बैंकॉक, 1 सितंबर — थाईलैंड की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर सामने आया है। संवैधानिक अदालत ने प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्रा को पद से हटाने का आदेश दिया, जिसके बाद उप प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाल लिया। यह घटनाक्रम देश की राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।
अदालत का फैसला: नैतिकता उल्लंघन बना बर्खास्तगी का कारण
29 अगस्त को थाईलैंड की संवैधानिक अदालत ने पैतोंगटार्न को एक लीक हुई फोन कॉल के आधार पर संविधान और नैतिक मानकों के उल्लंघन का दोषी ठहराया। कॉल में उन्होंने कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हून सेन को “अंकल” कहकर संबोधित किया और थाई सेना की आलोचना की थी। अदालत ने इसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा और संवैधानिक मर्यादा के खिलाफ माना।
नौ सदस्यीय न्यायाधीश पैनल ने 6-3 मतों से उन्हें पद से हटाने का निर्णय सुनाया। अदालत ने यह भी कहा कि पैतोंगटार्न का व्यवहार प्रधानमंत्री पद की नैतिक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं था। इसके साथ ही, उनके पूरे मंत्रिमंडल को भी बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि, अदालत ने आदेश दिया कि शेष सदस्य तब तक कार्यवाहक रूप में जिम्मेदारियाँ निभाते रहेंगे जब तक नया मंत्रिमंडल गठित नहीं हो जाता।
संक्रमणकालीन सरकार और नई नियुक्तियाँ
प्रधानमंत्री कार्यालय मंत्री चुसाक सिरिनिल ने विशेष कैबिनेट बैठक के बाद घोषणा की कि प्रोमिन लेर्टसुरीदेज को प्रधानमंत्री का महासचिव नियुक्त किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संक्रमणकालीन अवधि में कैबिनेट एक सख्त प्रशासनिक ढांचे के तहत काम करेगी ताकि देश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे।
फुमथम वेचायाचाई, जो पहले उप प्रधानमंत्री थे, अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में शासन की बागडोर संभालेंगे। उनका कार्यकाल तब तक रहेगा जब तक संसद नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं कर लेती। संक्रमणकालीन सरकार की प्राथमिकता है कि वह संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए देश में स्थिरता बनाए रखे।
संसद की अगली भूमिका
प्रतिनिधि सभा सचिवालय ने 3 से 5 सितंबर तक संसद की बैठक के लिए नोटिस जारी किया है। संसद का निचला सदन अब नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए मतदान करेगा। यह प्रक्रिया 2025 की वर्तमान राजनीतिक स्थिति के आधार पर होगी, न कि 2023 के आम चुनाव में प्रस्तुत उम्मीदवारों की सूची पर।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव थाईलैंड की लोकतांत्रिक प्रणाली की परीक्षा होगी। गठबंधन की नाजुक स्थिति और विपक्ष की रणनीति इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। कई दलों ने पहले ही संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा शुरू कर दी है।
पैतोंगटार्न की प्रतिक्रिया: संयम और सहयोग की अपील
39 वर्षीय पैतोंगटार्न शिनावात्रा, जो फेउ थाई पार्टी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनावात्रा की पुत्री हैं, ने अदालत के फैसले को विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया। उन्होंने कहा:
“मैं एक थाई नागरिक के रूप में अपने देश, धर्म और राजा से प्रेम करती हूं। यह निर्णय मेरे लिए अप्रत्याशित है, लेकिन मैं इसे स्वीकार करती हूं। मेरा उद्देश्य केवल लोगों की सुरक्षा था।”
उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से सहयोग और संवाद की अपील की ताकि भविष्य में ऐसे व्यवधानों से बचा जा सके और देश में स्थिरता बनी रहे। पैतोंगटार्न ने यह भी कहा कि वह राजनीति से पीछे नहीं हटेंगी और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए काम करती रहेंगी।
गौरतलब है कि पैतोंगटार्न को अगस्त 2024 में संसदीय वोट से प्रधानमंत्री चुना गया था, जिससे वे देश की सबसे युवा और दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनीं। उनकी नियुक्ति भी एक संकट के बाद हुई थी, जब उनके पूर्ववर्ती श्रीथा थाविसिन को एक आपराधिक दोषसिद्धि वाले मंत्री की नियुक्ति के मामले में नैतिकता उल्लंघन का दोषी ठहराकर पद से हटाया गया था।
निष्कर्ष: थाईलैंड की राजनीति नए मोड़ पर
थाईलैंड अब एक संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहा है। कार्यवाहक सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश में स्थिरता बनाए रखे और संसद में नए प्रधानमंत्री के चयन की प्रक्रिया को सुचारू रूप से पूरा करे। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन नया नेतृत्व संभालता है और क्या थाईलैंड की राजनीति एक नई दिशा में बढ़ती है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर अब संसद की कार्यवाही पर टिकी है। क्या देश एक स्थिर और पारदर्शी नेतृत्व की ओर बढ़ेगा, या फिर यह संकट और गहराएगा — यह आने वाला समय बताएगा।
सत्ता और पद हमेशा परिवर्तनशील हैं, लेकिन सत्य, धर्म और नैतिकता शाश्वत हैं। इतिहास गवाह है कि जब भी शासक स्वार्थ, छल या नैतिकता-विरोधी मार्ग अपनाते हैं, तो राजनीतिक संकट जन्म लेता है। यदि नेतृत्व सच्चे ज्ञान और न्याय पर आधारित हो, तो समाज में स्थिरता और शांति बनी रहती है।
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