भारतीय विवाह: दहेज की जड़ें, आधुनिक दिखावा और बदलाव की लहर

भारतीय विवाह दहेज की जड़ें, आधुनिक दिखावा और बदलाव की लहर

अगर आप किसी शादी में गए हैं, या आपके परिवार में कोई शादी हुई है, तो आपने दहेज नामक शब्द ज़रूर सुना होगा। मुमकिन है कि आपने दहेज का लेन-देन होते हुए भी देखा होतथा आप इसके समर्थक भी हों, या आप इसके खिलाफ़ हों। लेकिन ये विषय इन व्यक्तिगत विचारों से परे है।

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दहेज की उत्पत्ति: प्रारंभिक रूप

अब सवाल उठता है कि यह दहेज की प्रथा, चाहे आप इसे प्रथा कहें या कुप्रथा, शुरू कैसे हुई? प्रारंभ में दहेज का क्या प्रारूप था? क्या आज का दहेज वही है जो प्रारंभ में था? हो सकता है कि आप नहीं जानते हों कि यह शुरू कैसे हुआ।

हमने यह जानने के लिए सबसे बड़े विशेषज्ञों से संपर्क करने का निर्णय लिया—यानी हमारे बुजुर्ग, जिनके पास अस्सी-नब्बे या सौ सालों का अनुभव इस प्रकार रिकॉर्डेड है जैसे पेनड्राइव में संगीत। बातचीत में उन्होंने बताया कि दहेज की शुरुआत ऐसे नहीं हुई थी जैसे आज प्रचलित है। प्रारंभ में, एक पिता अपनी बेटी को दहेज नहीं, बल्कि मेहनताना दिया करता था।

जब बेटी फसल के समय या किसी जरूरत के समय अपने ससुराल से पीहर आती थी, तो वह खेतों में काम करती थी, या घर के किसी अन्य जरूरी काम में हाथ बटाती थी। इसके बदले में जो उसे मिलता था, वह दहेज नहीं होता था। बेटी भी खुशी-खुशी उसे स्वीकार करती थी।

दहेज की कुप्रथा का जन्म और विकास

धीरे-धीरे, इस दहेज की प्रथा ने कुप्रथा का रूप ले लिया। लोग अपनी बेटी की विदाई के समय ज्यादा से ज्यादा धन देने लगे, जितनी उनकी हैसियत होती। इसके बाद, लड़के वालों ने भी धीरे-धीरे अपनी मांगें रखनी शुरू कर दीं, और न मिलने पर लड़की को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इसी दिखावे में गरीब घर की लड़कियां भी दहेज की लालसा रखने लगीं, जिससे उनके पिता पर अत्याधिक बोझ आया और कर्ज तले दबकर खुदकुशी करने की नौबत आने लगी। लेकिन दहेज के नशे में डूबे इस समाज के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

इस प्रकार, वर्तमान में यह कुप्रथा समाज को खोखला कर रही है। लेकिन इस दीमक की दवा आपको आगे इस लेख में मिलेगी।

शादियों में दिखावा और आडंबर: एक विवेचना

DJ और आडंबर

शादियों में होने वाला मिथ्या दिखावा सिर्फ दहेज तक सीमित नहीं है। आज के युवा वर्ग के लिए DJ बजाए बिना शादी अधूरी मानी जाती है। अगर कोई शादी DJ के बिना हो जाए, तो लोग इसे शादी मानने से भी इंकार कर देते हैं। वे सोचते हैं, यह भला कोई शादी है जिसमें DJ नहीं बजा, पटाखे नहीं फोड़े गए?

लेकिन क्या वास्तव में इन सब की एक सभ्य समाज में जरूरत है? क्या हमें वाकई में अपने घर की बहु-बेटियों को भद्दी अवस्था में भद्दे गानों पर नचाने की आवश्यकता है? क्या एक सभ्य समाज की शादी में ऐसे कुकृत्य आवश्यक हैं? क्या हमारा स्तर इतना गिर चुका है कि हम इसके बिना शादी नहीं कर सकते? और क्या ये सब करने से उस दंपत्ति का जीवन सुगम हो जाएगा?

लिफाफे और व्यर्थ खर्चे

शादी में लिफाफों में सौ, दो सौ, या पांच सौ रुपए रखकर किसी को देना और फिर वह उसे आगे किसी और को दे देता है—इस व्यर्थ व्यवस्था का क्या मतलब है?

लड़का-लड़की की शादी उस तरह करें जैसे श्री विष्णु जी की हुई, ब्रह्मा जी की हुई। माता दुर्गा ने अपने तीनों पुत्रों की शादी बड़े साधारण तरीके से की थी। पुराणों में इसका विवरण मिलता है, जो आगे इस लेख में पढ़ने को मिलेगा।

रूढ़िवादी परंपराओं और आधुनिक दिखावे के दुष्परिणाम:

कन्या भ्रूण हत्या

दहेज और दिखावे की इस कुप्रथा के कारण समाज में कन्या भ्रूण हत्या जैसी भयावह घटनाएं सामने आ रही हैं। लोग दहेज के बोझ से बचने के लिए अपनी बेटियों को जन्म लेने से पहले ही खत्म कर देते हैं।

घरेलू हिंसा

दहेज की मांग पूरी न होने पर बहु-बेटियों पर घरेलू हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं। यह समस्या समाज के हर वर्ग में व्याप्त है।

गरीब बाप की खुदकुशी

दहेज की मांग पूरी न कर पाने के कारण गरीब पिता खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाते हैं। यह दहेज प्रथा का सबसे दर्दनाक परिणाम है।

शादियों में झगड़े

शादियों में DJ पर झगड़े, शराब पीकर की जाने वाली भद्दी हरकतें और अन्य विवाद भी इसी दिखावे का परिणाम हैं।

औकात से अधिक दिखावा और पाप

लोग अपनी औकात से ज्यादा दिखावा करने की होड़ में कई बार पाप कर बैठते हैं। यह भी दहेज और दिखावे की प्रथा का नतीजा है।

भ्रष्टाचार और पर्यावरणीय नुकसान

कहीं न कहीं, भ्रष्टाचार की जड़ भी इस दिखावे में छिपी है। पटाखे जलाते वक्त होने वाले हादसे और पर्यावरणीय नुकसान भी इसी का परिणाम हैं।

इमेज: मुकेश अंबानी के बेटे अनत अंबानी की हाल ही मे हुई 5000 करोड़ की शादी। 

समाज में उभर रही नई सोच: रमैणी विधि

दहेजमुक्त समाज की ओर कदम

दहेज की इस बीमारी से हर रोज़ करीब 20 जानें जाती हैं। लेकिन अब भारत में एक नई विचारधारा उभर रही है, जिससे आने वाले समय में इस कुप्रथा में कमी देखी जा सकेगी। विवाह का एक अनोखा तरीका लोग अपना रहे हैं, जिसे ‘रमैणी’ का नाम दिया गया है। 

संत रामपाल जी महाराज का दृष्टिकोण

भारत के एक जाने-माने संत, जो अपने अनोखे ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं, उनके सानिध्य में यह रमैणी विधि की जाती है। यह विधि पूरी तरह से दहेजमुक्त होती है और इसमें किसी भी प्रकार का आडंबर नहीं होता।

इस रमैनी की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्न हैं:

1. दहेज निषेध: इस विधि में एक पैसे का भी लेन-देन निषेध है।

2. आडंबर निषेध: किसी तरह का दिखावा, जैसे कपड़ों का लेन-देन, भात भरना आदि निषेध है।

3. साधारणता: लड़की केवल 2 जोड़ी कपड़ों के साथ साधारण तरीके से ससुराल जाती है।

4. भड़कीला वस्त्र निषेध: किसी तरह का भड़कीला वस्त्र पहनना भी निषेध है।

5. शादी का भोज: शादियों में अत्याधिक खर्चीले भोज, जैसे बड़े-बड़े होटलों या मैरिज पैलेस में, निषेध हैं।

6. DJ और शोर-शराबा: DJ पूरी तरह से निषेध है।

7. श्री अमर ग्रंथ साहिब जी की वाणी: इस विधि में संत गरीबदास जी महाराज द्वारा रचित श्री अमर ग्रंथ साहिब जी की वाणियों का संग्रह, जिसे ‘असुर निकंदन रमैणी’ कहा जाता है, संत रामपाल जी महाराज के मुख से उच्चारित होता है और स्पीकर के माध्यम से 17 मिनट में यह विधि पूरी होती है। इसे 17 मिनट में विवाह का नाम दिया गया है।

तो ये थे कुछ अनोखे और जरूरी बिंदु, जो रमैनी करवाने वाले लड़का और लड़की को और उनके परिवारों को अपनाने पड़ते हैं, तभी ये रमैणी या विवाह संभव है।

रमैणी का प्रभाव

बता दें, कि ये अनोखा तरीका संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई उनके आदेशानुसार अपना रहे हैं।

अब तक लाखों लोग इस विधि को अपनाकर सुखी दांपत्य जीवन जी रहे हैं तथा यह विधि समाज में दहेज कुप्रथा को समाप्त करने का एक सशक्त माध्यम बन रही है।

आप कैसे अपने पुत्र/पुत्री की रमैणी करवा सकते हैं

रमैणी की प्रक्रिया

यह रमैणी विधि संत रामपाल जी महाराज के आश्रमों में संपन्न की जाती है। यदि आप अपने पुत्र या पुत्री का रमैणी विवाह करवाना चाहते हैं, तो सबसे पहले आश्रम में जाकर इस विधि को देखें और समझें। इसे देखने से आपको कई महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट होंगी। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सितंबर महीने की 6, 7 और 8 तारीख को संत रामपाल जी महाराज के आश्रमों में एक विशाल समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस समागम के दौरान भी रमैणी विवाह का कार्यक्रम होगा। आप इस अवसर पर आश्रम आकर इस विधि को देख सकते हैं और समझ सकते हैं कि रमैणी कैसे होती है और आप इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं।

आगामी समागम की जानकारी :

6, 7 व 8 सितंबर को होने जा रहे इस महासमागम में विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन होगा, जैसे दहेजमुक्त विवाह, रक्तदान शिविर, अखंड पाठ, विशाल भंडारा व विशाल सत्संग आदि।

आप अपने निकटतम सतलोक आश्रम का पता लगाने के लिए निम्नलिखित नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं:

+91 8222880541, 542, 543, 544, 545

+91 7027000825, 826, 827, 828, 829

निष्कर्ष

इस लेख में प्रस्तुत किए गए तथ्यों से स्पष्ट है कि दहेज की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए हमें सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। संत रामपाल जी महाराज द्वारा चलाए जा रहे इस प्रयास में हम सबको शामिल होना होगा।

संत रामपाल जी महाराज द्वारा जलाई गई इस तत्वज्ञान की लौ की रोशनी में अगर हम चलेंगे तो हमारा जीवन सुगम होगा।

कुछ महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब:

1. क्या इस विवाह की कोई फीस लगती है?

नहीं, बिल्कुल नहीं। संत रामपाल जी महाराज से दीक्षित सभी भक्तजन अपने पुत्र और पुत्री का रिश्ता स्वयं तय करते हैं, और यह विवाह बहुत ही साधारण तरीके से होता है, जिसमें जात-पात का भी कोई भेदभाव नहीं होता।

2. क्या संत रामपाल जी महाराज हिंदू रीति-रिवाजों के खिलाफ हैं?

संत रामपाल जी महाराज केवल गलत प्रथाओं और विचारधाराओं के खिलाफ हैं। किसी भी समाज में, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम, सिख, या ईसाई, दहेज का कोई स्थान नहीं है।

3. दहेज देना तो हमारी मर्यादा है, संत रामपाल जी महाराज इसे क्यों बंद करवाते हैं?

दहेज का लेन-देन एक शिक्षित समाज में बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। यह प्रथा व्यर्थ है और भक्ति मार्ग में भी दुख का कारण बनती है। दहेज आपकी मर्यादा नहीं है; आप इसे केवल दिखावे के लिए देते हैं। क्या इस दिखावे के बिना होने वाली शादियां, शादियां नहीं हैं? इस पर विचार कीजिए।

One thought on “भारतीय विवाह: दहेज की जड़ें, आधुनिक दिखावा और बदलाव की लहर

  1. बहुत अच्छा लेख है, समाज को आइना दिखाने के लिए 👌👌

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