International Day of Women and Girls in Science [Hindi]: जानें क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस, क्या है इसका इतिहास?

International Day of Women and Girls in Science Theme, History

International Day Of Women & Girls In Science: हर साल 11 फरवरी का दिन दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल इस इवेंट के आयोजन को 6 साल हो गए हैं। इस साल इसकी थीम है “कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे महिला वैज्ञानिक”।

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अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस का इतिहास (History)

साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों के अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया था। इस दिन को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा लागू किया गया था। यूनेस्को की वैश्विक प्राथमिकता लैंगिक समानता है। ऐसे में यह युवा लड़कियों को उनकी शिक्षा में सहायता प्रदान करता है और उन्हें अवसर प्रदान करता है। यूएजीए का लक्ष्य महिलाओं और लड़कियों के लिए विज्ञान में पूर्ण और समान पहुंच और भागीदारी हासिल करना है। इसका लक्ष्य लैंगिक समानता हासिल करते हुए  विज्ञान को बढ़ावा देना हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस का महत्व (Importance)

विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है। यूनेस्को की वैश्विक प्राथमिकता लैंगिक समानता है, जो शिक्षा में लड़कियों का समर्थन करना और उन्हें बेहतर अवसर प्रदान करना है।

International Day of Women and Girls in Science | अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक दिवस की थीम

साल 2021 की थीम है, “कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे महिला वैज्ञानिक”। यह विषय विज्ञान, नवाचार और प्रौद्योगिकी में सामाजिक पहलुओं और सांस्कृतिक आयामों के मूल्य पर केंद्रित है।

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बता दें कि इस साल कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किया जाएगा। इस दौरान उन महिलाओं की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जो कोरोना के खिलाफ दुनिया की लड़ाई के दौरान आगे खड़ी थीं। साथ ही सतत विकास, लिंग समानता और विज्ञान के लिए 2030 एजेंडा के महत्वपूर्ण हिस्सा पहलुओं पर चर्चा की जाएगी। 

विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका से संबंधित आकड़ें

वैश्विक आकड़ें

  • वर्ष 1901 से 2019 के मध्य फिजिक्स, केमिस्ट्री और मेडिसिन के क्षेत्र में 616 लोगों को कुल 334 नोबेल पुरस्कार दिए गए एवं इनमें सिर्फ 20 महिलाएं शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि फ्रांस की महान वैज्ञानिक मैरी क्यूरी को दो बार यह पुरस्कार मिला है।
  • वर्तमान में शोधकर्ता महिलाओं की हिस्सेदारी 30% से भी कम है।
  • स्टैम/STEM विषयों में महिलाओं द्वारा प्रकाशित शोध की संख्या कम है, उन्हें अपने शोध का मेहनताना भी कम मिलता और पुरुष सहकर्मियों की तुलना में वे करियर में उतना आगे नहीं बढ़ पातीं।
  • यूनेस्को के आंकड़ों (2014 से 2016) पर हम नजर डालें तो हमें पता चलता है कि कुल महिला छात्रों में से मात्र 30% महिलाएं उच्च शिक्षा में STEM(विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित -एसटीईएम या स्टेम) क्षेत्रों का चयन करती हैं।
  • अगर हम STEM क्षेत्र में महिलाओं का नामांकन देखे तो निम्न तथ्य सामने आते हैं-आईसीटी (3 प्रतिशत), प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5 प्रतिशत) और इंजीनियरिंग, विनिर्माण और निर्माण (8 प्रतिशत)।
  • 2015 के ‘जेंडर बायस विदाउट स्टडीज’की रिपोर्ट के अनुसार STEM क्षेत्रों की नौकरियों में महिलाओं का हिस्सा मात्र 12% था।
  • 2016 के केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वेक्षण के अनुसार स्टेम में नामांकित पूर्व स्नातक छात्र-छात्राओं का प्रतिशत 46 है, लेकिन आगे चलकर बड़ी संख्या में महिलाएं इसे करियर नहीं बनातीं।
  • 2016 में हुए केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वेक्षण के अनुसार स्टेम के क्षेत्रों में नौकरी कर रही महिलाओं में 81 प्रतिशत का मानना है कि प्रदर्शन आकलन में पुरुषों की तुलना में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
  • इस प्रकार हमारे सामने जो निष्कर्ष आता है वह यही दर्शाता है कि विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका काफी कम है एवं इसे बढ़ाने के लिए इस दिशा में सभी को सम्मिलित प्रयास करना होगा।

International Day of Women and Girls in Science | विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों की कम भूमिका के प्रमुख कारण

  1. लैंगिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण
  2. रोल मॉडल का अभाव
  3. सहयोग न देने वाली या प्रतिरोधी नीतियां
  4. पितृसत्तात्मक मानसिकता
  5. बच्चों के पालन-पोषण इत्यादि दोहरे पारिवारिक दायित्व के कारण नौकरी छोड़ना
  6. प्रदर्शन आकलन में पुरुषों की तुलना में उनके साथ भेदभाव

इस दिन को मनाने का उद्देश्य (Aim)

विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस- को विश्व स्तर पर मनाए जाने का उद्देश्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को चिन्हित करना है. साथ ही विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की समान सहभागिता और भागीदारी सुनिश्चित करना है.

International Day of Women and Girls in Science: ये भी है एक वजह

इंटरनेशनल डे ऑफ वीमेंस एंड गर्ल्स इन साइंस के इस दिन को मनाये जाने की वजह एक अध्य्यन भी रही. 14 देशों में कराए गए अध्ययन से पता चला, कि विज्ञान से जुड़े क्षेत्र में बैचलर्स डिग्री, मास्टर्स डिग्री और डॉक्टर्स डिग्री करने वाली महिला छात्राओं का प्रतिशत 18, 8 और 2 है. जबकि पुरुष छात्रों का प्रतिशत 37,18 और 6 है. यूनेस्को के आंकड़ों के (वर्ष 2014-16) के अनुसार, लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं उच्च शिक्षा में एसटीईएम (STEM : Science, Technology Engineering and Mathematics) से संबंधित क्षेत्रों का चयन करती हैं. इस क्षेत्र में महिलाएं और बालिकाएं भी आगे बढ़ सकें इसलिए इस दिन को मनाया जाता है.

साइंस एंड टेक्नोलॉजी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत

महिला वैज्ञानिकों ने जरूर अपने प्रयासों से देश का मान बढ़ाया है, लेकिन फिर भी इस क्षेत्र में अभी महिलाओं के लिए और अवसर हैं। इस क्षेत्र में अभी महिलाओं की भागीदारी को और बढ़ाने की आवश्यकता है। यूनेस्को के अनुसार विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्व में 30 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, सभी छात्राओं में से 30 प्रतिशत छात्राएं उच्च शिक्षा में एसटीईएम (STEM) से संबंधित क्षेत्रों का चयन करती हैं।

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विश्व स्तर पर महिला छात्रों का नामांकन विशेष रूप से आईसीटी (3 प्रतिशत) प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5 प्रतिशत) में कम है। साथ ही इंजीनियरिंग, विनिर्माण और निर्माण (8 प्रतिशत) में लंबे समय से चली आ रही पूर्वाग्रह और लिंग रूढ़िवादिता लड़कियों को पीछे ढकेल रही है, जिस कारण महिलाएं विज्ञान से संबंधित क्षेत्रों से दूर हो रही हैं।

International Day of Women and Girls in Science: महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में क्या हैं चुनौतियां?

हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि एसटीईएम (STEM) क्षेत्रों में महिलाएं कम पब्लिश करती हैं, उन्हें अपने शोध के लिए कम भुगतान किया जाता है और पुरुषों की तुलना में उनके करियर में प्रगति नहीं होती। हमारे भविष्य को वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति द्वारा चिह्नित किया जाएगा, जो केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब महिलाएं और लड़कियां निर्माता, मालिक और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार का नेतृत्व करें। एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में लैंगिक अंतर को कम करना सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और सभी लोगों के लिए काम करने वाले बुनियादी ढांचे, सेवाओं और समाधानों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।

जानिए उन 7 भारतीय महिला वैज्ञानिकों के बारे में जिन्होंने इतिहास रचकर भारत का मान-बढ़ाया

1. टेसी थॉमस
टेसी थॉमस, जिन्हें भारत की ‘मिसाइल वुमन’ के नाम से भी जाना जाता है। वे वैमानिकी प्रणालियों की महानिदेशक और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में अग्नि- IV मिसाइल की पूर्व परियोजना निदेशक हैं। वह भारत में एक मिसाइल परियोजना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला वैज्ञानिक हैं।

56 वर्षीय टेसी मिसाइल गाइडेंस में डॉक्टरेट हैं और तीन दशकों तक इस क्षेत्र में काम किया है। उन्होंने DRDO में मार्गदर्शन, प्रक्षेपवक्र सिमुलेशन और मिशन डिजाइन में योगदान दिया है। उसने लंबी दूरी की मिसाइल प्रणालियों के लिए मार्गदर्शन योजना तैयार की, जिसका उपयोग सभी अग्नि मिसाइलों में किया जाता है। उन्हें 2001 में अग्नि आत्मनिर्भरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह कई फैलोशिप और मानद डॉक्टरेट की प्राप्तकर्ता हैं।

2. रितु करिधल
चंद्रयान-2 मिशन के मिशन निदेशक के रूप में रितु करिधल को भारत की सबसे महत्वाकांक्षी चंद्र परियोजनाओं में से एक में भूमिका निभाने के लिए लाया गया था। वह विस्तार और शिल्प की आगे की स्वायत्तता प्रणाली के निष्पादन के लिए जिम्मेदार थी, जिसने अंतरिक्ष में उपग्रह के कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित किया और खराबी के लिए उचित रूप से जवाब दिया।’रॉकेट वुमन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से मशहूर रितु साल 2007 में ISRO में शामिल हुई और भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान के उप संचालन निदेशक भी थीं। 2007 में, उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इसरो यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया था।

3. मंगला मणि
इसरो की ‘पोलर वुमन’, मंगला मणि अंटार्कटिका के बर्फीले परिदृश्य में एक वर्ष से अधिक समय बिताने वाली इसरो की पहली महिला वैज्ञानिक हैं। 56 वर्षीय मंगला इस मिशन के लिए चुने जाने से पहले कभी बर्फबारी का अनुभव नहीं किया था। नवंबर 2016 में, वह 23 सदस्यीय टीम का हिस्सा थीं, जो अंटार्कटिका में भारत के अनुसंधान स्टेशन भारती में एक अभियान पर गई थीं। इसरो के ग्राउंड स्टेशन के संचालन और रखरखाव के लिए उन्होंने 403 दिन बिताए।

4. आनंदीबाई गोपालराव जोशी
आनंदीबाई गोपालराव जोशी भारत की पहली महिला फिजिशियन थीं। आनंदीबाई की शादी महज 9 साल की उम्र में हो गई थी। 14 साल की उम्र में आनंदीबाई मां बन गई थीं, लेकिन दवाई की कमी के कारण उनके बेटे की कम उम्र में ही मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने दवाइयों पर रिसर्च करने की सोची। आपको बता दें आनंदीबाई के पति उनसे उम्र में 20 साल बढ़े थे। आनंदीबाई के पति ने उन्हें विदेश जाकर मेडिसिन पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। आनंदीबाई ने वुमन्स मेडिकल कॉलेज पेंसिलवेनिया से पढ़ाई की थी। परिस्थितियां विपरित होने के बावजूद आनंदीबाई ने कभी भी हार नहीं मानी।

5. जानकी अम्माल
जानकी अम्माल को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री सम्मान पाने वालीं वो देश की पहली महिला वैज्ञानिक थीं। 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। जानकी अम्माल बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर के पद पर भी कार्यरत रहीं।

6. कमला सोहोनी
कमला सोहोनी प्रोफेसर सी वी रमन की पहली महिला स्टूडेंट थीं और कमला पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक भी थीं, जिन्होंने PhD की डिग्री हासिल की। कमला सोहोनी ने ये खोज की थी कि हर प्लांट टिशू में ‘cytochrome C’ नाम का एन्जाइम पाया जाता है।

7. असीमा चटर्जी
असीमा चटर्जी केमेस्ट्री में अपने कार्यों के लिए काफी प्रसिद्ध रहीं। असीमा चटर्जी ने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से 1936 में केमेस्ट्री सब्जेक्ट में ग्रैजुएशन की थी। एंटी-एपिलिप्टिक (मिरगी के दौरे), और एंटी-मलेरिया ड्रग्स का डेवलपमेंट असीमा चैटर्जी ने ही किया था। असीमा चैटर्जी कैंसर से जुड़ी एक रिसर्च में भी शामिल थीं।

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