सम्राट अशोक भारतीय इतिहास के सबसे महान और प्रभावशाली शासकों में से एक थे। वे मौर्य वंश के तृतीय सम्राट थे और अपनी विजयों, प्रशासनिक नीतियों, बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव, और सामाजिक कल्याणकारी कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी शासन शैली और नीतियाँ आज भी इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए अध्ययन का विषय बनी हुई हैं।
प्रारंभिक जीवन और सिंहासन ग्रहण
सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था। वे मौर्य सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे और चंद्रगुप्त मौर्य उनके पितामह थे। बचपन से ही वे बुद्धिमान, निडर और कुशल योद्धा थे। कहा जाता है कि वे अन्य राजकुमारों की तुलना में अधिक प्रतिभाशाली थे, लेकिन उनकी माता का दर्जा अपेक्षाकृत कम था, जिससे वे प्रारंभ में सिंहासन के दावेदारों में प्रमुख नहीं माने जाते थे।
बिंदुसार की मृत्यु के बाद, अशोक ने 273 ईसा पूर्व में सत्ता संभाली। हालांकि, उनके सिंहासन पर बैठने को लेकर कई विरोधी थे। सत्ता के लिए संघर्ष हुआ, जिसमें अशोक ने अपने भाइयों को हराकर मौर्य साम्राज्य का शासक बनने का मार्ग प्रशस्त किया। उनका राजतिलक 269 ईसा पूर्व में हुआ था।
कलिंग युद्ध और परिवर्तन
अशोक अपने शासन के आरंभिक वर्षों में विस्तारवादी नीति अपनाते थे। उनके सबसे प्रसिद्ध युद्धों में से एक कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) था, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
कलिंग युद्ध के कारण
कलिंग (वर्तमान ओडिशा) एक स्वतंत्र राज्य था और मौर्य साम्राज्य का हिस्सा नहीं था। यह व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था और सामरिक रूप से भी बहुत सशक्त था। अशोक इसे अपने साम्राज्य में शामिल करना चाहते थे।
कलिंग युद्ध के परिणाम
युद्ध में हजारों सैनिकों और नागरिकों की मृत्यु हुई।
युद्ध के बाद की विभीषिका देखकर अशोक अंदर तक हिल गए। उन्होंने महसूस किया कि युद्ध केवल विनाश और पीड़ा लाता है। इस घटना ने उन्हें शांति और अहिंसा की ओर मोड़ दिया।युद्ध के बाद अशोक ने हिंसा का त्याग कर दिया और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपनाया।
बौद्ध धर्म की ओर झुकाव
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को न केवल अपनाया, बल्कि उसके प्रचार-प्रसार के लिए भी कई प्रयास किए।उन्होंने धम्म नीति की घोषणा की, जो बौद्ध धर्म की नैतिक और सामाजिक शिक्षाओं पर आधारित थी।
अहिंसा, सत्य, करुणा, और सहिष्णुता को अपने शासन का आधार बनाया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विभिन्न देशों में दूत भेजे। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार किया।
अशोक के शिलालेख और स्तंभ
अशोक ने अपने विचारों और नीतियों को जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए कई शिलालेख और स्तंभ बनवाए। ये शिलालेख विभिन्न भाषाओं (ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक और अरामाइक) में लिखे गए थे।
शिलालेखों की विशेषताएँ
शिलालेख इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनकी विशेषताएं हैं:
- इनमें अशोक की नीति, बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ और सामाजिक कल्याण के नियम दर्ज थे।
- ये जनता को नैतिकता, धार्मिक सहिष्णुता और सदाचार की शिक्षा देते थे।
- इनमें अशोक के शासन की उपलब्धियों का भी उल्लेख मिलता है।
अशोक स्तंभों में सबसे प्रसिद्ध सारनाथ का अशोक स्तंभ है, जिसका शेर शीर्ष (Lion Capital) भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बना।
प्रशासनिक सुधार
अशोक केवल एक महान योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने अपने साम्राज्य में कई सुधार किए। उन्होंने पूरे साम्राज्य को छोटे-छोटे प्रशासनिक इकाइयों में बाँटकर कुशल शासन प्रणाली बनाई। अधिकारियों की नियुक्ति की, जिन्हें धर्म महामात्र कहा जाता था।व्यापार और कृषि को बढ़ावा दिया।
सामाजिक सुधार
सम्राट अशोक अच्छे योद्धा होने के साथ एक अच्छे समाज सुधाकर भी थे। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों को भी करवाया।
- सड़कों, कुओं, धर्मशालाओं और अस्पतालों का निर्माण कराया।
- मानव और पशु कल्याण के लिए विशेष योजनाएँ बनाईं।
- महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए।
अशोक का प्रभाव
- अशोक ने अपने शासनकाल में जो नीतियाँ लागू कीं, उन्होंने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला।
- उनके बाद मौर्य साम्राज्य कमजोर हो गया और लगभग 50 वर्षों बाद इसका पतन हो गया।
- बौद्ध धर्म को वैश्विक पहचान मिली और यह भारत से बाहर श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान और अन्य एशियाई देशों में फैला।
- उनकी प्रशासनिक और धार्मिक नीतियों को आगे चलकर कई शासकों ने अपनाया।
निधन और विरासत
सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ। उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा और लगभग 185 ईसा पूर्व में समाप्त हो गया।
अशोक की महानता का कारण
सम्राट अशोक एक महान सम्राट थे। उनकी महानता का अंदाजा निम्नलिखित बातों से लगाया जा सकता है।
- वे पहले भारतीय सम्राट थे, जिन्होंने युद्ध के बजाय शांति और धर्म को अपनाया।
- उन्होंने धर्म के आधार पर शासन किया, जिससे समाज में नैतिकता और करुणा का विकास हुआ।
- उनके शिलालेख और स्तंभ आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक हैं।
अशोक केवल एक सम्राट नहीं थे, बल्कि एक ऐसे शासक थे जिन्होंने अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। वे अपने समय में सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक थे, लेकिन उन्होंने अहिंसा और दया के मार्ग को अपनाकर अपनी महानता सिद्ध की थी। उनके विचार और नीतियाँ आज भी दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। इसी कारण उन्हें “अशोक द ग्रेट” कहा जाता है।
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FAQs
सम्राट अशोक के बारे में इतिहास में क्या प्रमाण है?
सम्राट अशोक विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान शासक के रूप में जाने जाते थे। अशोक बौद्ध धर्म के सबसे प्रतापी राजा थे।
विश्व में सम्राट अशोक का क्या स्थान है?
चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं।
सम्राट अशोक की पत्नी का नाम क्या था ?
महारानी देवी या सिर्फ देवी, सम्राट अशोक की पहली पत्नी थी और उनके तीन बच्चे उन्नेंद्र, महेंद्र और संघमित्रा थे।