भारत को स्वतंत्र हुए 70 से अधिक वर्ष हो चुके हैं, और इसी समय में एक अन्य पड़ोसी देश, पाकिस्तान, भी अस्तित्व में आया। लेकिन पाकिस्तान के इतिहास का एक ऐसा पहलू है, जिसके बारे में हम लंबे समय तक अनजान रहे हैं।भारत हर साल 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है, जबकि पाकिस्तान में यह आयोजन 14 अगस्त को होता है। इस स्थिति में हर वर्ष यह सवाल उठता है कि एक साथ स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले इन दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस में एक दिन का अंतर कैसे आया? ये जानने से पहले आईए जानते हैं भारत और पाकिस्तान के विभाजन की दास्तान,
पाकिस्तान का निर्माण: मुस्लिम लीग से लेकर लाहौर प्रस्ताव तक का ऐतिहासिक सफर
पाकिस्तान का निर्माण एक जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है, जो ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के संघर्षों से शुरू हुई। 17वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन ने उपनिवेशवाद की नींव रखी, और 1757 में प्लासी की लड़ाई ने इसे और मजबूत किया। 1857 के विद्रोह के बाद, ब्रिटिश क्राउन ने भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया, जिससे सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों की लहर आई।पाकिस्तान के लिए एक अलग राज्य का सपना 1906 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना के साथ शुरू हुआ।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सुधारों और रौलट अधिनियम ने गुस्से को बढ़ावा दिया, जिसने असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों को जन्म दिया।1930 में अल्लामा इकबाल ने पाकिस्तान का विचार पेश किया, और 1933 में चौधरी रहमत अली ने ‘पाकिस्तान’ नाम का प्रस्ताव रखा। 1940 के दशक में, मुहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में मुस्लिम राष्ट्रवाद ने तेजी पकड़ी, culminating in the Lahore Resolution of 1940, जिसमें पाकिस्तान के निर्माण की मांग की गई, जिसने इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत की।
विभाजन की दीवार: भारत-पाकिस्तान के जन्म की ऐतिहासिक गाथा
15 अगस्त 1947 रात को 12:00 बज रहे थे। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी सो रही थी। उस वक्त भारत की आजादी का वह सुनहरा अध्याय लिखा जा रहा था, जिसका हम कई सालों से इंतजार कर रहे थे। अंग्रेजी हुकूमत से आजाद होने की खुशी इतनी ज्यादा थी कि सब लोगों की आंखों में आने वाले आजाद भारत के सुनहरे पल नजर आ रहे थे। जिसे पहले कई सालों से अंग्रेजों ने अपनी कैद में भर रखे थे।
उस वक्त देश के पहले प्रधानमंत्री “पंडित जवाहरलाल नेहरू” आजादी का पहला भाषण शुरू करते हैं, उनके स्पीच की शुरुआत इन लाइनों से होती है –“हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं पूरी तरह न सही लेकिन बहुत हद तक आज रात 12:00 बजे जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा”।
आखिरकार अंग्रेजी जकड़न की वह काली रात खत्म हुई और सूरज की पहली किरण के साथ आजादी की सुनहरी सुबह हुई ,लेकिन यह कोई आम सुबह नहीं थी, बल्कि आजादी की सुनहरी सुबह को पाने के लिए कई वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। लेकिन जितनी खुशी आजादी की हो रही थी तो दूसरी तरफ एक ऐसी दर्द भरी दास्तां हमारी चौखट पर दस्तक दे चुकी थी।
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की लकीर
उस लकीर ने भारत और पाकिस्तान को दो अलग-अलग भागों में बांट दिया और यह एक ऐसी लकीर थी जिसका खामियांजा हजारों लोगों ने अपनी जान देकर चुकाना पड़ा और करोड़ों लोग अपने बसे- बसाए घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए। कुछ महीने पहले जो देशवासी आपस में भाई की तरह मिलकर अंग्रेजों की हुकूमत से लड़ रहे थे। अब बंटवारे की लकीर की वजह से एक दूसरे के खूनी दुश्मन बन चुके थे। बंटवारे के विस्थापन में इंसानियत पूरी तरह खत्म हो गई।
अमृतसर का लाल अगस्त: 1947 के खूनी सप्ताह की अनकही कहानी
15 अगस्त 1947 से 9 दिन पहले 60 मुसलमान का कत्ल अमृतसर में कर दिया गया। इससे ठीक 2 दिन बाद यानी 6 अगस्त 1947 को 74 सिक्खों का कत्ल लुधियाना फिरोजपुर रोड जलालाबाद के पास कर दिया गया। सन 1947 के अगस्त महीने के पहले सप्ताह के भीतर एक खून खराबी से अमृतसर की जमीन लाल रंग ले चुकी थी। हर रोज तकरीबन 100 से अधिक लोग अपनी जान गंवाकर बंटवारे की कीमत चुका रहे थे। उस दर्द भरी दास्तां को आज देखा तो नहीं जा सकता है, लेकिन उस पल को महसूस जरूर किया जा सकता है।
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आजादी से 48 घंटे पहले यानी 13 अगस्त 1947 को, आजादी से केवल 48 घंटे पहले, लाहौर से अमृतसर के लिए एक ट्रेन रवाना हुई। लाहौर से मुगलपुरा स्टेशन से चलती ट्रेन में अमृतसर तक कोई जीवित व्यक्ति नहीं पहुंचा; 42 हिंदू-सिखों की हत्या कर दी गई थी। उसी समय, दिल्ली रेलवे स्टेशन से पाकिस्तान स्पेशल ट्रेन रवाना हुई जिसमें सरकारी अफसर और उनके परिवार थे। पटियाला पहुंचने पर ट्रेन पर हमला हुआ, जिसमें एक महिला और एक बच्चे की मौत हो गई। जब यह ट्रेन अमृतसर रेलवे स्टेशन पर पहुंची, तो वहां एक भी जीवित व्यक्ति नहीं था और ट्रेन लाशों से भरी हुई थी। बटवारे का यह दृश्य इसकी दर्दनाक सच्चाई को दर्शाता है।
आजादी का स्याह पक्ष: जब अमृतसर की ट्रेन बनी मौत का संदेश
15 अगस्त की शाम पाकिस्तान से जो ट्रेन आई अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर उस ट्रेन के अंदर सिर्फ और सिर्फ लाशें ही मौजूद थी और ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर जो लिखा था उसे देखकर सब लोग हैरान रह गए। उसके आखरी डिब्बे पर एक पर्चा छपा था और उस पर लिखा था कि – पटेल और नेहरू के लिए यह आजादी का तोहफा है। इसके बाद से दोनों तरफ से आने वाली ट्रेनों में लोगों को मारा जाने लगा। जिसमें कई बेकसूर लोग बलि चढ़ गए । जिससे हजारों लोगों को रातों-रात अपने घर छोड़कर जाना पड़ा। यह बटवारा इंसान इतिहास का बहुत ही काला अध्याय माना जाता है। इसके बारे में आज भी सुनते हैं तो शरीर में एक प्रकार की सिहरन पैदा हो जाती है।
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा: जिन्ना की महत्वाकांक्षा और इतिहास का मोड़
भारत और पाकिस्तान का बंटवारा करने में मोहम्मद अली जिन्ना का सबसे बड़ा रोल था, अगर मोहम्मद अली जिन्ना राजनीति में नहीं होते तो शायद समझौता हो जाता और आज का पाकिस्तान नहीं होता। मोहम्मद अली जिन्ना भारत के पहले प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। फिर जिन्ना को यह लगा कि मैं पूरे भारत का प्रधानमंत्री तो नहीं बन सकता हूं लेकिन पाकिस्तान का जरूर बन सकता हूँ । और फिर कुछ ऐसा ही हुआ 3 जून 1947 यह वही तारीख है जिस दिन भारत को आजाद करने की तारीख को तय किया गया और मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान को भी अलग करने की जिद पूरी हो गई।
इस दिन 15 अगस्त 1947 को तय किया गया था 73 दिन बचे थे। इन दिनों में जमीन पैसे जमा रूपये का बंटवारा इसके साथ ही रिजर्व बैंक में पड़ी सोने की ईटों का भी बंटवारा हुआ था बंटवारे का यह काम दो अनुभवी अधिकारियों के हवाले किया गया – “एच.एम पटेल और दूसरे चौधरी मोहम्मद अली”।
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इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इनके नीचे छोटे-मोटे अधिकारी भी काम कर रहे थे, जो अलग-अलग एरिया की रिपोर्ट बनाकर उनके पास भेज रहे थे । इन रिपोर्ट के आधार पर यह दोनों अधिकारी बंटवारे की सिफारिश तैयार करते थे ,जिन्हें आगे विधान परिषद के पास भेजा जाता था जिसके अध्यक्ष थे- “लॉर्ड माउंटबेटन”।
भारत-पाकिस्तान विभाजन: संपत्ति, पैसा और सरकारी दफ्तरों का अनोखा बंटवारा
पैसों का बंटवारा भारत के बैंकों में पड़ा पैसा अंग्रेजों से मिलने वाले पैसे से 17.54% हिस्सा पाकिस्तान को दिया जाएगा, इसके बदले में पाकिस्तान भारत के ऋण का 17.5% हिस्सा चुकाएगा। इसके अलावा भारत के सरकारी दफ्तर में पड़ी संपति का 80% हिस्सा भारत के लिए और 20% हिस्सा पाकिस्तान के लिए तय किया गया, फिर इन दफ्तर में पड़ी मेज कुर्सियां और टाइपराइटर का बंटवारा हुआ।
नोटों की छपाई से लेकर सैन्य सेवा तक: विभाजन के दर्दनाक फैसले
भारत के गुप्तचर विभाग में कोई बटवारा नहीं हुआ । उन्होंने कहा इस विभाग में किसी तरह की कमी नहीं की जाएगी और विभाग के अफसर इस बात पर अड़े रहे कि फाइल तो छोड़ो हम शाही तक पाकिस्तान तक नहीं जाने देंगे । पाकिस्तान के पास नोटों को छापने के लिए प्रेस नहीं थी और उस वक्त भारत में भी नोटों की छपाई के लिए एक ही प्रेस मशीन थी और भारत ने उसको पाकिस्तान को देने से मना कर दिया । जिसके बाद पाकिस्तान ने काम चलाने के लिए भारतीय करेंसी पर ही अपनी मोहर लगाकर करेंसी के रूप में इस्तेमाल किया। इसके बाद एक अहम बटवारा और था भारतीय सेना का जिसमें हिंदू, मुस्लिम , सिक्ख सब शामिल थे । भारतीय सेना के दो तिहाई सैनिक भारत के हिस्से में आने थे और एक तिहाई पाकिस्तान के हिस्से में यह भी पहले से ही तय था । यह बंटवारा इतना दर्दनाक था कि लाखों लोग अपना घर बार छोड़ने को मजबूर हो गए थे।
14 अगस्त: पाकिस्तान की स्वतंत्रता की ऐतिहासिक कहानी
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, पाकिस्तान और भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता देने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा सुनिश्चित करना था, क्योंकि एक साथ दोनों देशों को स्वतंत्रता देना संभव नहीं था।इतिहासकारों का मानना है कि पाकिस्तान ने 14 अगस्त को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई, जिसके कारण इस दिन को वहां स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह निर्णय उस समय के वायसराय, लॉर्ड माउंटबेटन, के द्वारा लिया गया, जिन्होंने एक साथ दिल्ली और कराची की यात्रा नहीं की। इस कारण उन्होंने पाकिस्तान को 14 अगस्त को सत्ता का हस्तांतरण किया, जबकि भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता दी गई। यही वजह है कि पाकिस्तान हर साल भारत से एक दिन पहले स्वतंत्रता का जश्न मनाता है।”
पाकिस्तान की आज़ादी: आधे घंटे की दूरी का प्रभाव
पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पाकिस्तान का समय भारत से आधे घंटे पीछे है। जब भारत में सुबह के 12 बजे होते हैं, तब पाकिस्तान में 11:30 बजे होते हैं। कहा जाता है कि जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पर हस्ताक्षर किए, तब रात के 12 बजे का समय था। इस स्थिति में, भारत में 15 अगस्त शुरू हो गया था, जबकि पाकिस्तान में 14 अगस्त के रात के 11:30 बज रहे थे।इसलिए, 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिली, और यही कारण है कि इस दिन को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस समय के वायसरॉय, लॉर्ड माउंटबेटन, ने ही पाकिस्तान को स्वतंत्र देश का दर्जा प्रदान किया था।
वास्तविक आज़ादी: सत् भक्ति का मार्ग और संतों की भूमिका
आजादी के कई आयाम होते हैं, लेकिन इसका सच्चा अनुभव तब तक संभव नहीं है जब तक मनुष्य वास्तविक स्वतंत्रता की गहराई को नहीं समझता। असली स्वतंत्रता तब हासिल होती है जब व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। यह मुक्ति केवल सत् भक्ति के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है, जिसे केवल तत्वदर्शी संत, अर्थात् पूर्ण संत, ही प्रकट कर सकते हैं। यहां आपके विषय को और प्रभावी शब्दों में प्रस्तुत किया गया है:
“यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के परिणामस्वरूप कई निर्दोष लोगों ने अपनी जानें गंवाईं। वहीं, 600 वर्ष पूर्व, जब कबीर साहेब जी मगहर में लीला कर रहे थे और सशरीर सतलोक जा रहे थे, तब उनके शरीर के बंटवारे को लेकर हिंदू और मुसलमानों के बीच एक भयानक गृह युद्ध छिड़ने की आशंका थी। लेकिन कबीर साहेब जी, जो पूर्ण परमात्मा थे, ने दोनों पक्षों को समझाया और एक बड़े गृह युद्ध को टाल दिया।” आज हो रहे सभी गृह युद्धों को केवल सत् भक्ति के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है। यह मार्गदर्शन वही बाखबर दे सकते हैं, जिनका उल्लेख पवित्र कुरान शरीफ की सूरत फुर्कानी (25:52-59) में किया गया है। वर्तमान में, वह बाखबर और कोई नहीं, बल्कि संत रामपाल जी महाराज हैं, जो सम्पूर्ण मानवता को सत् भक्ति का मार्ग दिखा रहे हैं और वास्तविक आज़ादी की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
पाकिस्तान स्वतन्त्रता दिवस के बारे में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न:
1:-पाकिस्तान में स्वतन्त्रता दिवस कब मनाया जाता है?
14 अगस्त 1947 ।
2:- भारत और पाकिस्तान का विभाजन किसने किया था?
मोहम्मद् अली जिन्ना।
3:- क्या कोई विभाग या सामान ऐसा था जिसका बटवारा नहीं हुआ?
गुप्तचर विभाग का बटवारा नहीं हुआ था।