दहेज प्रथा भारत में एक ऐसी कुप्रथा है, जो आज भी बहन – बेटियों के सम्मान और समानता पर चोट करती है। यह प्रथा केवल आर्थिक बोझ ही नहीं बल्कि महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचारों का मुख्य कारण भी है। यह प्रथा दिन – प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। लोग एक दूसरे की देखा – देखी बहुत ज्यादा दिखावा कर रहे हैं । इस प्रथा ने कुछ बहन – बेटियों के माता – पिता का जीना हराम कर रखा है।
इस प्रथा के कारण बहुत सी बहन – बेटियों को अपनी जान गवानी पड़ रही है । लोग धन – दौलत, पैसे, कार – कोठियों के मोह में इतने अंधे की दूसरे कि बहन – बेटियों को शांति से जीने का अधिकार ही प्रदान नहीं करते हैं। यदि दहेज में कुछ मांगा और लड़की वालों की ओर से कुछ कमी रह जाए तो क्यों मिलती है बेटियों बुरी से बुरी सजा ? क्या इसी लिए होता है नारी का जन्म कि समाज में वो अत्याचारों को झेलती रहे ? क्या इसी लिए होता है नारी का जन्म जब मन करे जहर दे दो या जिंदा जला दो ? केवल धन – दौलत, पैसों के लिए ऐसा क्यों करता है? इस प्रथा को समझने के लिए और समाप्त करने के लिए इसके प्रभावों और समाधान पर बहुत ही गहनता से विचार करना बेहद जरूरी है ।
दहेज प्रथा का समाज पर प्रभाव
दहेज प्रथा का सबसे बड़ा प्रभाव समाज की आर्थिक संरचना पर देखने को मिला है । गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवार अपनी बहन – बेटियों की शादी के लिए कर्ज लेने पर मजबूर हो जाते हैं। दूसरों से कर्ज लेकर अपनी बहन – बेटियों को घर से विदा करते हैं कि वो सुखी जीवन जी सकें, परन्तु इसके बदले कुछ और ही देखने में आता है। कर्ज लेकर पिता विदा तो कर देते हैं अपने कलेजे के टुकड़े को, लेकिन उस कर्ज को अदा करने में पूरा जीवन समाप्त हो जाता है । इस प्रथा के कारण परिवारों का सुख – चैन खत्म हो चुका है ।
दहेज देने के बाद भी नारी पर अत्याचार कम होने के बदले बढ़ते ही जा रहे हैं। कई बार तो ये देखने में आया है कि शादी के बाद भी दहेज की मांग जारी रहती है, जिससे परिवार आर्थिक तंगी में फंस जाता है । यह केवल व्यक्तिगत संकट नहीं है, बल्कि पूरे समाज की प्रगति में बाधा बनता है। दूसरी ओर यदि देखा जाए तो भ्रूण हत्या भी दहेज प्रथा के कारण ही की जाती हैं । अब तो लोगों के मन में यह धारणा बन चुकी है कि बेटी का जन्म न हो तो ही अच्छा है। लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि यदि बेटी नहीं तो बहु कहां से लाएंगे और यदि बहु नहीं मिली तो परिवार का वंश आगे कैसे बढ़ाएंगे?
नारी शक्ति से ही परिवार का संचार होता है । सोचने की बात है कि इस प्रथा के कारण बहन – बेटियों की भी कमी आ गई है । कुछ लोग अपने बेटों के विवाह के लिए सोचते ही रह जाते हैं और बेटों का विवाह नहीं हो पाता है। क्योंकि दहेज प्रथा ने ही तो बेटियों की कमी हो गई है। कोई चाहता ही नहीं कि बेटी का जन्म हो जाए। लोग इतने पापी मन के हो गए हैं कि गर्भ में ही बेटियों को मरवा देते हैं। इस प्रथा के कारण समाज का विकास थमता जा रहा है।
Dowry system: बहन – बेटियों की स्थिति
दहेज प्रथा ने ऐसा कुप्रभाव डाला है कि लोगों ने बहन – बेटियों को वस्तु के रूप में देखने की मानसिकता बना ली है।उनकी शिक्षा, योग्यता और गुणों के बजाय उनके साथ दहेज में मिलने वाली संपत्ति से आंका जाता है । दहेज के कारण बहन – बेटियों को अनेकों बार शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। इसके परिणामस्वरूप आत्महत्या और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में वृद्धि हो रही है। कहा जाता है कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवी – देवताओं का निवास होता है लेकिन समाज में तो कुछ और ही देखने को मिलता है ।
यदि दहेज में कुछ कमी हो जाए तो ससुराल वालों की तरफ से बहन – बेटियों बार – बार ताने दिए जाते हैं कि क्या लेकर आई है, क्या है तेरा इस घर में, क्या है तेरे बाप के पास आदि। समाज ने बहन – बेटियों की भावनाओं को समझने के लिए कोई बचा ही नहीं है। संवेदनशील होने के बदले लोग अहंकारी और मतलबी हो गए हैं केवल अपने स्वार्थ के लिए एक वस्तु की भांति महिलाओं का उपयोग करते हैं। इसके पीछे का कारण केवल और केवल दहेज प्रथा ही है।
कानून का अभाव या पालन न होना
समाज में लोगों को कानून का डर क्यों नहीं है। क्यों दिन प्रतिदिन दहेज की भूख बढ़ती ही जा रही है, जिसके कारण गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों का सुख से जीना हराम है। भारत में दहेज निषेद अधिनियम, 1961 के तहत दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध हैं। इसके बाद भी यह प्रथा ट्रेंड सा बन गया है । लोग एक दूसरे की देखा – देखी में होड़ लगाते हैं कि इसने इतना दहेज लिया – दिया, तो हम इससे ज्यादा लेंगे – देंगे । कानून का शक्ति से पालन न होना, भ्रष्टाचार और सामाजिक दबाव इस गंभीर समस्या को और भयानक बनाते हैं। कानून के साथ – साथ समाज के नैतिक मूल्यों को मजबूत करना भी आवश्यक है । लोगों के अंदर संवेदनशीलता , नैतिकता, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास थमसा गया है । इसके लिए समाज को सत्यता से रूबरू करवाना भी जरूरी है ।
क्यों है समाधान जरूरी
दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना और शिक्षा का प्रचार – प्रसार करना आवश्यक है। इसके लिए कुछ जरूरी कदम :
- लड़के और लड़कियों के बीच समानता का भाव बढ़ाना बहुत जरूरी है । लोग यदि बेटा – बेटी में अंतर करना छोड़ दें, तो बेटियों पर हो रहे अत्याचार थम सकते हैं ।
- बहन – बेटियों को शिक्षा और रोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर बना सकते हैं, जिससे वे स्वयं अपने पैरों पर खड़ी होकर खुल कर जीवन का सुख महसूस कर सकें।
- जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है, क्योंकि इसके माध्यम से इस कुप्रथा से होने वाले दुष्प्रभावों / दुष्परिणामों के बारे में समाज को बताया जा सकता है।
- सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए एक नजर सरकार को भी डालनी चाहिए और बेटियों को खुलकर जीने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
दहेज प्रथा से पीड़ित महिला के अधिकार
महिलाओं पर अत्याचार कभी भी हो सकते हैं । इसी लिए इस तरह के मामले विवाह के कितने भी वर्ष बाद भी केस दायर करवा सकते हैं । समाज में दहेज की भूख बढ़ती ही जा रही है । दहेज के भूखे दानव कभी भी अपनी हदें पार कर सकते हैं। इसी लिए जब भी बहन – बेटियों को क्रूरता और दहेज की मांगों का सामना करना पड़े, तो वे धारा 125 सीआरपीसी के तहत एक रखरखाव की याचिका दायर कर अपने को सुरक्षित कर सकती हैं। जिसके तहत बेटी का परिवार और बेटी अलग से अपने पति द्वारा रखरखाव / निर्वाह-धन के हकदार हैं। इसी लिए कहा जाता है कि लोगों को जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना बहुत जरूरी है ।
मानव समाज एवं सभ्यता के समक्ष कई सारी चुनौतियाँ मुँह खोले खड़ी हैं, परंतु इनमें से एक है दहेज प्रथा। दहेज कुप्रथा भारतीय समाज के लिए एक भयंकर अभिशाप की तरह है। दहेज एक प्रथा नहीं है, बल्कि भीख मांगने का सामाजिक तरीका है। फर्क सिर्फ इतना है कि देने वाले की गर्दन झुकी हुई होती है और लेने वाले की अकड़ तनी खड़ी रहती है । इसे खत्म करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। शादी – विवाह को व्यापार के बदले प्रेम और सम्मान का प्रतीक बनाना ही इस समस्या का समाधान है। दूसरों की भावनाओं को समझने के लिए समाज में संवेदनशीलता की जरूरत है। नैतिक विचारों को विकसित करना और बेटा – बेटी में अंतर खत्म करना भी बेहद जरूरी है। जिससे बहन – बेटियां आत्मनिर्भर बन सकें।
दहेजमुक्त विवाह: संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों द्वारा अच्छी पहल
वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं, जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है।
विश्व में केवल संत रामपाल जी महाराज ही वह परम संत है जिन्होंने भ्रूण हत्या से लेकर दहेज रूपी रावण को जड़ से खत्म करने का बीड़ा उठाया है। संत रामपाल जी महाराज के सान्निध्य में बिना दहेज लिए – दिए लाखों बहन – बेटियों के विवाह हो चुके हैं और हो रहे हैं । सरकारी नौकरी करने वाले लकड़ो के परिवार भी बिना दहेज के विवाह कर रहे हैं, केवल संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान है, जो समाज में संवेदनशीलता , नैतिकता व्यक्तिगत और सामाजिक विकास कर रहा है और कर सकता है।
संत रामपाल जी महाराज अटल संकल्प के साथ समाज को जागृत करने के लिए दिन – रात प्रयास कर रहे हैं। संत रामपाल जी ने दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के साथ अनेकों कुरीतियों को खत्म किया है। किसी से धन – दौलत लेकर हम धनवान नहीं बन सकते है । यह मानव जन्म दुर्लभ है।यह बार-बार नहीं मिलता है। वह पूर्ण परमात्मा ही है जो हमें धनवृद्धि कर सकता है, सुख शांति दे सकता है व रोगरहित कर मोक्ष दिला सकता है।
बिना मोक्ष के हम काल-चक्र में ही घूमते रहेंगे ,यदि इससे छुटकारा चाहिए तो एक ही उपाय है – सर्व सुख और मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाने से सम्भव है। तो सत्य को जाने और पहचान कर पूर्ण तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज से मंत्र नामदीक्षा लेकर अपना जीवन कल्याण करवाएं । अन्यथा जीवन का कार्य अधूरा रह जाएगा और अधिक जानकारी के हेतु आप संत रामपाल जी महाराज ऐप पर विजिट करें।
FAQs:
दहेज प्रथा से आप क्या समझते हैं ?
दहेज का अर्थ है कि एक पिता अपनी बेटी के विवाह में जो धन – संपत्ति उसके ससुराल वालों को प्रदान करता है। दहेज प्रथा आज से ही नहीं बल्कि बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है। जिससे गरीब – मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक संरचना पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है ।
दहेज को कितने प्रकार में विभाजित किया है ?
मुख्यता दहेज का दो प्रकार से लेन – देन किया जाता है ।
(i) दहेज विवाह में दुल्हन पक्ष द्वारा दूल्हे के पक्ष को दिया जाता है ।
(ii) विवाह के किसी भी पक्ष के माता-पिता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी भी पक्ष को या किसी अन्य व्यक्ति को दहेज का लेन – देन किया जाता है।
दहेज प्रथा के क्या प्रभाव हैं ?
दहेज प्रथा ही मुख्य कारण है कि आज बेटियां आत्मनिर्भर होने के बजाय दूसरों के इशारों पर अपना जीवन व्यतीत करती हैं l समाज में संवेदनशीलता, नैतिकता, व्यक्तिगत और सामाजिक विचारों में गिरावट आ गई है ।