नई दिल्ली. पंजाब के शंभू बॉर्डर पर पिछले 10 महीने से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे किसानों ने अब दिल्ली की ओर कूच करने का ऐलान कर दिया है। किसान संगठनों ने 6 दिसंबर को अपने बड़े आंदोलन की योजना के तहत यह कदम उठाया है। शंभू बॉर्डर पर जमे किसान 13 फरवरी से सरकार की नीतियों के खिलाफ डटे हुए हैं। अब इस आंदोलन में नई ऊर्जा भरते हुए किसान नेताओं ने साफ कर दिया है कि उनकी मांगें पूरी हुए बिना आंदोलन खत्म नहीं होगा।
किसान संगठन के नेता सरवन सिंह पंधेर ने बुधवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शुक्रवार, दोपहर 1 बजे 101 किसानों का जत्था शंभू बॉर्डर से दिल्ली के लिए रवाना होगा। उन्होंने कहा, “हम शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को लेकर आगे बढ़ेंगे। सरकार ने अब तक हमारी बातों पर ध्यान नहीं दिया है। अगर वे हमें रोकने की कोशिश करते हैं तो यह हमारी नैतिक जीत होगी।”
मुख्य बिंदु
- दिल्ली कूच की तैयारी: किसानों और प्रशासन के बीच फिर टकराव की आशंका
- किसानों की आवाज़: MSP गारंटी और कर्ज माफी पर बड़ी लड़ाई की चेतावनी
- हरियाणा प्रशासन ने सख़्त की सुरक्षा व्यवस्था
- सरकार और किसान फिर आमने-सामने
- किसानों के शांतिपूर्ण संघर्ष की परीक्षा: सरकार के कदमों पर टिकी नजर
- आध्यात्मिकता से मिलेगी संघर्षों का समाधान
दिल्ली कूच के दौरान क्या हो सकती हैं मुश्किलें?
पिछले आंदोलन के दौरान कई बार किसानों और सुरक्षाबलों के बीच टकराव की स्थिति बनी थी। फरवरी में खनौरी बॉर्डर पर झड़प के दौरान पंजाब के किसान शुभकरण सिंह की मौत हो गई थी, जब प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली की ओर बढ़ने का प्रयास किया था।
अब फिर से किसान आंदोलन को नया मोड़ देते हुए दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं। शंभू बॉर्डर और आस-पास के इलाकों में पुलिस ने पहले ही बैरिकेड्स लगा दिए हैं और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी कर दी गई है।
किसान क्यों उठा रहे यह कदम?
किसानों की प्रमुख मांगें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी, कृषि कर्ज माफी, पेंशन व्यवस्था, बिजली दरों में स्थिरता, और पुलिस मामलों की वापसी हैं।
किसान नेताओं का कहना है कि सरकार उनकी इन मांगों को नजरअंदाज कर रही है। सरवन सिंह पंधेर ने कहा “अगर हमारी मांगे जल्द पूरी नहीं हुईं, तो देश भर में किसान एकजुट होकर बड़ा आंदोलन करेंगे।”
हरियाणा में हाई अलर्ट के बीच धारा 144 लागू
हरियाणा में अंबाला प्रशासन ने किसानों की दिल्ली कूच योजना के मद्देनजर हाई अलर्ट जारी कर दिया है। अंबाला जिला पुलिस ने सीमा पर सख्त सुरक्षा व्यवस्था की है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मौके पर तैनात किया गया है। धारा 144 लागू होने के कारण किसी भी तरह की बड़ी सभा या रैली पर रोक लगाई गई है।
अंबाला प्रशासन ने किसानों से अपील की है कि वे दिल्ली कूच का निर्णय लेने से पहले पुलिस की अनुमति प्राप्त करें। हालांकि, किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे शांतिपूर्ण ढंग से मार्च करेंगे और अपने हक के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।
पुराने घाव और अधूरी मांगें: किसान आंदोलन के अहम मुद्दे
इससे पहले भी किसान संगठनों ने सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन का ऐलान किया था। 2020-21 में दिल्ली की सीमाओं पर 3 कृषि कानूनों के विरोध में महीनों तक किसान संगठनों का आंदोलन चला था। अंततः सरकार को किसानों की मांगें मानते हुए कानून वापस लेने पड़े।
किसानों का कहना है कि 2020-21 के आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को अब तक मुआवजा नहीं मिला है। इसके अलावा, लखीमपुर खीरी हिंसा के दोषियों पर भी सरकार ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की है।
क्या होगा आंदोलन का अंजाम?
किसानों का यह आंदोलन आने वाले दिनों में कितना प्रभावी होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। सरकार और किसान संगठनों के बीच संवाद की कमी ने हालात को और जटिल बना दिया है। पुलिस प्रशासन और किसानों के बीच टकराव की आशंका बनी हुई है। किसान संगठनों का कहना है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन अगर उन्हें रोका गया, तो वे अपने हक के लिए हर स्तर पर संघर्ष करेंगे। शंभू बॉर्डर पर किसानों के इरादे साफ हैं—यह सिर्फ अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि न्याय पाने की भी कोशिश है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है।
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