने पूरे प्रांत में रिकॉर्ड उच्च तापमान 49.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया। हमेशा ठंडे रहने वाले ब्रिटिश कोलंबिया के पास अपने नागरिकों को गर्मी से बचाने की कोई कार्य योजना नहीं थी। इसी कारण 20 जून से 29 जुलाई तक गर्मी के कारण 569 मौतें हुईं। 6 दिन की उच्चतम गर्मी के समय 445 मौतें हुईं। मरने वालों में से 79 प्रतिशत की उम्र 65 साल या उससे अधिक थी। जलवायु वैज्ञानिकों को कनाडा में हीटवेव के और अधिक तीव्र होने की आशंका है।
अब जानेंगे – संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से अब तक क्या लाभ हुए?
- ग्लासगो में, देश कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में कटौती सहित अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु योजनाओं को प्रस्तुत करने पर सहमत हुए।
- देशों को नई योजनाएं जमा करने के लिए सितंबर तक की समय सीमा दी गई थी – लेकिन 196 में से केवल 11 देशों ने ऐसा किया।
- चीन ने 2021 के बाद से उत्सर्जन में लगातार कमी की है। दुनिया के उत्सर्जन में चीन का हिस्सा 27% है अतः लाभ होगा।
- पिछले साल की शुरुआत में 41 की तुलना में अब केवल 34 देश नए कोयला संयंत्रों पर विचार कर रहे हैं।
- चीन, कोयले का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है जो सभी विदेशी कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को पूरी तरह से वित्त पोषण बंद करने के लिए सहमत हुआ है ।
- सबके विपरीत, भारत कोयले का अगला सबसे बड़ा उपभोक्ता है उसने अप्रैल में घोषणा की थी कि वह कोयला बिजली का उत्पादन बढ़ा रहा है और 100 संयंत्रों को फिर से खोल रहा है।
- विश्व नेताओं ने तेल और गैस सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर भी सहमति व्यक्त की। सबसे ज्यादा सब्सिडी देने वाले देशों में ईरान, चीन, भारत, सऊदी अरब और रूस शामिल हैं।
- विकसित देशों ने 2022 के अंत तक एक वर्ष में $100 बिलियन प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की थी। लेकिन अभी तक पूरा पैसा नहीं आ पाया है। विकासशील देशों को जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए और हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश जैसी चीजें करने के लिए धन की आवश्यकता है।
- वनों की कटाई के लिए 100 से अधिक देशों ने दुनिया के लगभग 85% जंगलों में 2030 तक पेड़ों की कटाई को रोकने का वादा किया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पेड़ एक साल में उत्सर्जित CO2 के लगभग 10% को अवशोषित करते हैं।
- दुनिया के आधे जंगल सिर्फ पांच देशों- रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन में हैं, इसलिए उनके कार्यों से बड़ा फर्क पड़ सकता है। अप्रैल में, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने सरकारी भूमि पर पुराने विकास वाले जंगलों की रक्षा के लिए एक आदेश पर हस्ताक्षर किए।
- 2030 तक मीथेन उत्सर्जन के 30% में कटौती करने की योजना पर 100 से अधिक देशों द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी। बड़े उत्सर्जक – चीन, रूस और भारत – अभी तक शामिल नहीं हुए हैं, हालांकि चीन ने इस मुद्दे पर काम करने के लिए अमेरिका के साथ एक समझौते में सहमति व्यक्त की थी।
- नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, पिछले साल, रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से मीथेन के स्तर में उनकी सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि देखी गई थी। खेती और ऊर्जा क्षेत्र मीथेन के मुख्य स्रोत हैं।
Climate Change News [Hindi] | प्रकृति भी जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है
पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन प्राकृतिक कारणों से भी आता है। लेकिन इस परिवर्तन की रफ्तार बहुत धीमी होती है। सैकड़ों हजारों साल बाद इसका पता लगता है। इसका मुख्य कारण सूर्य के चारों ओर चक्कर काटने के पथ में धरती की निर्धारित कक्षा में धीरे-धीरे सूक्ष्म परिवर्तन आना है। इससे धरती को मिलने वाली सौर ऊर्जा में घट-बढ़ होती है, जो अन्त में जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अगला हिमयुग 5000 साल बाद प्रारम्भ हो सकता है। उल्लेखनीय है कि उत्तरी यूरोप सोलहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के बीच हिमयुग झेल चुका है। उस दौरान वहाँ जाड़ों में तमाम नदियों और नहरें जम गई थीं। लोग इन पर मैदान की तरह खेल खेलते थे।
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Climate Change News [Hindi] | प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन के कुछ और भी कारण हैं जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, सूर्य द्वारा ऊर्जा निष्कासन में परिवर्तन और वातावरण तथा सागर की आपसी क्रियाओं में परिवर्तन। वैज्ञानिकों ने हिमक्रोड (आइस कोर) का अध्ययन करके धरती के पिछले कई हजार सालों के औसत तापमान का पता लगाया है। प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता जलवायु परिवर्तन के साथ समानांतर में होती है। ENSO ईवेंट एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हज़ारों सालों से मौजूद हैं। जलवायु परिवर्तनशीलता वातावरण और महासागर में प्राकृतिक बदलावों के कारण भी होती है, जैसे कि एल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO)। ENSO के दो चरम चरण हैं: एल नीनो और ला नीना। एल नीनो प्रशांत क्षेत्र में भूमध्य रेखा के पास कमजोर व्यापारिक हवाओं और गर्म महासागरीय परिस्थितियों को लाने के लिए जाता है, जबकि ला नीना मजबूत व्यापारिक हवाओं और ठंडे महासागरों की स्थिति लाने के लिए जाता है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं में उष्मिक परिसंचरण, सौर उत्पादन में परिवर्तन, पृथ्वी की कक्षा, ज्वालामुखी विस्फोट शामिल हैं। कुछ कारकों का जलवायु परिवर्तन में बहुत जल्द ही प्रभाव पड़ता हैं जबकि कुछ प्रभवित करने में सालों लगा देते हैं।
प्रकृति ही सांसारिक गतिविधिओं की प्रेरणा देती है। श्रीमदभगवदगीता के अनुसार प्रकृति सभी जीवों के मनों को भी नियंत्रण में रखती है। और सभी जीव प्रकृति द्वारा नियंत्रित अपने अपने स्वभाव से बरतते है। अतः मानवी कारक भी एक प्रकार से प्रकृति जनित ही माने।
जानिये कब और कैसे होगी महाप्रलय और कब होगी स्वर्णिम युग की शुरुवात?
प्रकृति का अटल नियम है जिसका जन्म होगा उसकी मृत्यु तय है। पृथ्वी पर भी प्रलय तय है। प्रलय का अर्थ है ‘विनाश‘। यह दो प्रकार की होती है – आंशिक प्रलय तथा महाप्रलय।
आंशिक प्रलय दो प्रकार की होती है। सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग के बाद अब चौथा युग यानि कलियुग चल रहा है। सभी ब्रह्माण्डों और आत्माओं के जनक है पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जिन्हें पृथ्वी पर उनके भक्त कबीर साहेब के नाम से जानते है । पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब ने सृष्टि रचना के बारे में विस्तार से बताया है।
प्रलय के समय के सर्व भक्तिहीन मानव शरीर धारी प्राणी मारे जाएंगे। उस समय मानव की उम्र 20 वर्ष की होगी। मानव कद लगभग डेढ़ या अढ़ाई फुट का होगा। उस समय इतने भूकंप आया करेंगे कि पृथ्वी पर चार फुट ऊँचें भवन भी नहीं बना पाया करेंगे। सर्व प्राणी धरती में बिल खोद कर रहा करेंगे। पृथ्वी उपजाऊँ नहीं रहेगी। जमीन के उपजाऊ तत्त्व समाप्त होंगे। कोई फलदार वृक्ष नहीं होगा। पीपल के पेड़ पर पत्ते नहीं लगेंगे। पर्यावरण दूषित होने से ओस के समान वर्षा हुआ करेगी। नदियाँ सूख जाएगी। यहीं कलियुग का अंत होगा।
उस समय प्रलय होगी, जब पृथ्वी पर पानी ही पानी होगा। एक दम इतनी वर्षा होगी की सारी पृथ्वी पर सैकड़ों फुट पानी हो जाएगा। अति उच्चे स्थानों पर कुछ मानव शेष रहेंगे। यह पानी सैंकड़ों वर्षों में सूखेगा। फिर सारी पृथ्वी पर जंगल उग जाएगा। पृथ्वी फिर से उपजाऊ हो जाएगी। जंगल में वृक्षों की अधिकता से पर्यावरण फिर शुद्ध हो जाएगा। कुछ व्यक्ति जो भक्ति युक्त होंगे ऊँचे स्थानों पर बचे रह जाएंगे। उनके संतान होगी। वह बहुत ऊँचे कद की होगीं। चूंकि वायुमण्डल में वातावरण की शुद्धता होने से शरीर अधिक स्वस्थ हो जायेगा। मात-पिता छोटे कद के होंगे और बच्चे उँचे कद (शरीर) के होगें। कुछ समय पश्चात् माता-पिता और बच्चों का युवा अवस्था में कद समान हो जाएगा।
इस प्रकार यह सतयुग का प्रारम्भ होगा। जिसके बाद दूसरी आंशिक प्रलय एक हजार चतुर्युग पश्चात् होती है। इसके बाद तीन प्रकार की महाप्रलय और तीन दिव्य महा प्रलय होती हैं। तीसरी दिव्य महा प्रलय में परब्रह्म (अक्षर पुरूष) की मृत्यु होती है। तीसरी दिव्य महा प्रलय में सर्व ब्रह्मण्ड तथा अण्ड जिसमें ब्रह्म (काल) के इक्कीस ब्रह्मण्ड तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड व अन्य असंख्यों ब्रह्मण्ड नष्ट हो जाते है।
सतपुरुष की आज्ञा से फिर सृष्टि रचना होगी। परंतु सतलोक में गए हंस दोबारा जन्म-मरण में नहीं आऐंगे। इसलिए पूर्णब्रह्म की साधना करनी चाहिए जिसकी उपासना से जीव सतलोक अर्थात अमरलोक में चला जाता है। फिर वह कभी नहीं मरता, पूर्ण मुक्त हो जाता है। वह पूर्ण ब्रह्म (कविर्देव) तीसरा सनातन अव्यक्त है।
अमर करुं सतलोक पठाऊं, तातैं बन्दी छोड़ कहांउ
प्रकृति की बेड़ियों से छूटने का समय आ गया है
सृष्टि के रचेयता ने स्वयं रचना बताई और जीवों के कल्याण के लिए स्वयं सतगुरु की भूमिका निभाई। गुरू शिष्य परंपरा के अंतर्गत वर्तमान समय में सन्त रामपाल जी महाराज जी सतगुरु की भूमिका में हैं। यह कार्यक्रम देखने वाले सभी दर्शकों से निवेदन है की सन्त रामपाल जी महाराज जी के द्वारा दी हुई सद्भक्ति से ही सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष सम्भव है। आप आज ही सन्त रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें। प्रकृति के चक्र से छुटकारा पाएं। आप संत रामपाल जी महाराज जी को फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर भी फालो कर सकते हैं।