Navratri 2024: नजरिया बदल देने वाली हकीकत

Navratri 2024 नजरिया बदल देने वाली हकीकत

नमस्कार पाठकों! आज हम भारत के प्रमुख हिंदू धर्म के महान त्यौहार नवरात्रि के बारे में एक अद्भुत आध्यात्मिक खुलासा करने जा रहे हैं, आज का विषय है की आखिर नवरात्रि के त्योहार को मनाना शास्त्र अनुकूल है या शास्त्र विरुद्ध। 

  • Navratri 2024: नजरिया बदल देने वाली हकीकत
  • Sharadiya Navratri 2024: क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार?
  • नवरात्रि पूजा विधि 2024
  • कौनसी नवरात्रि पूजा से मिलता है सर्वाधिक लाभ?
  • क्या है शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में अंतर?
  • किस परमात्मा की पूजा है सबसे श्रेष्ठ
  • पवित्र श्रीमद्भागवत गीता में व्रत का उल्लेख

Sharadiya Navratri 2024: क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार?

नवरात्रि का यह पावन त्यौहार भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रतिवर्ष दो बार मनाया जाता है, 

इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का अर्थ होता है “नौ रातें,” और हर दिन देवी के एक रूप की पूजा की जाती है। इस समय लोग व्रत रखते हैं. कलश स्थापना (घटस्थापना) करते हैं और दुर्गा देवी की पूजा करते हैं।

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नवरात्रि का त्यौहार महिषासुर नामक राक्षस के वध से जुड़ा हुआ है। त्रेता युग में महिषासुर ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल स्त्री ही मार सकती है। उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने माता दुर्गा से प्रार्थना की। माता ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध कर दसवें दिन उसका वध किया। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हुआ।

नवरात्रि पूजा विधि 2024

नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान कुछ खास नियम होते हैं जिनका श्रद्धालु पालन करते हैं।

– अन्न का सेवन नहीं करते।

– दिन में सोना निषेध होता है।

– बाल, दाढ़ी और नाखून नहीं काटते।

– किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते।

नवरात्रि के व्रत का उद्देश्य देवी दुर्गा की आराधना कर मोक्ष प्राप्त करना होता है। कुछ साधक सिद्धि और शक्ति प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं, तो कुछ लोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य तथा धन लाभ के लिए साधना करते हैं।

कौनसी नवरात्रि पूजा से मिलता है सर्वाधिक लाभ?

सामान्यतः हिंदू पंचांग के अनुसार देखा जाए तो साल में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है। नवरात्रि का अर्थ होता है “नौ रातें,” धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रे और होते हैं, एक गुप्त नवरात्रि जो माघ महिने में तथा दूसरी आषाढ़ के महीने में मनाई जाती है। 

*चैत्र और शारदीय नवरात्रि* में मुख्यतः मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। 

क्या है शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में अंतर?

यह नवरात्रि हिंदू नववर्ष की शुरुआत में चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होती है, इसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है। क्योंकि यह वसंत ऋतु में आती है. इस नवरात्रि का धार्मिक महत्व भी बड़ा है। इसमें लोग पूजा, व्रत, और देवी की आराधना करते हैं। 

शारदीय नवरात्रि (अश्विन नवरात्रि) अश्विन मास में जब पितृ पक्ष समाप्त होता है, तब शारदीय नवरात्रि शुरू होती है। यह त्योहार देवी दुर्गा की उपासना के लिए मनाया जाता है। यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चलता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत इस वर्ष गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 से होगी और शनिवार, 12 अक्टूबर 2024 तक पूजा-अर्चना की जाएगी। 

इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और हर दिन देवी के एक रूप की पूजा की जाती है। 

1. प्रतिपदा – घटस्थापना और शैलपुत्री पूजा  

2. द्वितीया – ब्रह्मचारिणी पूजा  

3. तृतीया – चंद्रघंटा पूजा  

4. चतुर्थी – कूष्मांडा पूजा  

5. पंचमी – स्कंदमाता पूजा  

6. षष्ठी – कात्यायनी पूजा  

7. सप्तमी – कालरात्रि पूजा  

8. अष्टमी – महागौरी पूजा (अष्टमी पर कन्या पूजन भी होता है)  

9. नवमी – सिद्धिदात्री पूजा

किस परमात्मा की पूजा है सबसे श्रेष्ठ

पवित्र श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में स्पष्ट लिखा है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए ;वह तत्वदर्शी संत उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराते हैं। 

➡️गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट किया है कि जो साधक शास्त्राविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, यानि जो भक्ति की साधना शास्त्रों में वर्णित नहीं है, उसे करता है तो उसे न तो सुख प्राप्त होता है, न उसे भक्ति शक्ति यानि सिद्धि प्राप्त होती है तथा न उसकी गति यानि मुक्ति होती है।

पवित्र श्रीमद्भागवत गीता में व्रत का उल्लेख

पवित्र गीता अध्याय 6, श्लोक 16 में कहा गया है कि, पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति न अधिक खाने वाले की न बिल्कुल ना खाने वाले की न ही ज्यादा जागने वाले की तथा न हीं ज्यादा शयन करने वाले की सफल होती है, इसलिए व्रत रखना शास्त्रों के अनुसार व्यर्थ सिद्ध हुआ है।

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