“सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम” – यह प्रसिद्ध भजन पंक्ति एक गहरी आध्यात्मिक विधि की ओर इशारा करती है। इसका शाब्दिक अर्थ है कि मैं अपनी सांसों की माला पर अपने पी (प्रिय) का नाम सुमिरन करता हूं, यानि हर सांस के साथ अपने परम प्रिय भगवान का नाम जपता हूं। सांसों को माला बनाने का तात्पर्य है कि जैसे माला के मनके एक-एक करके जपे जाते हैं, वैसे ही प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाए । यह भजन मीरा बाई की अटूट भक्ति को दर्शाता है। इस लेख में हम इसी अवधारणा को समझेंगे और जानेंगे कि सतनाम का सांस-सांस जप (सतनाम जाप) ही वास्तविक भक्ति का मार्ग क्यों है। संत रविदास जी द्वारा दीक्षित मीरा बाई के प्रसंग से लेकर संत कबीर दास जी और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं के आधार पर हम जानेंगे कि “सांसों की माला” वास्तव में क्या है और सतनाम सुमिरन कैसे मोक्ष प्रदान करता है।
मीरा बाई की भक्ति और संत रविदास जी से सतनाम दीक्षा
मीरा बाई मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख भक्त थीं, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी प्रेममय भक्ति के लिए जाना जाता है। कम लोग जानते हैं कि मीरा बाई को सत्य भक्ति का मार्ग संत रविदास जी से प्राप्त हुआ था । संत रविदास जी महान भक्त और संत थे, जिन्हें मीरा बाई ने अपना गुरु माना। एक बार मीरा बाई को परमात्मा कबीर साहेब (जो उस युग में स्वयं धरती पर अवतरित थे) के सत्संग का अवसर मिला। वहां उन्होंने सृष्टि रचना का सत्य सुना और उन्हें एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण परम सर्वोच्च भगवान नहीं, बल्कि कोई अन्य ही सर्वोच्च परमात्मा है जो तीनों लोकों का पालन-पोषण करता है (मीराबाई के गुरु संत रविदास जी की सत्य कथा – Jagat Guru Rampal Ji)। सत्य ज्ञान मिलने पर मीरा बाई को मोक्ष हेतु सच्चे नाम (मोक्ष मंत्र) की इच्छा हुई। तब परमेश्वर कबीर साहेब ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्हें अपने शिष्य संत रविदास जी के पास नाम दीक्षा लेने भेजा ।
मीरा बाई विनम्रतापूर्वक संत रविदास जी के पास पहुंची और दीक्षा की इच्छा जताई। रविदास जी ने मीराबाई को बताया कि वह चमड़े का काम करने वाली जाति के एक अछूत समुदाय चमार से है जबकि आप मीरा राजपूत समुदाय से हैं जो एक उच्च जाति है। यदि वह उन्हें अपना गुरु बनाएगी तो उनके समुदाय के लोग नाराज हो जायेंगे। लेकिन भक्तमति मीराबाई ने अनुरोध किया कि वह दीक्षा लेना चाहती है। तब संत रविदास जी ने उन्हें नाम दीक्षा दी और उनके आध्यात्मिक गुरु बन गये।
संत गरीब दास जी महाराज जी अपनी वाणी में पुष्टि करते हैं कि रविदास जी परमेश्वर कबीर जी के शिष्य थे तथा उन्होंने मीराबाई को परमेश्वर कबीर जी के आदेश पर नाम दीक्षा दी थी
गरीब, रैदास खवास कबीर का, युगम युगन सत्संग।
मीरा का मुजरा हुआ चढ़ा नवेला रंग ||
– अर्थात संत रविदास, जो स्वयं कबीर साहेब के सेवक थे, ने कबीर जी के आदेश से मीरा को दीक्षित किया और मीरा की भक्ति को नया रंग चढ़ गया । गुरुदेव की आज्ञा पाकर मीरा बाई ने उसी वास्तविक नाम का जप आरंभ किया। अब उनका “पी” वास्तव में परमात्मा का सत्य स्वरूप था, जिसके नाम सुमिरन से वे हर क्षण जुड़ गईं। मीरा बाई के अनेक पदों में छिपे तौर पर इस गूढ़ सत्य का उल्लेख मिलता है – उनकी सांसों पर उसी परमप्रिय प्रभु का नाम चलने लगा था। यही कारण है कि “सांसों की माला” उनका मुख्य साधन बनी, जिससे उन्होंने आत्मिक आनंद और परमात्मा की प्राप्ति की। मीरा बाई का उदाहरण दिखाता है कि गुरु की कृपा से प्राप्त सतनाम का निरंतर जाप भक्ति का उच्चतम रूप है।
कबीर साहेब जी की वाणी: सांस-सांस नाम सुमिरन की महिमा
कबीर साहेब जी ने भक्तियोग में नाम सिमरन (भगवान के नाम का स्मरण) को सर्वोपरि बताया है। उनकी वाणी में बार-बार यह शिक्षण मिलता है कि मनुष्य को हर श्वास के साथ प्रभु का नाम जपना चाहिए, क्योंकि जीवन अनिश्चित है और यह सांसें ही वास्तविक माला हैं। कबीर जी कहते हैं:
“कबीर, श्वांस उश्वांस में नाम जपो, व्यर्था श्वांस ना खोय ।
ना भरोसा इस श्वांस का, आवन होय कि ना होय ॥”
(जानिये सूक्ष्मवेद और परमात्मा प्राप्त संतों की वाणी में सतनाम का प्रमाण – Jagat Guru Rampal Ji)
अर्थात् “प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में भगवान का नाम जपो, एक भी सांस व्यर्थ मत खोओ। इस सांस का कोई भरोसा नहीं, अगली सांस आएगी या नहीं – कुछ कहा नहीं जा सकता।” संत कबीर इस दोहे में जीवन की अनिश्चितता बताते हुए हर पल भगवान का नाम लेने की प्रेरणा देते हैं। यही भाव मीरा बाई के उपरोक्त भजन में है कि हर सांस में सतनाम का जाप किया जाना चाहिए ।
कबीर साहब जी की वाणी में आता है:
“कबीर, माला श्वांस-श्वांस की, फेरेंगे निज दास।
चौरासी भरमै नहीं, कटै कर्म की फांस ॥”
अर्थ: “संत कबीर कहते हैं कि मेरा सच्चा भक्त (निज दास) श्वास-श्वास की माला फेरता रहेगा। ऐसा करने से वह फिर चौरासी लाख जन्मों के चक्र में नहीं भटकेगा और उसके कर्म बंधन कट जाएंगे।” इस अमूल्य शिक्षा में कबीर जी यह रहस्य खोलते हैं कि सांसों के साथ किए जाने वाले नाम सिमरन से जन्म-मरण का बंधन छूट जाता है।
संत कबीर साहेब ने नाम जप की महिमा को अत्यंत मूल्यवान बताया है। एक ओर जहां लोग बाहरी पूजा-पाठ में लगे हैं, कबीर जी समझाते हैं कि यदि एक भी श्वास नाम जप के बिना निकल गई तो वह ऐसे मूल्यवान मोती के समान है जिसे खो देने पर चौदह लोकों की संपदा भी उसकी भरपाई नहीं कर सकती:
“कबीर, ऐसे मँहगे मोल का, एक श्वांस जो जाय।
चौदह लोक न पटतरे, काहे धूर मिलाय ॥”
अर्थात “एक सांस का मूल्य इतना अधिक है कि यदि यह व्यर्थ चली जाए तो चौदह लोकों की संपदा भी उसके बराबर नहीं ठहरती, मानो धूल के समान हो जाती है।” यह कथन सांस-सांस नाम जपने की अनिवार्यता पर बल देता है। स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब ने अपने अनुयायियों को सचेत किया है कि मनुष्य जन्म अनमोल है और सांसें गिनती की हैं, इसलिए हर श्वास का सदुपयोग करते हुए परमात्मा का सत्यनाम स्मरण करना ही कल्याणकारी है । श्वास-प्रश्वास के माध्यम से सतनाम जपने की एक विशेष विधि है, जिसे केवल तत्वदर्शी सतगुरु ही सही प्रकार से सिखा सकते हैं। संत कबीर की यह शिक्षा आगे चलकर कई संतों ने दोहराई – गुरुनानक देव जी ने भी कहा “सास सास सिमरो गोबिंद” (प्रत्येक सांस में गोविंद का सिमरन करो)
संत रामपाल जी महाराज की शिक्षा: सतनाम जाप ही सच्ची भक्ति
आज के युग में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज उसी नाम-सिमरन पर आधारित भक्ति मार्ग का प्रचार कर रहे हैं, जिसकी नींव संत कबीर साहेब ने रखी थी। संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संगों एवं ग्रंथों (जैसे ज्ञान गंगा, जीने की राह) में स्पष्ट करते हैं कि मोक्ष के लिए सतनाम का जप अनिवार्य है और इसे श्वास-उश्वास के माध्यम से निरंतर करना चाहिए (श्री गुरु ग्रंथ साहिब में नानक जी द्वारा सतनाम का रहस्य – Jagat Guru Rampal Ji)। सतनाम परमात्मा का वह वास्तविक नाम है जो पूर्ण गुरु द्वारा दीक्षा में प्रदान किया जाता है। पवित्र ग्रंथों (गीता अध्याय 17 श्लोक 23 आदि) में संकेत रूप में वर्णित “ओम तत सत” में से प्रथम दो शब्द (‘ओम-तत’) को सतनाम के रूप में जाना जाता हैं । यह गुप्त मोक्ष-मंत्र सतगुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है और फिर साधक को विधिपूर्वक इसका जप करना सिखाता है ।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि ईश्वर ने मानव को सीमित संख्या में सांसें दी हैं। मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है, इसलिए प्रत्येक श्वास का उपयोग सतभक्ति में करना चाहिए । उन्होंने अपने प्रवचनों में बारंबार कबीर साहेब के उक्त दोहों को उद्धृत करते हुए समझाया है कि सांस-सांस सतनाम सुमिरन करने से ही आत्मा का कल्याण होगा, अन्य कोई उपाय काम नहीं आएगा।
संत रामपाल जी महाराज की शरण में आए अनेक भक्त प्रमाण देते हैं कि सतनाम मंत्र का नियमित श्वास-श्वास जाप करने से उनके जीवन में चमत्कारिक सकारात्मक परिवर्तन आए – नशे छूटे, गृहकलह मिटे, बीमारियां तक दूर हुईं।
संत रामपाल जी भी “सांसों की माला” को ही सर्वोत्तम साधन मानते हैं। उनके आध्यात्मिक ग्रंथ ‘ज्ञान गंगा’ में कहा गया है कि:
“श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, व्यर्थ श्वास मत खोयो।
न जाने इस श्वास का आवन होय न होय॥”
यह मूलतः कबीर साहेब का ही उपदेश है जिसे वह वर्तमान में दोहरा रहे हैं। इस प्रकार संत रामपाल जी महाराज कबीर साहेब द्वारा बताए भक्ति मार्ग को आज के युग में पुनर्जीवित कर रहे हैं। वे स्वयं कहते हैं कि वर्तमान में एकमात्र वही तत्वदर्शी संत हैं जो सतनाम की सही पहचान और विधि बता रहे हैं । उन्होंने करोड़ों लोगों को नामदीक्षा देकर सांस-सांस सतनाम सुमिरन की राह दिखलाई है, जिससे मानव जाति के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हुआ है ।
FAQs on सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम”
Q1. सतनाम क्या है, और इसका जाप क्यों ज़रूरी है?
उत्तर: सतनाम अर्थात “सत्य नाम” (ओम-तत्), परमात्मा का गुप्त मंत्र है, जो पूर्ण गुरु से मिलता है। इसका जाप मोक्ष के लिए ज़रूरी है, क्योंकि यह आत्मा को जन्म-मरण से मुक्त करता है और ईश्वर प्राप्ति कराता है।
Q2. मीरा बाई ने संत रविदास जी से नाम दीक्षा क्यों ली?
उत्तर: मीरा बाई को सच्चा ज्ञान मिला कि मोक्ष के लिए सतनाम की भक्ति ज़रूरी है। कबीर साहेब जी के आदेश पर उन्होंने संत रविदास जी से सतनाम दीक्षा ली, जिससे उनकी भक्ति पूर्ण हुई और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हुआ।
Q3. सांसों के साथ सतनाम जपने से क्या लाभ हैं?
उत्तर: सांसों के साथ सतनाम जपने से कर्म कटते हैं, जन्म-मरण का चक्र टूटता है, आत्मिक शांति मिलती है, और मोक्ष प्राप्त होता है। यह मन को परमात्मा से जोड़ता है और ईश्वरीय कृपा दिलाता है।
Q4. सतनाम का जाप कैसे करें? माला ज़रूरी है?
उत्तर: सतनाम का जाप गुरु द्वारा दी गई विधि से, हर सांस के साथ मन में करना चाहिए। माला शुरू में ध्यान के लिए सहायक है, लेकिन असल साधना सांसों की माला पर होती है। अजपा जाप से हर पल परमात्मा से जुड़ाव रहता है।