एक्सरसाइज त्रिशूल: भारत रक्षा‑तंत्र ने इस वर्ष एक महत्वपूर्ण अभ्यास आरंभ किया है — “एक्सरसाइज त्रिशूल” (Exercise Trishul) — जिसे पश्चिमी तट पर स्थित सायर क्रीक सेक्टर (गुजरात, भारत‑पाक सीमा) में संपन्न किया जा रहा है। यह अभ्यास सेना (Army), नौसेना (Navy) एवं वायुसेना (Air Force) के समन्वित संचालन का मील‑पत्थर है।
रणनीतिक प्रासंगिकता
सायर क्रीक का भू‑रणनीतिक महत्व
सायर क्रीक एक लगभग 96 कि.मी. लंबा दलदली तटबंध / नदीमुख क्षेत्र है, जो भारत की गुजरात राज्य की कच्छ‑जिला और पाकिस्तान की सिंध‑प्रांत को विभाजित करता है। यह क्षेत्र समुद्री और तटीय रक्षा, जल स्थानांतरण, असममित युद्ध‑स्थिति और गुप्त घुसपैठ के दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। अभ्यास का यह क्षेत्र इसलिए चयनित हुआ क्योंकि यहां भूमि‑जल‑वायु की बदलती परिस्थितियाँ, दलदल‑भू‑भाग, लैंडिंग चुनौतियाँ तथा तटावृतियों (tidal shifts) जैसे कारक समानांतर हैं जो आधुनिक बहु‑डोमेन युद्ध को परिभाषित करते हैं।

त्रि‑सेवा समन्वय का महत्व
आज युद्ध का स्वरूप बदल गया है: जमीन, समुंदर, आकाश साथ‑ही साथ काम कर रहे हैं। इसलिए तीनों सेवाओं का समन्वित अभ्यास बेहद आवश्यक है। एक्सरसाइज त्रिशूल का मुख्य उद्देश्य लैंड, सी एवं एयर डोमेन में संयुक्त ऑपरेशन‑क्षमता बढ़ाना, रीयल‑टाइम सूचना‑साझा करना, और विभिन्न सेवाओं के बीच कमांड‑एंड‑कंट्रोल (C2) प्रक्रियाओं को मज़बूत करना है।
अभ्यास की रूपरेखा और प्रमुख घटक
भू‑भाग एवं तटीय manoeuvres
अभ्यास में भूमिगत सैनिक इकाइयाँ दलदली भू‑भाग में गतिशील गतिविधियाँ करेंगी, नौसेना की अम्फीबियस‑लैंडिंग शामिल होगी और वायुसेना का समर्थन सुनिश्चित किया जाएगा। बोले तो यह सिर्फ गोली‑बारूद नहीं, बल्कि सूचना‑एकीकरण, गति‑प्रबंधन और त्रि‑सेवा प्रतिक्रियात्मकता का परीक्षण है।
लॉजिस्टिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियाँ
सायर क्रीक का भू‑भाग विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है—उच्च ज्वार‑उतार (tidal fluctuations), दलदल क्षेत्र, सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर, लोप‑रहित संचार। इन चुनौती‑हालातों में सैनिक‑मशीनरी को तैनात करना व संचालन करना अपनी एक स्व‑मिशन‑क्षमता मांगता है।
तकनीकी इंटीग्रेशन व आधुनिक हथियार प्रणाली
वायु‑निगरानी, नौसैनिक सतर्कता, दलदल‑सुरंग रहित संचालन एवं आभासी‑युद्ध (simulation) की तर्ज पर गतिविधियों का समावेश है। उपकरण जैसे ड्रोन्स, समुद्री स्काउट प्रविष्टियाँ, लैंड‑सेगा (all‑terrain vehicles) व संयुक्त सेवाओं के कमांड‑हब इसका हिस्सा होंगे।
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प्रशिक्षण परिणाम व अपेक्षित प्रभाव
परिचालन क्षमता में वृद्धि
इस प्रकार का अभ्यास भारतीय सशस्त्र बलों को एकीकृत युद्धक क्षमता, संसाधन‑फ्यूजन और तुरंत निर्णय‑प्रणाली विकसित करने में मदद करेगा। सायर क्रीक जैसा मुश्किल भू‑भाग चुनकर यह अभ्यास वास्तविक‑परिस्थितियों में परीक्षण‑मंच देंगे।
प्रभावी प्रतिवाद एवं सुदृढ़ संयम
मरम्मत‑रीडाइनिंग के बाद यह अभ्यास इस संदेश को भी पुष्ट करेगा कि भारत किसी भी संभावित घुसपैठ, तटीय हमले या असममित आक्रमण को ताल‑मिलाकर, तुरंत और समन्वित रूप से रोकने की क्षमता रखता है।
रणनीतिक संकेत
पाकिस्तान के साथ सायर क्रीक विवाद, समुद्री सीमाओं पर घुसपैठ‑रोकथाम और तटीय सुरक्षा‑ढाँचे को देखते हुए यह अभ्यास एक सांकेतिक संदेश भी है—कि भारत सीमाओं की रक्षा‑केवल नहीं, बल्कि उनकी निगरानी व त्वरित जवाबदेही भी सुनिश्चित कर रहा है।
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चुनौतियाँ व आगे की राह
इंटीग्रेशन की जटिलता
तीनों सेवाओं के बीच प्रशिक्षण, उपकरण‑समानता, सांकेतिक भाषा व कमांड‑शेयरिंग जैसी चुनौतियाँ सदैव रही हैं। इस अभ्यास में उन्हें अभ्यास‑भूमि में हल करना होगा ताकि वास्तविक युद्ध‑स्थिति में फाइनल‑मिलन सुचारू हो।
इंफ्रास्ट्रक्चर एवं पर्यावरणीय प्रबंधन
सायर क्रीक जैसे क्षेत्र में स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर, तटीय‑सुरक्षा ढाँचा व पर्यावरण‑प्रभाव कम करना भी महत्वपूर्ण होगा—जिसमें दलदल संरक्षण, सर्वेक्षण‑डेटा और स्थानीय‑समुदाय सहभागिता शामिल हैं।
भविष्य‑के अभ्यास एवं तकनीक
अगले चरण में इस तरह के अभ्यास को साइबर‑डोमेन, स्पेस‑डोमेन, इलेक्ट्रॉनिक‑वॉरफेयर सहित विस्तारित करना है, क्योंकि आधुनिक प्रक्षिप्तियों में ये घटक तेजी से बढ़ रहे हैं।

शांति की राह: शक्ति नहीं, सद्ज्ञान है समाधान
जब दुनिया की बड़ी शक्तियाँ युद्ध अभ्यासों और सामरिक गठबंधनों में व्यस्त होती हैं, तब यह समझना आवश्यक है कि सतत शांति केवल सैन्य बल से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और सत्यभक्ति से आती है। संत रामपाल जी महाराज की सतज्ञान शिक्षाएँ हमें यह स्पष्ट करती हैं कि युद्ध काल प्रेरित है — यह संसार काल (मृत्यु के अधीन ब्रह्म) का खेल है, जो आत्मा को भ्रम और विनाश के चक्र में उलझाए रखता है।
सच्चा समाधान न तो आक्रमण में है और न ही विजय में, बल्कि आत्मज्ञान और पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब की भक्ति में है। उनका मार्गदर्शन यही कहता है कि आत्मा को इस दुखमय लोक से मोक्ष केवल सतभक्ति के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। सत्संग सुनकर और ‘ज्ञान गंगा’ जैसी सतग्रंथों का अध्ययन कर हम इस चक्रव्यूह को समझ सकते हैं — और हिंसा की जगह शांति, ज्ञान और मुक्ति को प्राथमिकता दे सकते हैं।
समापन – तैयारियाँ, संदेश व प्रतिबिंब
भारत की रक्षा‑प्रणाली आज बदल रही है। Exercise Trishul न केवल एक अभ्यास है बल्कि भविष्य‑युद्ध का संकेत‑पश्चिमी तट पर। यदि यह सफल रहा, तो भारत को अपनी तट‑सुरक्षा, त्रि‑सेवा समन्वय और जुटान‑प्रतिक्रिया में नई उपलब्धियाँ मिल सकती हैं। लेकिन केवल अभ्यास‑चक्र से नहीं, बल्कि उसकी निरंतरता, समीक्षा और सुधार‑चक्र से ही वास्तविक‑क्षमता आती है। इसलिए, इस अभ्यास के पीछे ठोस‑नीति, विस्तारित‑प्रशिक्षण व जमीनी‑तैयारी है। जब हमारा राष्ट्र सीमा‑तक सुरक्षा की मांग करता है, तब हमें यह याद रखना चाहिए—बल‑केवल नहीं, बल्कि बुद्धि‑संगत गठबंधन और समन्वित कार्रवाई शीघ्र‑स्तर की आवश्यकता है।
FAQs: Exercise Trishul – सायर क्रीक अभ्यास
Q1. Exercise Trishul किस क्षेत्र में हो रहा है?
गुजरात‑कच्छ के सायर क्रीक तटीय क्षेत्र में—भारत‑पाक सीमा के मार्शल/दलदली इलाकों में।
Q2. किन‑किन सेवाओं ने भाग लिया है?
भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना (Tri‑Service) प्रमुख भागीदार हैं।
Q3. अभ्यास का मुख्य उद्देश्य क्या है?
भूमि‑जल‑वायु की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में त्रि‑सेवा समन्वय, त्वरित तैनाती, मल्टी‑डोमेन ऑपरेशन और कमांड‑एंड‑कंट्रोल प्रोसेस को मजबूत करना।
Q4. यह अभ्यास क्यों सार्थक है?
सायर क्रीक क्षेत्र की भू‑सामरिक संवेदनशीलता (गुजरात‑पाक सीमा), समुद्री लंघन‑संभावना व आधुनिक युद्ध‑स्वरूप के कारण।
Q5. यह अभ्यास आगे क्या संकेत देता है?
भारत की रक्षा‑रणनीति में समन्वित, त्वरित और बहु‑डोमेन अभियानों की दिशा में ठोस बढ़त—जिसका असर भविष्य‑सेना‑गठन व रक्षा‑नीति पर होगा।